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PM Modi को 'चिंतामन' की चिट्ठी आई, जिसे पढ़कर सारी चिंताएं छू मंतर!

    • धीरज झा
    • Updated: 07 सितम्बर, 2020 01:42 PM
  • 07 सितम्बर, 2020 01:42 PM
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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi ) के एक फैन 'चिंतामन' ने उन्हें चिट्ठी (Open Letter ) लिखी है और तमाम मुख्य मुद्दों पर अपना समर्थन दिया है. चिट्ठी में चिंतामन ने इस बात का साफ़ जिक्र किया है कि पीएम जो भी कर रहे हैं वो देश हित में है.

हमारे प्रिय परधान साहेब जी,

स्वर्गीय मंगल राम के सुपुत्र चिंतामन के तरफ से आपको कोटि कोटि परनाम. आसा नहीं बिस्बास है कि आप एकदम फिट आ तन्दरुस्त होइएगा. हम जानते हैं आप भोरे भोरे उठ के जोगा करते हैं, मोर वाला भिडियो हम भी देखे थे. बताइए कैसा दिब्य पुरुस हैं आप. जो एक मोरो आपके साथ सुरक्षित महसूस करता है. एही सब बात से हमको लगता है कि आप ही भगबान का कलजुगी अबतार हैं परभु. चिंतामन का दोबारा से परनाम स्बीकार करें परभु. अब जरा मुद्दा का बात कर लेते हैं. बात ऐसा है कि हमारा मन बहुते दुखी है साहेब. आपका आदेस हुआ था कि घर में रहना है और हम दिल्ली के फैट्रिक का नोकरी छोड़ के सीधा घरे लौट आए थे. तब से घरे पर हैं. लकडउनमा टूटा तो सोचे जाते हैं काम धंधा करेंगे लेकिन पता चला कि हमारा कंपनी बहुत लेबर को निकाल रहा है. और जगह भी पता किए लेकिन कहीं काम नहीं मिला.

पीएम मोदी के एक फैन ने चिट्ठी लिखकर देश के प्रधानमंत्री का मनोबल बढ़ा दिया है

लेकिन हमको काहे का फरक पड़ेगा. आप हइए हैं तो घबराना कैसा? आपका मुफत का अनाज आ 500 रूपया हमको मिल गया था. अइसे तो 5 किलो अनाज में एतना बड़का पलिबार का क्या ही होगा लेकिन हम कर्जा उठा लिए थे. देस हित में एतना भी नहीं किए तो का किए. काहे ठीक कहे ना साहेब? हम कह रहे थे कि, जेतना दिन से घरे बैठे हैं ओतना दिन से लोक सबका बक बक सुन रहे हैं.

बहुत बुरा भला बोलता है आपको सब. ई सब सुन के हमारा आत्मा दुखी होता है. एक दो लोग से तो हम भिड़ भी गये. एक ने मारा भी हमको लेकिन सच का लड़ाई में मार खाना ही पड़ता है. देखिए तो जरा आपको ई साला सब झूठा कह रहा है. आप जैसा इंसान जो सारा जिंदगी देस सेबा में लगा दिया. लकडाउन में अपना दाढ़ी नहीं कटाया, बेजुबान मोर को दाना खिलाया, चीन के गाओं में बांस ठोक...

हमारे प्रिय परधान साहेब जी,

स्वर्गीय मंगल राम के सुपुत्र चिंतामन के तरफ से आपको कोटि कोटि परनाम. आसा नहीं बिस्बास है कि आप एकदम फिट आ तन्दरुस्त होइएगा. हम जानते हैं आप भोरे भोरे उठ के जोगा करते हैं, मोर वाला भिडियो हम भी देखे थे. बताइए कैसा दिब्य पुरुस हैं आप. जो एक मोरो आपके साथ सुरक्षित महसूस करता है. एही सब बात से हमको लगता है कि आप ही भगबान का कलजुगी अबतार हैं परभु. चिंतामन का दोबारा से परनाम स्बीकार करें परभु. अब जरा मुद्दा का बात कर लेते हैं. बात ऐसा है कि हमारा मन बहुते दुखी है साहेब. आपका आदेस हुआ था कि घर में रहना है और हम दिल्ली के फैट्रिक का नोकरी छोड़ के सीधा घरे लौट आए थे. तब से घरे पर हैं. लकडउनमा टूटा तो सोचे जाते हैं काम धंधा करेंगे लेकिन पता चला कि हमारा कंपनी बहुत लेबर को निकाल रहा है. और जगह भी पता किए लेकिन कहीं काम नहीं मिला.

पीएम मोदी के एक फैन ने चिट्ठी लिखकर देश के प्रधानमंत्री का मनोबल बढ़ा दिया है

लेकिन हमको काहे का फरक पड़ेगा. आप हइए हैं तो घबराना कैसा? आपका मुफत का अनाज आ 500 रूपया हमको मिल गया था. अइसे तो 5 किलो अनाज में एतना बड़का पलिबार का क्या ही होगा लेकिन हम कर्जा उठा लिए थे. देस हित में एतना भी नहीं किए तो का किए. काहे ठीक कहे ना साहेब? हम कह रहे थे कि, जेतना दिन से घरे बैठे हैं ओतना दिन से लोक सबका बक बक सुन रहे हैं.

बहुत बुरा भला बोलता है आपको सब. ई सब सुन के हमारा आत्मा दुखी होता है. एक दो लोग से तो हम भिड़ भी गये. एक ने मारा भी हमको लेकिन सच का लड़ाई में मार खाना ही पड़ता है. देखिए तो जरा आपको ई साला सब झूठा कह रहा है. आप जैसा इंसान जो सारा जिंदगी देस सेबा में लगा दिया. लकडाउन में अपना दाढ़ी नहीं कटाया, बेजुबान मोर को दाना खिलाया, चीन के गाओं में बांस ठोक दिया उसको ए सब गंवार आदमी झूठा कह रहा है. 

सब कह रहा है नौकरी नहीं मिल रहा. अब इन सबका ठेका आप थोड़ी न लिए हैं? कौनो कर्जा खाए हैं इनका? अरे आप तो पहिले ही कहे कि आत्मनिर्भर बनो. अब ये लोग मेहनत नहीं करेगा और इनको चाहिए रोजगार तो कैसे होगा? सब कुछ पढ़े लिखे से ही थोड़े ना मिलता है.

हमार बड़का बेटा बिमलेस पढ़ने में बहुत तेज था. एक दिन कहने लगा बाबू हम खूब पढ़ेंगे आ बड़का अधिकारी बनेंगे. हम लगाए ससुर के दू लप्पड़ और कहे कि रे ससुरा पढ़ लेगा आ जब नोकरी नहीं मिलेगा तब हमारे परधान साहेब को गरियाएगा. उससे अच्छा है तुम पढ़बे नहीं करो. काहे पढ़ लिख के नोकरी लिए दूसरा के मुंह ताकेगा? उससे अच्छा है कि आत्मनिर्भर बनो. अब उसको लगा दिए हैं एक ठो समोसा कचौरी के ठेला पर.

अभी सीखेगा, कल को अपना काम खोल लेगा. एक दिन में 500 रूपया तक भी कमा लिया तो बस हो गया. पढ़ लिख का करता? कौनो नोकरी एतना पईसा दे सकता है का? लोग एतना आसान बात नहीं बूझता है. कहता है जीपीपी गिर गया है. अरे ससुर गिर गया है तो उठ खड़ा होगा दोबारा. कौनो अपाहिज तो नहीं ना हुआ ? पहिले जब खड़ा था तब कौन महल पीट लिए थे हम लोग.खड़ा रहे चाहे गिरे हमको का मतलब.

हमारे साहेब हमको मुफत का चूल्हा दिए, मुफत का अनाज दे रहे हैं, हो गया. अब का आप घर आ के इन लोग का खाना बना जाएंगे? हदे बात करता है सब. हमको कौनो आर्थिक तंगी नहीं बुझाता है. जब तक कर्जा मिल रहा है तब तक सब सही है, नहीं मिलेगा तो लटक जाएंगे. मौत त सबको आना है ना. देखिए रहे हैं आज कल केतना लोग मर रहा है ई करोना से.

हमको सब पूछता है का हो ई सब बोलने का पईसा मिलता है. अब ई मूरख सबको कौन समझाए कि भईया ई पईसा का नहीं स्नेह आ बिस्बास का बात है. आप पर पूरा बिस्बास है साहेब. आपके कारन ही चिनमा बाला सबका हिम्मत नहीं है कि इधर मुंहे उठा के ताक जाए, पकिस्तनमा त साफ सुटुक गया. सब आपका जलबा है परभु. आप केबल अपना काम करते रहिए हम इहां सब सम्हार लेंगे.

आपके लिए सबसे लड़ लेंगे. कौनो मारेगा तो मार भी खा लेंगे. छोटका बेटा तनिक और बड़ा हो जाए त उसको भी आत्मनिर्भर बना देंगे. हमको नहीं मिलेगा नोकरी त हम कर्जा ले लेंगे. आपके लिए जान दे देंगे साहेब. बस आप ऐसे ही अपना काम करते रहिए.

एक बात और, सार चिनमा को उसका औकाद देखा देना है साहेब. बाक़ी कौनो चिंता फिकिर ना करें. बस ईहे मन का बात हमको कहना था. अब बहुते अच्छा फील हो रहा है साहेब. महादेब आपका भला करेंगे.

आपका परम सेबक

सुभचिंतक

चिंतामन

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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