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सरकारी विज्ञापनों की आड़ में राजनीतिक विज्ञापन छपवाकर 'आप' ने बरसों पुरानी परंपरा दोहराई है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 12 जनवरी, 2023 09:04 PM
  • 12 जनवरी, 2023 09:02 PM
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एलजी से मिली शिकायत के बाद, आम आदमी पार्टी को सरकारी विज्ञापनों के रूप में प्रकाशित राजनीतिक विज्ञापनों के लिए 163.62 करोड़ रुपये की वसूली का नोटिस दिया गया है. यदि 10 दिनों में आम आदमी पार्टी पैसों की भरपाई नहीं करती तो पार्टी के खिलाफ गंभीर एक्शन लिया जाएगा और पार्टी की संपत्ति तक कुर्क हो सकती है.

आम आदमी पार्टी और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल मुसीबत में हैं. कारण बने हैं कुछ पुराने विज्ञापन. आरोप है कि आप ने सरकारी विज्ञापनों की आड़ में राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित करवाए हैं. इस बाबत आम आदमी पार्टी को 163.62 करोड़ रुपये का वसूली नोटिस जारी किया गया है. दिल्ली में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के रिश्ते कैसे हैं ये बात किसी से छिपी नहीं है. बताया जा रहा है कि अभी कुछ समय पहले दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव को सरकारी विज्ञापनों की आड़ में प्रकाशित राजनीतिक विज्ञापनों के लिए ‘आप’ से 97 करोड़ रुपये वसूलने का निर्देश दिया था. आप ने इन निर्देशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया था और अब जो वसूली का नोटिस आया है उसमें जहां एक तरफ आप को मूल तो चुकाना ही है साथ ही ब्याज भी देना है.

एलजी ने विज्ञापन का मुद्दा उठाकर एकबार फिर आम आदमी पार्टी को मुश्किलों में डाल दिया है

सूचना एवं प्रचार निदेशालय द्वारा जारी वसूली नोटिस में दिल्ली में सत्तासीन ‘आप’ को 10 दिनों का वक़्त दिया गया है. कहा ये भी जा रहा है कि अगर पार्टी ऐसा करने में विफल साबित होती है तो एलजी वीके सक्सेना के पिछले आदेश के अनुसार समयबद्ध तरीके से कानूनी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें पार्टी की संपत्तियां कुर्क किया जाना भी शामिल है.’

जो नोटिस डीआईपी की तरफ से आम आदमी पार्टी को सौंपा गया है उसमें इसका जिक्र है कि साल 2016-2017 में रोजकोष से पैसों का इस्तेमाल सरकारी विज्ञापनों के नाम पर राजनीतिक विज्ञापन छपवाने के लिए किया गया. नोटिस में सुप्रीम कोर्ट का भी हवाला दिया गया है और कहा गया है कि आप के तमाम विज्ञापन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन हैं.

नोटिस के बाद एक बार फिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच...

आम आदमी पार्टी और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल मुसीबत में हैं. कारण बने हैं कुछ पुराने विज्ञापन. आरोप है कि आप ने सरकारी विज्ञापनों की आड़ में राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित करवाए हैं. इस बाबत आम आदमी पार्टी को 163.62 करोड़ रुपये का वसूली नोटिस जारी किया गया है. दिल्ली में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के रिश्ते कैसे हैं ये बात किसी से छिपी नहीं है. बताया जा रहा है कि अभी कुछ समय पहले दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव को सरकारी विज्ञापनों की आड़ में प्रकाशित राजनीतिक विज्ञापनों के लिए ‘आप’ से 97 करोड़ रुपये वसूलने का निर्देश दिया था. आप ने इन निर्देशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया था और अब जो वसूली का नोटिस आया है उसमें जहां एक तरफ आप को मूल तो चुकाना ही है साथ ही ब्याज भी देना है.

एलजी ने विज्ञापन का मुद्दा उठाकर एकबार फिर आम आदमी पार्टी को मुश्किलों में डाल दिया है

सूचना एवं प्रचार निदेशालय द्वारा जारी वसूली नोटिस में दिल्ली में सत्तासीन ‘आप’ को 10 दिनों का वक़्त दिया गया है. कहा ये भी जा रहा है कि अगर पार्टी ऐसा करने में विफल साबित होती है तो एलजी वीके सक्सेना के पिछले आदेश के अनुसार समयबद्ध तरीके से कानूनी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें पार्टी की संपत्तियां कुर्क किया जाना भी शामिल है.’

जो नोटिस डीआईपी की तरफ से आम आदमी पार्टी को सौंपा गया है उसमें इसका जिक्र है कि साल 2016-2017 में रोजकोष से पैसों का इस्तेमाल सरकारी विज्ञापनों के नाम पर राजनीतिक विज्ञापन छपवाने के लिए किया गया. नोटिस में सुप्रीम कोर्ट का भी हवाला दिया गया है और कहा गया है कि आप के तमाम विज्ञापन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन हैं.

नोटिस के बाद एक बार फिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच राजनीति तेज हो गयी है. आप की तरफ से एलजी पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना भारतीय जनता पार्टी के इशारों पर आप के साथ ऐसा सुलूक कर रहे हैं. आरोप वजनदार लगें आप ने दावा ठोंका है कि तरह नोटिस भेजने की शक्तियां उपराज्यपाल के पास नहीं हैं.

दिल्ली में विज्ञापन को लेकर जो बहस चल रही है उसमें जीत एलजी के आदेशों की होती है या इस चुनौती का जवाब भी आप की तरफ से मुंह तोड़ होगा फैसला वक़्त करेगा लेकिन देखा जाए तो आप ने यदि सरकारी विज्ञापन की आड़ में राजनीतिक विज्ञापन छपवाए हैं तो इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसे देखकर बहुत ज्यादा हैरान हुआ जाए.

जैसी राजनीति देश में चलती है, यहां जो जितना ज्यादा दिखता है उतना ही ज्यादा बिकता है. ये बातें यूं ही नहीं हैं. चाहे किसी योजना/ परियोजना का उद्घाटन हो या किसी प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग वहां जिस तरह से सरकारी विज्ञापन को राजनीतिक विज्ञापन बनाया जाता है इसपर बहुत ज्याद चर्चा करने का स्कोप हमें दिखाई ही नहीं देता.

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने विज्ञापनों के लिए आप को नोटिस भेजने का फैसला खुद लिया है. या ये सब भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर हुआ है. इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है. लेकिन हम सक्सेना से इतना जरूर कहेंगे कि आप ने विज्ञापनों के नाम पर भारतीय राजनीति में बरसों से चली आ रही प्रथा का पालन ही किया है. बाकी सरकारी विज्ञापन को कैसे राजनीतिक विज्ञापनों में तब्दील किया जाता है वो यूपी, बिहार, बंगाल, असम, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान कहीं की भी यात्रा कर उन्हें देखने के लिए स्वतंत्र हैं.

विज्ञापनों के मद्देनजर दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को इस बात को समझना होगा कि एक पूरा तंत्र हैं जो विज्ञापनों की दुनिया के पीछे है जिसमें नेता हैं. ब्यूरोक्रेट हैं, पार्टी फंड है. पार्टी के ज्ञात अज्ञात शुभचिंतक हैं. किसी सत्ताधारी दल द्वारा जब विज्ञापनों से राजनीति साधी जाती है तो ये प्रक्रिया पूरे तसल्लीबख्श तरीके से होती है. एक सिस्टम के तहत होती है.

बहरहाल सूचना एवं प्रचार निदेशालय से आए नोटिस की भरपाई आप कितना करती है? इसका भी फैसला वक़्त करेगा. लेकिन जिस तरह दिल्ली के एलजी ने एक अहम मुद्दा न केवल उठाया. बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाया. देखकर अच्छा लगा कोई तो है जिसे टैक्सपेयर्स के पैसों की फ़िक्र है. और वो नहीं चाहता कि कोई खुद की राजनीति चमकाने के लिए उसका बेजा इस्तेमाल करे. केजरीवाल, उनकी पार्टी और पार्टी से जुड़े नेता मामले को लेकर जितना भी चिल्ला लें लेकिन उन्हें पब्लिक के या ये कहें कि सरकारी पैसों का हिसाब तो पब्लिक के सामने रखना ही होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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