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Canada heat wave: 12-15 डिग्री के आदी कनाडा वालों की हालत देख दिल्ली वाले गनीमत महसूस करें!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 03 जुलाई, 2021 10:53 PM
  • 03 जुलाई, 2021 10:53 PM
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जैसी जानलेवा गर्मी पड़ रही है वो किसी से छुपा नहीं है. गर्मी के मद्देनजर भारत के हालत तो फिर भी ठीक हैं कनाडा और अमेरिका जैसे देशों के हाल तो और भी बुरे हैं. गर्मी चाहे जैसी भी हो मगर जिस तरह भारतीयों ने अपने को एडजस्ट किया है वो काबिल ए तारीफ है और पूरे विश्व को इससे सबक लेना चाहिए.

पड़ जाएंगे बदन पर फफोले 'अकबर'

जो पढ़ के कोई फूंक दे अप्रैल, मई, जून.

सच में जैसी गर्मी जून में होती है मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने ये मिसरे यूं ही टाइम पास में न कहे होंगे. बिल्कुल न कहे होंगे. जून से ज्यादा जालिम जुलाई की गर्मी होती है इसलिए लॉजिक तो है अकबर इलाहाबादी की इन पंक्तियों में और वो ये है कि, जून- जुलाई में आम तो होता ही है साथ ही होती हैं चुभन देती घमोरियां और बदन को काटता पसीना. मतलब जैसी गर्मी है और जैसे पंखे ने इसके आगे हथियार डाल दिये हैं लिखने को तो इसपर पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है मगर एक शायर हुए नाम था खालिद इरफान 4 मिसरे कह दिए और बात खत्म कर दी. मिसरे कुछ यूं थे कि

नाम पंखे के सिसकने का हवा रक्खा है,

गर्म मौसम ने बहुत ज़ुल्म रवा रक्खा है.

और ऊपर से तेरे शोला-ए-रुखसार की हीट,

ऐसा लगता है कि चूल्हे पे तवा रक्खा है.

उपरोक्त पंक्तियों में शुरुआती 2 पंक्तियां हमारे काम की हैं और गर्मी की भीषणता और उसपर पंखे की बेबसी बता रही हैं जबकि बाद की दो पंक्तियों में वही प्यार मुहब्बत है जिस पर बात फिर कभी कर ली जाएगी.

जैसी गर्मी पड़ रही है और जिस तरह लोग उसकी चपेट में आ रहे हैं भारत ही नहीं पूरा विश्व परेशान है

तो भइया गर्मी कुछ यूं है कि पंखा कूलर सब बेकार हैं थोड़ी बहुत राहत एसी दे देता है मगर यहां उत्तर भारत में जैसी लाइट आती है वो कहां किसी से छुपी है. बार बार आती जाती लाइट के चलते घर में लगे एसी की जो ऐसी तैसी हो रखी है अब क्या ही कहा जाए. अब चूंकि हर घर में एसी होता...

पड़ जाएंगे बदन पर फफोले 'अकबर'

जो पढ़ के कोई फूंक दे अप्रैल, मई, जून.

सच में जैसी गर्मी जून में होती है मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने ये मिसरे यूं ही टाइम पास में न कहे होंगे. बिल्कुल न कहे होंगे. जून से ज्यादा जालिम जुलाई की गर्मी होती है इसलिए लॉजिक तो है अकबर इलाहाबादी की इन पंक्तियों में और वो ये है कि, जून- जुलाई में आम तो होता ही है साथ ही होती हैं चुभन देती घमोरियां और बदन को काटता पसीना. मतलब जैसी गर्मी है और जैसे पंखे ने इसके आगे हथियार डाल दिये हैं लिखने को तो इसपर पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है मगर एक शायर हुए नाम था खालिद इरफान 4 मिसरे कह दिए और बात खत्म कर दी. मिसरे कुछ यूं थे कि

नाम पंखे के सिसकने का हवा रक्खा है,

गर्म मौसम ने बहुत ज़ुल्म रवा रक्खा है.

और ऊपर से तेरे शोला-ए-रुखसार की हीट,

ऐसा लगता है कि चूल्हे पे तवा रक्खा है.

उपरोक्त पंक्तियों में शुरुआती 2 पंक्तियां हमारे काम की हैं और गर्मी की भीषणता और उसपर पंखे की बेबसी बता रही हैं जबकि बाद की दो पंक्तियों में वही प्यार मुहब्बत है जिस पर बात फिर कभी कर ली जाएगी.

जैसी गर्मी पड़ रही है और जिस तरह लोग उसकी चपेट में आ रहे हैं भारत ही नहीं पूरा विश्व परेशान है

तो भइया गर्मी कुछ यूं है कि पंखा कूलर सब बेकार हैं थोड़ी बहुत राहत एसी दे देता है मगर यहां उत्तर भारत में जैसी लाइट आती है वो कहां किसी से छुपी है. बार बार आती जाती लाइट के चलते घर में लगे एसी की जो ऐसी तैसी हो रखी है अब क्या ही कहा जाए. अब चूंकि हर घर में एसी होता भी नहीं है इसलिए यहां हिंदुस्तान में विशेषकर उत्तर भारत में लोगों के पास गर्मी से बचने के अपने जुआड़ हैं. जिस दिन ज्यादा गर्मी लगी लस्सी के गिलास में दही कम करवाकर दो गुनी बर्फ डलवा ली नहीं तो फिर एक की जगह दो या तीन गन्ने का जूस पी लिया.

हां वही गन्ने का जूस जिसके ठेले पर लगा पोस्टर गर्मी से परेशान ग्राहक को ये बताने की कोशिश करता है कि, गुरु भाग्यशाली हो तुम जो यहां का जूस पिया. अभी कल ही तो यहां शाहरुख, सलमान, अक्षय कुमार, संजय दत्त, अजय देवगन , रवीना टंडन, प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना कैफ, दीपिका पादुकोण जैसे लोग आए थे और गन्ने का जूस पीकर गए थे.

व्यक्तिगत रूप से हमें आजतक एकबात है समझ में नहीं आई कि हीरो- हीरोइन लोग ने तो खूब गन्ने का जूस पिया है लेकिन इन ठेलों पर कभी बॉलीवुड के विलेन्स की फ़ोटो नहीं देखी. विलेन बिरादरी या तो गन्ने का जूस नहीं पीती या फिर पीने के बाद दुकान की पब्लिसिटी के लिए फ़ोटो नहीं क्लिक करवाती. सच्चाई क्या है? ये या तो गन्ने के जूस की दुकान वाला जाने या फिर बॉलीवुड की शान विलेन लोग. इस मुद्दे पर भी बात फिर कभी होगी.

हां तो हम जुलाई की इस जुल्मी गर्मी के बारे में बता रहे थे और कह रहे थे कि इस गर्मी को चुनौती देनी की हमारे पास अपनी रणनीतियां हैं. जिक्र गर्मी का हुआ है तो जान लीजिये हम भारतीयों के लिए गर्मी का मतलब 40- 42 पार है. तभी हमारी सफेद शर्ट निकलती है. टेम्परेचर इससे कम हुआ तो हमें गर्मी वाला फील ही नहीं आता. पूरा हफ्ता हम काली और लाल टीशर्ट पहनकर गुजार सकते हैं.

इतना पढ़कर आप शायद विचलित हो गई हों. बाएं हाथ से दाईं कनपटी पर आया पसीना पोछते हुए सवाल कर लें कि ये गर्मी गाथा क्यों? जब सब जानते हैं जुलाई में गर्मी अपने शबाब पर होती है तो काहे इस लेख की चुभन के कारण हमें नायसिल पाउडर लगाने पर विवश किया जा रहा है?

'जुलाई में गर्मी होती है' की तर्ज पर बताना जरूरी है कि गर्मी सिर्फ हम भारतीयों को नहीं लग रही. पसीना और घमोरियां विदेशियों को भी हो रहा. कहीं दूर क्या ही जाना. आइये बिन पासपोर्ट और ट्रेवल वीजे के कनाडा चलें.

कनाडा में जुलाई की ये गर्मी शोले का गब्बर बन ठीक वैसी ही वसूली कर रही जैसी लगान पिक्चर में चंपानेर के लोगों के साथ जालिम अफसर कैप्टेन एंड्रू रसेल ने की थी. लोग क्रिकेट नहीं खेल रहे लेकिन गर्मी के आगे बेबस और लाचार हैं और अपनी जान के जरिये गर्मी को 'डो-गुना लगान देने को मजबूर हैं. सुनने में आ रहा है कि गर्मी के मद्देनजर जो कनाडा जैसे 'ठंडे' देश में हुआ है उसने पर्यावरणविदों के होश फाख्ता कर दिए हैं.

वहां 10000 साल का रिकॉर्ड टूटा है करीब 230 लोगों को अपनी जान से हाथ सिर्फ इसलिए धोना पड़ा क्योंकि वो गर्मी का सामना नहीं कर पाए. ध्यान रहे कि कनाडा में भी सबसे बुरा हाल ब्रिटिश कोलंबिया प्रान्त का है जहां पारा 49.44 के पार चला गया है और त्राहिमाम मच गया है.

एक तरफ हम भारतीय है दूजी तरफ ये कनाडा वाले. यहां भारत के राजस्थान में कुछ जगहें हैं जहां पारा 49 के पार पहुंच जाता है मगर तब भी लोग सर्वाइव करते हैं. कारण? उन्होंने कुदरत के आगे हथियार नहीं डाले बल्कि उसे कड़ी चुनौती दी और बच गए. लेकिन कनाडा वाले... वो लोग क्यों नहीं बच पाए इसके पीछे एक बड़ा कारण उस जगह का भूगोल है.

कनाडा में तापमान प्रायः 12- 15 डिग्री तक रहता था और उतने तक के लिए ही लोगों ने अपने को तैयार किया था. बात तो सही है किसे पता था मौसम का ऊंट ऐसी करवट बैठेगा कि एसी की ऐसी तैसी हो जाएगी और दहकते सूरज के आगे इंसान पके आम की तरह टप-टप गिरने लग जाएगा. यूं भी बड़े बुजुर्गों ने यही कहा है कि जैसी नीयत होती है उतनी ही बरकत भी होती है.

गौरतलब है कि कनाडा की मौसम सेवा ने कहा कि इस अत्यधिक गर्मी को शब्दों का वर्णन नहीं कर सकता है. मौसम विभाग के अनुसार ब्रिटिश कोलंबिया का रिकॉर्ड अब लास वेगास में दर्ज किए गए अबतक के सबसे उच्चतम तापमान से भी अधिक है.कनाडा से बात निकली और अमेरिका तक पहुंची इसके पीछे भी माकूल वजहें हैं.कनाडा वाली हीटवेव कनाडा से लेकर अमेरिका तक फैली हुई है. अमेरिका के वाशिंगटन और ओरेगन में भी रिकॉर्ड तापमान का अनुभव किया जा रहा है. वहां भी लोग गर्मी देखकर हैरान परेशान हैं.

कनाडा और अमेरिका में जो गर्मी फैली है वहां एक शब्द का जिक्र बार-बार हो रहा है जो है हीट डोम. इस शब्द के बारे में हमने भी सुना और इसकी थोड़ी पड़ताल की. जो बातें निकल कर सामने आईं वो ये एक दीवार की तरह है जिससे गर्मी बढ़ती है और तबाही मचती है. इसके कारण गर्मी वायुमंडल में अधिक फैलती है और दबाव और हवा के पैटर्न को प्रभावित करती है.

गर्म हवा का यह ढेर उच्च दबाव वाले क्षेत्र में फंस जाता है. इससे आसपास की हवा और भी ज्यादा गर्म होती है. यह बाहरी हवा को अंदर नहीं आने देता है और अंदर की हवा को गर्म बनाए रखता है. बढ़ी हुई गर्मी के कारण अमेरिका और कनाडा में जो लोग हमें छोड़कर जा चुके हैं उनके प्रति हमारी पूरी सहानुभूति है. लेकिन वो लोग जो बच गए हैं उन्हें हम भारतीयों से एडजस्ट करने की अदा सीखनी चाहिए.

हम ये बिल्कुल नहीं कह रहे कि गर्मी के चलते वो चारपाई बिछाकर नीम पीपल जैसे पेड़ों के नीचे बैठें. या फिर वो डबल बर्फ वाली लस्सी और गन्ने का जूस पी अपने को तरोताजा रखने का फील लें. बात बस इतनी है कि प्रकृति से थोड़ा संतुलन बनाएं. यदि 2 पेड़ काटे तो 10 पेड़ लगाएं. जल संरक्षण करें. हमने राजस्थान का जिक्र किया है और वहां कितनी और किस हद तक गर्मी पड़ती है इसके बारे में भी बताया है.

राजस्थान, गुजरात में विकट परिस्थितियां होने के बावजूद लोग प्रकृति से संतुलन बनाकर चल रहे हैं और सर्वाइव कर रहे हैं. बाकी अभी जुलाई है इसके बाद अगस्त फिर सिंतबर आएगा और गर्मी और उमस ऐसी ही रहेगी. चाहे कनाडा और अमेरिका के लोग हों या हम भारतीय जान लें कि उमस और गर्मी के मद्देनजर मशहूर शायर नजीर अकबराबादी ने बहुत पहले ही कह दिया था कि

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस,

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक कहर है उमस.

आखिरी बात- देश कोई भी हो मतलब चाहे हम भारतीय हों या फिर वो फिरंगी जान लीजिए. समझ लीजिए आदमी कितना भी बलशाली क्यों न हो जाए वो कुदरत से नहीं जीत सकता. गर्मी के चलते कनाडा के 230 लोगों ने इस बात का पुख्ता यकीन दिला दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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