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जेल से राम रहीम की हनीप्रीत को चिट्ठी

    • अबयज़ खान
    • Updated: 19 सितम्बर, 2017 02:17 PM
  • 19 सितम्बर, 2017 02:17 PM
offline
तुम जहां भी हो चली आओ हनी.. तुम्हारे बिन काटे नहीं कटते ये दिन-रात.. मुझको महलों में रहने का शौक नहीं, बस तेरी आदत से दो-चार हूं मैं... मेरी प्रियतम तुम जानती हो.. इस जेल में हर किसी को तुम्हारा इंतज़ार है..

मेरी प्यारी हनीप्रिय

तुमको बिछुड़े हुए दिन नहीं हुए तो न हों,

मैंने अब भी तुम्हें सीने से लगा रखा है ।

इस यकीं पे किसी रोज़ तुम आओगी ज़रूर

जेल की सलाखों को भी अपना बना रखा है।।

डियर,

मेरी आंखों का तारा. मेरी बागों बहार. मेरे दिल का चैन. मेरी रातों का सुकून.. जब से बिछड़ी हो. स्याह रातें कांटों की तरह चुभने लगी हैं.. न रातें जाग कर कट रही हैं, न दिन, जेल की कोठरी में बीत रहा है.. तुम्हारी यादें लव चार्जर की तरह सीने में किसी तरकश की तरह चुभ रही हैं.. जब से अपना डेरा यहां जमा है तब से तुम्हारे नाम की धुनी रमा के बैठा हूं.. मगर मुझे जेल के दरवाज़े पे छोड़ने के बाद तुम तो बेवफ़ाई की चादर ओढ़कर चैन से सो रही हो. और अपनी रातें मखमली बिस्तरों के बजाय मच्छरों के साथ तालियां बजाते हुए गुज़र रही हैं.

मेरे दिल की धड़कन. मेरी सांसों की वजह. सब कुछ तो तुम से है.. मगर तुम को तो मुझसे मिलना भी गंवारा नहीं है.. जिस हनी के लिए मैंने ज़माने भर को उल्लू बनाया आज वही मेरे मन की प्रीत न बन सकी.. तुमको मालूम है, अकेले में जब जेल की दीवारों से बातें करता हूं, तो बस तुम्हारा ही ज़िक्र किया करता हूं.. एक आग जो दिल मे लगी है, उसको बुझाने की कोशिश करता हूं.. बंद कोठरी में जब कभी तन्हाई घेर लेती है, बस तुमको याद किया करता हूं..

हनी के प्यार में पागल बाबा

कभी तुम्हारी तस्वीरें बनाता हूं. कभी सपनों में गुफा के दर्शन भी कर आता हूं.. हनी यूं तो तुम्हारे अलावा जाने कितनी हैं, जिन्होंने मेरे दिल पे राज किया है.. लेकिन जैसा जादू तुमने चलाया उसने तो मुझे तुम्हारा दीवाना बना डाला.. मैं तुम पे लट्टू हुआ और तुम ने जब चाहा अपने हिसाब से नचाया.....

मेरी प्यारी हनीप्रिय

तुमको बिछुड़े हुए दिन नहीं हुए तो न हों,

मैंने अब भी तुम्हें सीने से लगा रखा है ।

इस यकीं पे किसी रोज़ तुम आओगी ज़रूर

जेल की सलाखों को भी अपना बना रखा है।।

डियर,

मेरी आंखों का तारा. मेरी बागों बहार. मेरे दिल का चैन. मेरी रातों का सुकून.. जब से बिछड़ी हो. स्याह रातें कांटों की तरह चुभने लगी हैं.. न रातें जाग कर कट रही हैं, न दिन, जेल की कोठरी में बीत रहा है.. तुम्हारी यादें लव चार्जर की तरह सीने में किसी तरकश की तरह चुभ रही हैं.. जब से अपना डेरा यहां जमा है तब से तुम्हारे नाम की धुनी रमा के बैठा हूं.. मगर मुझे जेल के दरवाज़े पे छोड़ने के बाद तुम तो बेवफ़ाई की चादर ओढ़कर चैन से सो रही हो. और अपनी रातें मखमली बिस्तरों के बजाय मच्छरों के साथ तालियां बजाते हुए गुज़र रही हैं.

मेरे दिल की धड़कन. मेरी सांसों की वजह. सब कुछ तो तुम से है.. मगर तुम को तो मुझसे मिलना भी गंवारा नहीं है.. जिस हनी के लिए मैंने ज़माने भर को उल्लू बनाया आज वही मेरे मन की प्रीत न बन सकी.. तुमको मालूम है, अकेले में जब जेल की दीवारों से बातें करता हूं, तो बस तुम्हारा ही ज़िक्र किया करता हूं.. एक आग जो दिल मे लगी है, उसको बुझाने की कोशिश करता हूं.. बंद कोठरी में जब कभी तन्हाई घेर लेती है, बस तुमको याद किया करता हूं..

हनी के प्यार में पागल बाबा

कभी तुम्हारी तस्वीरें बनाता हूं. कभी सपनों में गुफा के दर्शन भी कर आता हूं.. हनी यूं तो तुम्हारे अलावा जाने कितनी हैं, जिन्होंने मेरे दिल पे राज किया है.. लेकिन जैसा जादू तुमने चलाया उसने तो मुझे तुम्हारा दीवाना बना डाला.. मैं तुम पे लट्टू हुआ और तुम ने जब चाहा अपने हिसाब से नचाया.. मेरी हनीप्रिय वैसे तो मैंने कितनों के पर कतर डाले. लेकिन खुदा की कसम जब से तुम जाल में फंसी हो कोई और चिड़िया फंसाने का अब मन नहीं करता..

अब तुम ही बताओ इससे बढ़कर दीवानगी का आलम क्या होगा, कि हमने फ़िल्म बनाई, हम ही हीरो, हम ही सुपरस्टार और तुम हमारी दिलरुबा.. फ़िल्म नहीं चली तो क्या ग़म.. एक तुम्हारी ख़ातिर हमने कितने भक्तों को अपनी उंगली पे नचाया.. खुद की कसम इन साध्वियों के चक्कर में ज़रा उछल कूद ज़्यादा हो गयी.. वरना अगली फिल्म में जब तुम नज़र आतीं तो कई हीरोइनें तुम्हारे मखमली हुस्न के सामने हया से अपना चेहरा छुपा लेतीं..

मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना हनी!

अब तुम जहां भी हो चली आओ हनी.. तुम्हारे बिन काटे नहीं कटते ये दिन-रात.. मुझको महलों में रहने का शौक नहीं, बस तेरी आदत से दो-चार हूं मैं... मेरी प्रियतम तुम जानती हो.. इस जेल में हर किसी को तुम्हारा इंतज़ार है.. जेलर से लेकर वार्डन तक, हर कोई तुम्हारी एक झलक के लिए बेकरार है.. जब सूरज की पहली किरन कोठरी के रौशनदान को चीरती हुई मेरी आंखों पे पड़ती है तो लगता है कि तुम हो, जब चांद की चांदनी मेरे ललाट को चूम लेती है तो लगता है कि तुम हो.. हनी तुम्हें एक बात और बता दूं, कि डेरे का सौदा तो झूठा था.. सच्चा प्यार तो जेल की सलाखों में ही मिलता है..

मेरी प्रिये हनीप्रीत.. तुम जहां कहीं भी हो अपने मीत के पास दौड़ी चली आओ.. तुम नहीं जानती अब गुफा में कुछ नहीं है.. डेरे में पुलिस का पहरा है और जवानों ने भक्तों को कस-कस के तोड़ा है.. पुलिस ने ऐसी सुताई की है, बेभाव भक्तों की तुड़ाई की है.. नट-बोल्ट तो अपने भी सब ढीले हो गए हैं. निशान कहां-कहां पड़े हैं, बताने की ज़रूरत नहीं है.. प्यार के सारे फ्यूज फिलहाल उड़ चुके हैं.. मगर इश्क़ का परिंदा ऐसा फड़फड़ा रहा है कि दिल सुबह शाम बस हनी-हनी चिल्ला रहा है.. मैं जानता हूं कि तुम आओगी ज़रूर, क्योंकि मुझे इंतज़ार है अब भी.. और आखिरी शेर के साथ हनी अपनी इस चिट्ठी को यहीं पे कलमबंद करता हूं

तुम आओगे ज़रूर यही सोचकर

ज़िन्दगी को जीने की मुहलत दी है

तुम्हारा प्राणनाथ

बाबा उर्फ पिताजी उर्फ पागल प्रेमी आवारा

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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