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पिरामिड के अंदर क्या है, तकनीक की मदद से उठेगा रहस्य से पर्दा!

    • आईचौक
    • Updated: 06 मई, 2016 06:09 PM
  • 06 मई, 2016 06:09 PM
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इस धरती पर कई अजूबे और रहस्य हैं. इनमें से ही एक है पिरामिडों का रहस्य. ये कैसे बनाए गए होंगे और इनके भीतर क्या है, इसे लेकर कई तरह की कहानियां हैं. खोज जारी है लेकिन इस विषय पर रिसर्च करने वालों ने पहली बार पिरामिड के अंदर का एक नक्शा जारी किया है....

इस धरती पर कई अजूबे और रहस्य हैं. इनमें से ही एक है पिरामिडों का रहस्य. पिरामिडों का इतिहास करीब 4,500 से 5000 वर्ष पुराना है. ये कैसे बनाए गए होंगे और इनके भीतर क्या है, इसे लेकर कई तरह की कहानियां हैं. लेकिन ठोस तथ्य किसी के पास नहीं है. आज भी माथापच्ची जारी है. लेकिन अब पुरातत्वविद और वैज्ञानिकों ने इस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश जोर-शोर से शुरू कर दी है.

पिरामिड से जुड़ी विस्तृत जानकारी जुटाने के लिए काम कर रही टीम अब कॉस्मिक रे की मदद से नक्शा तैयार करने में जुटी है जिससे ये पता चल पाएगा कि दुनिया के इन अजुबों के भीतर की संरचना कैसी है. इस टीम में जापान से लेकर मिस्र, ब्रिटेन और अमेरिका तक के वैज्ञामिक शामिल है. पिछले ही हफ्ते इस टीम ने काहिरा से करीब 40 किलोमीटर दूर झुकी हुई पिरामिड (बेंट पिरामिड) पर अपनी खोज की पहली रिपोर्ट और पहली 3 डी तस्वीर सार्वजनिक की.

खोज के आधार पर बनाई एक थ्री डी इमेज से ये बात सामने आई है कि इसके अंदर दूसरे कमरे और सुरंग हैं. यह पिरामिड करीब 4600 वर्ष पुराना है.

 बेंट पिरामिड के भीतर का 3 डी नक्शा (साभार-काहिर यूनिवर्सिटी)

किस तकनीक का हो रहा है इस्तेमाल

इंफ्रारेड थर्मोग्राफी- यह तकनीक किसी वस्तु से निकलने वाले इंफ्रा रेड एनर्जी का पता लगाता है और उसके तापमान की रिडिंग करता है. फिर इसी आधार पर उस वस्तु का नक्शा तैयार होता है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी बंद कमरे के भीतर कौन सी चीज रखी हुई है.

लेजर के जरिए 3 डी स्कैनिंग- इसके जरिए पूरे ढांचे की स्कैनिंग की जाती है. लेजर लाइट्स के परावर्तित होने के डेटा...

इस धरती पर कई अजूबे और रहस्य हैं. इनमें से ही एक है पिरामिडों का रहस्य. पिरामिडों का इतिहास करीब 4,500 से 5000 वर्ष पुराना है. ये कैसे बनाए गए होंगे और इनके भीतर क्या है, इसे लेकर कई तरह की कहानियां हैं. लेकिन ठोस तथ्य किसी के पास नहीं है. आज भी माथापच्ची जारी है. लेकिन अब पुरातत्वविद और वैज्ञानिकों ने इस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश जोर-शोर से शुरू कर दी है.

पिरामिड से जुड़ी विस्तृत जानकारी जुटाने के लिए काम कर रही टीम अब कॉस्मिक रे की मदद से नक्शा तैयार करने में जुटी है जिससे ये पता चल पाएगा कि दुनिया के इन अजुबों के भीतर की संरचना कैसी है. इस टीम में जापान से लेकर मिस्र, ब्रिटेन और अमेरिका तक के वैज्ञामिक शामिल है. पिछले ही हफ्ते इस टीम ने काहिरा से करीब 40 किलोमीटर दूर झुकी हुई पिरामिड (बेंट पिरामिड) पर अपनी खोज की पहली रिपोर्ट और पहली 3 डी तस्वीर सार्वजनिक की.

खोज के आधार पर बनाई एक थ्री डी इमेज से ये बात सामने आई है कि इसके अंदर दूसरे कमरे और सुरंग हैं. यह पिरामिड करीब 4600 वर्ष पुराना है.

 बेंट पिरामिड के भीतर का 3 डी नक्शा (साभार-काहिर यूनिवर्सिटी)

किस तकनीक का हो रहा है इस्तेमाल

इंफ्रारेड थर्मोग्राफी- यह तकनीक किसी वस्तु से निकलने वाले इंफ्रा रेड एनर्जी का पता लगाता है और उसके तापमान की रिडिंग करता है. फिर इसी आधार पर उस वस्तु का नक्शा तैयार होता है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी बंद कमरे के भीतर कौन सी चीज रखी हुई है.

लेजर के जरिए 3 डी स्कैनिंग- इसके जरिए पूरे ढांचे की स्कैनिंग की जाती है. लेजर लाइट्स के परावर्तित होने के डेटा को जमा किया जाता है. फिर उन्हें एक साथ मिलाकर एक नक्शा तैयार किया जाता है.

कॉस्मिक रे डिटेक्टर्स- ये उन म्यूऑन्स को पकड़ता है जो उस समय बनते हैं जब कॉस्मिक रे हमारी धरती के वातावरण से टकराते हैं. म्यूऑन इतने छोटे होते हैं कि वे आराम से इंसानों और बंद इमारतों के भीतर जा सकते हैं. ऐसे ही चट्टानों या किसी सघन चीज के भीतर भी ये अपनी पहुंच बना सकते हैं. इस तकनीक के सहारे कोशिश होती है कि उन म्यूऑन की पहचान की जाए जो पिरामिड के अंदर मौजूद होंगे और फिर उनकी उर्जा मापी जा सके. इस आधार पर एक थ्री डी इमेज तैयार की जा सकती है और अंदर छिपे कमरों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है. बेंट पिरामिड का ही उदाहरण लीजिए तो रिसर्च करने वालों ने इसके अंदर एक करोड़ से ज्यादा म्यूऑन की पहचान की है.

 बेंट पिरामिड

वैज्ञानिकों की नजर गीजा के पिरामिड पर भी है. गौरतलब है कि ये दुनिया के सात अजुबों में शुमार है. माना जाता है कि इसका निर्माण करीब 2650 ईसा पूर्व के आसपास हुआ था.

देखिए ये वीडियो जो ताजा रिसर्च के आधार पर तैयार की गई है...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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