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अब तोप गोला-बारूद नहीं, राष्ट्रवाद उगलेगी !

    • पीयूष द्विवेदी
    • Updated: 29 जुलाई, 2017 08:25 PM
  • 29 जुलाई, 2017 08:25 PM
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अब अगर किसी प्रक्षेपास्त्र से ही राष्ट्रवाद उत्पन्न करना है, तो हमारा अपना मौलिक आयुध धनुष-बाण विश्वविद्यालय में रखा जा सकता है. इससे न केवल राष्ट्रवाद दिमाग में पनपेगा, बल्कि छात्रों के मन में धनुषधारी भगवान रामचंद्र जी का भी स्मरण बना रहेगा.

अगर देश में इन दिनों सर्वाधिक प्रयोग हो रहे शब्दों पर एक शोध किया जाए तो सोशल मीडिया के ‘बधाई’ और ‘धन्यवाद’ के बाद तीसरा शब्द ‘राष्ट्रवाद’ ही मिलेगा. तात्पर्य यह है कि देश में फिलहाल राष्ट्रवाद का घनघोर दौर है. हालांकि इतिहास में भी यहां राष्ट्रवाद रहा है, पर आज की तरह मुखर और घनघोर नहीं रहा.

गौर करें तो मोटी कमाई करने वाले बैरिस्टर मोहनदास का अपना राष्ट्रवाद था, जिसने उन्हें राष्ट्र की दरिद्रता के प्रति इतना द्रवित कर दिया कि विलायती वस्त्र त्याग उन्होंने एक धोती में आजीवन तन ढंकने का निश्चय कर लिया. एक राष्ट्रवाद महामना मदन मोहन मालवीय का भी था, जिसकी प्रेरणा से उन्होंने पराधीनता के उस दौर में ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान की स्थापना कर दी.

भगत सिंह का राष्ट्रवाद तो अनूठा ही था, जिसके दम पर वे एसेम्बली में बम फेंककर वहीं खड़े रहे और फिर फांसी पर हंसते हुए झूलकर पूरे राष्ट्र में राष्ट्रवाद का संचार कर गए. ऐसे ही, नागपुर के एक सामान्य से डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार में भी राष्ट्रवाद की ही प्रेरणा थी, जिसने उनसे शून्य संसाधनों के बावजूद बीस-पच्चीस लोगों को जुटाकर एक ऐसे संगठन की नींव डलवा दी जो आज न केवल भारत अपितु पूरे विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है.

नए तरीके से सीखेंगे राष्ट्रवाद

अब ये सब तो राष्ट्रवाद के ऐतिहासिक उदाहरण हैं, मगर आज के बदलते समय में राष्ट्रवाद का भी रंग-रोगन हो रहा है. आज किसी महानुभाव के लिए अधिकाधिक बच्चे पैदा करना राष्ट्रवाद के अंतर्गत आता है, तो कोई महोदय मानते हैं कि कश्मीर के उग्रवादियों द्वारा सेना के जवानों के साथ की जा रही बर्बरता को नज़रंदाज़ कर उनसे बातचीत करके उन्हें अपना बना लेना ही सच्चा राष्ट्रवाद है.

इन्हीं सबके बीच...

अगर देश में इन दिनों सर्वाधिक प्रयोग हो रहे शब्दों पर एक शोध किया जाए तो सोशल मीडिया के ‘बधाई’ और ‘धन्यवाद’ के बाद तीसरा शब्द ‘राष्ट्रवाद’ ही मिलेगा. तात्पर्य यह है कि देश में फिलहाल राष्ट्रवाद का घनघोर दौर है. हालांकि इतिहास में भी यहां राष्ट्रवाद रहा है, पर आज की तरह मुखर और घनघोर नहीं रहा.

गौर करें तो मोटी कमाई करने वाले बैरिस्टर मोहनदास का अपना राष्ट्रवाद था, जिसने उन्हें राष्ट्र की दरिद्रता के प्रति इतना द्रवित कर दिया कि विलायती वस्त्र त्याग उन्होंने एक धोती में आजीवन तन ढंकने का निश्चय कर लिया. एक राष्ट्रवाद महामना मदन मोहन मालवीय का भी था, जिसकी प्रेरणा से उन्होंने पराधीनता के उस दौर में ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान की स्थापना कर दी.

भगत सिंह का राष्ट्रवाद तो अनूठा ही था, जिसके दम पर वे एसेम्बली में बम फेंककर वहीं खड़े रहे और फिर फांसी पर हंसते हुए झूलकर पूरे राष्ट्र में राष्ट्रवाद का संचार कर गए. ऐसे ही, नागपुर के एक सामान्य से डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार में भी राष्ट्रवाद की ही प्रेरणा थी, जिसने उनसे शून्य संसाधनों के बावजूद बीस-पच्चीस लोगों को जुटाकर एक ऐसे संगठन की नींव डलवा दी जो आज न केवल भारत अपितु पूरे विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है.

नए तरीके से सीखेंगे राष्ट्रवाद

अब ये सब तो राष्ट्रवाद के ऐतिहासिक उदाहरण हैं, मगर आज के बदलते समय में राष्ट्रवाद का भी रंग-रोगन हो रहा है. आज किसी महानुभाव के लिए अधिकाधिक बच्चे पैदा करना राष्ट्रवाद के अंतर्गत आता है, तो कोई महोदय मानते हैं कि कश्मीर के उग्रवादियों द्वारा सेना के जवानों के साथ की जा रही बर्बरता को नज़रंदाज़ कर उनसे बातचीत करके उन्हें अपना बना लेना ही सच्चा राष्ट्रवाद है.

इन्हीं सबके बीच देश के एक बड़े शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय ने राष्ट्रवाद की एक नयी अवधारणा प्रस्तुत कर दी है. महोदय ने कहा है कि विश्वविद्यालय में तोप रखी जाए, इससे छात्रों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा होगी. जिस देश में भगत सिंह, गांधी, सुभाष की तस्वीरों को देखकर राष्ट्रवाद पनपने की आशा की जाती है, वहां गोला-बारूद उगलने वाली तोप से राष्ट्रवाद पैदा होगा, ये सुनने में ही अजीब लगता है. मगर, इतने बड़े विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय कह रहे तो अविश्वास करना भी बड़ी धृष्टता ही होगी. 

थोड़ा तोप के ऐतिहासिक पहलुओं को टटोलते हैं, कहीं इतिहास में इसका राष्ट्रवाद से कोई सम्बन्ध ना निकल आए. इतिहास में तो ऐसा दर्ज है कि तोप की उत्पत्ति यूरोप में हुई थी और भारत में तो ये ससुरी बाबर के साथ आई थी. मतलब कि इसका भारत और भारतीयता से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है. अब अगर किसी प्रक्षेपास्त्र से ही राष्ट्रवाद उत्पन्न करना है, तो हमारा अपना मौलिक आयुध धनुष-बाण विश्वविद्यालय में रखा जा सकता है. इससे न केवल राष्ट्रवाद दिमाग में पनपेगा, बल्कि छात्रों के मन में धनुषधारी भगवान रामचंद्र जी का भी स्मरण बना रहेगा. इस तरह राष्ट्रवाद और रामराज्य दोनों की संभावना बढ़ेगी. अब इतने सारे तरीके हैं, फिर तोप रखने की क्या जरूरत? कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा, तो यही सोचकर संतोष कर लिया कि कुलपति महोदय की महान बुद्धि की बातें हमारी ये मामूली सी बुद्धि समझ ही नहीं सकती. बिना किसी ठोस कारण के वे तोप से राष्ट्रवाद पैदा होने की बात थोड़े कहेंगे.

इनके मिलेगी आजादी!

इसी बीच एक अपुष्ट खबर आई है कि दरअसल विश्वविद्यालय में तोप से राष्ट्रवाद पैदा करने का मामला सांकेतिक नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से तकनीक पर आधारित है. बात यह है कि संस्थान में तोप देखने के लिए नहीं रखी जाएगी, बल्कि जेएनयू के बूढ़े-बूढ़े लगने वाले शोधार्थी छात्र उसपर गहन शोध करके एक ऐसी प्रणाली विकसित करेंगे जिससे तोप से गोला-बारूद की जगह राष्ट्रवाद निकलने लगेगा. अब ये राष्ट्रवाद किस रूप में निकलेगा, इसपर कोई खुलासा नहीं हुआ. अगर इस शोध में कामयाबी मिल गयी तो फिर जहां भी कोई राष्ट्रद्रोही दिखेगा तुरंत उसे इस राष्ट्रवादी तोप के सामने खड़ा कर राष्ट्रवाद के गोलों से मार-मारकर राष्ट्रवादी बना दिया जाएगा.

इस तोप का परीक्षण सबसे पहले विश्वविद्यालय के ही कुछ ‘लेके रहेंगे आज़ादी’ टाइप छात्रों पर करने पर भी विचार हो रहा है. मतलब साफ है कि कुलपति महोदय का तोप रखने का आईडिया अत्यंत दूरगामी और वैज्ञानिक सोच से प्रभावित है. इसे मंदबुद्धि वाले लोग नहीं समझ पा रहे, उन्हें जेएनयू में एडमिशन लेकर कुछ साल पढ़ाई करनी चाहिए ताकि उनमें भी इस प्रकार की क्रांतिकारी बुद्धिजीविता का विकास हो सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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