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मोदी जी के उपवास में अगर गडकरी ने समोसा खाया तो बस आहत न होना!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 10 अप्रिल, 2018 09:03 PM
  • 10 अप्रिल, 2018 09:03 PM
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खबर है कि विपक्षी पार्टियों मुख्यतः कांग्रेस से त्रस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल को पूरे दिन का उपवास रखेंगे. उपवास को गौर से देखें तो मिलता है कि भारतीय राजनीति में उपवास के नाम पर बात मनवाने की परंपरा बहुत पुरानी है.

पीएम मोदी का कांग्रेस पर आरोप लगाना कोई नई बात नहीं है. माना जाता है कि पीएम ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ते जिसमें उन्हें कांग्रेस की आलोचना करने का मौका मिलता है. खबर है कि विपक्षी पार्टियों मुख्यतः कांग्रेस से त्रस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल को पूरे दिन का उपवास रखेंगे. सुनने में ये भी आ रहा है कि पीएम मोदी के अलावा बीजेपी के लगभग सभी पार्टी कार्यकर्ता और बड़े नेता इस दिन उपवास रखने की योजना बना रहे हैं. पीएम मोदी को देखकर गडकरी उपवास करेंगे ये हम नहीं कह सकते. मगर इस उपवास से जुड़ी जो ख़बरें आ रही हैं उनके अनुसार पीएम के डेली रूटीन में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है. पीएम मोदी इस दौरान सभी चीजें वैसे ही करेंगे जैसे वो आम दिनों में करते हैं.

पीएम मोदी कांग्रेस से इतना त्रस्त हैं कि अब उन्हें उसे सुधारने के लिए उपवास रखना पड़ रहा है

बात चूंकि उपवास की हो रही है तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि उपवास की राजनीति भारत में कोई नई नहीं है. गुजरे 100-200 साल का इतिहास देखें तो मिलता है कि ऐसे तमाम मौके आए जब अपना हट मनवाने के लिए महात्मा गांधी ने उपवास रखा. गांधी के उपवास से जहां कई मौकों पर अंग्रेज हुकूमत उनके सामने झुकी तो वहीं इसने देश की राजनीति को नए आयाम दिए. गांधी के बाद नेतागिरी में उपवास ठंडे पड़ गए थे. ऐसी ख़बरें अंगुलियों पर गिनी जा सकती है जब किसी नेता ने अपनी मांगों के लिए उपवास का रास्ता अपनाया और धरने पर बैठा.

देश में, 1947 से लेकर 2010 तक सब ठीक था, पब्लिक को भी करप्शन, महंगाई, बेईमानी सहने की आदत हो गयी थी. नेता लोग पब्लिक को बेवकूफ बना रहे थे. कुछ करने में नाकाम पब्लिक भी...

पीएम मोदी का कांग्रेस पर आरोप लगाना कोई नई बात नहीं है. माना जाता है कि पीएम ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ते जिसमें उन्हें कांग्रेस की आलोचना करने का मौका मिलता है. खबर है कि विपक्षी पार्टियों मुख्यतः कांग्रेस से त्रस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल को पूरे दिन का उपवास रखेंगे. सुनने में ये भी आ रहा है कि पीएम मोदी के अलावा बीजेपी के लगभग सभी पार्टी कार्यकर्ता और बड़े नेता इस दिन उपवास रखने की योजना बना रहे हैं. पीएम मोदी को देखकर गडकरी उपवास करेंगे ये हम नहीं कह सकते. मगर इस उपवास से जुड़ी जो ख़बरें आ रही हैं उनके अनुसार पीएम के डेली रूटीन में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है. पीएम मोदी इस दौरान सभी चीजें वैसे ही करेंगे जैसे वो आम दिनों में करते हैं.

पीएम मोदी कांग्रेस से इतना त्रस्त हैं कि अब उन्हें उसे सुधारने के लिए उपवास रखना पड़ रहा है

बात चूंकि उपवास की हो रही है तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि उपवास की राजनीति भारत में कोई नई नहीं है. गुजरे 100-200 साल का इतिहास देखें तो मिलता है कि ऐसे तमाम मौके आए जब अपना हट मनवाने के लिए महात्मा गांधी ने उपवास रखा. गांधी के उपवास से जहां कई मौकों पर अंग्रेज हुकूमत उनके सामने झुकी तो वहीं इसने देश की राजनीति को नए आयाम दिए. गांधी के बाद नेतागिरी में उपवास ठंडे पड़ गए थे. ऐसी ख़बरें अंगुलियों पर गिनी जा सकती है जब किसी नेता ने अपनी मांगों के लिए उपवास का रास्ता अपनाया और धरने पर बैठा.

देश में, 1947 से लेकर 2010 तक सब ठीक था, पब्लिक को भी करप्शन, महंगाई, बेईमानी सहने की आदत हो गयी थी. नेता लोग पब्लिक को बेवकूफ बना रहे थे. कुछ करने में नाकाम पब्लिक भी बेचारी इन सब चीजों को सह रही थी और बेवकूफ बन रही थी. फिर 2011 में अन्ना आए और अपने संग अनशन और उपवास लेकर आए. अन्ना को देखकर देश का आम आदमी जाग गया. सबने एक सुर में कहा "मैं भी अन्ना- मैं भी अन्ना."

अन्ना की लड़ाई आम आदमी के लिए थी. अन्ना ने आम आदमी के हितों के लिए खाना पीना छोड़ा था फिर एक दिन उन्हें जूस पिला दिया गया. 2011 से 2018 हो चुका है. आम आदमी को भले ही अन्ना वाला जनलोकपाल न मिला हो मगर हां उसे जूस के बदले जनलोकपाल के नाम पर अरविंद केजरीवाल मिल गए. देश की राजनीति में अरविंद का उदय कुछ वैसा ही है जैसा पतंजलि के 1 किलो घी की खरीद पर 50 ग्राम दंत कांति का मिलना.

ज्यादा दिन नहीं हुए 2011 में अन्ना ने उपवास के नाम पर सोए हुए भारतीयों को जगाया था

बहरहाल हम न तो अन्ना पर बात कर रहे हैं न केजरीवाल पर हमारा सारा फोकस अनशन और उपवास है. अभी कुछ दिनों पहले की बात है कावेरी मामले पर एआईएडीएमके के बड़े नेता और कार्यकर्ता उपवास पर बैठे थे. उपवास पर बैठे लोग अभी अपने घर भी नहीं पहुंच पाए थे कि सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो गयीं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इन तस्वीरों में एआईएडीएमके के कार्यकर्ता और नेता बिरयानी खाने के बाद शराब पीकर गला तर करते नजर आ रहे थे. खूब आलोचना हुई, क्या-क्या नहीं कहा गया.

एआईएडीएमके वालों ने बिरयानी खाकर उपवास को नए आयाम दिए

अभी एआईएडीएमके के लोगों का बिरयानी खाने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि खबर आई कि राहुल गांधी भी उपवास पर बैठने वाले हैं. राहुल के उपवास पर बैठने का कारण दलित उत्पीड़न था. दलितों पर हो रहे उत्पीडन को देखकर राहुल गांधी बहुत आहत थे और इसी के मद्देनजर उन्होंने देश भर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से उपवास रखने की अपील की थी. राहुल का उपवास शायद एक या दो घंटे चला था. उपवास के बाद छोला भटूरा पार्टी हुई थी. कार्यकर्ता रुमाल और टिश्यू पेपर से पसीना पोंछते हुए भटूरे खा रहे थे. बताने वालों ने बताया कि बड़ा दिलफरेब नजारा था. टेबल पर बैठे सभी नेता बरसों के भूखे जान पड़ रहे थे. सभी चटकारे मारकर छोले भटूरे खा रहे थे.  

छोले भटूरे का आनंद लेते कांग्रेस के नेता

कह सकते हैं कि जिस तरह से राहुल गांधी ने उपवास का उपहास किया उसको देखकर स्वर्ग में बैठी महात्मा गांधी की आत्मा कभी खुद पर तो कभी हालात पर रो रही होगी. अगर राहुल के इस उपवास को देखें तो मिलता है कि जितनी देर ये उपवास चला उससे ज्यादा लम्बा टाइम तो हम आम लोग चाय और पराठे के बीच ले लेते हैं. यानी जितनी देर में एक आम आदमी चाय के बाद पराठा खाता है उससे भी कम समय में राहुल गांधी ने अपने अनशन को टाटा बाय-बाय किया.

खैर, मोदी जी बड़े फिट नेता है उनका जनाधार भी अच्छा है. देश के लोग उन्हें बहुत पसंद करते हैं. बहरहाल, देश के एक नागरिक के तैर पर हमें पूरी आशा है कि वो वैसा ही अनशन करेंगे जैसा कभी महात्मा गांधी ने किया था और जिसको देखकर अंग्रेजों को भी उनके आगे घुटने टेकने पड़े थे.

अच्छा चूंकि हमारी आशा का केन्द्र मोदी जी हैं तो यदि हम अमित शाह और नितिन गडकरी जैसे लोगों को उपवास के दौरान या फिर उसके बाद समोसा खाते देख लें तो हमें आहत होकर जज्बाती नहीं होना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि बिरयानी, शराब और छोले भटूरे के मुकाबले समोसे में कैलोरी और बैड कॉलेस्ट्रोल दोनों ही कम होता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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