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उपद्रव मचाते किसानों को देखकर बाय गॉड की कसम कलेजा फट गया!

    • सर्वेश त्रिपाठी
    • Updated: 28 जनवरी, 2021 09:03 PM
  • 28 जनवरी, 2021 09:03 PM
offline
लाल किले पर जो भी उपद्रव हुआ उससे हर भारतीय शर्मसार है. क्या देशी क्या विदेशी सब तरफ मीडिया ने तलवार भांजते और उपद्रव मचाते तथाकथित किसान की तस्वीर के साथ जो जो खबरें चलाई कि बाय गॉड की कसम कलेजा फट गया. यही नहीं किसानों के आंदोलन से सहानुभूति रखते हुए विपक्ष के नेताओं ने भी इस कुकृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की.

26 जनवरी को जब मैं अपना लोकपथ से राजपथ वाला लेख लिख रहा था तो यह कतई अंदाजा नहीं था कि किसानों की Tractor Rally अपने रूट से बहक जाएगी और Lal Qila उस दिन लंपट कृत्य का साक्षी बनेगा. लाल किले पर जो भी उपद्रव हुआ उससे हर भारतीय शर्मसार है. क्या देशी क्या विदेशी सब तरफ मीडिया ने तलवार भांजते और उपद्रव मचाते तथाकथित Farmers की तस्वीर के साथ जो जो खबरें चलाई कि बाय गॉड की कसम कलेजा फट गया. यही नहीं किसानों के आंदोलन से सहानुभूति रखते हुए विपक्ष के नेताओं ने भी इस कुकृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की. लाल किले की ऐतिहासिक प्राचीर ने सोचा भी न होगा कि बिना टिकट उस दिन इतने लोग आ जाएंगे. फ़िलहाल दिल्ली पुलिस प्रशासन की प्रशंसा करनी होगी कि उसने जिस संयम और धैर्य का परिचय दिया वह वंदनीय है. सभी भारतीय यह उम्मीद करते है कि किसानों के आंदोलन को यह अराजक रूप देने वाले उपद्रवियों की पहचान कर उनके पीछे कायदे से लट्ठ बजाए.

दिल्ली में पुलिस द्वारा लगाई बैरिकेडिंग को तोड़ते किसान

बताइए क्या क्या लोगों ने सोचा था ? हम तो इस उम्मीद में थे कि लोकतंत्र का क्या खूबसूरत चेहरा दिखेगा जब भारत के अन्नदाता अपने ट्रैक्टर के साथ दिल्ली की सड़कों पर अपनी ताकत दिखाएंगे. सुबह देश का शौर्य प्रदर्शन हम सब ने देख ही लिया था. ख़ैर जो भी हुआ बुरा हुआ. फ़िलहाल 26 जनवरी की घटना के बाद मेरे मन यह बात बार बार आ रही है कि अब आंदोलन के प्रति सरकार और देश का रवैया क्या होगा?

26 जनवरी को जब मैं अपना लोकपथ से राजपथ वाला लेख लिख रहा था तो यह कतई अंदाजा नहीं था कि किसानों की Tractor Rally अपने रूट से बहक जाएगी और Lal Qila उस दिन लंपट कृत्य का साक्षी बनेगा. लाल किले पर जो भी उपद्रव हुआ उससे हर भारतीय शर्मसार है. क्या देशी क्या विदेशी सब तरफ मीडिया ने तलवार भांजते और उपद्रव मचाते तथाकथित Farmers की तस्वीर के साथ जो जो खबरें चलाई कि बाय गॉड की कसम कलेजा फट गया. यही नहीं किसानों के आंदोलन से सहानुभूति रखते हुए विपक्ष के नेताओं ने भी इस कुकृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की. लाल किले की ऐतिहासिक प्राचीर ने सोचा भी न होगा कि बिना टिकट उस दिन इतने लोग आ जाएंगे. फ़िलहाल दिल्ली पुलिस प्रशासन की प्रशंसा करनी होगी कि उसने जिस संयम और धैर्य का परिचय दिया वह वंदनीय है. सभी भारतीय यह उम्मीद करते है कि किसानों के आंदोलन को यह अराजक रूप देने वाले उपद्रवियों की पहचान कर उनके पीछे कायदे से लट्ठ बजाए.

दिल्ली में पुलिस द्वारा लगाई बैरिकेडिंग को तोड़ते किसान

बताइए क्या क्या लोगों ने सोचा था ? हम तो इस उम्मीद में थे कि लोकतंत्र का क्या खूबसूरत चेहरा दिखेगा जब भारत के अन्नदाता अपने ट्रैक्टर के साथ दिल्ली की सड़कों पर अपनी ताकत दिखाएंगे. सुबह देश का शौर्य प्रदर्शन हम सब ने देख ही लिया था. ख़ैर जो भी हुआ बुरा हुआ. फ़िलहाल 26 जनवरी की घटना के बाद मेरे मन यह बात बार बार आ रही है कि अब आंदोलन के प्रति सरकार और देश का रवैया क्या होगा?

सरकार बहादुर तो अपने सारे विकल्प पहले ही बता चुकी है. अब देश का एक बड़ा वर्ग भी किसान विसान टाइप कुछ सोच रहा है. वेरी गुड. सोच लो भाई लोग. इतने जाड़े में मेरा देश सोच रहा है इससे बेहतर क्या होगा. बस दुःख इस बात को लेकर है कि आम जानता के बीच इस समस्त घटनाक्रम ने नकारात्मक छवि का ही निर्माण किया. शहरी मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा पहले ही इस आंदोलन को सरकार की छवि खराब करने का और बिचौलियों का आंदोलन बता कर वाट्सएप यूनिवर्सिटी पर ग़दर काटे है.

इसके प्रत्युत्तर में भी लोगबाग तर्क और दम भर रहे. वो कॉरपोरेट टाइप का तर्क. अब देश में कृषि बिल को लेकर वैचारिक विभाजन स्पष्ट दिख रहा है. सरकार बहादुर और उसके समर्थक 26 जनवरी की घटना के बाद अब और आक्रामक तरीके से यह बता रहे की देख लो यह आंदोलन सिर्फ एक साज़िश है सरकार के ख़िलाफ़.

भाई हम तो मौका मुकाम पर तो है नहीं. आप ही भाई लोग सोशल मीडिया पर तमाम बातें लिख पढ़कर देश का मूड डिसाइड कर देते है. बिडू यहिच इंडिया की बड़ी विडम्बना है कि सूचना के तमाम माध्यम होने के कारण हर व्यक्ति ज्ञानी तो बहुत है लेकिन मुद्दों के प्रति उसकी समझ कितनी है यह सोशल मीडिया पर उसकी प्रतिक्रिया और पोस्ट से स्पष्ट हो जाता है. न्यूज़ चैनल तो पूरी बिरयानी ही बना दे रहे है. सब अपनी अपनी दुकान चला रहे है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के माध्यम से किसान देश और सरकार को शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से अपनी जिस ताकत को दिखाना चाहते थे वह फुस्स हो गया है. किसान नेता अभी असमंजस में है कि कैसे डैमेज कंट्रोल कर आंदोलन को फिर से पटरी पर लाए. 26 जनवरी के बाद इसमें कोई संदेह नहीं कि किसानों का आंदोलन कमजोर पड़ा है और उसके विभिन्न संगठनों में दरार स्पष्ट दिख रही है.

किसान संगठनों मे आपस में लोग आरोप प्रत्यारोप कर रहे है. 26 जनवरी की शाम को किसानों के संयुक्त मोर्चे ने हालांकि इस मुद्दे पर पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए लालकिला की घटना और दिल्ली में हुई हिंसा की घोर निन्दा की है. लेकिन कहीं न कहीं उनका भी नैतिक बल हिल चुका है. अब यह देखना होगा कि आंदोलन की दिशा और सरकार का इसके प्रति रवैया क्या होगा.

तीनों कृषि बिल को लेकर अब सरकार की रणनीति क्या होगी यह एकाध दिन में स्पष्ट हो जाएगा लेकिन 26 जनवरी की घटना भी सरकार के पक्ष को और दृढ़ता प्रदान करेगी. हम जैसे आम भारतीय जो दिल से मानते है कि सरकार और किसान दोनों ही अपने है वो बस यही दुआ कर सकते है कि संघर्ष की यह स्थिति जल्द ही समाप्त हो. इसमें कोई संदेह नहीं कि देशहित सर्वोपरि है लेकिन देश भी इंसानों से बनता है और भारत वैसे भी किसानों का ही देश है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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