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मेरा एफबी अकाउंट है, मैं प्रसाद भी खाता हूं ! कहीं मैं इस्लाम से खारिज तो नहीं हूं इमाम साहब ?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 अक्टूबर, 2017 08:17 PM
  • 21 अक्टूबर, 2017 08:17 PM
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एक आम भारतीय मुस्लिम के जीवन में कई समस्याएं हैं. ऐसे में इस्लाम के ठेकेदारों द्वारा आए रोज दिए जा रहे बेवजह के बेबुनियाद फतवे उसके जीवन को और जटिल बनाते नजर आ रहे हैं.

मैं इस देश का एक आम मुसलमान हूं. एक ऐसा मुसलमान जिसे अपने धर्म के मुकाबले अपनी नागरिकता बताना ज्यादा अच्छा लगता है. मैं इस देश का वो आम मुसलमान हूं जो दिल्ली के भयानक ट्रैफिक में पल्यूशन के कारण मुंह पर रुमाल रख कर दफ्तर जाता है. जो दफ्तर से घर आने के बाद पड़ोसी से सिर्फ इसलिए बहस करता है क्योंकि न तो नल में ही पानी है और न ही टंकी में. घर, दफ्तर, रिश्तेदार, बाजार मैं जहां भी, जिसके पास भी जाऊं मुझे एक नई चुनौती का सामना करता है.

फतवों की मार झेल रहा मुसलमान खुद कई चुनौतियों का सामना कर रहा है

 

पहली तारीख को सैलरी न आने से लेकर मेट्रो के बढ़े हुए किराए तक, पेट्रोल के बढ़े और दाम से लेकर अंडा रोल पर लगने वाले जीएसटी तक कई ऐसी चीजें हैं जिनसे मैं परेशान हूं. इसके बाद रही गयी कसर मेरे धर्म की ठेकेदारी कर रहे मुल्ले पूरी कर देते हैं. इन मुल्लों और इनकी बातों पर यदि मैं विचार करता हूं तो मिलता है कि आखिर हम (आम मुसलमान) जिंदा ही क्यों हैं. हमें तो सल्फास को कोल्ड ड्रिंक में मिलाकर पीने के बाद या फिर चूहा मार का पेस्ट बनाकर उसे ब्रेड में लगाकर खाने के बाद कबका मर जाना चाहिए था.

इन मुल्लों के चलते अब मैंने अखबार और टीवी तक से दूरी बनाना शुरू कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी आप अखबार के पन्ने पलटिये या फिर टीवी खोलिए आपको ऐसे मुल्लों और उनके 'फतवों' की भरमार दिखेगी जो इस्लाम का नाम लेकर अपने-अपने तरीके से अपनी दुकान चला रहे हैं. इन मुल्लों को मेरी हर चीज से परेशानी हैं. मैं फेसबुक इस्तेमाल करूं तब इनके पेट में दर्द होता है, मैं अगर ट्विटर पर ट्वीट करूं तो इनकी नानी मरती है. इंस्टाग्राम पर दोस्तों या प्रेमिका की फोटो डालूं तो इनको दिल का दौरा पड़ जाता है.

किसी गैर मुस्लिम दोस्त के घर हुई पूजा का प्रसाद खा लेने से...

मैं इस देश का एक आम मुसलमान हूं. एक ऐसा मुसलमान जिसे अपने धर्म के मुकाबले अपनी नागरिकता बताना ज्यादा अच्छा लगता है. मैं इस देश का वो आम मुसलमान हूं जो दिल्ली के भयानक ट्रैफिक में पल्यूशन के कारण मुंह पर रुमाल रख कर दफ्तर जाता है. जो दफ्तर से घर आने के बाद पड़ोसी से सिर्फ इसलिए बहस करता है क्योंकि न तो नल में ही पानी है और न ही टंकी में. घर, दफ्तर, रिश्तेदार, बाजार मैं जहां भी, जिसके पास भी जाऊं मुझे एक नई चुनौती का सामना करता है.

फतवों की मार झेल रहा मुसलमान खुद कई चुनौतियों का सामना कर रहा है

 

पहली तारीख को सैलरी न आने से लेकर मेट्रो के बढ़े हुए किराए तक, पेट्रोल के बढ़े और दाम से लेकर अंडा रोल पर लगने वाले जीएसटी तक कई ऐसी चीजें हैं जिनसे मैं परेशान हूं. इसके बाद रही गयी कसर मेरे धर्म की ठेकेदारी कर रहे मुल्ले पूरी कर देते हैं. इन मुल्लों और इनकी बातों पर यदि मैं विचार करता हूं तो मिलता है कि आखिर हम (आम मुसलमान) जिंदा ही क्यों हैं. हमें तो सल्फास को कोल्ड ड्रिंक में मिलाकर पीने के बाद या फिर चूहा मार का पेस्ट बनाकर उसे ब्रेड में लगाकर खाने के बाद कबका मर जाना चाहिए था.

इन मुल्लों के चलते अब मैंने अखबार और टीवी तक से दूरी बनाना शुरू कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी आप अखबार के पन्ने पलटिये या फिर टीवी खोलिए आपको ऐसे मुल्लों और उनके 'फतवों' की भरमार दिखेगी जो इस्लाम का नाम लेकर अपने-अपने तरीके से अपनी दुकान चला रहे हैं. इन मुल्लों को मेरी हर चीज से परेशानी हैं. मैं फेसबुक इस्तेमाल करूं तब इनके पेट में दर्द होता है, मैं अगर ट्विटर पर ट्वीट करूं तो इनकी नानी मरती है. इंस्टाग्राम पर दोस्तों या प्रेमिका की फोटो डालूं तो इनको दिल का दौरा पड़ जाता है.

किसी गैर मुस्लिम दोस्त के घर हुई पूजा का प्रसाद खा लेने से लेकर, किसी मजार या मंदिर में चादर चढ़ाने तक मैं कुछ भी करूं इन मुल्लों की भावना आहत हो जाती है और ये एक नया फतवा दे देते हैं. मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि वर्तमान परिदृश्य में मेरे छोटे से जीवन में परेशानियों के अंबार का आधा कारण मेरे धर्म की ठेकेदारी करते  ये मुल्ले और इनके अजीब ओ गरीब फतवे हैं.

आज के मुसलमान का डर यही है कि कब कौन सा फतवा उसे इस्लाम से खारिज कर दे

खैर छोड़िये, बात बीते दिन की थी मैं अखबार में खबर पढ़ रहा था. खबर देवबंद से थी. फतवा था कि यदि कोई मुसलमान फेसबुक या किसी अन्य सोशल साईट पर फोटो डालता है तो इस्लाम की नजरों में ये हराम है. फोटो खींचना मेरा शौक हैं, मैं फोटो खींचता भी हूं उसे अपलोड भी करता हूं. अभी मैं इस टेंशन से ढंग से उभर भी नहीं पाया था कि फिर आज एक नई खबर सुनी. इस बार खबर का केंद्र उत्तर प्रदेश का वाराणसी था.

वाराणसी में कुछ मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम से सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि उन्होंने दिवाली पर भगवान श्रीराम की आरती करी थी. ज्ञात ही कि कुछ मुस्लिम महिलाओं ने भगवान राम की पूजा अर्चना की और दीपक जलाकर दिवाली मनाई थी. इस बात से दारुल उलूम नाराज है. दारुल उलूम ने कहा है कि अल्लाह के अलावा किसी और की पूजा करने वाले को मुसलमान नहीं माना जा सकता. जिन महिलाओं ने ये आरती की है वो मुसलमान नहीं रहीं.

वाराणसी की महिलाओं द्वारा कौमी एकता की ये पहल कई मायनों में खास हैइस पर तर्क देते हुए 'इस्लाम से ताजा-ताजा खारिज हुईं' महिलाओं का कहना था कि ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया है क्योंकि  इससे संस्कृति और हिंदू-मुस्लिम के सामाजिक एकीकरण को बल मिलेगा और इससे दोनों समुदायों के बीच की दूरियां कम होंगी.मैं इन ठेकेदारों का नहीं जानता. व्यक्तिगत रूप से मेरी नजर में ये एक अच्छी पहल है जिसका प्रत्येक हिन्दुस्तानी को स्वागत करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह आज दोनों समुदायों के बीच के समीकरण बिगड़ गए हैं वो गहरी चिंता का विषय है और इसी तरह की पहल दोनों के बीच पनप चुकी खाई को पाटने का काम कर सकती है.

बहरहाल, मेरा भी सोशल मीडिया अकाउंट है, मैं भी दाढ़ी नहीं रखता, मैं किसी दोस्त द्वारा दिया गया पूजा का प्रसाद भी खाता हूं, कभी - कभी मंदिर भी जाता हूं और सबसे बड़ी बात मैं ये चाहता हूं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों एक साथ प्यार से रहें. तो अब मैं अपने प्यारे से इमाम साहब से जानना चाहूंगा कि क्या इस सूरत में, मैं भी इस्लाम से खारिज हो सकता हूं.

यदि उनका उत्तर हां हुआ तो मेरा शक यकीन में बदल जाएगा कि मेरे अलावा तमाम मुसलमानों के पिछड़ने का कारण हमारा धर्म नहीं बल्कि ये मुल्ले और मौलाना हैं जो हमारे कमजोर कन्धों पर बंदूक रख कर गोली चला रहे हैं और इन्हें गोली चलाता देख मासूमियत से हम वाह वाह कर रहे हैं.

मुस्लिम महिलाओं द्वारा आरती -

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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