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'परमानेंट 5' की दादागिरी को पहली बार भारत ने दिया झटका

    • राहुल लाल
    • Updated: 21 नवम्बर, 2017 06:02 PM
  • 21 नवम्बर, 2017 06:02 PM
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संयुक्त राष्ट्र के 70 वर्षों के इतिहास में एलीट पी-5 ग्रुप का कोई भी उम्मीदवार अंतर्राष्ट्रीय अदालत से गैर हाजिर नहीं रहा. अब जस्टिस भंडारी के निर्वाचन के बाद पहली बार ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व आईसीजे में नहीं होगा.

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में एक बड़ी कूटनीतिक जीत दर्ज की है. इसके अंतर्गत जस्टिस दलवीर भंडारी को हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के लिए दोबारा चुन लिया गया. आईसीजे निर्वाचन में भारत को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 में से अभूतपूर्व 183 वोट मिले. जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 में से 15 वोट भी मिले.

दलबीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के जस्टिस क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था. लेकिन ब्रिटेन को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपेक्षित समर्थन नहीं मिला. लिहाजा ब्रिटेन ने अंतिम समय में उनकी उम्मीदवारी वापस ले ली. अंतिम क्षणों में ब्रिटेन के हटने की घोषणा से सुरक्षा परिषद को भारी झटका लगा है. 1945 में संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद से इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र के सभी पांच सदस्यों का आईसीजे में प्रतिनिधित्व नहीं है.

भारत की इस ऐतिहासिक जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने दलवीर भंडारी के साथ-साथ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को बधाई देते हुए ट्वीट भी किया-

इन चुनाव परिणामों से भारत के विश्व समुदाय में बढ़ते साख को स्पष्टत: देखा जा सकता है. जो वस्तुतः शक्तिशाली उभरते भारत को दिखाता है. पिछले एक सप्ताह से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जस्टिस भंडारी का निर्वाचन पूर्णतः नाटकीय घटनाक्रम के साथ आगे बढ़ा. सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत शुरुआत से ही भारतीय जज जस्टिस भंडारी के साथ था. लेकिन ब्रिटेन के सुरक्षा परिषद में होने के नाते, पी-5 अर्थात 'वीटो' प्राप्त स्थायी सदस्यों का समूह रोढ़ा अटका रहा था. बहरहाल, वीटो की शक्ति रखने वाले पांच स्थायी सदस्यों के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से भारत की अभूतपूर्व जीत से पांचों देश- ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रुस और अमेरिका सकते में हैं.     

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में एक बड़ी कूटनीतिक जीत दर्ज की है. इसके अंतर्गत जस्टिस दलवीर भंडारी को हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के लिए दोबारा चुन लिया गया. आईसीजे निर्वाचन में भारत को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 में से अभूतपूर्व 183 वोट मिले. जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 में से 15 वोट भी मिले.

दलबीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के जस्टिस क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था. लेकिन ब्रिटेन को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपेक्षित समर्थन नहीं मिला. लिहाजा ब्रिटेन ने अंतिम समय में उनकी उम्मीदवारी वापस ले ली. अंतिम क्षणों में ब्रिटेन के हटने की घोषणा से सुरक्षा परिषद को भारी झटका लगा है. 1945 में संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद से इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र के सभी पांच सदस्यों का आईसीजे में प्रतिनिधित्व नहीं है.

भारत की इस ऐतिहासिक जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने दलवीर भंडारी के साथ-साथ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को बधाई देते हुए ट्वीट भी किया-

इन चुनाव परिणामों से भारत के विश्व समुदाय में बढ़ते साख को स्पष्टत: देखा जा सकता है. जो वस्तुतः शक्तिशाली उभरते भारत को दिखाता है. पिछले एक सप्ताह से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जस्टिस भंडारी का निर्वाचन पूर्णतः नाटकीय घटनाक्रम के साथ आगे बढ़ा. सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत शुरुआत से ही भारतीय जज जस्टिस भंडारी के साथ था. लेकिन ब्रिटेन के सुरक्षा परिषद में होने के नाते, पी-5 अर्थात 'वीटो' प्राप्त स्थायी सदस्यों का समूह रोढ़ा अटका रहा था. बहरहाल, वीटो की शक्ति रखने वाले पांच स्थायी सदस्यों के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से भारत की अभूतपूर्व जीत से पांचों देश- ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रुस और अमेरिका सकते में हैं.     

जस्टिस भंडारी के निर्वाचन में 11वें राउंड तक सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा जिस तरह आमने-सामने थे, उस गतिरोध से 2 बातें स्पष्ट हो गई हैं-

पहला- भारत जैसे देशों के लिए बड़ा पावर शिफ्ट हुआ, जिसे रोका नहीं जा सकता.

और दूसरा- बदलाव को स्वीकार करने के लिए वीटो की शक्ति प्राप्त सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य तैयार नहीं हैं.

संयुक्त राष्ट्र के 70 वर्षों के इतिहास में एलीट पी-5 ग्रुप का कोई भी उम्मीदवार अंतर्राष्ट्रीय अदालत से गैर हाजिर नहीं रहा. अब जस्टिस भंडारी के निर्वाचन के बाद पहली बार ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व आईसीजे में नहीं होगा.

हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की 15 सदस्यीय पीठ के लिए, एक तिहाई सदस्य हर तीन साल में 9 साल के लिए चुने जाते हैं. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में अलग-अलग लेकिन एक ही समय में चुनाव कराये जाते हैं. आईसीजे में चुनाव के लिए मैदान में उतरे कुल 6 में से 4 उम्मीदवारों को संयुक्त राष्ट्र कानूनों के अनुसार चुना गया और उन्हें महासभा एवं सुरक्षा परिषद दोनों में पूर्ण बहुमत मिला.

फ्रांस के रोनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद यूसुफ, ब्राजील के एंतोनियो अगस्ते कानकाडो त्रिनदादे और लेबनान के नवाब सलाम को पिछले गुरुवार 9 नवंबर को 4 दौर के चुनाव के बाद चुना गया. आईसीजे के एक उम्मीदवार के चयन के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद ने सोमवार 13 नवंबर को अलग-अलग बैठक की, जो अनिर्णीत रहा था.

सुरक्षा परिषद की हठधर्मिता-

दलवीर भंडारी ने पी-5 देशों का वर्चस्व तोड़ दिया

सुरक्षा परिषद में चुनाव के पांचों दौर में ग्रीनवुड को 9 और भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी को 6 वोट मिले. सुरक्षा परिषद में बहुमत के लिए 8 मतों की जरुरत होती है. ब्रिटेन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है. इस कारण से जस्टिस भंडारी की तुलना में ग्रीनवुड को फायदा मिला हुआ था. जस्टिस भंडारी को महासभा के सभी 5 दौरों के चुनाव में 115 वोट मिले थे. सोमवार 13 नवंबर को ये संख्या बढ़कर 121 हो गई. महासभा में पूर्ण बहुमत के लिए 97 चाहिए थे. जबकि ग्रीनवुड के वोटों की संख्या अप्रत्याशित तौर पर 76 से कम होकर 68 रह गई. लेकिन भंडारी को महासभा में मिले बहुमत को सुरक्षा परिषद् नजरअंदाज करती रही.

सुरक्षा परिषद की इस हठधर्मिता से स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र के लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की सख्त आवश्यकता है. वीटो एवं स्थायित्व के विशेषाधिकार से युक्त पी-5 समूह सुरक्षा परिषद के द्वारा महासभा की लोकतांत्रिक आवाज को लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा है. भारतीय उम्मीदवार जस्टिस दलवीर भंडारी एवं ब्रिटिश उम्मीदवार ग्रीनवुड के चयन में एक तरह से सुरक्षा परिषद और महासभा आमने-सामने रही, जिससे संयुक्त राष्ट्र की वैधता और प्रभावशीलता दांव पर थी. वैश्विक अदालत के न्यायधीशों को संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के बहुमत का प्रतिनिधित्व करना चाहिए. सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों का क्लब इस तरह आगे नहीं बढ़ सकता.

ताजा चुनाव से साफ है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना समर्थन नहीं खोया है, बल्कि उसके समर्थन में वृद्धि ही हुई है. वहीं पी-5 देश अपने में से एक भी उम्मीदवार को छोड़ना नहीं चाहते थे. सामान्य परिस्थितियों में जस्टिस भंडारी के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 2 या 3 वोट और आसानी से मिल सकते थे. लेकिन पी-5 समूह के देश 11 राउंड तक अपनी पॉजिशन में बदलाव के लिए तैयार नहीं दिख रहे थे. जबकि सच्चाई यह है कि भारत पी-5 का सदस्य नहीं है. इसी भारत ने ब्रिटेन की दावेदारी को समाप्त कर दिया. भारत ने दिखा दिया है कि लंबे समय तक पी-5 का वर्चस्व नहीं रह सकता.

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