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ब्लू व्हेल चैलेंज का हिस्‍सा थे अखिलेश-राहुल और लालू-नीतीश गठबंधन

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 अगस्त, 2017 09:01 PM
  • 21 अगस्त, 2017 09:01 PM
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आजकल जिसे देखो वही सोशल मीडिया पर लोकप्रिय खेल ब्लू व्हेल चैलेंज की बात कर रहा है. अब इसे अगर हम अपनी भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में देखें तो मिलता है कि भले ही सोशल मीडिया पर ये खेल नया हो पर भारतीय राजनीति में इसे लम्बे समय से खेला जा रहा है.

मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इन दिनों ब्लू व्हेल चर्चा में है. न न ये किसी नीले समुद्र में भारी भरकम शरीर के साथ अठखेलियां करते हुए तैरने वाली ब्लू व्हेल नहीं है. बल्कि ये एक गेम और उसमें मिला चैलेन्ज है. ऐसा गेम जो रशिया से होते हुए पूरी दुनिया घूमकर हिंदुस्तान आ गया है. ये खेल अपनी तरह का एक अनोखा खेल है जिसमें लोगों का ब्रेन वाश किया जाता है और फिर उन्हें ऐसा चैलेंज दिया जाता है जिनका अंत बिल्कुल भी सुखमय नहीं होता. कहा जा सकता है कि ये फ्रस्ट्रेटेड लोगों का खेल है.

ब्लू व्हेल चैलेंज भारत में तब आया जब उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए थे

भले ही इस खेल के बारे में हमने अभी कुछ दिन पहले ही सुना हो. मगर हमारे देश में इसकी जड़े कोई आज की नहीं हैं. इस खेल और इसके चैलेंज को हम बहुत पहले से देखते चले आ रहे हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हुए थे. वो चुनाव जिसमें भाजपा ने बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए बहुमत से सरकार बनाई और प्रदेश को योगी आदित्यनाथ के रूप में प्रदेश का नया मुख्यमंत्री मिला. हो सकता है ये बातें आपको कन्फ्यूज कर दें और आप ये सोचे कि इस खेल और उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में क्या समानता है तो अगर आप खुद अपने दिमाग पर जोर डालें तो आपको पूरा परिदृश्य याद आ जाएगा और फिर बात शीशे की तरह साफ हो जाएगी.

अगर आप अब भी बात समझने में असमर्थ हैं तो, आपको हमारे द्वारा ये बताना बेहद जरूरी होगा कि, भारत में इस खेल की सबसे पहली शुरुआत उत्तर प्रदेश में ही हुई थी. तब इस खेल को दो प्रमुख प्रतिभागियों अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच खेला गया था. ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव से पहले सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. तभी चुनाव प्रचार के सिलसिले में पूरे भारत को दुनिया समझने वाले राहुल गांधी उत्तर प्रदेश...

मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इन दिनों ब्लू व्हेल चर्चा में है. न न ये किसी नीले समुद्र में भारी भरकम शरीर के साथ अठखेलियां करते हुए तैरने वाली ब्लू व्हेल नहीं है. बल्कि ये एक गेम और उसमें मिला चैलेन्ज है. ऐसा गेम जो रशिया से होते हुए पूरी दुनिया घूमकर हिंदुस्तान आ गया है. ये खेल अपनी तरह का एक अनोखा खेल है जिसमें लोगों का ब्रेन वाश किया जाता है और फिर उन्हें ऐसा चैलेंज दिया जाता है जिनका अंत बिल्कुल भी सुखमय नहीं होता. कहा जा सकता है कि ये फ्रस्ट्रेटेड लोगों का खेल है.

ब्लू व्हेल चैलेंज भारत में तब आया जब उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए थे

भले ही इस खेल के बारे में हमने अभी कुछ दिन पहले ही सुना हो. मगर हमारे देश में इसकी जड़े कोई आज की नहीं हैं. इस खेल और इसके चैलेंज को हम बहुत पहले से देखते चले आ रहे हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हुए थे. वो चुनाव जिसमें भाजपा ने बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए बहुमत से सरकार बनाई और प्रदेश को योगी आदित्यनाथ के रूप में प्रदेश का नया मुख्यमंत्री मिला. हो सकता है ये बातें आपको कन्फ्यूज कर दें और आप ये सोचे कि इस खेल और उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में क्या समानता है तो अगर आप खुद अपने दिमाग पर जोर डालें तो आपको पूरा परिदृश्य याद आ जाएगा और फिर बात शीशे की तरह साफ हो जाएगी.

अगर आप अब भी बात समझने में असमर्थ हैं तो, आपको हमारे द्वारा ये बताना बेहद जरूरी होगा कि, भारत में इस खेल की सबसे पहली शुरुआत उत्तर प्रदेश में ही हुई थी. तब इस खेल को दो प्रमुख प्रतिभागियों अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच खेला गया था. ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव से पहले सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. तभी चुनाव प्रचार के सिलसिले में पूरे भारत को दुनिया समझने वाले राहुल गांधी उत्तर प्रदेश आए और पीके भइया के कहने पर उन्होंने अखिलेश यादव से हाथ मिलाते हुए उन्हें ये चैलेंज दे दिया. फिर जो हुआ वो सबके सामने है. पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि राहुल के इस चैलेंज से न सिर्फ अखिलेश बल्कि पूरी समाजवादी पार्टी का राजनीतिक भविष्य लगभग खत्म हो गया है.

उत्तर प्रदेश चुनाव में ये खेल राहुल और अखिलेश के बीच खेला गया था

तब के राजनीतिक समीकरणों पर यदि गौर करें तो कई अनोखी बातें निकल के सामने आती हैं. कह सकते हैं कि उस समय उत्तर प्रदेश में लॉ एंड आर्डर अपने सबसे बुरे रूप में था. पूर्वांचल से लेके पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में अपराध अपने चरम पर था. शिक्षा के ग्राफ लगातार गिर रहा था. ऐसे में तमाम मूल मुद्दों और बातों को भूल अखिलेश की सारी प्रमुखता माइनॉरिटी को लुभाना था. जिसके चलते प्रदेश की जनता ने अखिलेश और उनकी समाजवादी पार्टी को सिरे से नकार दिया था.

बहरहाल, तब भले ही अखिलेश यादव अपनी जीत के लिए कॉन्फिडेंट रहे हों मागर जिस तरह उन्होंने अपनी जवानी के जोश में युवा राहुल से चैलेंज लिया और अपने को पस्त किया वो ये बताने के लिए काफी है कि भारत में और खास तौर से उत्तर भारत में ये ब्लू व्हेल चैलेंज कोई आज का नहीं है. कहा ये भी जा सकता है कि तब शुभ चिंतकों की भीड़ से किसी ने भी अखिलेश को ये नहीं बताया था कि, 'मनुष्य "छिपकली" के साथ तो जीवन निर्वाह कर सकता है मगर "गिरगिट" के साथ उसे एडजस्ट करने में खासी परेशानी होती है.'

अभी कुछ दिनों पहले ये खेल हमने लालू और नीतीश के बीच भी देखा था

आज के परिदृश्य में भी ये खेल हमारी राजनीति में बदस्तूर चल रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही ये खेल बिहार में भी दोहराया गया था जहां नीतीश कुमार ने बाजी मार ली और लालू को इस चैलेंज में हराने के बाद उनके राजनीतिक भविष्य की कमर तोड़ के रख दी. अब लालू बस इसी फिराक में हैं कि कब मौका लगे और वो इसी चैलेंज के बल पर नितीश से अपनी हार का बदला ले सकें.

चूंकि मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक बस ब्लू व्हेल का दौर है तो अगर अब हम इसे आजकल की भारतीय राजनीति के सम्बन्ध में देखें तो मिलता है कि, हाल फ़िलहाल के दिनों में ये खेल राहुल गांधी और उन्हीं की पार्टी कांग्रेस के बीच खेला जा रहा है. राहुल अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे हैं कि वो इस खेल में अपनी जीत की उपलब्धि को कायम रख सकें.

अंत में इतना ही कि, भविष्य में हमारे लिए ये देखना खासा दिलचस्प रहेगा कि इस खेल में कौन किसे मात देता है. क्या हर बार के विजेता राहुल गांधी फिर से अपनी जीत दर्ज करा पाएंगे या फिर गर्त के अंधेरों में डूबी हुई कांग्रेस इस बार राहुल को पस्त करते हुए इस खेल की विजेता बन एक नया इतिहास रचेगी.    

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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