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मोदी को 2019 में घेरने का 'आप' का फॉर्मूला दमदार तो है, लेकिन...

    • आईचौक
    • Updated: 17 सितम्बर, 2017 02:55 PM
  • 17 सितम्बर, 2017 02:55 PM
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भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना आम आदमी पार्टी ने ही दिखाया था, लेकिन हुआ क्या? जिन आर्दशों और मूल्यों के दावे आप के नेता कर रहे थे बाद में उन्हीं के कई साथियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे.

अगर बीजेपी पर ये इल्जाम लगता है कि वो विपक्ष को नेस्तनाबूद करने में जुटी है, तो विपक्ष भी इस आरोप से बच नहीं सकता कि वो एकजुट होना ही नहीं चाहता. दिल्ली में सोनिया गांधी के लंच और चेन्नई में करुणानिधि की बर्थडे पार्टी से लेकर पटना में लालू प्रसाद की रैली तक - हर बार विपक्ष की खेमेबंदी साफ नजर आई है. सिर्फ ये तीन मौके ही नहीं, हर बार ऐसा हुआ कि कोई न कोई नेता दूर रहा. इनमें एक और बात भी कॉमन रही, इन सभी से आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को पूरी तरह अलग रखा गया. राष्ट्रपति चुनाव में तो गजब हाल रहा, विपक्षी दलों का जो ग्रुप बना उसमें केजरीवाल को नहीं रखा गया - लेकिन उनकी पार्टी के वोट विपक्षी उम्मीदवार को ही पड़े.

नीतीश कुमार के बाद अब आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया भी कह रहे हैं कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ा होने वाला विपक्ष कहीं भी नजर नहीं आ रहा है.

आप का आकलन

नीतीश ने अपनी बात सवालिया लहजे में कही थी - 2019 मोदी के मुकाबले में कोई है क्या? सुन कर साफ लगा, ऐसा कहना उनकी मजबूरी थी - मन की बात नहीं. लालू से पीछा छुड़ाने के लिए महागठबंधन छोड़ना नीतीश की मजबूरी थी और वैसी ही मजबूरी कुर्सी के लिए बीजेपी से हाथ मिलाना भी रही. लेकिन तकरीबन वही बात अब आम आदमी पार्टी नेता मनीष सिसोदिया भी कह रहे हैं. जाहिर है उनके सामने नीतीश जैसी मजबूरी तो नहीं है.

संडे एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा, "पांच-पांच आइडिया लेकर लोग साथ साथ चलना भी चाहें तो वे विपक्ष का रूप नहीं ले सकते. ऐसे पांच लोग जिनमें सभी की महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने की हो वे कभी भी एक मजबूत विपक्ष की शक्ल नहीं ले सकते."

कभी एकजुट हो पाएगा...

अगर बीजेपी पर ये इल्जाम लगता है कि वो विपक्ष को नेस्तनाबूद करने में जुटी है, तो विपक्ष भी इस आरोप से बच नहीं सकता कि वो एकजुट होना ही नहीं चाहता. दिल्ली में सोनिया गांधी के लंच और चेन्नई में करुणानिधि की बर्थडे पार्टी से लेकर पटना में लालू प्रसाद की रैली तक - हर बार विपक्ष की खेमेबंदी साफ नजर आई है. सिर्फ ये तीन मौके ही नहीं, हर बार ऐसा हुआ कि कोई न कोई नेता दूर रहा. इनमें एक और बात भी कॉमन रही, इन सभी से आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को पूरी तरह अलग रखा गया. राष्ट्रपति चुनाव में तो गजब हाल रहा, विपक्षी दलों का जो ग्रुप बना उसमें केजरीवाल को नहीं रखा गया - लेकिन उनकी पार्टी के वोट विपक्षी उम्मीदवार को ही पड़े.

नीतीश कुमार के बाद अब आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया भी कह रहे हैं कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ा होने वाला विपक्ष कहीं भी नजर नहीं आ रहा है.

आप का आकलन

नीतीश ने अपनी बात सवालिया लहजे में कही थी - 2019 मोदी के मुकाबले में कोई है क्या? सुन कर साफ लगा, ऐसा कहना उनकी मजबूरी थी - मन की बात नहीं. लालू से पीछा छुड़ाने के लिए महागठबंधन छोड़ना नीतीश की मजबूरी थी और वैसी ही मजबूरी कुर्सी के लिए बीजेपी से हाथ मिलाना भी रही. लेकिन तकरीबन वही बात अब आम आदमी पार्टी नेता मनीष सिसोदिया भी कह रहे हैं. जाहिर है उनके सामने नीतीश जैसी मजबूरी तो नहीं है.

संडे एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा, "पांच-पांच आइडिया लेकर लोग साथ साथ चलना भी चाहें तो वे विपक्ष का रूप नहीं ले सकते. ऐसे पांच लोग जिनमें सभी की महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने की हो वे कभी भी एक मजबूत विपक्ष की शक्ल नहीं ले सकते."

कभी एकजुट हो पाएगा विपक्ष?

वैसे विपक्ष की हालत और हाल की उसकी गतिविधियां देखें तो मनीष सिसोदिया बिलकुल ठीक कह रहे हैं. हाल के दिनों में विपक्षी खेमे में ममता बनर्जी सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आयी हैं. ये ममता बनर्जी ही हैं जिन्होंने कांग्रेस को जिद छोड़ने की सलाह दी है. दरअसल, कांग्रेस नेतृत्व आप नेता अरविंद केजरीवाल को साथ लेने को तैयार नहीं हो रहा है.

वैसे, लगे हाथ, मनीष सिसोदिया इस बात के लिए बीजेपी को भी बहुत हद तक जिम्मेदार मानते हैं. सिसोदिया कहते हैं, "समस्या ये है कि बीजेपी तिकड़म और जुमलों की राजनीति करती है. मुझे नहीं लगता अभी तक देश के अहम मुद्दों पर कोई बहस हो रही है." सिसोदिया का आरोप है कि बीजेपी मूल मुद्दों पर चर्चा होने ही नहीं देती. लेकिन इसमें खास क्या है? राजनीति इसे ही तो कहते हैं.

क्या विपक्ष के भी अच्छे दिन आएंगे?

बाकी लोग अपना अपना जानें और समझें, उनके अच्छे दिन आये कि नहीं. बीजेपी के तो अच्छे दिन ही आये ही नहीं बल्कि अब तो स्वर्णिम काल की तैयारी चल रही है. बीजेपी के स्वर्णिम काल का इरादा भी कुछ ऐसा है जो कांग्रेस मुक्त भारत से आगे बढ़ कर विपक्ष मुक्त भारत पर फोकस हो गया है. सवाल ये है कि क्या विपक्ष के भी कभी अच्छे दिन आएंगे? विपक्ष के अच्छे दिन सत्ता से दूर के कुछ राजनीतिक दलों के लिए ही नहीं लोकतंत्र के लिए भी अच्छी बात है. सोचिये विपक्ष मुक्त लोकतंत्र में क्या हालत होगी? ऐसी हालत तो इमरजेंसी से भी बदतर हो सकती है. मनीष सिसोदिया के नजरिये से सोचें तो विपक्ष के पास भी अच्छे दिन के खासे विकल्प मौजूद हैं.

मनीष सिसोदिया की नजर से देखें तो भ्रष्टाचार मुक्त भारत के नाम पर विपक्ष एक हो सकता है. इसी तरह विकसित भारत के नाम पर भी विपक्ष एक हो सकता है. आइडिया तो अच्छा है लेकिन क्या व्यवहारिक भी है?

सच तो ये है कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना आम आदमी पार्टी ने ही दिखाया था. यही सपना दिखाकर आप के संस्थापक केजरीवाल और सिसोदिया राजनीति में आये और सरकार भी बनायी. लेकिन हुआ क्या? जिन आर्दशों और मूल्यों के दावे आप के नेता कर रहे थे बाद में उन्हीं के कई साथियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. आप के एक मौजूदा मंत्री पर भी ऐसे गंभीर आरोप हैं.

ये सही है कि मोदी सरकार भले ही नोटबंदी को लेकर ढिंढोरा पीट रही हो लेकिन उसका कोई फायदा नहीं देखने को मिला. लेकिन विपक्ष में ऐसे कितने नेता हैं जो मिल कर खुद को पाक साफ बताएंगे और मोदी सरकार को भ्रष्टाचार के नाम पर घेरेंगे. व्यक्तिगत तौर पर केजरीवाल, सिसोदिया और ममता बनर्जी को छोड़ दें तो उनके साथियों पर भी तो भ्रष्टाचार के वैसे ही आरोप हैं जैसे दूसरे दलों के नेताओं पर. अगर आम आदमी पार्टी विपक्षी एकता की बात करती है तो क्या वो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में लालू प्रसाद को पार्टनर बनाएगी? उन्हीं लालू प्रसाद को जिनकी रैली में कांग्रेस नेतृत्व मंच तक शेयर करने से बचता नजर आया.

कहना गलत न होगा, आप का लोकपाल भी वैसा ही जुमला साबित हुआ जैसा मोदी का 'ब्लैक मनी वाला 15 लाख'. बेहतर होगा आम आदमी पार्टी मोदी को 2019 में घेरने के लिए कोई कारगर फॉर्मूला वक्त रहते खोज लें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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