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मोदी और राहुल की पॉलिटिक्‍स के पीछे निगेटिव-पॉजिटिव 'ब्लड' तो नहीं?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 28 मार्च, 2019 07:39 PM
  • 28 मार्च, 2019 04:48 PM
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चुनाव आने में कुछ वक्त है. ऐसे में जब नेताओं के ब्लड ग्रुप्स पर नजर डाली गई, तो जो जानकारी आई वो दिलचस्प थी. पता चला कि ब्लड ग्रुप के मामले में तमाम मोदी विरोधी एक और मोदी के सहयोगी / दोस्त एक समान हैं.

आजादी से बहुत समय पहले की बात है. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने एक नारा दिया था. नेता जी ने कहा था कि, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आज हम आजाद हैं और नेता जी हमारी यादों में हैं. अब हमें खून की जरूरत नहीं है. भले ही आज हमारे बीच नेता जी न हों. मगर हम अपने जीवन में खून की भूमिका को नकार नहीं सकते. ये हमारे लिए बहुत जरूरी चीज है और इससे भी ज्यादा जरूरी इसके बारे में जानना है. 2019 के आम चुनाव नजदीक हैं. देश एक नई सरकार चुनेगा. देश में नया प्रधानमंत्री आए इससे पहले हमने अपने नेताओं के खून यानी ब्लड ग्रुप के बारे में पता लगाने पर विचार किया. परिणाम जो आए वो दिलचस्प थे.

चुनाव से पहले हमारे लिए ये जानना भी दिलचस्प है कि हमारे पसंदीदा नेता का ब्लड ग्रुप क्या है

जैसे नेता एक दूसरे को और दूसरा नेता तीसरे को फूटी आंख नहीं भाते, वही हाल उनके ब्लड ग्रुप का था. कई लोगों के मामले में ब्लड ग्रुप जहां एक तरफ दूसरे से जुदा निकले. तो वहीं कुछ जगहों पर एक ही दल के दो नेताओं के बीच ये बिल्कुल एक जैसे थे. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो बात की शुरुआत उनसे ही करते हैं.

2014 में देश का प्रधानमंत्री बन हर महत्वपूर्ण मौके पर नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस के 70 सालों के शासन को जिम्मेदार ठहराने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां ब्लड ग्रुप के मामले में 'ए पॉजीटिव' हैं. तो वहीं उनके परम आलोचक और राफेल, बेरोजगारी, महंगाई, पेट्रोल डीजल जैसे मुद्दों की आड़ लेकर उन्हें घेरने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ब्लड ग्रुप के मामले में 'बी निगेटिव' निकले.

राहुल की बहन प्रियंका अभी नई नई राजनीति में आई हैं और अपनी एंट्री के बाद से ही लगातार छाई हैं. तो जब हमने उनके ब्लड ग्रुप के बारे में पता लगाया, तो मालूम चला...

आजादी से बहुत समय पहले की बात है. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने एक नारा दिया था. नेता जी ने कहा था कि, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आज हम आजाद हैं और नेता जी हमारी यादों में हैं. अब हमें खून की जरूरत नहीं है. भले ही आज हमारे बीच नेता जी न हों. मगर हम अपने जीवन में खून की भूमिका को नकार नहीं सकते. ये हमारे लिए बहुत जरूरी चीज है और इससे भी ज्यादा जरूरी इसके बारे में जानना है. 2019 के आम चुनाव नजदीक हैं. देश एक नई सरकार चुनेगा. देश में नया प्रधानमंत्री आए इससे पहले हमने अपने नेताओं के खून यानी ब्लड ग्रुप के बारे में पता लगाने पर विचार किया. परिणाम जो आए वो दिलचस्प थे.

चुनाव से पहले हमारे लिए ये जानना भी दिलचस्प है कि हमारे पसंदीदा नेता का ब्लड ग्रुप क्या है

जैसे नेता एक दूसरे को और दूसरा नेता तीसरे को फूटी आंख नहीं भाते, वही हाल उनके ब्लड ग्रुप का था. कई लोगों के मामले में ब्लड ग्रुप जहां एक तरफ दूसरे से जुदा निकले. तो वहीं कुछ जगहों पर एक ही दल के दो नेताओं के बीच ये बिल्कुल एक जैसे थे. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो बात की शुरुआत उनसे ही करते हैं.

2014 में देश का प्रधानमंत्री बन हर महत्वपूर्ण मौके पर नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस के 70 सालों के शासन को जिम्मेदार ठहराने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां ब्लड ग्रुप के मामले में 'ए पॉजीटिव' हैं. तो वहीं उनके परम आलोचक और राफेल, बेरोजगारी, महंगाई, पेट्रोल डीजल जैसे मुद्दों की आड़ लेकर उन्हें घेरने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ब्लड ग्रुप के मामले में 'बी निगेटिव' निकले.

राहुल की बहन प्रियंका अभी नई नई राजनीति में आई हैं और अपनी एंट्री के बाद से ही लगातार छाई हैं. तो जब हमने उनके ब्लड ग्रुप के बारे में पता लगाया, तो मालूम चला कि जिन कन्धों पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी है, उन कन्धों में दौड़ रहा खून 'ओ निगेटिव' है. कहते हैं कि मोदी के बाद भाजपा में, अमित शाह ही वो व्यक्ति हैं जिनका जलवा कायम है. जैसे हालात हैं. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि आज बिना अमित शाह की मर्जी के पार्टी में परिंदा भी पर नहीं मार सकता.

आज राजनीति बिन राहुल और मोदी के अधूरी है मजेदार ये है कि दोनों ही नेताओं के ब्लड ग्रुप भी अलग हैं

जब अमित शाह के ब्लड ग्रुप के बारे में पता किया गया तो जो परिणाम आए वो और ज्यादा अचरज में डालने वाले थे. मालूम चला कि अपनी रणनीति से पूरे विपक्ष में खलबली मचाने वाले अमित शाह भी पीएम मोदी की तरह 'ए पॉजीटिव' हैं. बात राजनीति और राजनेताओं की चल रही है ऐसे में अपनी कड़क धारदार आवाज़ से अलग अलग मौकों पर चीन पाकिस्तान की कड़े शब्दों में निंदा करने वाले राजनाथ सिंह को भूला नहीं जा सकता. मजेदार बात ये है कि पीएम मोदी, अमित शाह की तरह राजनाथ सिंह का भी शुमार उन चुनिन्दा व्यक्तियों में है जिनका ब्लड ग्रुप 'ए पॉजीटिव' है.

किसी जमाने में भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं में शुमार और वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभल रहे योगी आदित्यनाथ के पाले में 'ए' भी है और ये 'बी' के भी स्वामी हैं. योगी 'एबी पॉजीटिव' हैं. ब्लड ग्रुप के मामले को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बाद जब हमने राम मंदिर आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाली उमा भारती के ब्लड ग्रुप का अवलोकन किया तो मिला कि ये भी यूपी के सीएम मिलती जुलती हैं और इनका भी ब्लड ग्रुप 'एबी पॉजीटिव' है.

ब्लड ग्रुप के मद्देनजर हमारे लिए सबसे दिलचस्प मायावती और अखिलेश यादव थे. मोदी लहर को रोकने के लिए सपा बसपा का गठबंधन करने वाले इन दोनों ही नेताओं का ब्लड ग्रुप भी इनकी वर्तमान विचारधारा की तरह एक जैसा है. अखिलेश और मायावती ये दोनों ही नेता 'बी पॉजीटिव' हैं. वहीं सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भी ब्लड ग्रुप के मामले में अखिलेश और मायावती के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए, इनके साथ खड़े नजर आए. मुलायम सिंह यादव का ब्लड ग्रुप 'बी पॉजीटिव' है.

ब्लड ग्रुप के मद्देनजर बुआ बबुआ एक हैं

इन सब के बाद हमने उन नेताओं के ब्लड ग्रुप का पता लगाने की सोची. जिन्हें उनकी पार्टी ने रिटायर समझकर उनके टिकट का पत्ता काट दिया है. उत्तर प्रदेश के कानपुर से सांसद मुरली मनोहर जोशी ब्लड ग्रुप के मामले में जहां 'बी पॉजिटिव' हैं तो वहीं भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के एक अन्य नेता लाल कृष्ण आडवाणी, 'ओ पॉजिटिव' हैं.

राजनीति की बातें जब हो रहीं हों और तमाम तरह के आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर हो, तब हम क्या कोई भी भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी की भूमिका को नकार नहीं सकता. सोनिया गांधी का ब्लड ग्रुप 'बी निगेटिव' है.

बहरहाल विपक्ष का गठबंधन मोदी लहर को रोकने में कितना कामयाब होगा इसका जवाब समय देगा. मगर जिस तरह ब्लड ग्रुप के मामले में तमाम मोदी विरोधी एक और जैसे मोदी के सहयोगी समान हैं साफ हो गया है कि आगामी चुनाव ब्लड ग्रुप्स की दृष्टि से भी मजेदार है. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर चाहे राहुल बैठें या फिर मोदी. मगर निगेटिव पॉजिटिव ने बता दिया है कि एक दूसरे से विपरीत दो दल हमेशा एक दूसरे के विपरीत रहेंगे. इन्हें कभी साफ नहीं लाया जा सकता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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