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अपने चरखे पर मोदी को देख जब ज़ार-ज़ार रोए गांधी जी !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 13 जनवरी, 2017 06:08 PM
  • 13 जनवरी, 2017 06:08 PM
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दिल्ली में ठंड बहुत है और गांधी बेयर-चेस्ट थे वो शॉल ओढ़ने गए थे, चरखा खाली था. आयोग घूमने आये चरखे को खाली देख, प्रधानमंत्री से रहा नहीं गया वो आकर उसपर बैठ गए.

जो होना था हो चुका है, होनी को टाला नहीं जा सकता. ये कुछ नया नहीं है, इससे पहले भी ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिसे इस देश की जनता ने या तो सिरे से नकार दिया या फिर भारी मन से इग्नोर कर दिया. मैं किसी और का नहीं जानता मैं अपनी बात करने और उसे रखने पर यकीन रखता हूं. मैं ये बात पूर्ण रूप से स्वीकार कर चुका हूं कि मैं जिस होटल में खाना खाने जाता हूं, उस होटल में बीस रुपए के नाम पर मिलने वाली राजमे की कटोरी में राजमे के केवल 15 या 16 दाने होते हैं. साथ ही मैंने ये भी स्वीकार कर लिया है कि 15 रूपये में अरहर की दाल के नाम पर मिलने वाली दाल अरहर न होकर मूंग होती है. वैसे भी बुजुर्गों ने कहा है हर पीली चीज सोना और हर पीली दाल अरहर नहीं होती.

हां तो मैं कह रहा था कि होनी को कोई टाल नहीं सकता, और जो होगा वो होकर रहेगा. प्रधानमंत्री चरखे पर बैठ के नायलॉन के धागे से खादी बुन चुके हैं. सनद रहे, पहले इस चरखे पर गांधी थे. दिल्ली में ठंड बहुत है और गांधी बेयर-चेस्ट थे वो शॉल ओढ़ने गए थे, चरखा खाली था. आयोग घूमने आये चरखे को खाली देख, प्रधानमंत्री से रहा नहीं गया वो आकर उसपर बैठ गए, प्रधानमंत्री को चरखे पर बैठा देख, उनके साथ फोटो खींचने आए फोटोग्राफर ने अपने डीएसएलआर में आनन-फानन में 70-200 एमएम का लेंस फिट किया और अपने 32 जीबी के क्लास टेन मेमोरी कार्ड पर प्रधानमंत्री की एक से बढ़कर एक फोटो छाप लीं. फोटोग्राफर के लिए इस डिजिटल युग में नेगेटिव डेवेलोप करने जैसा कोई झंझट नहीं है और साथ ही फोटोग्राफर फोटोशॉप जानता है. अतः जल्द ही खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) का कैलेण्डर हमारे सामने हमारी दीवार पर होगा. मैंने स्वीकार कर लिया है कि अबसे मेरे ड्राइंग रूप की पर्पल दीवार पर सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री ही होंगे. वो क्या है न कि “आई लव माय प्रधानमंत्री” वैसे भी मैं गांधी और उनकी बातों से इत्तेफाक नहीं रखता. दरअसल, बहुत पहले एक विशेष "पंथ" से ताल्लुख रखने वाले मेरे कुछ दोस्तों ने फेसबुक पर "जम के लिखते" हुए उनकी बड़े ही कड़े शब्दों में निंदा की थी और तब मैं उन लोगों की बातों से बड़ा इंस्पायर और मोटिवेट हुआ था.   

जो होना था हो चुका है, होनी को टाला नहीं जा सकता. ये कुछ नया नहीं है, इससे पहले भी ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिसे इस देश की जनता ने या तो सिरे से नकार दिया या फिर भारी मन से इग्नोर कर दिया. मैं किसी और का नहीं जानता मैं अपनी बात करने और उसे रखने पर यकीन रखता हूं. मैं ये बात पूर्ण रूप से स्वीकार कर चुका हूं कि मैं जिस होटल में खाना खाने जाता हूं, उस होटल में बीस रुपए के नाम पर मिलने वाली राजमे की कटोरी में राजमे के केवल 15 या 16 दाने होते हैं. साथ ही मैंने ये भी स्वीकार कर लिया है कि 15 रूपये में अरहर की दाल के नाम पर मिलने वाली दाल अरहर न होकर मूंग होती है. वैसे भी बुजुर्गों ने कहा है हर पीली चीज सोना और हर पीली दाल अरहर नहीं होती.

हां तो मैं कह रहा था कि होनी को कोई टाल नहीं सकता, और जो होगा वो होकर रहेगा. प्रधानमंत्री चरखे पर बैठ के नायलॉन के धागे से खादी बुन चुके हैं. सनद रहे, पहले इस चरखे पर गांधी थे. दिल्ली में ठंड बहुत है और गांधी बेयर-चेस्ट थे वो शॉल ओढ़ने गए थे, चरखा खाली था. आयोग घूमने आये चरखे को खाली देख, प्रधानमंत्री से रहा नहीं गया वो आकर उसपर बैठ गए, प्रधानमंत्री को चरखे पर बैठा देख, उनके साथ फोटो खींचने आए फोटोग्राफर ने अपने डीएसएलआर में आनन-फानन में 70-200 एमएम का लेंस फिट किया और अपने 32 जीबी के क्लास टेन मेमोरी कार्ड पर प्रधानमंत्री की एक से बढ़कर एक फोटो छाप लीं. फोटोग्राफर के लिए इस डिजिटल युग में नेगेटिव डेवेलोप करने जैसा कोई झंझट नहीं है और साथ ही फोटोग्राफर फोटोशॉप जानता है. अतः जल्द ही खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) का कैलेण्डर हमारे सामने हमारी दीवार पर होगा. मैंने स्वीकार कर लिया है कि अबसे मेरे ड्राइंग रूप की पर्पल दीवार पर सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री ही होंगे. वो क्या है न कि “आई लव माय प्रधानमंत्री” वैसे भी मैं गांधी और उनकी बातों से इत्तेफाक नहीं रखता. दरअसल, बहुत पहले एक विशेष "पंथ" से ताल्लुख रखने वाले मेरे कुछ दोस्तों ने फेसबुक पर "जम के लिखते" हुए उनकी बड़े ही कड़े शब्दों में निंदा की थी और तब मैं उन लोगों की बातों से बड़ा इंस्पायर और मोटिवेट हुआ था.   

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गौरतलब है कि खादी ग्राम उद्योग आयोग (KVIC) द्वारा साल 2017 के लिए प्रकाशित कैलेंडर और टेबल डायरी से इस वर्ष महात्मा गांधी को गायब कर दिया गया है और बापू के तख़्त पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गद्दीनशीन हो गए हैं. आपको बता दूं कि कैलेंडर के कवर फोटो और डायरी में बड़े से चरखे पर खादी कातते मोदी की तस्वीर देखकर संस्थान के ज्यांदातर कर्मचारियों को सांप सूंघ गया है. मोदी की तस्वीर गांधी के सूत कातने वाले क्लासिक पोज से मिलती जुलती है. कह सकते हैं चरखा वही है मगर सूत काटने का स्वरुप बदल गया है. पहले इस बिल्कुल कॉमन से दिखने वाले चरखे पर अपने सिग्नेचर पहनावे में गांधी खादी बुनते थे अब कुर्ता-पायजामा के ऊपर वेस्टकोट पहन मोदी चरखा चला रहे हैं. इन सब को देखकर न सोने के चलते झुर्री पड़ी मेरी ये आंखें, इमोशनल होकर नम हो गयीं हैं और मुझे एहसास हो रहा है कि भले ही इस देश की जनता के अच्छे दिन आए हों या न आए हों मगर सूत, चरखे और खादी के तो आ ही गए हैं ये अच्छे दिन वैसे ही आएं हैं जैसे योग के. पहले लोग योग को कम जानते थे अब तो जून की गर्मी में भी वो एक दूसरे को देखकर सूर्य नमस्कार की मुद्रा में नमस्कार करते हैं.

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बात कल की है, यहां बैंगलोर के एक पार्क में इवनिंग वॉल्क के दौरान एक अंकल मिले. अंकल रोज मिलते थे मगर बात कल हुई अंकल गांधियन विचारधारा के थे और साथ ही उनका "ओएस" भी अपडेटेड था. अंकल ने खबर पढ़ रखी थी कि अब गांधी की जगह चरखे पर प्रधानमंत्री हैं, पहले उन्होंने इधर उधर की बात की फिर सीधे मुद्दे पर आए. कहने लगे न जाने इस सरकार को और मोदी को गांधी से क्या दुश्मनी है जो उन्हें रिप्लेस करना चाहते हैं पहले उन्होंने गांधी के सीटिंग अरेंजमेंट को नोट पर से चेंज किया अब चरखे से भी हटा दिया” ये अच्छी बात नहीं है इसकी निंदा होनी चाहिए. मैं अंकल की हां में हां मिलता रहा और बोर होकर पार्क के बाहर भुट्टा खाने चला गया. जिस वक्त भुट्टे वाला मेरे कहने के बाद भुट्टे पर एक्स्ट्रा नींबू और नमक मल रहा था मैंने अपने मोबाइल पर एक दूसरी खबर पढ़ी. खबर थी की "केवीआईसी के कर्मचारी इस नई तस्वीर से खासे असंतुष्ट हैं. गवर्नमेंट एम्प्लॉई होने की वजह से खुलकर उन्होंने इस विषय पर कुछ नहीं कहा लेकिन गुरुवार को लंच के समय उन्होंने भूख हड़ताल कर दी खामोशी से अपना विरोध जताने के लिए वे लोग विले पार्ले स्थित आयोग के मुख्यालय में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास मुंह पर काली पट्टी बांधकर आधे घंटे तक बैठे रहे.

देश एक बुरे दौर से गुजर रहा है, इस समय देश में दो तरह के लोग हैं, एक जो कुछ कहते नहीं और दूसरे जो हर पल कुछ न कुछ कहते रहते हैं. बहरहाल मैं कहां हूं किस केटेगरी में हूं मुझे पता नहीं मगर ताजा हालात देखकर बस इतना ही कहूंगा यदि आप अपने इतिहास से छेड़छाड़ करेंगे तो निश्चित तौर पर आपका भूगोल बिगड़ जाएगा यूं भी आजकल अर्थव्यवस्था लचर है. अगर प्रधानमंत्री हमारा दिल बहलाने के लिए ये सब कर रहे हैं तो हमें भी एक हंसीं ख्याल मानकर, उनके इस नए कृत्य को हंसते मुस्कुराते हुए स्वीकार कर लेना चाहिए. ठीक वैसे, जैसे मैंने ये स्वीकार कर लिया है कि मैं जिस होटल में खाना खाता हूं वहां बीस रुपए के नाम पर मिलने वाली राजमे की कटोरी में राजमे के केवल 15 या 16 दाने होते हैं और हर पीली चीज सोना और हर पीली दाल, अरहर नहीं होती.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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