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हाय! मेरा खज़ाना !!

    • मधु शर्मा कटिहा
    • Updated: 22 नवम्बर, 2016 05:12 PM
  • 22 नवम्बर, 2016 05:12 PM
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यूं तो सरकार के नोटबंदी के फैसले का लगभग सभी लोग स्वागत ही कर रहे हैं, पर मुझ जैसी घरेलू स्त्रियां शोक में डूबी हुई हैं कि अब तक की जमा-पूंजी पति के हवाले करनी पड़ेगी.

यूं तो सरकार के नोटबंदी के फैसले का लगभग सभी लोग स्वागत ही कर रहे हैं, पर मुझ जैसी घरेलू स्त्रियां शोक में डूबी हुई हैं कि अब तक की जमा-पूंजी पति के हवाले करनी पड़ेगी. खुद खर्च करें भी तो कितना? पति को बैसाखी न बनाएं तो बैंक की लंबी-लंबी कतारें पैर तोड़ देंगी.

परेशान हैं घरेलू महिलाएं

जब पता लगा कि कुछ सरकारी विक्रय-केन्द्रों पर पुराने नोट चल रहे हैं, और वहां सब्जियां भी मिलती हैं तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. रविवार को सुबह ही पति को लंबी-चौड़ी लिस्ट थमाकर वहां भेज दिया. वे दो बड़े-बड़े थैले कंधे पर लटकाए हुए दो घंटे बाद वापिस आए. हांफते हुए उन्होनें बताया कि बहुत भीड़ थी उधर. मेरी इन बातों में रुचि न थी. मुझे तो बस ये जानना था कि कितने पैसे खर्च हो पाए आज? जब पति ने मुस्कुराकर कहा कि पूरे पंद्रह सौ खर्च हो गए हैं क्योंकि वे पनीर और घी भी ले आए हैं, तो सुनकर मेरी त्यौरियां चढ़ गईं. अमूमन इतनी सब्जी खरीदने पर पांच सौ भी खर्च हो जाते हैं  तो मैं कहती हूं ‘हाय राम! इतनी कम सब्जी और पांच सौ.’ पर उस दिन मेरे मुंह से निकला ’कमाल है, इतना ज़्यादा सामान और सिर्फ पंद्रह सौ खर्च हुए!’  

ये भी पढ़ें- नोटबंदी से हो सकता है जनसंख्या विस्फोट !

पति चुपचाप बैठ गए फिर थोड़ी देर बाद मेरा मूड ठीक करने के लिए बोले ‘चलो आज कहीं चलते हैं, कार में पेट्रोल भरवा लेंगे. पेट्रोल-पंप पर भी तो चल रहे...

यूं तो सरकार के नोटबंदी के फैसले का लगभग सभी लोग स्वागत ही कर रहे हैं, पर मुझ जैसी घरेलू स्त्रियां शोक में डूबी हुई हैं कि अब तक की जमा-पूंजी पति के हवाले करनी पड़ेगी. खुद खर्च करें भी तो कितना? पति को बैसाखी न बनाएं तो बैंक की लंबी-लंबी कतारें पैर तोड़ देंगी.

परेशान हैं घरेलू महिलाएं

जब पता लगा कि कुछ सरकारी विक्रय-केन्द्रों पर पुराने नोट चल रहे हैं, और वहां सब्जियां भी मिलती हैं तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. रविवार को सुबह ही पति को लंबी-चौड़ी लिस्ट थमाकर वहां भेज दिया. वे दो बड़े-बड़े थैले कंधे पर लटकाए हुए दो घंटे बाद वापिस आए. हांफते हुए उन्होनें बताया कि बहुत भीड़ थी उधर. मेरी इन बातों में रुचि न थी. मुझे तो बस ये जानना था कि कितने पैसे खर्च हो पाए आज? जब पति ने मुस्कुराकर कहा कि पूरे पंद्रह सौ खर्च हो गए हैं क्योंकि वे पनीर और घी भी ले आए हैं, तो सुनकर मेरी त्यौरियां चढ़ गईं. अमूमन इतनी सब्जी खरीदने पर पांच सौ भी खर्च हो जाते हैं  तो मैं कहती हूं ‘हाय राम! इतनी कम सब्जी और पांच सौ.’ पर उस दिन मेरे मुंह से निकला ’कमाल है, इतना ज़्यादा सामान और सिर्फ पंद्रह सौ खर्च हुए!’  

ये भी पढ़ें- नोटबंदी से हो सकता है जनसंख्या विस्फोट !

पति चुपचाप बैठ गए फिर थोड़ी देर बाद मेरा मूड ठीक करने के लिए बोले ‘चलो आज कहीं चलते हैं, कार में पेट्रोल भरवा लेंगे. पेट्रोल-पंप पर भी तो चल रहे हैं पुराने नोट.’ मुझे सुझाव पसंद आ गया. शॉपिंग करने का मन था मेरा. पर मन मसोस कर किसी दोस्त के घर जाने की तैयारी करने लगी. शॉपिंग करना तो संभव था नहीं-पुराने नोट सब जगह तो चल नहीं रहे थे.

पति के मित्र, जिनके यहां हम जा रहे थे, उनका बेटा पांचवी कक्षा में पढ़ता है. अक्सर जब भी मैं उनके घर जाती हूं तो चॉकलेट लेकर जाती हूं. इस बार उनके घर जाते हुए मैंने ऐसी दुकान ढूंढ ली जहां पुराने नोट चल रहे थे. उस दुकान पर सामान बहुत कम बचा था. चॉकलेट, टॉफी जैसी कोई वस्तु तो मिली नहीं, सो मैंने अपना समझदार दिमाग चलाया और दो दर्जन कॉपियां खरीद लीं. उनके घर पहुंचकर बड़ी शान से कहा कि बच्चों की पढ़ने-लिखने में रुचि बनी रहे इसके लिए बड़ों को भी कदम उठाने चाहिए....इसी को ध्यान में रखकर नोट-बुक्स लाई हूं. मेरी बात पूरी होते ही उनका बेटा आ गया और तपाक से बोला ‘आंटी कॉपियां तो हमें स्कूल से मिलती हैं. पर कोई बात नहीं, मैं इनके एरोप्लेन बनाकर क्लास में उड़ा लूंगा.’ नोट खर्च करने की धुन के चलते मुझे बच्चे की यह शरारत भी मासूमियत ही लग रही थी.

वापस अपने घर पहुंची तो काम वाली बाई अपने पति के साथ दरवाजे पर खड़ी थी. दोनों के हाथ में बड़े-बड़े पैकेट थे. मुझे देखते ही चहकते हुए वह बोली ‘मेम साब दो महीने पहले मैंने आपसे पांच हजार रूपये उधार लिए थे. मैं आज वापिस करने आ रही थी. मेरे स्वामी ने कहा कि मेम साब के लिए कुछ सामान ले चलते हैं. नोट तो कुछ दिनों बाद बेकार हो जाएंगे.’ और अंदर घुसकर दोनों ने पैकेट खोलने शुरू कर दिए. पैकेटों में 12 झाड़ू, 24 फिनायल के डिब्बे, ढेरों डस्टर और पूरा डिब्बा बर्तन साफ करने वाले साबुन का था. फिर खुश होती हुई वह बोली ‘आजकल मेरी पीठ में दर्द रहता है, बैठकर पोछा नहीं लगाया जाता, इसलिए 6 डंडे वाले पोछे ले आई हूं. नीचे रखे हैं.’ फिर अपने पति को पोछे लाने का आदेश देकर मेरी ओर देखकर हंसती हुई बोली ‘चार सौ रूपये बच गए थे, उनसे मैं छोटी मेमसाब (मेरी बेटी) के लिए आइसक्रीम के ब्रिक्स ले आई हूं. सब सामने के सरकारी भंडार से अभी-अभी लेकर आई हूं.’

ये भी पढ़ें- काला धन उतना भी बुरा नहीं है सरकार !

मैं हैरान-परेशान सी बोली, ‘कहां रखूं आइसक्रीम? फ्रीजर तो दूध और मटर की थैलियों से भरा पड़ा है.’ इस समस्या का समाधान करते हुए वह बोली कि आइसक्रीम वह ले जाएगी क्योंकि उसके घर मेहमान आने वाले हैं. सामान देखकर मेरा सिर फटा जा रहा था. सोच रही थी ‘कहां रखूं ये सब?’

आज दो हजार के सुंदर-सुंदर नोटों की कसम खा ली है मैंने कि पति को पूरा हिसाब दूंगी, खर्च का भी और रक्षाबंधन आदि त्यौहारों पर होने वाली आय का भी. यदि सभी काला धन जमा करने वाले मेरी तरह प्रण ले लें तो मेरे घर की तरह देश का भी भला हो जाएगा.                    

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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