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‘गड्ढे’ तो हमारी यूएसपी हैं !

    • अश्विनी कुमार
    • Updated: 22 जुलाई, 2018 11:55 AM
  • 22 जुलाई, 2018 11:55 AM
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गडकरी ने तो सड़क पर बने गड्ढों की जिम्मेदारी ले ली. क्या बाकी मंत्रालय अपने-अपने ‘इलाकों’ में खुदे गड्ढों की जिम्मेदारी लेंगे?

धन्यवाद गडकरी साहब का. सदन के अंदर मान लिया कि गड्ढे नहीं भर पाए. आज के जमाने में कहां ऐसे नेता मिलते हैं. गड्ढे न भरने पर तकलीफ तो जाने दीजिए, आज तो गड्ढे खोदकर खुश होने की रवायत है.

पिछले दिनों ही खबर आई थी कि भारत में 2017 में 3600 लोगों की गड्ढे में गिरकर मौत हो गई. जबकि इसी दौरान आतंकवाद में (सिर्फ) 803 लोगों की जान गई. यहां पर मैंने जो सिर्फ शब्द का प्रयोग किया है, वो विवादित है. क्षमाप्रार्थी.

आतंकवाद के मुकाबले करीब साढ़े चार गुना मौतें गड्ढों में गिरने से! मीडिया के दोस्त चौंक रहे थे. सुर्खियां बना रहे थे. अखबार पहले पन्ने पर खबर छाप रहे थे. गडकरी की माफी उसी सिलसिले के एक्सटेंशन के तौर पर आई. गड्ढे बने रहेंगे, लेकिन एक दो दिन में ये खबर अब गड्ढे में चली जाएगी.

यूपी में 2016 में 714 लोग गड्ढों में गिरकर मरे थे. 2017 में 987 लोगों की मौत गड्ढों में गिरने से हो गई. यानी योगीराज में गड्ढों में गिरने की रफ्तार बढ़ गई. अब कोई ये शिकायत न कर दे कि सत्ता में आते ही योगी जी जिन कुछ अभियानों को लेकर चर्चा में आए थे, उनमें से एक गड्ढे भरने की डेडलाइन भी थी. और फिर उस डेडलाइन के बाद भी गड्ढों के बने रहने की भी चर्चा खूब रही.

2017 में 987 लोगों की मौत गड्ढों में गिरने से हुई

गड्ढे. गड्ढों में गिरना. गड्ढों में गिरने की खबरों का सुर्खियों में आना. इन सब पर मुझे ऐतराज है. या तो गिनती ठीक से कर लेते या खबर ही न बनाते. मुझे तो सबसे ज्यादा दया के पात्र गडकरी साहब लगते हैं, क्योंकि उनके गड्ढे दृश्य हैं. छुपाए नहीं छुप सकते. आप इन्हें प्रत्यक्ष गड्ढे कह सकते हैं. प्रत्यक्ष कर की तरह.

लेकिन किन गड्ढों की बात करते हैं हम? सिर्फ सड़क पर बने गड्ढे? अप्रत्यक्ष गड्ढों की बात कौन करेगा? वैसे भी गड्ढे में गिरने और गिराने में...

धन्यवाद गडकरी साहब का. सदन के अंदर मान लिया कि गड्ढे नहीं भर पाए. आज के जमाने में कहां ऐसे नेता मिलते हैं. गड्ढे न भरने पर तकलीफ तो जाने दीजिए, आज तो गड्ढे खोदकर खुश होने की रवायत है.

पिछले दिनों ही खबर आई थी कि भारत में 2017 में 3600 लोगों की गड्ढे में गिरकर मौत हो गई. जबकि इसी दौरान आतंकवाद में (सिर्फ) 803 लोगों की जान गई. यहां पर मैंने जो सिर्फ शब्द का प्रयोग किया है, वो विवादित है. क्षमाप्रार्थी.

आतंकवाद के मुकाबले करीब साढ़े चार गुना मौतें गड्ढों में गिरने से! मीडिया के दोस्त चौंक रहे थे. सुर्खियां बना रहे थे. अखबार पहले पन्ने पर खबर छाप रहे थे. गडकरी की माफी उसी सिलसिले के एक्सटेंशन के तौर पर आई. गड्ढे बने रहेंगे, लेकिन एक दो दिन में ये खबर अब गड्ढे में चली जाएगी.

यूपी में 2016 में 714 लोग गड्ढों में गिरकर मरे थे. 2017 में 987 लोगों की मौत गड्ढों में गिरने से हो गई. यानी योगीराज में गड्ढों में गिरने की रफ्तार बढ़ गई. अब कोई ये शिकायत न कर दे कि सत्ता में आते ही योगी जी जिन कुछ अभियानों को लेकर चर्चा में आए थे, उनमें से एक गड्ढे भरने की डेडलाइन भी थी. और फिर उस डेडलाइन के बाद भी गड्ढों के बने रहने की भी चर्चा खूब रही.

2017 में 987 लोगों की मौत गड्ढों में गिरने से हुई

गड्ढे. गड्ढों में गिरना. गड्ढों में गिरने की खबरों का सुर्खियों में आना. इन सब पर मुझे ऐतराज है. या तो गिनती ठीक से कर लेते या खबर ही न बनाते. मुझे तो सबसे ज्यादा दया के पात्र गडकरी साहब लगते हैं, क्योंकि उनके गड्ढे दृश्य हैं. छुपाए नहीं छुप सकते. आप इन्हें प्रत्यक्ष गड्ढे कह सकते हैं. प्रत्यक्ष कर की तरह.

लेकिन किन गड्ढों की बात करते हैं हम? सिर्फ सड़क पर बने गड्ढे? अप्रत्यक्ष गड्ढों की बात कौन करेगा? वैसे भी गड्ढे में गिरने और गिराने में बुरा भी क्या है? ये तो हमारी यूएसपी है. गड्ढे खोदना और उसमें गिराना तो हमारे मूल अधिकारों में शामिल है. यही तो हमारा राष्ट्रीय खेल है. इसी को तो हम सबसे शिद्दत से जीते (खेलते) हैं. इसी का सामना तो हम हर पल करते हैं.

हमारी राजनीति हमें जाति-संप्रदाय के गड्ढे में गिराती है. हम सबकुछ जानकर उसमें गिरते हैं. और बौद्धिक रूप से (कई बार शारीरिक रूप से भी) मृत्यु को प्राप्त होते हैं. क्या इस गड्ढे की गिनती उन आंकड़ेबाजों ने की? क्या इस गड्ढे की जिम्मेदारी इनसे संबंधित मंत्रालय लेंगे?

यहां तो हालत ये है कि गड्ढे एक जगह खुदे हैं और उसमें गिर दूसरी जगह के भी लोग रहे हैं. अब देखिए न अलगाव का कितना बड़ा गड्ढा कश्मीर में खुदा पड़ा है. उस गड्ढे को पहले पाकिस्तान ने खोदा और फिर हमने अपने तरीकों से उसे और बड़ा गड्ढा बना दिया. अब उस गड्ढे में पूरा देश गिर रहा है. इस गड्ढे और उसमें हो रही मौतों की गिनती की आंकड़ेबाजों ने? क्या इस गड्ढे की जिम्मेदारी गृह या विदेश मंत्रालय लेगा?

देश में हर साल करीब 12 हजार किसान आत्महत्या कर लेते हैं. किसानों के लिए हमने किसिम-किसिम के गड्ढे बनाए हैं. कमजोर एमएसपी, खराब सिंचाई व्यवस्था, खराब खाद और बीज, साहूकारों के ऋण बगैरह-बगैरह. और जब किसान इनमें से किसी गड्ढे में गिरकर मरता है, तो कहते हैं कि उसने खुदकुशी कर ली. किसानों के लिए ऐसे गड्ढे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में खुदे पड़े हैं. तभी तो इस साल के शुरू के 5 महीने में ही 1000 से ज्यादा किसान उन गड्ढों में गिरकर भगवान को प्यारे हो गए. हमने फिर कहा-खुदकुशी कर ली. क्या इन गड्ढों की जिम्मेदारी गडकरी की तरह कृषि मंत्रालय लेगा?

गड्ढों में एक महागड्ढा है. हाल ही में खुदा है. सोशल मीडिया का महागड्ढा. इसे हम सब मिलकर अभी भी खोद रहे हैं और उसमें खुद गिर भी रहे हैं. अफवाहों की शक्ल में, गाली-गलौच की शक्ल में. और आखिरकार अवसाद ग्रस्त होने की शक्ल में. क्या इस गड्ढे की जिम्मेदारी दूरसंचार मंत्रालय लेगा?

कोई किसी गड्ढे की जिम्मेदारी नहीं लेगा. क्योंकि सारे गड्ढे अदृश्य और अप्रत्यक्ष हैं. गडकरी साहब की बदकिस्मती है कि उनकी सड़कों पर गड्ढे भी प्रत्यक्ष हैं और उनमें गिरने की घटनाएं भी. इसीलिए संसद में जिम्मेदारी लेनी पड़ी.अच्छा होगा कि गड्ढों को हम अपनी संस्कृति और संविधान का हिस्सा बना लें. क्योंकि यही तो हमारी यूएसपी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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