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सूखा हमारा, वोट तु्म्हारा...नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!

    • बालकृष्ण
    • Updated: 07 मई, 2016 03:03 PM
  • 07 मई, 2016 03:03 PM
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जब आम लोग सूखे और प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर जान गंवाते हैं, तो कैसे हमारे नेता और रसूखदार लोग, मौके का फायदा उठाकर चांदी काटते हैं. इसकी एक बानगी अभी हाल में नजर आई. राज्यसभा में झगड़ा इस बात पर हो गया कि मेरे सूखे में वोटों के बीज डालने आखिर तुम कैसे घुस गए! कहानी उत्तर प्रदेश की है...

मशहूर लेखक पी साईनाथ की एक बेहद चर्चित किताब है - Everybody Loves a Good Drought जिसके लिए उन्हें मैग्सेसे अवार्ड भी मिल चुका है. किताब इस बारे में है कि कैसे जब आम लोग सूखे और प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर जान गंवाते हैं, तो हमारे नेता और रसूखदार लोग, मौके का फायदा उठाकर चांदी काटते हैं. जिन लोगों ने यह किताब पढ़ी होगी, उन्हें शुक्रावार को राज्यसभा का नजारा देखकर समझ में आ गया होगा कि पी साईनाथ कि किताब को, दर्जनों अवार्ड यूं ही नहीं मिल गए.

सूखे को लेकर संसद में बहस तो कई बार हो चुकी है. नेता आए दिन इस पर चिंता जताते रहते हैं और ये जुमला उछालते रहते हैं कि सूखे को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए. आज राज्यसभा में झगड़ा इस बात पर हो गया कि मेरे सूखे में वोटों के बीज डालने आखिर तुम कैसे घुस गए!

यह भी पढ़ें- सूखा झेल रहे देश को आईपीएल की ठंडी फुहार

आपको पता ही होगा कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भयंकर सूखा पड़ा हुआ है. तमाम परिवरों को अपना घर-बार छोडकर जाना पडा है. नदियों, तालाबों और कुएं का पानी सूख चुका है, हैन्डपंप बेकरा हो गए हैं. लोग प्यास से बेहाल हैं.

लेकिन शुक्रवार को जैसे ही राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, समाजवादी पार्टी के नेताओं ने सदन के वेल में कूदकर जुमलों और नारों के छपाके लगाने में जरा भी देरी नहीं की. उन्होंने इस बात पर आसमान सिर पर उठा लिया कि बुंदेलखंड में सूखा पड़ा है तो क्या- केंद्र सरकार ने हमसे बिना पूछे पानी वाली ट्रेन वहां क्यों भेजी? हमारा प्रदेश है, हमारी सरकार है, हमारा सूखा है, हम निपटेंगे! आपको किसने बुलाया?

दरअसल, रेल मंत्रालय ने महाराष्ट्र में लातूर की तर्ज पर बुंदेलखंड में भी पानी की सप्लाई करने के लिए टैंकर वाली ट्रेन भेजी थी. ये ट्रेन कोटा से भेजी गई थी और इसे झांसी जाना था. यहां से इसे सूखाग्रत इलाकों...

मशहूर लेखक पी साईनाथ की एक बेहद चर्चित किताब है - Everybody Loves a Good Drought जिसके लिए उन्हें मैग्सेसे अवार्ड भी मिल चुका है. किताब इस बारे में है कि कैसे जब आम लोग सूखे और प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर जान गंवाते हैं, तो हमारे नेता और रसूखदार लोग, मौके का फायदा उठाकर चांदी काटते हैं. जिन लोगों ने यह किताब पढ़ी होगी, उन्हें शुक्रावार को राज्यसभा का नजारा देखकर समझ में आ गया होगा कि पी साईनाथ कि किताब को, दर्जनों अवार्ड यूं ही नहीं मिल गए.

सूखे को लेकर संसद में बहस तो कई बार हो चुकी है. नेता आए दिन इस पर चिंता जताते रहते हैं और ये जुमला उछालते रहते हैं कि सूखे को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए. आज राज्यसभा में झगड़ा इस बात पर हो गया कि मेरे सूखे में वोटों के बीज डालने आखिर तुम कैसे घुस गए!

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आपको पता ही होगा कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भयंकर सूखा पड़ा हुआ है. तमाम परिवरों को अपना घर-बार छोडकर जाना पडा है. नदियों, तालाबों और कुएं का पानी सूख चुका है, हैन्डपंप बेकरा हो गए हैं. लोग प्यास से बेहाल हैं.

लेकिन शुक्रवार को जैसे ही राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, समाजवादी पार्टी के नेताओं ने सदन के वेल में कूदकर जुमलों और नारों के छपाके लगाने में जरा भी देरी नहीं की. उन्होंने इस बात पर आसमान सिर पर उठा लिया कि बुंदेलखंड में सूखा पड़ा है तो क्या- केंद्र सरकार ने हमसे बिना पूछे पानी वाली ट्रेन वहां क्यों भेजी? हमारा प्रदेश है, हमारी सरकार है, हमारा सूखा है, हम निपटेंगे! आपको किसने बुलाया?

दरअसल, रेल मंत्रालय ने महाराष्ट्र में लातूर की तर्ज पर बुंदेलखंड में भी पानी की सप्लाई करने के लिए टैंकर वाली ट्रेन भेजी थी. ये ट्रेन कोटा से भेजी गई थी और इसे झांसी जाना था. यहां से इसे सूखाग्रत इलाकों में पानी लेकर जाना था.

 

रेल मंत्रालय ने ट्रेन भेज तो दी, लेकिन इसपर बवाल मच गया. पहले तो उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार इस असमंजस में रही कि रही कि इस ट्रेन का किया क्या जाए. सोच विचार कर तय हुआ कि पानी वाली रेल सूखे वाली इलाकों में दिखी तो राज्य सरकार की भारी फजीहत होगी. ट्रेन लौटाने का फैसला हो ही रहा था कि तभी खबर आ गई ट्रेन में जो टैंकर लगे हैं वह तो खाली हैं .उनमें पानी तो है ही नहीं!

बस फिर क्या था, समाजवादी पार्टी के नेता, केन्द्र सरकार पर बरस पडे. पूछा, सूखा है तो है - आपको ट्रेन भेजने के लिए कहा किसने था? गौर करने की बात यह है कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती भी बुंदेलखंड इलाके से ही जीत कर संसद पहुंची हैं. इसलिए बीजेपी ने सोचा कि उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं. सूखे से बेहाल लोगों के बीच अगर पानी वाली ट्रेन दिखे तो लोगों को यह तस्वीर याद रहेगी और चुनाव के वक्त ये बात भुनायी जा सकती है.

लेकिन समाजवादी पार्टी ने बीजेपी की चाल को पकड़ लिया. समझ गए कि बीजेपी ट्रेन में पानी नहीं वोटों के बीज भर कर भेज रही है. शुक्रवार को राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने कटाक्ष करते हुए कहा से कहा कि हम समझ रहे हैं आप ट्रेन भेजना क्यों चाहते हैं. आपने बिना राज्य सरकार से बात किए ट्रेन भेजी ही क्यों? और वह भी खाली ट्रेन भेजने का भला क्या मतलब है?

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समाजवादी पार्टी के नेता तो सूखे से प्रभावित लोगों से भी ज्यादा तमतमाए हुए थे. उनका कहना था कि देना ही है तो केंद्र सरकार सूखे से निपटने के लिए पैसा दे. पैसा होगा तो हम नहरों की मरम्मत कर सकते हैं, तालाब को ठीक कर सकते हैं और पानी का इंतजाम खुद कर सकते हैं . अपनी ट्रेन और अपना पानी अपने पास रखो.

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने सफाई देने की कोशिश की और कहा कि ट्रेन भेजने का मकसद सिर्फ और सिर्फ सूखे से बेहाल लोगों की मदद करना है. सुरेश प्रभु ने बताया कि खाली ट्रेन इसलिए भेजी गई थी ताकि वो झांसी से पानी लेकर सूखे वाले इलाकों में बांट सके. महाराष्ट्र में भी केंद्र सरकार ने ऐसा ही किया था. लातूर में बांटने के लिए पानी मिराज नाम की जगह से लिया गया था. प्रभु ये बताना भूल गये कि महाराष्ट्र् में सरकार भी बीजेपी की है. लेकिन रेल मंत्री की सफाई से समाजवादी पार्टी के नेताओं का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. उन्होंने पूछा हमारे ही राज्य से पानी लेकर हमारे ही लोगों को बांटा जाए- यह कैसी बेतुकी बात है.

बात उत्तर प्रदेश की हो, समाजवादी पार्टी हंगामा कर रही हो तो मायावती भला चुप कैसे रहतीं. उन्होंने खड़े होकर कहा पानी के ऊपर राजनीति नहीं होनी चाहिए. अगर केंद्र सरकार ने पानी भेज ही दिया तो उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए था. निशाने पर बीजेपी थी, तो कांग्रेस के नेता राजीव शुक्ला भी उपदेश देने से नहीं चुके. कहा, राज्य सरकार से बात किए बिना ट्रेन नहीं भेजनी चाहिए थी.

मामला जब ज्यादा ही गर्मा गया तो उपसभापति पीजे कुरियन ने समाजवादी नेताओं के गुस्से पर पानी डालने की कोशिश की. कुरियन ने कहा अब बहुत हो गया, इस मामले पर राजनीति और नहीं होनी चाहिए.

खैर, किसी तरह समाजवादी पार्टी के नेता अपनी सीटों पर जा कर बैठे . लेकिन गुस्से से बीजेपी नेताओं को देखते रहे. जैसे कह रहे हों सूखा पड़ा है तो क्या हुआ- जिस पानी से वोटों की फसल नहीं सींची जा सके उसका करें तो क्या करें. समाजवादी पार्टी के नेताओं के बोल जो भी हों, भाव यही था - सूखा हमारा, वोट तु्म्हारा- नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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