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बारिश के मौसम में इंद्र को भेजी गई कुछ चिट्ठ‍ियां...

    • चंदन कुमार
    • Updated: 15 जुलाई, 2015 01:28 PM
  • 15 जुलाई, 2015 01:28 PM
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इतना बड़ा देश. कहीं मानसून है, कहीं नहीं है. ऐसे में जितने लोग उतनी बातें. बारिश नहीं हुई है तो परेशानी, हो गई तो परेशानी. ऐसे में कुछ लोगों ने इंद्र देव के नाम कुछ चिट्ठ‍ियां भेजी हैं. आप भी पढ़िए-

मैं एक पोस्टमास्टर हूं. दिल्ली से सटे नोएडा में मेरा ऑफिस है. मोबाइल के जमाने में भी लोगों को चिट्ठियों के जरिये जोड़े रखने का नायाब काम करता हूं. चिट्ठियां! इनकी खूशबू! आह! मोबाइल जेनरेशन क्या जानेगी इसकी अहमियत... पत्र-प्रेम नाम की चीज भी इस दुनिया में है, तुम क्या जानो यंगस्टर्स! लेकिन यही पत्र-प्रेम आज मेरे लिए परेशानी का कारण बन गया है. नौकरी जाने तक की बात आ गई है. कारण है मेरे ऑफिस में चिट्ठियों की भरमार और उसे सही पते तक न भेज पाने की दुविधा.

हुआ यूं कि दिल्ली-एनसीआर को पिछले हफ्ते बारिश ने धो डाला. सुबह-शाम-रात-दोपहर एकदम एक समान. गर्मी और पसीने से लोगों को राहत दिलाई. लेकिन जैसा हर मामले में होता है, यहां भी हुआ. जनता की शिकायतें कम नहीं हुईं और मेरी डाक पेटी शिकायत पेटी बन गई. दिक्कत यहीं से शुरू हुई. सारी की सारी चिट्ठियां इंद्र देव को लिखी गई हैं. पते के नाम पर बस इतना लिखा है : बारिशों के देव - इंद्र देव.

क्या करूं इतनी सारी चिट्ठियों का, वो भी बिना पते की? इंद्र देव तक पहुंचा जाए, डाक विभाग में तो ऐसी कोई सुविधा नहीं है. तभी दिमाग में ख्याल आया कि इंटरनेट सबसे तेज है. मैं तो नहीं मानता, लेकिन मेरा बेटा कहता है कि बराक से लेकर मोदी तक को इसी ने जीत दिलाई है. अगर ऐसा है तो इसकी मदद ली जाए. सारी चिट्ठियों के निचोड़ को एक में लिख कर आपके हवाले कर रहा हूं मेरे इंटरनेट देव. कृपया कर लोगों के देव इंद्र देव तक इसे पहुंचा दें और मुझ पर उपकार करें.

लोग लिखते हैं - हे इंद्र देव, आपने बारिश करवाई, आपका धन्यवाद. गर्मी से निजात दिलाई, इसके लिए भी धन्यवाद. पर आगे से इनका ख्याल रखें तो बड़ी मेहरबानी होगी:

(i) शहरों में बारिश न करवाएं. गांवों में इतनी करवा दें कि शहर की गर्मी दूर हो जाए.
(ii) शहर में बारिश हो तो हो, पर सड़कों पर न हो. टेरेस पर हो, गमलों में, बगीचे में हो.
(iii) रात में हो जाए बारिश, ऑफिस जाते समय तो बिल्कुल न हो.
(iv)...

मैं एक पोस्टमास्टर हूं. दिल्ली से सटे नोएडा में मेरा ऑफिस है. मोबाइल के जमाने में भी लोगों को चिट्ठियों के जरिये जोड़े रखने का नायाब काम करता हूं. चिट्ठियां! इनकी खूशबू! आह! मोबाइल जेनरेशन क्या जानेगी इसकी अहमियत... पत्र-प्रेम नाम की चीज भी इस दुनिया में है, तुम क्या जानो यंगस्टर्स! लेकिन यही पत्र-प्रेम आज मेरे लिए परेशानी का कारण बन गया है. नौकरी जाने तक की बात आ गई है. कारण है मेरे ऑफिस में चिट्ठियों की भरमार और उसे सही पते तक न भेज पाने की दुविधा.

हुआ यूं कि दिल्ली-एनसीआर को पिछले हफ्ते बारिश ने धो डाला. सुबह-शाम-रात-दोपहर एकदम एक समान. गर्मी और पसीने से लोगों को राहत दिलाई. लेकिन जैसा हर मामले में होता है, यहां भी हुआ. जनता की शिकायतें कम नहीं हुईं और मेरी डाक पेटी शिकायत पेटी बन गई. दिक्कत यहीं से शुरू हुई. सारी की सारी चिट्ठियां इंद्र देव को लिखी गई हैं. पते के नाम पर बस इतना लिखा है : बारिशों के देव - इंद्र देव.

क्या करूं इतनी सारी चिट्ठियों का, वो भी बिना पते की? इंद्र देव तक पहुंचा जाए, डाक विभाग में तो ऐसी कोई सुविधा नहीं है. तभी दिमाग में ख्याल आया कि इंटरनेट सबसे तेज है. मैं तो नहीं मानता, लेकिन मेरा बेटा कहता है कि बराक से लेकर मोदी तक को इसी ने जीत दिलाई है. अगर ऐसा है तो इसकी मदद ली जाए. सारी चिट्ठियों के निचोड़ को एक में लिख कर आपके हवाले कर रहा हूं मेरे इंटरनेट देव. कृपया कर लोगों के देव इंद्र देव तक इसे पहुंचा दें और मुझ पर उपकार करें.

लोग लिखते हैं - हे इंद्र देव, आपने बारिश करवाई, आपका धन्यवाद. गर्मी से निजात दिलाई, इसके लिए भी धन्यवाद. पर आगे से इनका ख्याल रखें तो बड़ी मेहरबानी होगी:

(i) शहरों में बारिश न करवाएं. गांवों में इतनी करवा दें कि शहर की गर्मी दूर हो जाए.
(ii) शहर में बारिश हो तो हो, पर सड़कों पर न हो. टेरेस पर हो, गमलों में, बगीचे में हो.
(iii) रात में हो जाए बारिश, ऑफिस जाते समय तो बिल्कुल न हो.
(iv) बारिश हो तो झमाझम हो, रिमझिम न हो.
(v) बारिश हो तो हो, पर कीचड़ न हो. बेहतर हो कि कीचड़ वाली संभावना की जगह बारिश ही न हो.
(vi) बेहतर हो एक तय समय पर हो, आकाशवाणी से सूचना देकर.
(vii) सास-बहू सीरियल्स के समय न हो, डिश का कनेक्शन चला जाता है.
(viii) हसबैंड के ऑफिस निकलने के बाद हो, बारिश के बहाने से ऑफिस नहीं जाएंगे तो दिन भर दिमाग खाएंगे.
(ix) डेट पर जाने के दिन न हो, रोमांटिक मूड का कचरा हो जाता है.
(x) स्कूल और कोचिंग वाली टाइमिंग पर बारिश हो, टीचर बहुत पकाती है.
(xi) नेताओं की रैलियों के समय बारिश हो, बहुत गंध फैलाते हैं.
(xii) ट्रेन में मेरी खिड़की की तरफ न हो बारिश.
(xiii) आज कपड़े धोए हैं, आज मत बरसो .
(xiv) आज पकौड़े और हरी चटनी बनाई है, आज तो बरस ही जाओ.
(xv) हमारे यहां जो बारिश हुई, वो षड्यंत्र के तहत चीन ने करवाई. आप चीन में इतना बरसो कि उनकी नानी याद आ जाए. 

                
बारिश हो तो कब हो और न हो तो कब न हो - यही फरियाद है लोगों की इंद्र देव से. मेरे लिए तो देव आप हैं इंटरनेट. मेरी फरियाद तो आपसे है. लोगों की फरियाद को इंद्र देव तक पहुंचा दें. मेरी नौकरी का सवाल है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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