• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
ह्यूमर

'नींद की कमी इंसानों को स्वार्थी बनाती है', मतलब शायरों और कवियों ने मेहनत बेवजह की?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 30 अगस्त, 2022 05:02 PM
  • 30 अगस्त, 2022 05:02 PM
offline
फैज़, फ़राज़, जौन एलिया, राहत इंदौरी, ग़ालिब, निदा फाज़ली हर वो शायर जिसने रात को जाग जाग कर शेर लिखे क्या वो सेल्फिश है? सवाल भले ही अटपटा हो जरूरी इसलिए क्योंकि जो शोध यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कली के शोधकर्ताओं ने किया है वो कुछ ऐसा ही बता रहा है.

एक ही मसला ताउम्र मेरा हल न हुआ

नींद पूरी न हुई, ख़्वाब मुकम्मल न हुआ.

मशहूर शायर मुनव्वर हाशमी अपने इस शेर में उन चुनौतियों के बारे में बता रहे हैं जिनका सामना उन्होंने तक किया जब उन्हें नींद नहीं आई. सिर्फ मुनव्वर ही क्यों? उर्दू अदब में ऐसे तमाम शायर हैं जिन्होंने नींद न आने की समस्या को रूमानी माना हुए एक से बढ़कर एक शेर लिखे. ये शेर कितने मारक और कारगर थे इसका अंदाजा इरफ़ान सिद्दीकी के उस शेर को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है जिसमें शायर का तसव्वुर कुछ यूं है कि

न सोने को लेकर सो शोध हुआ है उसमें जो बातें निकल कर आई हैं वो चौंकाने वाली हैं 

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए,

कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए.

मतलब नींद के मामले में शायरों का तो ऐसा है कि उन्होंने कभी सोने या ये कहें कि नींद को फुटेज दी ही नहीं और इसे एक बेकार की चीज माना. बात आगे बढ़ेगी लेकिन उससे पहले एक बेहद खूबसूरत शेर आपकी नजर.

मेरी पलकों का अब नींद से कोई ताल्लुख़ नहीं रहा,

मेरा कौन है इस "सोच" में मेरी रात गुज़र जाती है.

ऐसे में सवाल ये है कि उर्दू अदब के तमाम शायर और हर वो कवि जिसने अपने लेखन के लिए नींद से समझौता किया क्या वो स्वार्थी या ये कहें कि सेल्फिश था? क्या ऐसे शायर या कवि  ने सिर्फ और सिर्फ अपने निजी हितों के बारे में ही सोचा? ये तमाम सवाल यूं ही नहीं हैं. इनके पीछे एक हालिया शोध है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कली के रिसर्चर्स ने अपने शोधों में 'सेल्फिश इफेक्ट' की जांच की. उन्होंने देखा कि नींद में थोड़ी सी भी कमी...

एक ही मसला ताउम्र मेरा हल न हुआ

नींद पूरी न हुई, ख़्वाब मुकम्मल न हुआ.

मशहूर शायर मुनव्वर हाशमी अपने इस शेर में उन चुनौतियों के बारे में बता रहे हैं जिनका सामना उन्होंने तक किया जब उन्हें नींद नहीं आई. सिर्फ मुनव्वर ही क्यों? उर्दू अदब में ऐसे तमाम शायर हैं जिन्होंने नींद न आने की समस्या को रूमानी माना हुए एक से बढ़कर एक शेर लिखे. ये शेर कितने मारक और कारगर थे इसका अंदाजा इरफ़ान सिद्दीकी के उस शेर को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है जिसमें शायर का तसव्वुर कुछ यूं है कि

न सोने को लेकर सो शोध हुआ है उसमें जो बातें निकल कर आई हैं वो चौंकाने वाली हैं 

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए,

कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए.

मतलब नींद के मामले में शायरों का तो ऐसा है कि उन्होंने कभी सोने या ये कहें कि नींद को फुटेज दी ही नहीं और इसे एक बेकार की चीज माना. बात आगे बढ़ेगी लेकिन उससे पहले एक बेहद खूबसूरत शेर आपकी नजर.

मेरी पलकों का अब नींद से कोई ताल्लुख़ नहीं रहा,

मेरा कौन है इस "सोच" में मेरी रात गुज़र जाती है.

ऐसे में सवाल ये है कि उर्दू अदब के तमाम शायर और हर वो कवि जिसने अपने लेखन के लिए नींद से समझौता किया क्या वो स्वार्थी या ये कहें कि सेल्फिश था? क्या ऐसे शायर या कवि  ने सिर्फ और सिर्फ अपने निजी हितों के बारे में ही सोचा? ये तमाम सवाल यूं ही नहीं हैं. इनके पीछे एक हालिया शोध है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कली के रिसर्चर्स ने अपने शोधों में 'सेल्फिश इफेक्ट' की जांच की. उन्होंने देखा कि नींद में थोड़ी सी भी कमी होने पर लोगों की न्यूरल एक्टिविटी और बर्ताव पर प्रभाव पड़ता है.

अधूरी नींद आदमी को कैसे स्वार्थी बनाती है इस पर कोई एक दो नहीं बल्कि 3 शोध निकाले हैं. शोध में अलग अलग फैक्टर्स का हवाला दिया गया है और बताया गया है कि जीवन में इतना तनाव होने और थकन के बावजूद आदमी क्यों सोने में असमर्थ है. शोध ये भी मानता है कि अगर कोई व्यक्ति सही से सो नहीं पा रहा है तो बहुत मुश्किल है कि अपनी तरफ से वो किसी और की मदद के लिए सामने आ पाए.

सेंटर फॉर ह्यूमन स्लीप साइंस में मनोविज्ञान के पोस्टडॉक्टरल फेलो बेन साइमन सही से न सो पाने वाले लोगों के लिए अपनी तरह का अनोखा तर्क दिया है. साइमन ने कहा है कि अगर किसी की एक घंटे की नींद प्रभावित हो रही है और वो सो नहीं पा रहा है तो ऐसे व्यक्ति की औरों की मदद के लिए आगे आने या रहने की टेंडेंसी बहुत कम होगी. यूं तो नींद के मद्देनजर तीन अलग अलग शोधों में कई बातें हुई हैं लेकिन जब हम उनको देखें और उनका अवलोकन करें तो मिलता यही है कि ऐसा व्यक्ति बहुत बेकार होता है और बहुत मुश्किल रहता है ये देखना कि वो किसी के लिए सामने आ सके.

शोध में इस बात पर भी बल दिया गया है कि जब लोग एक घंटे की नींद खो देते हैं, तो हमारी सहज मानवीय दया और जरूरतमंद लोगों की मदद करने की हमारी प्रेरणा पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है. शोधकर्ताओं ने अपने शोध में यह भी पाया कि नींद की मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही व्यक्ति के भावनात्मक और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं.

भले ही शोधकर्ता बेन ने अपने शोध में तमाम अलग अलग चीजों का हवाला देते हुए ये साफ़ कर दिया हो कि वो व्यक्ति जो सो नहीं पा रहा है वो बेकार है लेकिन असल जीवन में कम से कम साहित्यिक दृष्टि से तो ऐसा हरगिज नहीं है. हम फिर इस बात को साफ़ करना चाहेंगे कि शायर या कवि हमारे जैसा हरगिज नहीं हैं. और इसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद महान शायर और कई फिल्मों / टीवी सीरियल्स की पटकथा लिखने वाले राही मासूम रजा ने अपने उस शेर में जाहिर किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गयी,

हम न सोये रात थक कर सो गयी

ऐसा बिलकुल नहीं था कि शायरों को नींद न आने की समस्या से कोई समस्या नहीं थी. पाकिस्तान के शायर मोहसिन नक़वी को ही देख लीजिये. शायद मोहसिन सही समय पर न सो पाने के कारणों से अवगत थे.

सो जाओ "मोहसिन" कोई सूखा हुआ पत्ता होगा,

मेरे आंगन में कहां उनके क़दम आते हैं.

बहरहाल न हो पाने या ये कहें कि किसी अच्छे भले इंसान के लिए नींद न आने के सौ बहाने हो सकते हैं, इसलिए सबसे पहले तो हमें इस बात को समझना होगा कि सोने के मामले में यें' किसी मनींद पूरे बिस्तर में नहीं होती. वो पलंग के एक कोने में, 'दायें' 'बाख़सूस तकिये की तोड़-मोड़ में छुपी होती है. जब 'तकिये' और 'गर्दन"' में समझौता हो जाता है तो सोने की कोशिश करता थका हुआ आदमी चैन से सो जाता है. और हां ऐसा आदमी सेल्फिश हरगिज नहीं होता.

खैर बात शोध, न सोने और उसके चलते स्वार्थी होने की हुई है तो जाते जाते (हिज्र नाज़िम अली ख़ान का एक बेहद खूबसूरत शेर!

कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले,

रात भर कौन तेरी याद में बेदार रहा?

ये भी पढ़ें -

मेकअप के भरोसे चल रही सौंदर्य प्रतियोगिताएं मेकअपलेस ट्रेंड कब तक बर्दाश्त करेंगी?

4 दिन में 36 Cr: जौहर की लाइगर का हश्र देख होश आया, देवरकोंडा ने थिएटर मालिक से यूं मांगी माफी!

Delhi Crime 2: पूर्वाग्रहों को तोड़ने की कोशिश तो हुई लेकिन बेअसर, बाकी सीरीज जानदार है

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    टमाटर को गायब कर छुट्टी पर भेज देना बर्गर किंग का ग्राहकों को धोखा है!
  • offline
    फेसबुक और PubG से न घर बसा और न ज़िंदगी गुलज़ार हुई, दोष हमारा है
  • offline
    टमाटर को हमेशा हल्के में लिया, अब जो है सामने वो बेवफाओं से उसका इंतकाम है!
  • offline
    अंबानी ने दोस्त को 1500 करोड़ का घर दे दिया, अपने साथी पहनने को शर्ट तक नहीं देते
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲