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यूपी में 'परधानी' नैतिकता से नहीं, दारू और मुर्गे से मिलती है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 27 जनवरी, 2021 03:24 PM
  • 27 जनवरी, 2021 03:23 PM
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उत्तर प्रदेश में जल्द ही पंचायत चुनाव (Panchayat Elections) होने हैं. तमाम प्रधान प्रत्याशियों के बीच तैयारियां जोरों पर हैं. ऐसे में State Election Commission ने भी आदर्शवाद और नैतिकता की बातें करनी शुरू कर दी हैं लेकिन ग्राम पंचायत चुनाव के लिए चुनाव आयोग की बातें फॉर्मेलिटी हैं.

अगर दुनिया में कुछ सबसे ज्यादा बुरा और बुरे से भी ज्यादा मक्कारी भरा है तो वो है आदर्शवाद की खोखली बातें. आदर्शवाद का तो ये है कि कोई लड़का भले ही मैथ्स साइंस और भूगोल के अलावा हिंदी तक में डबल जीरो लाता हो, लेकिन जब ट्यूशन वाले सर घर आएं तो लड़के के पिताजी उनसे कह दें कि, लड़के का पढ़ाई में किसी से कोई मुकाबला नहीं है. आप कुच्छो पूछ लीजिये. पिताजी की बातों से तो कोई भी मोटिवेट हो जाए फिर सर जी तो सर जी हैं. मान लीजिये कि वो लड़के से पूछ बैठें कि उन्नीस पंजे? इतना सुनते ही लड़के की आंखों के आगे सन्नाटा. लड़का चुप और इधर उधर झांकने लगे और फिर पिता जी मारे खिसियाहट के ये कहें 'अरे सर दो तीन दिन पढ़ाइए तो! अभी आपको देख कर नर्वासा गया है. तो भइया कुछ ऐसा होता है खोखला आदर्शवाद . ऐसे ही आदर्शवादी पिता जी जैसा फिलहाल ttar Pradesh में State Election Commission का रवैया है. क्यों? तो जान लीजिए अपने यूपी में 'परधानी के चुनाव (P Panchayat Elections) हैं और तमाम सच्ची बातों को जानते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने नियम कानून वाली लिस्ट जारी की है और प्रधान प्रत्याशियों को बताया है कि उन्हें क्या करना है और क्या बिल्कुल नहीं करना है.

यूपी में पंचायत के चुनाव शुरू होने में अभी वक़्त है मगर आदशवादिता की बातें शुरू हो गयी हैं

राज्य निर्वाचन आयोग की तमाम दिलफरेब बातों के बाद प्रधान प्रत्याशियों के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. ध्यान रहे कि राज्य चुनाव आयोग ने गाइड लाइन बनाकर निर्देशित किया है कि यूपी के पंचायत चुनाव में पंच और प्रधान के प्रत्याशी पूर्व या निवर्तमान माननीयों को एजेंट नहीं बना पाएंगे. साथ ही आयोग ने ये भी कहा है कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को भी चुनाव से दूर रखा जाए. इसके अलावा आयोग गाड़ियों के जरिये...

अगर दुनिया में कुछ सबसे ज्यादा बुरा और बुरे से भी ज्यादा मक्कारी भरा है तो वो है आदर्शवाद की खोखली बातें. आदर्शवाद का तो ये है कि कोई लड़का भले ही मैथ्स साइंस और भूगोल के अलावा हिंदी तक में डबल जीरो लाता हो, लेकिन जब ट्यूशन वाले सर घर आएं तो लड़के के पिताजी उनसे कह दें कि, लड़के का पढ़ाई में किसी से कोई मुकाबला नहीं है. आप कुच्छो पूछ लीजिये. पिताजी की बातों से तो कोई भी मोटिवेट हो जाए फिर सर जी तो सर जी हैं. मान लीजिये कि वो लड़के से पूछ बैठें कि उन्नीस पंजे? इतना सुनते ही लड़के की आंखों के आगे सन्नाटा. लड़का चुप और इधर उधर झांकने लगे और फिर पिता जी मारे खिसियाहट के ये कहें 'अरे सर दो तीन दिन पढ़ाइए तो! अभी आपको देख कर नर्वासा गया है. तो भइया कुछ ऐसा होता है खोखला आदर्शवाद . ऐसे ही आदर्शवादी पिता जी जैसा फिलहाल ttar Pradesh में State Election Commission का रवैया है. क्यों? तो जान लीजिए अपने यूपी में 'परधानी के चुनाव (P Panchayat Elections) हैं और तमाम सच्ची बातों को जानते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने नियम कानून वाली लिस्ट जारी की है और प्रधान प्रत्याशियों को बताया है कि उन्हें क्या करना है और क्या बिल्कुल नहीं करना है.

यूपी में पंचायत के चुनाव शुरू होने में अभी वक़्त है मगर आदशवादिता की बातें शुरू हो गयी हैं

राज्य निर्वाचन आयोग की तमाम दिलफरेब बातों के बाद प्रधान प्रत्याशियों के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. ध्यान रहे कि राज्य चुनाव आयोग ने गाइड लाइन बनाकर निर्देशित किया है कि यूपी के पंचायत चुनाव में पंच और प्रधान के प्रत्याशी पूर्व या निवर्तमान माननीयों को एजेंट नहीं बना पाएंगे. साथ ही आयोग ने ये भी कहा है कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को भी चुनाव से दूर रखा जाए. इसके अलावा आयोग गाड़ियों के जरिये चुनाव प्रचार पर भी सख्त है. आयोग ने स्पष्ट किया है कि बिना अनुमति लिए चुनाव प्रचार में किसी भी प्रकार के वाहन का इस्तेमाल न किया जाए.

ऐसा क्यों हुआ? आखिर क्यों चुनाव आयोग आदर्शवादिता की इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहा है? वजह बस इतनी है कि आयोग चाहता है कि पंचायत के चुनाव साफ सुथरे हों और किसी पर कोई दबाव न रहे. वाक़ई इन आदर्श बातों को सुनकर दिल बाग बाग हो गया.लेकिन हकीकत से कैसे मुंह मोड़ा जा सकता है. हकीकत नीम से ज्यादा कड़वी और मिर्च से ज्यादा तीखी है.

अच्छा बताइये चुनाव कहां हो रहा है? अरे गुरु चुनाव यूपी में है. तो सवाल है कि जब राज्य यूपी जैसा हो तो क्या ये संभव है? जवाब है नहीं. हरगिज़ नहीं. बिल्कुल नहीं. कत्तई नहीं. याद रहे फिल्मों से लेकर रियल लाइफ तक जहां चुनावों में धांधली न हो वो यूपी नहीं.

हम ऐसा क्यों कहा रहे हैं इसके पीछे हमारे पास माकूल वजहें हैं. भले ही चुनाव आयोग आदर्शवादिता की इतनी बड़ी और लंबी चौड़ी बातें कर रहा हो और उसने अपनी बात एजेंटों ले कंधे पर बंदूक रखकर कह दी हो मगर जैसे यूपी में परधानी के चुनाव होते हैं वैसे तो सांसदी और विधायकी के भी चुनाव नहीं होते.इस चुनाव में हर वो काम होता है जो आपके होश फाख्ता कर देगा.

कहना गलत नहीं है कि यूपी वो सूबा है जहां पिछली होली वाली पार्टी में किसी प्रधान प्रत्याशी के घर हुई दावत में उसके द्वारा परोसे गए मटन के तीन से 4 पीस एक नेता के रूप में प्रधान प्रत्याशी की किस्मत का फैसला करते हैं. वहीं चुनाव शुरू होने से पहले प्रत्याशियों के घरों में जो लंगर चलता है वो भी किसी से छुपा नहीं है.

पंचायत चुनाव से पहले छोटे से लेकर बड़े तक किसी गांव के हालात कैसे होते हैं गर जो इस बात को समझना हो तो आजकल आप यूपी के किसी भी गांव का रुख कर लीजिए. ऐसा महसूस होगा जैसे कोई शादी हो. वेज वालों के लिए पनीर की एक से एक सब्जियां, गर्मा गर्म पूड़ियां मिक्स वेज, मिस्सी रोटी, पुलाव तो वहीं नॉन वेज वालों के लिए मटन तो कभी चिकन की डिश ऊपर से बिरयानी. किसी ने खाना ज्यादा खा लिया हो तो पचाने के लिए डीजे तो है ही. इसके अलावा कैंडिडेट्स अपने वोटर को मदिरा पान कराते रहते हैं सो अलग.

अब आप ही बताइए जिस सूबे में सारा काम चिकन, मटन, पनीर और दारू कर दे वहां एजेंट की क्या ही प्रासंगिकता. जनता को खुद ही इस बात से मतलब नहीं है कि हैंडपम्प कौन लगवाएगा? नाली खड़ंजे और सीवर की व्यवस्था कौन करेगा? उसे जो चाहिए प्रधान प्रत्याशी वो दे ही रहा है बाकी कैश तो है ही 100 - 200 रुपए पकड़ा दो काम हो गया.

एक तरफ ये असली बातें हैं दूसरी तरफ राज्य निर्वाचन आयोग का टंटा. चुनाव में तमाम तरह का गड़बड़झाला होगा जानता इस बात को राज्य निर्वाचन आयोग भी है लेकिन अन्य राज्यों को प्रभावित करने के लिए आदर्शवादिता की बड़ी बड़ी बातें अच्छी होती हैं.

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