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पराठे पर 18% GST ! मगर उसे तो जिल्लेइलाही लाए थे

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 13 जून, 2020 07:45 PM
  • 13 जून, 2020 07:45 PM
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खबर है कि अब आने वाले वक़्त में जब पराठे को भी जीएसटी (Paratha with 18% GST) के दायरे में देखेंगे. जब से ये खबर आई है खाने की टेबल पर रखे पराठे के भाव ही बढ़ गए हैं. अब उसकी अकड़ देखने लायक है.

आजकल पराठे और GST (18% GST On Paratha) को लेकर बड़ी चर्चाएं चल रही हैं. अब GST लगे या न लगे, ये तो आप ज्ञानी लोग आपस में तय कर लो. हम तो ये देख रहे कि आपकी दुआ से अपने पराठे मियां की चाल में ग़ज़ब की अकड़ और ऐंठन आ गई है. अब भाईसाब, पराठा है तो असाधारण. उसे कमतर आंकना या रोटी के बराबर मान लेना उसकी सरासर तौहीन ही मानी जाएगी. माना कि रोटी सबकी जरुरत है और हम उसे हीन कहने/समझने की ग़ुस्ताख़ी ग़लती से भी न कर रहे. न ही ये रोटी-पराठे के बीच सशक्तिकरण या साज़िश वाला मामला है. इन मासूमों के बीच कोई झगड़ा ही नहीं. अरे, दोनों सदियों से प्रेमपूर्वक ही रह रहे हैं. लेकिन अब पराठे को एक मौक़ा मिला है तो उसे 'स्पेशल' फील हो लेने दो न!

पराठे पर जीएसटी के बाद तो अब पराठे के हाव भाव ही बदल गए हैं

पराठे का साम्राज्य विस्तार तो मुग़लकाल से हो गया था

देखिए, पराठा अंतर्राष्ट्र्रीय हीरो बन चुका है. विश्वभर में इसका निर्यात किया जाता है. जबकि अपनी रोटी एकदम घरेलू और देसी आइटम है. बच गई तो बेचारी चुपचाप डिब्बे में पड़ी रहती. उसका कोई खिवैया नहीं. बलि भी उसकी ही चढ़ाई जाती. याद है न, 'पहली रोटी गाय की' वाली संस्कारी बात? कभी सुना, पहला पराठा गाय को दो?

न, वो तो अपन खुद ही हज़म कर जाते. अब मुग़लकाल में बादशाह सलामत ने जब 'पराठे वाली गली' को लाल किले से कुछ ही दूरी पर फ़लने-फूलने दिया तो बात ख़ास ही हुई न. तनिक सोचिए, कितना प्रेम रहा होगा उन्हें अपने पराठे मियां से.

रोटी अफॉर्डेबल कैटेग़री में आती है. रोज़ का किस्सा है इसलिए इसकी डिमांड घर से बाहर नहीं होती. जबकि देश भर में आपको कई डेडिकेटेड पराठा आउटलेट देखने को मिल जाएंगे.

पराठा लग्ज़री आइटम है

जी, ग़रीब इंसान के लिए पराठा, पूरी लग्ज़री ही है. इसे वो ख़ास मौक़े पर ही बनाता...

आजकल पराठे और GST (18% GST On Paratha) को लेकर बड़ी चर्चाएं चल रही हैं. अब GST लगे या न लगे, ये तो आप ज्ञानी लोग आपस में तय कर लो. हम तो ये देख रहे कि आपकी दुआ से अपने पराठे मियां की चाल में ग़ज़ब की अकड़ और ऐंठन आ गई है. अब भाईसाब, पराठा है तो असाधारण. उसे कमतर आंकना या रोटी के बराबर मान लेना उसकी सरासर तौहीन ही मानी जाएगी. माना कि रोटी सबकी जरुरत है और हम उसे हीन कहने/समझने की ग़ुस्ताख़ी ग़लती से भी न कर रहे. न ही ये रोटी-पराठे के बीच सशक्तिकरण या साज़िश वाला मामला है. इन मासूमों के बीच कोई झगड़ा ही नहीं. अरे, दोनों सदियों से प्रेमपूर्वक ही रह रहे हैं. लेकिन अब पराठे को एक मौक़ा मिला है तो उसे 'स्पेशल' फील हो लेने दो न!

पराठे पर जीएसटी के बाद तो अब पराठे के हाव भाव ही बदल गए हैं

पराठे का साम्राज्य विस्तार तो मुग़लकाल से हो गया था

देखिए, पराठा अंतर्राष्ट्र्रीय हीरो बन चुका है. विश्वभर में इसका निर्यात किया जाता है. जबकि अपनी रोटी एकदम घरेलू और देसी आइटम है. बच गई तो बेचारी चुपचाप डिब्बे में पड़ी रहती. उसका कोई खिवैया नहीं. बलि भी उसकी ही चढ़ाई जाती. याद है न, 'पहली रोटी गाय की' वाली संस्कारी बात? कभी सुना, पहला पराठा गाय को दो?

न, वो तो अपन खुद ही हज़म कर जाते. अब मुग़लकाल में बादशाह सलामत ने जब 'पराठे वाली गली' को लाल किले से कुछ ही दूरी पर फ़लने-फूलने दिया तो बात ख़ास ही हुई न. तनिक सोचिए, कितना प्रेम रहा होगा उन्हें अपने पराठे मियां से.

रोटी अफॉर्डेबल कैटेग़री में आती है. रोज़ का किस्सा है इसलिए इसकी डिमांड घर से बाहर नहीं होती. जबकि देश भर में आपको कई डेडिकेटेड पराठा आउटलेट देखने को मिल जाएंगे.

पराठा लग्ज़री आइटम है

जी, ग़रीब इंसान के लिए पराठा, पूरी लग्ज़री ही है. इसे वो ख़ास मौक़े पर ही बनाता है. इसमें घी/तेल, समय, इंग्रेडिएंट सब ज्यादा लगते हैं. तवे पर ख़ूब ग़ुलाबी रंगत दे इसका रूप निखरता है. स्टफ्ड हो तो अपने आप में पूर्ण संतुष्टि देता है. रोटी के साथ दाल, सब्ज़ी तो चाहिए ही. अब बताइए, पराठा क्यों न इतराए? जब भी किसी को स्पेशल फ़ील करना/कराना हो तो सबसे पहले अपन अद्वितीय आलू के पराठे को याद करते हैं. इसी SP का फ़ायदा इसे मिल रहा है.

एक पराठा, सौ अफ़साने

आप दुनिया भर में घूम आइए. रोटी में अधिक बदलाव नहीं आया है. ले देकर वही मिस्सी/तंदूरी रोटी या कभी आटे में कोई प्यूरी मिला दी. शेप भी वही गोलू सिंह. इस पगलैट ने समय के साथ चलना सीख ही न पाया. पराठे के जलवे निराले. ये आपको गोल, तिकोना, चौकोर, पर्त वाला हर आकार में उपलब्ध होगा. अब गृहिणी होने के नाते आलू, मैथी, बेसन, मूली, गोभी, पनीर, चीज़, पालक, दाल, जीरा, अजवाइन, प्याज़ इत्यादि पचासों तरह के पराठे तो हम भी बनाते हैं.

लेकिन एक दिन कुछ कंपनीज़ के फ्रोज़न(Frozen) परांठों ने हमें भयंकरतम चकित ही कर दिया. कोठू, मलाबारी, गोल्डन डिलाइट ये नाम परांठों के तो क़तई नहीं लगते! बीड़ी-सिगरेट के भले हों. पर नहीं, ये परांठों के ही नाम हैं. रबड़ी पराठा भी देखा. मतलब हद है! ये ठीक वैसा ही समझो जैसे कि चाशनी वाली पानीपूरी! धत्त! ये क्या कह गए हम. अरे, नमकीन को मीठा काहे बनाना? अलग से रबड़ी खा लो न.

ख़ैर! ये सब दृश्य देख हमें अपनी लिमिटेड कुकिंग होने का आत्मज्ञान प्राप्त हुआ. हम इस ग्लानि समारोह की भीषण अग्नि में झुलस ही रहे थे, पर गुनाहों के सदक़े थोड़ी बेइज़्ज़ती और होना अभी बाक़ी थी. एक लिंक मिली जिसने हमारे इस भरम को ऑन द स्पॉट ध्वस्त कर दिया कि पराठा वेजीटेरियन ही होता है.

भिया, बहुत दुःख के साथ सूचित कर रहे हैं कि अब कहीं कोई पूछे, "पराठे खाओगे?" तो पहले ही क्लियर कर लेना कि वेज़ है या नॉन-वेज़! बताओ तो अंडा, चिकन कीमा, मटन कीमा पराठे भी बनते हैं और बाहर भी भेजे जाते. हाय राम! कोरोना के बाद एक यही दुर्लभ पल देखने को ही तो हम जीवित पड़े हैं.

पराठा उद्योग की अच्छी-ख़ासी सूची है. हर कंपनी के अपने विशिष्ट पराठे हैं जो दुनिया भर की सैर कर रहे. भई, सारे सिंगलों! अगले लॉकडाउन से पहले ही अपने फ्रीज़र में इनको झटपट पनाह दे दो. हे पराठे, तुम्हें इस अलौकिक एवं दिव्य रूप की कोटिशः बधाई. पर पता नहीं क्यों, आज रोटी रानी का सोचकर दिल बहुत भारी हो रहा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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