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व्यंग्य: बाबा रामदेव का इलाज और गे-कपल की मुश्किल

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 27 मई, 2015 08:28 AM
  • 27 मई, 2015 08:28 AM
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करीब साल भर चले इलाज के बाद उन्होंने पाया कि सुधार की बात तो दूर दोनों एक दूसरे के ज्यादा करीब हो गए हैं.

बस साल भर पहले की बात है. आयरलैंड के दो परिवारों को अपने बेटों की दोस्ती रास नहीं आ रही थी. नेट सर्च से पता चला कि इंडिया में एक शख्स इसे पूरी तरह क्योर कर लेने का दावा करता है. हालांकि, उन्हें कुछ शक हुआ जब उसी शख्स द्वारा कैंसर और एड्स के इलाज का भी दावा किया गया था. कोई रास्ता न देख ट्रायल के लिए दोनों ने मिल कर शॉन और कॉनर को इलाज के लिए राजी किया. "देखो, तुम्हे भी पता है, और हमें भी. बस एक बार ट्राय कर लो. जाओ घूम आओ." इसी बात पर दोनों राजी हुए. फिर मई, 2014 में शॉन और कॉनर दोनों दिल्ली से सीधे हरिद्वार पहुंचे.

कैसे चला इलाज

आश्रम का माहौल शुरुआती तौर पर उन्हें बहुत अच्छा लगा. तब तक उन्हें इलाज की जटिलता के बारे में जरा भी मालूम नहीं था. रजिस्ट्रेशन के बाद उनकी काउंसेलिंग हुई. उन्हें दैनिक इस्तेमाल के सामान और कपड़े दिए गए. फिर वार्ड में उन्हें अलग अलग बेड मिले. अगले ही दिन इलाज की प्रक्रिया शुरू हो गई.

1. प्रिस्क्रिप्शन के मुताबिक सबसे पहले दोनों ने शपथ ली कि आगे से वे अलग अलग रहेंगे. इसके लिए बाकायदा उन्होंने स्टांप पेपर पर बने शपथ पत्र पर दस्तखत किए. शपथ पत्र की कॉपी आयरलैंड दूतावास के जरिए उनकी सरकार को भी भेज दिया गया.

2. फिर उन्हें तीन महीने तक आसक्ति-विरक्ति मुद्रा का अभ्यास कराया गया. इसमें दोनों को छह घंटे साथ और छह घंटे अलग रहना होता था. ये क्रम अल्टरनेट करके चलता. इसी मुद्रा में हफ्ते में दो दिन बारी बारी से दोनों को कड़ी धूप और एसी कमरे में रहना पड़ता था. धूप तेज न होने की स्थिति में पंचमहाभूत अग्निकुंडों के बीच छह घंटे गुजारने होते.

3. सुबह शाम दो बार इन्हें नेति क्रियाएं करनी होती. इसमें जल नेति, घृत नेति, मक्खन नेति, चाय नेति, कॉफी नेति से लेकर गो-मूत्रनेति तक का अभ्यास करना होता था. हालांकि एक दिन में एक ही प्रकार की नेति क्रिया करने की सलाह दी गई थी.

4. हफ्ते में तीन दिन मड-मसाज के सेशन...

बस साल भर पहले की बात है. आयरलैंड के दो परिवारों को अपने बेटों की दोस्ती रास नहीं आ रही थी. नेट सर्च से पता चला कि इंडिया में एक शख्स इसे पूरी तरह क्योर कर लेने का दावा करता है. हालांकि, उन्हें कुछ शक हुआ जब उसी शख्स द्वारा कैंसर और एड्स के इलाज का भी दावा किया गया था. कोई रास्ता न देख ट्रायल के लिए दोनों ने मिल कर शॉन और कॉनर को इलाज के लिए राजी किया. "देखो, तुम्हे भी पता है, और हमें भी. बस एक बार ट्राय कर लो. जाओ घूम आओ." इसी बात पर दोनों राजी हुए. फिर मई, 2014 में शॉन और कॉनर दोनों दिल्ली से सीधे हरिद्वार पहुंचे.

कैसे चला इलाज

आश्रम का माहौल शुरुआती तौर पर उन्हें बहुत अच्छा लगा. तब तक उन्हें इलाज की जटिलता के बारे में जरा भी मालूम नहीं था. रजिस्ट्रेशन के बाद उनकी काउंसेलिंग हुई. उन्हें दैनिक इस्तेमाल के सामान और कपड़े दिए गए. फिर वार्ड में उन्हें अलग अलग बेड मिले. अगले ही दिन इलाज की प्रक्रिया शुरू हो गई.

1. प्रिस्क्रिप्शन के मुताबिक सबसे पहले दोनों ने शपथ ली कि आगे से वे अलग अलग रहेंगे. इसके लिए बाकायदा उन्होंने स्टांप पेपर पर बने शपथ पत्र पर दस्तखत किए. शपथ पत्र की कॉपी आयरलैंड दूतावास के जरिए उनकी सरकार को भी भेज दिया गया.

2. फिर उन्हें तीन महीने तक आसक्ति-विरक्ति मुद्रा का अभ्यास कराया गया. इसमें दोनों को छह घंटे साथ और छह घंटे अलग रहना होता था. ये क्रम अल्टरनेट करके चलता. इसी मुद्रा में हफ्ते में दो दिन बारी बारी से दोनों को कड़ी धूप और एसी कमरे में रहना पड़ता था. धूप तेज न होने की स्थिति में पंचमहाभूत अग्निकुंडों के बीच छह घंटे गुजारने होते.

3. सुबह शाम दो बार इन्हें नेति क्रियाएं करनी होती. इसमें जल नेति, घृत नेति, मक्खन नेति, चाय नेति, कॉफी नेति से लेकर गो-मूत्रनेति तक का अभ्यास करना होता था. हालांकि एक दिन में एक ही प्रकार की नेति क्रिया करने की सलाह दी गई थी.

4. हफ्ते में तीन दिन मड-मसाज के सेशन चलते. मालिश के लिए खास तौर पर एक मड-सॉल्युशन दिया जाता. इसे छिलका सहित पिसा हुआ नींबू, जामुन का सिरका और नीम के पेड़ से उतारा गया शहद मिलाकर तैयार किया जाता है. इस मालिश का मकसद रहा कि दोनों एक दूसरे के करीब आने से बचें - क्योंकि मालिश से शरीर में दुर्गंध बस जाती थी जो देर तक बनी रहती थी.

5. इलाज के दौरान इन्हें सम-विरक्ति सम्मोहन के कुछ सेशन अटेंड करने होते थे. कुछ गुप्त प्राणायाम, उर्ध्व कपालभाति और घृणा-त्राटक के अलावा इन्हें उर्ध्व मत्स्येंद्रासन, दीर्घ-उत्तानपादासन, शंकासन सहित कई आसन करने होते थे. इन्हें कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे भी दिए गए थे जिनमें प्रमुख तौर पर मनुगंधा घन बटी, मनरेचक मंडूर, संगभय वर्धक क्वाथ और कामकुंभासव लेने होते थे.

नये कानून ने बढ़ाई मुसीबत

करीब साल भर चले इलाज के बाद उन्होंने पाया कि सुधार की बात तो दूर दोनों एक दूसरे के ज्यादा करीब हो गए हैं. लेकिन अब वे एक नए तरह की मुसीबत में फंस गए हैं. हाल ही में आयरलैंड ने गे-मैरेज को कानूनी मान्यता दे दी है. नियमों में बदलाव के चलते दोनों युवक अब कपल के रूप में आयरलैंड नहीं जा सकते. एक साल पहले दाखिल उनका शपथ पत्र ही अब उनकी मुसीबत बन गया है.

समस्या है तो समाधान भी

अब बाबा के आदमियों ने दोनों के सामने एक नया प्रस्ताव रखा है. इसके मुताबिक अगर वे मान लें कि आयरलैंड नहीं बल्कि बांग्लादेश के नागरिक हैं तो उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाई जा सकती है - जो बाबा के लिए बाएं हाथ का खेल है. इसके लिए उन्हें कुछ खास करने की जरूरत नहीं होगी - बल्कि नेपाल के रास्ते टूरिस्ट वीजा पर बांग्लादेश जाना होगा. वहां से भारत और बांग्लादेश के बीच बने एन्क्लेव (जिसको लेकर दोनों देशों में समझौता होनेवाला है) में किसी जगह कुछ दिन गुजारना होगा. फिर वे अपनी मर्जी से भारत या बांग्लादेश में से किसी एक को अपना देश चुन सकते हैं. उसके बाद तो जैसे चाहें ऐश करें - उनकी मर्जी.

मदद मिलेगी बशर्ते...

मगर सबकुछ इतना आसान नहीं है. रामदेव की टीम ने दोनों के सामने एक शर्त रखी है. अगर उन्होंने शर्त मानी तभी उन्हें बाबा रामदेव की मदद मिल सकती है.

शर्त ये है कि उन्हें लिखित तौर पर बताना होगा कि उन्होंने एक साल तक इलाज कराया जिससे उनकी होमोसेक्सुअलिटी की बीमारी खत्म हो गई. साथ ही उन्हें बाबा रामदेव के टीवी विज्ञापन और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होना होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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