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अरविंद सुब्रमण्यन : ये न होते तो आधार से हर चीज लिंक करने वाला झंझट न होता

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 जून, 2018 07:15 PM
  • 21 जून, 2018 07:15 PM
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अरविंद सुब्रमण्यन ने इस्तीफा दे दिया है और वित्त मंत्री अरुण जेटली इनकी तारीफ कर रहे हैं, ऐसे में सवाल ये है कि क्या देश का आम आदमी इनकी और इनके काम की तारीफ करेगा ? तो शायद जवाब हो नहीं.

हाल ही में खबर आई थी कि अरविंद ने इस्तीफ़ा दे दिया है. खबर आते ही कुछ लोग भौचक्के हुए तो कुछ सकते में आ गए. इन दिनों भौचक्का हुआ या फिर सकते में आया आदमी ट्विटर पर जाता है. ऐसे लोग भी ट्विटर पर गए और एक के बाद एक ट्वीट कर अपने मन की बात की. लोगों का मत था कि ऐसे कैसे अरविंद इस्तीफ़ा दे सकते हैं अभी उन्हें बहुत से आरोप लगाने हैं और फिर उन आरोपों पर माफ़ी मांगनी हैं. इन दिनों अरविंद नाम की पॉपुलैरिटी ही ऐसी है कि जैसे ही ये नाम सामने आता है खुद-ब-खुद लग जाता है कि बात दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल की हो रही है जहां उन्होंने किसी बात से आहत होकर इस्तीफ़ा दे दिया है. वो तो भला हो न्यूज़ वालों का जो बता दिया कि ये वो अरविंद नहीं है बल्कि पीएम मोदी वाले अरविंद हैं. अरविंद सुब्रमण्यन. सही जानकारी मिलने के बाद ही लोग होश में आए और इस भीषण गर्मी में उन्होंने राहत की सांस ली.

अरविंद सुब्रमण्यन के इस्तीफे के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उन्हें थैंक यू नोट लिखकर थैंक यू कहा है

अरविंद सुब्रमण्यन स्वाभाव से आदमी अच्छे और कुछ घंटों पहले तक देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे. यानी ये अरविंद ही थे जो वित्त मंत्री अरुण जेटली को बताते कि कबूतर के अंडे में फलां प्रोटीन होता है और जेटली, अरविंद के इस मशवरे पर त्वरित कार्यवाई करते हुए आनन फानन में कबूतर के अंडे का आमलेट तैयार कर लेते. खबर है कि अरविंद सुब्रमण्यन ने अपने परिवार की खातिर अमेरिका वापस लौटने का फैसला लिया है.

कब संभाली थी मुख्य आर्थिक सलाहकार की बागडोर

बात अगर इनकी नियुक्ति की हो तो अरविंद 16 अक्टूबर 2014 में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने थे. बताया ये भी जाता है कि 2017 में अरविंद ने अपने तीन साल पूरे कर लिए थे मगर अच्छी परफॉरमेंस के...

हाल ही में खबर आई थी कि अरविंद ने इस्तीफ़ा दे दिया है. खबर आते ही कुछ लोग भौचक्के हुए तो कुछ सकते में आ गए. इन दिनों भौचक्का हुआ या फिर सकते में आया आदमी ट्विटर पर जाता है. ऐसे लोग भी ट्विटर पर गए और एक के बाद एक ट्वीट कर अपने मन की बात की. लोगों का मत था कि ऐसे कैसे अरविंद इस्तीफ़ा दे सकते हैं अभी उन्हें बहुत से आरोप लगाने हैं और फिर उन आरोपों पर माफ़ी मांगनी हैं. इन दिनों अरविंद नाम की पॉपुलैरिटी ही ऐसी है कि जैसे ही ये नाम सामने आता है खुद-ब-खुद लग जाता है कि बात दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल की हो रही है जहां उन्होंने किसी बात से आहत होकर इस्तीफ़ा दे दिया है. वो तो भला हो न्यूज़ वालों का जो बता दिया कि ये वो अरविंद नहीं है बल्कि पीएम मोदी वाले अरविंद हैं. अरविंद सुब्रमण्यन. सही जानकारी मिलने के बाद ही लोग होश में आए और इस भीषण गर्मी में उन्होंने राहत की सांस ली.

अरविंद सुब्रमण्यन के इस्तीफे के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उन्हें थैंक यू नोट लिखकर थैंक यू कहा है

अरविंद सुब्रमण्यन स्वाभाव से आदमी अच्छे और कुछ घंटों पहले तक देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे. यानी ये अरविंद ही थे जो वित्त मंत्री अरुण जेटली को बताते कि कबूतर के अंडे में फलां प्रोटीन होता है और जेटली, अरविंद के इस मशवरे पर त्वरित कार्यवाई करते हुए आनन फानन में कबूतर के अंडे का आमलेट तैयार कर लेते. खबर है कि अरविंद सुब्रमण्यन ने अपने परिवार की खातिर अमेरिका वापस लौटने का फैसला लिया है.

कब संभाली थी मुख्य आर्थिक सलाहकार की बागडोर

बात अगर इनकी नियुक्ति की हो तो अरविंद 16 अक्टूबर 2014 में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने थे. बताया ये भी जाता है कि 2017 में अरविंद ने अपने तीन साल पूरे कर लिए थे मगर अच्छी परफॉरमेंस के कारण इनका कार्यकाल एक साल तक के लिए और बढ़ा दिया गया था. अभी अरविंद का कार्यकाल खत्म नहीं हुआ है इससे पहले ही उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया है और वापस अमेरिका जा रहे हैं. भारत में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद संभालने से पहले अरविंद अमेरिका में इकोनॉमिस्ट थे.

ये तो सबको पता है कि अरविंद सुब्रमण्यन से पहले रघुराम राजन देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार हुआ करते थे. मगर ये बात कम ही लोग जानते होंगे कि भारत आने से पहले सुब्रमण्यन ने इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड (आईएमएफ) में रघुराम राजन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काफी काम किया था और बहुत कुछ सीखा था. अरविंद सुब्रमण्यन के रिश्ते रघुराम राजन के साथ कैसे हैं इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजन की ही सिफारिशों पर इन्हें भारत में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद मिला था.

नोटबंदी के समय इन्होंने ही सरकार को सुझाया कि वो कैशलेस को आगे ले जाए

रह चुके हैं थैंक यू कहने वाले वित्त मंत्री के आलोचक

अरविंद सुब्रमण्यन के बारे में सबसे दिलचस्प बात ये हैं कि आज जिन अरविंद सुब्रमण्यन पर वित्त मंत्री अरुण जेटली तारीफ के कसीदे पढ़ रहे हैं 2014 में अपनी नियुक्ति से पहले उन्होंने वित्त मंत्री अरुण जेटली के पहले बजट की आलोचना की थी. जेटली के बजट पर तर्क देते हुए अरविंद का कहना था कि जेटली के बजट में रेवेन्यू के अनुमानों को काफी बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है. पदभार मिलने के फौरन बाद जो काम अरविंद ने किया वो था सरकार के रेवेन्यू में बढ़ोत्तरी, तीन सालों में अरविंद का सारा फोकस इसी बात पर था कि कैसे सरकारी खर्चे के लिए रेवेन्यू जुटाया जाए.

अब चूंकि ये जा रहे हैं और मोदी सरकार का एक अहम हिस्सा होने के कारण लाजमी है कि इनकी कार्यप्रणाली पर विपक्ष अंगुली उठाएगा तो ऐसे में यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि सुब्रमण्यन के कार्यकाल में ही 16 जून 2017 से डीजल और पेट्रोल की कीमतों की समीक्षा हर दिन होनी शुरू हुई थी. इस पहल का फायदा तेल कंपनियों को मिला और उनका घाटा कम हुआ. लिहाजा सरकार की तरफ से इन कंपनियों को मिलने वाली सब्सिडी में भी कमी आई. ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में उज्ज्वला योजना, जनधन योजना, मुद्रा योजना, कैशलेस को बढ़ावा देने जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं और ये सुब्रमण्यन की ही बनाई हुई नीतियां हैं जिनकी बदौलत सरकार के पास इन योजनाओं के लिए भरपूर फंड है.

सवाल ये भी है कि क्या देश का आम आदमी अरविंद की नीतियों से खुश हुआ

आखिर क्यों देश को अरविंद को याद रखना चाहिए

शायद ही कोई ऐसा दिन हो. जब हमारे मोबाइल पर ये मैसेज न आता हो कि, फलां चीज को आधार से जोड़िये. इसे आधार से लिंक करिए. उसे आधार से लिंक करिए. तो ये जो हर चीज आजकल आधार से लिंक करने की बात कही जा रही है और जिस कारण विपक्ष मोदी सरकार की तीखी आलोचना कर रहा है उसके अहम सूत्रधार और जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि अरविंद सुब्रमण्यन हैं. सुब्रमण्यन के इस्तीफे के बाद जेटली ने फेसबुक पर एक थैंक्यू नोट लिखा है और कहा है कि सुब्रमण्यन की वजह से ही JAM (जनधन, आधार, मोबाइल) मुमकिन हो पाया है.

इस थैंक यू नोट में जेटली ने इस बात का भी जिक्र किया था कि आधार को लेकर भले ही देश भर में कितना हो हल्ला मचा हो मगर इसकी अहमियत दर्शाने में सुब्रमण्यन का बड़ा योगदान है. साथ ही जेटली ने ये भी कहा कि नोटबंदी के बाद जब एक तरफ कैशलेस को बढ़ावा देने की बात कई लोगों को बुरी लगी थी मगर पश्चिमी देशों की तर्ज पर भारत में इसे शुरू कराने की अगर वकालत किसी ने की तो वो व्यक्ति केवल सुब्रमण्यन ही थे.

अरविंद के जाते साथ ही उनकी तारीफों का दौर शुरू हो गया है

जनता माफ नहीं करेगी अरविंद साहब

बहरहाल, अब चूंकि अरविंद जा चुके हैं. लाजमी है कि उनकी तारीफ होगी. तारीफ होनी भी चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि जाते हुए इंसान की तारीफ करना हमें विरासत में मिला है. यदि किसी को इस बात पर शक हो तो वो इसे अपने आप से, अपने परिवेश से जोड़ के देखे बात साफ हो जाएगी. बाक़ी जेटली भले ही नोटबंदी, कैशलेस, आधार और मोबाइल के लिए अरविंद की तारीफ कर लें. मगर देश का एक आम आदमी शायद ही कभी इन बातों कोलेकर इनकी तारीफ करे. हां अलबत्ता वो इसके लिए इन्हें कोसेगा जरूर और कहेगा अच्छा हुआ ये चले गए इन्हें तो कबका चले जाना था.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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