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तो पन्नीरसेल्वम को बना दो यूपी का सीएम!

    • खुशदीप सहगल
    • Updated: 17 मार्च, 2017 01:39 PM
  • 17 मार्च, 2017 01:39 PM
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पन्नीरसेल्वम के मुख्यमंत्री बनने से यूपी में पेश आ रही सभी दिक्कतों से बीजेपी को छुटकारा तो मिलेगा ही, सही मायने में भारत के चारों कोनों में पैठ रखने वाली पार्टी की पहचान भी मिलेगी.

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?

ऐसा ही अहम सवाल हो गया है कि उत्तर प्रदेश में अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार अमित शाह ने यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के लिए इतनी मेहनत नहीं की जितनी उन्हें यूपी के अगले मुख्यमंत्री का नाम तय करने में करनी पड़ रही है. राज्यसभा में गुरुवार को बीजेपी के सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने पर बेशक 'देखो, देखो कौन आया, भारत का शेर आया' के नारे लगाए. लेकिन यूपी का मुख्यमंत्री तय करने में इस 'शेर' के माथे पर भी पसीने आ रहे हैं.

यूपी में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिले पांच दिन हो चुके हैं. लेकिन अभी तक लखनऊ में पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक भी नहीं हो सकी है. बैठक पहले गुरुवार को होनी थी लेकिन इसे मिशन गोवा और मिशन मणिपुर में सक्रियता का हवाला देते हुए स्थगित कर दिया गया. अब लखनऊ में बीजेपी विधायक दल की बैठक 18 मार्च को शाम 5 बजे बुलाने की बात की जा रही है. नियम-कायदे तो यही कहते हैं कि विधायक दल जिसे नेता चुनता है उसे ही सीएम की गद्दी मिलती है.

यूपी का सीएम कौन?ये नियम कायदे की बात है, नियम कायदों में ही रहती है. प्रैक्टीकली सीएम वही चुना जाता है, जिसके नाम पर दिल्ली से मुहर लग कर आती है. कांग्रेस की इस परंपरा को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी शिद्दत के साथ आगे बढ़ा रहा है. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर हों या महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस. दोनों के नाम पर दिल्ली से ही मुहर लग कर आई थी. चुने गए विधायकों ने उनके नाम के अनुमोदन की...

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?

ऐसा ही अहम सवाल हो गया है कि उत्तर प्रदेश में अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार अमित शाह ने यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के लिए इतनी मेहनत नहीं की जितनी उन्हें यूपी के अगले मुख्यमंत्री का नाम तय करने में करनी पड़ रही है. राज्यसभा में गुरुवार को बीजेपी के सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने पर बेशक 'देखो, देखो कौन आया, भारत का शेर आया' के नारे लगाए. लेकिन यूपी का मुख्यमंत्री तय करने में इस 'शेर' के माथे पर भी पसीने आ रहे हैं.

यूपी में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिले पांच दिन हो चुके हैं. लेकिन अभी तक लखनऊ में पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक भी नहीं हो सकी है. बैठक पहले गुरुवार को होनी थी लेकिन इसे मिशन गोवा और मिशन मणिपुर में सक्रियता का हवाला देते हुए स्थगित कर दिया गया. अब लखनऊ में बीजेपी विधायक दल की बैठक 18 मार्च को शाम 5 बजे बुलाने की बात की जा रही है. नियम-कायदे तो यही कहते हैं कि विधायक दल जिसे नेता चुनता है उसे ही सीएम की गद्दी मिलती है.

यूपी का सीएम कौन?ये नियम कायदे की बात है, नियम कायदों में ही रहती है. प्रैक्टीकली सीएम वही चुना जाता है, जिसके नाम पर दिल्ली से मुहर लग कर आती है. कांग्रेस की इस परंपरा को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी शिद्दत के साथ आगे बढ़ा रहा है. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर हों या महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस. दोनों के नाम पर दिल्ली से ही मुहर लग कर आई थी. चुने गए विधायकों ने उनके नाम के अनुमोदन की औपचारिकता को निभा दिया था. दोनों ही राज्यों में सीएम के लिए जिन्हें सशक्त दावेदार बताया जा रहा था, वो अपना सा मुंह ले कर रह गए थे.

केंद्र से जो पर्यवेक्षक भेजे जाते हैं, उनका असली काम यही होता है कि सीएम के लिए दिल्ली से जो नाम भेजा गया है उस पर 'सर्वसम्मति' के बिना किसी रुकावट इंजीनियरिंग करा दें. अब यही काम लखनऊ में 18 मार्च को बीजेपी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों- वेंकैया नायडू और भूपेंद्र यादव को कराना है.

बीजेपी की दिक्कत है कि जिस सोशल इंजीनियरिंग के दम पर यूपी में भगवा सुनामी आई है, वही जातियों का अंकगणित अब मुख्यमंत्री का नाम तय करने में पसीने छुड़ा रहा है. यहां सवर्णों ने भी जमकर बीजेपी को वोट दिया और गैर यादव ओबीसी ने भी कमल पर दबा कर बटन दबाया. मजे की बात है गोवा और मणिपुर में बीजेपी की सरकारें बनीं तो पार्टी की सारी सक्रियता पणजी और इंफाल में ही दिखी. लेकिन उत्तर प्रदेश को लेकर सारी माथापच्ची अभी तक दिल्ली में ही हो रही है. उत्तर प्रदेश से बीजेपी के विधायकों और नेताओं को दिल्ली ही बुला-बुलाकर उनके मन की थाह ली जा रही है.

सस्पेंस कब खत्म होगा?जाहिर है बीजेपी को यूपी में इतना बड़ा बहुमत मिला है तो वो इसका असर 2019 लोकसभा चुनाव तक बनाए रखना चाहती है. खबरची को पता चला कि बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने यूपी में सीएम का नाम तय करने की पहेली को सुलझाने के लिए कई माध्यमों से सलाह लेने का भी फैसला किया है. इनमें सियासत के खांटी खुर्राटों से लेकर मॉडर्न पॉलिटिकल साइंस मैनेजमेंट के फॉरेन रिटर्न एडवाइजर्स भी शामिल हैं.

खबरची को सूत्रों से पता चला है कि ऐसे ही एक हाईली पेड एडवाइजर ने बड़ी दूर की कौड़ी समझाई है. इस एडवाइजर का कहना है कि बीजेपी ने हिंदी बेल्ट वाले उत्तर भारत के साथ ही पश्चिमी भारत पर तो दबदबा कायम कर ही लिया है. कर्नाटक को छोड़ दक्षिण भारत में बीजेपी का अभी भी कोई नामलेवा नहीं है. एडवाइजर महोदय का कहना है कि बीजेपी को दक्षिण, उसमें भी तमिलनाडु पर विशेष तौर पर ध्यान देने की आवश्यकता है. प्रबंधन के गुरों में माहिर इस एडवाइजर का ये भी कहना है कि उत्तर और दक्षिण को पास लाने का बीजेपी के पास इस वक्त बहुत अच्छा मौका है.

अब तक एडवाइजर की बात को सभी ध्यान से सुनने लगे. एडवाइजर का कहना था कि जिस तरह भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की योजना है उसी तरह बीजेपी को उत्तर और दक्षिण में सामंजस्य बैठाने के लिए काम करना चाहिए. जिससे उसकी पैन इंडिया इमेज और पुख्ता हो सके और उसे आने वाले कई लोकसभा चुनाव में फायदा मिलता रहे.

एडवाइजर से सवाल किया गया कि आखिर ये कैसे हो सकता है? इसके बाद इन जनाब ने धमाकेदार सलाह देते हुए कहा कि मेरी मानो तो यूपी में ओ. पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बना दो. एडवाइजर साहब के मुताबिक इससे यूपी में पेश आ रही सभी दिक्कतों से बीजेपी को छुटकारा तो मिलेगा ही, सही मायने में भारत के चारों कोनों में पैठ रखने वाली पार्टी की पहचान भी मिलेगी. इस मास्टरस्ट्रोक से तमिलनाडु समेत पूरे दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए समर्थन बढ़ेगा.

यही है राईट च्वाइस बेबीपन्नीरसेल्वम की छवि कुशल प्रशासक की है, इसका लाभ उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को मिलेगा जहां विकास की बहुत दरकार है. पन्नीरसेल्वम भी इस वक्त तमिलनाडु में राजनीतिक तौर पर बेरोजगार हैं. उन्हें बीजेपी में शामिल होने और यूपी में सीएम बनने का न्योता दिया जाएगा, तो वो लपक कर इसके लिए तैयार हो जाएगा.

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि अगर ये एडवाइजर महोदय यूपी में सीएम के लिए प्रबल दावेदार माने जाने वालों यानि योगी आदित्यनाथ, मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य और संतोष गंगवार के सामने खुदा ना खास्ता पड़ गए तो उनकी क्या गत बनेगी?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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