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'मोची' ब्रांड बन गया, ठाकुर लिखकर जूते बेचने वाला गिरफ्तार!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 07 जनवरी, 2021 09:44 PM
  • 07 जनवरी, 2021 09:44 PM
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उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जूते बेच रहे व्यक्ति के साथ जो हुआ, उसने बता दिया है कि सूबे में जातिवाद हावी है और समय समय पर उसे भरपूर खाद पानी भी दिया जा रहा है. बाकी सवाल ये भी रहेगा कि बजरंग दल के जिस व्यक्ति ने ठाकुर को जातिवादी माना और आहत हुआ, वो Mochi पर खामोश क्यों था?

देश कोरोना की मार झेल रहा है. लोगों के पास नौकरी नहीं है. जिनकी बची है उनका सैलरी डिडक्शन हो रहा है. वही जो लोग रोजगार की तलाश में हैं उनके लिए नई नौकरी निकालने की कोई नीति फिलहाल सरकार के पास है नहीं. ये तो हो गई देश की बात. अब अगर हम उत्तर प्रदेश आएं तो भइया यहां के तो कहने ही क्या. सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ या उनके कार्यालय की तरफ से आया हुआ कोई ट्वीट देख लीजिए दो पांच सौ कमेंट हों तो 100 या 250 कमेंट ऐसे होंगे जिनमें बीटीसी से लेकर पीएसी यूपी पुलिस, जल निगम में स्टेनो बिजली विभाग में बाबू जैसी नौकरियों की डिमांड की जाती है. अच्छा शुरू शुरू में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इसके लिए गंभीर थे पर जब उन्होंने देखा ये रोज का टंटा है अब उन्होंने भी लोड लेना छोड़ दिया. होने को तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन सच यही है कि यूपी में एक बड़ी आबादी सौ टका खाली है. दौर जब बेकारी और बेगारी का हो और आदमी खाली हो तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है. वो जूते के सोल में घुस जाता है और 'ठाकुर' निकाल उसे जातिवादी बता खूब हो हल्ला मचाता है. वो पुलिस जो रेप, मर्डर जैसी घटनाओं पर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है, वो एक्टिव हो जाती है और उस व्यक्ति के ऊपर गंभीर धाराओं में मुकदमा लिख देती है, जो 'ठाकुर' लिखा हुआ जूता बेच रहा होता है. 

जातिवाद को आधार बनाकर यूपी के बुलंदशहर में तो हद ही हो गयी

जो जानते हैं ठीक है जो नहीं जानते जान लें कि मामला यूपी के बुलंदशहर का है. बुलंदशहर का नासिर जूतों का कारोबारी है. उसकी दुकान पर तरह तरह के ब्रांड के जूते बिकते हैं. बात बीते दिन की है. नासिर रोज की तरह अपना धंधा कर रहा था कि तभी बजरंग दल का संयोजक और विशाल चौहान नाम का व्यक्ति उसकी दुकान पर आया और विवाद ने जन्म ले लिया.

घटना का जो वीडियो बाहर आया है...

देश कोरोना की मार झेल रहा है. लोगों के पास नौकरी नहीं है. जिनकी बची है उनका सैलरी डिडक्शन हो रहा है. वही जो लोग रोजगार की तलाश में हैं उनके लिए नई नौकरी निकालने की कोई नीति फिलहाल सरकार के पास है नहीं. ये तो हो गई देश की बात. अब अगर हम उत्तर प्रदेश आएं तो भइया यहां के तो कहने ही क्या. सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ या उनके कार्यालय की तरफ से आया हुआ कोई ट्वीट देख लीजिए दो पांच सौ कमेंट हों तो 100 या 250 कमेंट ऐसे होंगे जिनमें बीटीसी से लेकर पीएसी यूपी पुलिस, जल निगम में स्टेनो बिजली विभाग में बाबू जैसी नौकरियों की डिमांड की जाती है. अच्छा शुरू शुरू में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इसके लिए गंभीर थे पर जब उन्होंने देखा ये रोज का टंटा है अब उन्होंने भी लोड लेना छोड़ दिया. होने को तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन सच यही है कि यूपी में एक बड़ी आबादी सौ टका खाली है. दौर जब बेकारी और बेगारी का हो और आदमी खाली हो तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है. वो जूते के सोल में घुस जाता है और 'ठाकुर' निकाल उसे जातिवादी बता खूब हो हल्ला मचाता है. वो पुलिस जो रेप, मर्डर जैसी घटनाओं पर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है, वो एक्टिव हो जाती है और उस व्यक्ति के ऊपर गंभीर धाराओं में मुकदमा लिख देती है, जो 'ठाकुर' लिखा हुआ जूता बेच रहा होता है. 

जातिवाद को आधार बनाकर यूपी के बुलंदशहर में तो हद ही हो गयी

जो जानते हैं ठीक है जो नहीं जानते जान लें कि मामला यूपी के बुलंदशहर का है. बुलंदशहर का नासिर जूतों का कारोबारी है. उसकी दुकान पर तरह तरह के ब्रांड के जूते बिकते हैं. बात बीते दिन की है. नासिर रोज की तरह अपना धंधा कर रहा था कि तभी बजरंग दल का संयोजक और विशाल चौहान नाम का व्यक्ति उसकी दुकान पर आया और विवाद ने जन्म ले लिया.

घटना का जो वीडियो बाहर आया है उसमें नासिर एक जोड़ी जूते के साथ खड़ा है जिनपर ठाकुर लिखा है और इस ठाकुर शब्द के कारण खूब बवाल मचा है.

विशाल चौहान के अनुसार जो तहरीर उसने पुलिस को दी उसमें उसने कहा है कि 'वो नासिर कक दुकान पर जूते खरीदने के लोए गया था, तभी उसकी नजर जूते के सोल पर पड़ी जिसपर जातिसूचक शब्द 'ठाकुर' लिखा हुआ था. इस पूरे मामले में जो बिल्कुल दिल लूट लेने वाली बात है वो ये कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की गुड बुक्स में आने के लिए बुलंदशहर पुलिस ने गोली सी तेजी दिखाई और नासिर के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच घृणा, दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत मामला दर्ज किया.

अपने साथ हुई इस अनहोनी पर बेचारा नासिर क्या ही करता बस उसने ये कहकर अपना पक्ष मजबूत करना चाहा कि वह शब्द जूता बनाने वाली कंपनी ने लिखा है और उनका इससे कोई संबंध नहीं है. हालांकि अंदर ही अंदर पुलिस वाले भी नासिर की बातों से सहमत ही होंगे मगर वो क्या है न कि जल में रहकर मगर से बैर रखना गुनाह है. दो गुना है. तीन गुना है. बाकी पुलिस को जांच के दौरान नासिर के खिलाफ अशांति को बढ़ावा देने जैसा कुछ नहीं मिला है इसलिए उन्हें छोड़ दिया गया है.

वहीं जब मामले की जानकारी जूता बनाने वाली कंपनी को हुई तो बीपी कोलेस्ट्रॉल उनका भी बढ़ा. ठाकुर फुटवियर कंपनी के मालिक नरेंद्र त्रिलोकनी के अनुसार वो लोग ये जूते कोई आज से नहीं बल्कि कांग्रेस के जमाने यानी 60 साल पहले से बेच रहे हैं और जूते पर ठाकुर यूं लिखा है कि इस पुश्तैनी बिजनेस की शुरुआत उनके दादा ठाकुरदास त्रिलोकनी ने की थी.

'मोची' जातिवादी नहीं, ठाकुर जातिवादी हो गया... कमाल है

बजरंग दल के संयोजक विशाल चौहान को गुलदस्ता भेंट करने और बैंड बाजे के साथ उनकी शोभा यात्रा निकालने का मन है हमारा. क्यों? तो इस बात का आधार है 'मोची' यूं तो जूता बनाने वाले को मोची कहते हैं लेकिन 'मोची' जूतों का एक इंडियन ब्रांड भी है जिसकी शुरुआत 2000 में बैंगलोर से हुई. बुलंदशहर का तो पता नहीं लेकिन हां आज मोची के जूते देश के 50 से ज्यादा शहरों में बिकते हैं. जैसे ठाकुर पर आपत्ति हुई और जातिवादी का लेबल लगवाकर नासिर को थाने के चक्कर लगवाए काश कि वैसे ही विशाल चौहान मोची के शो रूम गए होते और ये तांडव करते.

खैर सच्चाई हमें पता है और विशाल भी जानते ही हैं. 'मोची' ब्रांड के पास लीगल एक्सपर्ट्स की फौज होगी और ऐसे में स्टोर जाकर हो हल्ला मचाना उड़ते तीर लपकना होता. विशाल के लिए नासिर आसान टारगेट था और क्या हुआ वो हमने देख लिया.

चूंकि घटना हमारे सामने हैं और हम इसके लगभग-लगभग सभी पक्ष देख चुके हैं तो मॉरल ऑफ द स्टोरी बताकर हम भी अपनी बात को विराम देंगे। यूपी के बुलंदशहर में जो हुआ उसके उसने बता दिया है कि सूबे में जातिवाद हावी है और विशाल चौहान जैसे लोग समय समय पर उसे भरपूर खाद पानी देते आ रहे हैं. ये एक क्रम है जो आज भी है और जैसे हालात हैं भविष्य में भी होगा और तब इसका स्वरुप आज के मुकाबले कहीं ज्यादा विभत्स होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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