इसरो चीफ ए एस किरन कुमार ने बताया है कि भारत के नए रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के लिए वे एक नए इनोवेशन का इस्तेमाल करेंगे. ये होंगे, दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले लांच व्हीकल. उन्होंने स्पेस टेक्नोलॉजी की अहमियत का जिक्र करते हुए यह भी बताया कि करीब 1600 ऐसी टेक्नोलॉजी आज हमारे रोजमर्रा जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई हैं.
जैसे, मैगा पिक्सल कैमरा स्पेस फोटोग्राफी के लिए बनाया गया था, लेकिन अब मोबाइल में इस्तेमाल हो रहा है. इसी तरह शरीर की बारीकी से जांच के लिए इस्तेमाल होने वाली एमआरआई टेक्नीक को अपोलो मिशन में मून ऑब्जर्वेशन के लिए विकसित किया गया था.
रोजमर्रा की जिंदगी में...
1. पोर्टेबल वेक्यूम क्लीनर: स्पेसशिप के भीतर कोई सामान उठाने या सफाई के लिए सबसे पहले वैक्यूम क्लीनर डिजाइन किए गए थे.
2. सोलर पावर टेक्नोलॉजी: 1980 में नासा लैब में ही वे सिलिकॉन क्रिस्िटल तैयार किए गए, जिनका बाद में इस्तेमाल सोलर सेल बनाने में हुआ. अब दुनियाभर में कंपनियां इन्हीं सोलर सेल्स का इस्तेमाल सोलर पैनल में कर रही हैं, जिनसे सौर ऊर्जा को बिजली में बदला जाता है.
3. सैटेलाइट टेलीविजन: अमेरिका के टेलस्टार सैटेलाइट की बदौलत ही 10 जुलाई 1962 को पहली बार टीवी ट्रांसमिशन हुआ. वह दुनिया में एक्टिव कम्युनिकेशन सैटेलाइट टेलिकास्ट की शुरुआत थी.
4. फ्रोजन फूड: नासा ने ही सबसे पहले अपोलो मिशन के लिए फ्रीज ड्राइंग टेक्नोलॉजी विकसित की. जिसके तहत एक प्रोसेस के बाद खाना अपने मूल गुणों की तुलना में 98 प्रतिशत न्यूट्रिशनल वैल्यू और 80 फीसदी हलके वजन के साथ लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है. अब दुनिया में आम लोगों द्वारा भी फ्रोजन फूड खूब खरीदा जाता है.
5. टेफ्लॉन कोटेड फाइबर ग्लास: आजकर हर इमारत और छतों पर आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले लचीले टेफ्लॉन कोटेड फाइबर ग्लास मटेरियल को 1970...
इसरो चीफ ए एस किरन कुमार ने बताया है कि भारत के नए रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के लिए वे एक नए इनोवेशन का इस्तेमाल करेंगे. ये होंगे, दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले लांच व्हीकल. उन्होंने स्पेस टेक्नोलॉजी की अहमियत का जिक्र करते हुए यह भी बताया कि करीब 1600 ऐसी टेक्नोलॉजी आज हमारे रोजमर्रा जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई हैं.
जैसे, मैगा पिक्सल कैमरा स्पेस फोटोग्राफी के लिए बनाया गया था, लेकिन अब मोबाइल में इस्तेमाल हो रहा है. इसी तरह शरीर की बारीकी से जांच के लिए इस्तेमाल होने वाली एमआरआई टेक्नीक को अपोलो मिशन में मून ऑब्जर्वेशन के लिए विकसित किया गया था.
रोजमर्रा की जिंदगी में...
1. पोर्टेबल वेक्यूम क्लीनर: स्पेसशिप के भीतर कोई सामान उठाने या सफाई के लिए सबसे पहले वैक्यूम क्लीनर डिजाइन किए गए थे.
2. सोलर पावर टेक्नोलॉजी: 1980 में नासा लैब में ही वे सिलिकॉन क्रिस्िटल तैयार किए गए, जिनका बाद में इस्तेमाल सोलर सेल बनाने में हुआ. अब दुनियाभर में कंपनियां इन्हीं सोलर सेल्स का इस्तेमाल सोलर पैनल में कर रही हैं, जिनसे सौर ऊर्जा को बिजली में बदला जाता है.
3. सैटेलाइट टेलीविजन: अमेरिका के टेलस्टार सैटेलाइट की बदौलत ही 10 जुलाई 1962 को पहली बार टीवी ट्रांसमिशन हुआ. वह दुनिया में एक्टिव कम्युनिकेशन सैटेलाइट टेलिकास्ट की शुरुआत थी.
4. फ्रोजन फूड: नासा ने ही सबसे पहले अपोलो मिशन के लिए फ्रीज ड्राइंग टेक्नोलॉजी विकसित की. जिसके तहत एक प्रोसेस के बाद खाना अपने मूल गुणों की तुलना में 98 प्रतिशत न्यूट्रिशनल वैल्यू और 80 फीसदी हलके वजन के साथ लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है. अब दुनिया में आम लोगों द्वारा भी फ्रोजन फूड खूब खरीदा जाता है.
5. टेफ्लॉन कोटेड फाइबर ग्लास: आजकर हर इमारत और छतों पर आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले लचीले टेफ्लॉन कोटेड फाइबर ग्लास मटेरियल को 1970 में अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस सूट के लिए बनाया गया था.6. बेहतर ब्रेक्स: उच्च-तापमान वाले स्पेस मटेरियल की रिसर्च ने ही ब्रेक लाइनिंग को नया आयाम दिया है. इस मटेरियल का इस्तेमाल आजकल ट्रक ब्रेक्स, क्रेन, पैसेंजर कार में हो रहा है. इसने तेज स्पीड में ब्रेकिंग को बदलकर रख दिया है.
7. ज्यादा टिकाऊ टायर्स: दूसरे ग्रहों पर स्पेसशिप उतारने के लिए विकसित पैराशूट के मटेरियल ने टायर्स कंपनियों के लिए क्रांतिकारी बदलाव लाया. 1970 के बाद गुडइयर कंपनी ने सबसे पहले इस मटेरियल से टायर्स बनाए. जिन्होंने आम टायर्स के मुकाबले पांच गुना ज्यादा सफर तय किया.
स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी टेक्नोलॉजी...
8. पिल ट्रांसमीटर्स: अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर के तापमान और ब्लड प्रेशर को चेक करने के लिए पिल ट्रांसमीटर का परीक्षण किया जा रहा है. पिल की तरह दिखने वाले इस गैजेट का इस्तेमाल बाद में आम लोगों के लिए खासतौर पर गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत जानने के लिए किया जा सकेगा.
9. मरीजों के लिए लाइफ सपोर्ट: पहले अमेरिकी ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम प्रोजेक्ट मरक्यूरी (1959 से 1963) के लिए एक खास इनोवेशन हुआ. अंतरिक्ष यात्रियों की शारीरिक हलचल को मॉनिटर करने के लिए सिस्टम तैयार किया गया. उसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आज इंटेंसिव केयर युनिट और स्पेशलिस्ट हार्ट युनिट में किया जाता है.
10. लाइफ सेविंग हार्ट टेक्नोलॉजी: नासा के वायरलेस कंट्रोल डिवाइस विकसित करने के अभियान में एक अहम पड़ाव तब आया, जब उसी तकनीक को आधार बनाकर हार्ट पेसमेकर का विकास किया गया. बिना किसी सर्जरी के फिजिशियन हृदय में लगे पेसमेकर से रिमोट के जरिए कम्युनिकेट कर लेता है.
11. कृत्रिम हाथ-पैर: रोबोटिक टेक्नोलॉजी ने कृत्रिम अंग विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है. नासा ने फोम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए नए शॉक एब्जॉर्बर्स तैयार किए. लेकिन उसी टेक्नोलॉजी ने हलके, मजबूत और ज्यादा नेचुरल दिखने वाले कृत्रिम अंगों को बनाने का रास्ता साफ किया.
12. वॉइस कंट्रोल व्हीलचेयर: नासा की रोबोट वॉइस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी पर आज दुनिया में वॉइस कंट्रोल्ड व्हीलचेयर काम कर रही हैं. जिसमें लगे माइक्रो कंप्यूटर्स उस बैठे व्यक्ति की आवाज पहचानकर कमांड लेते हैं और उसके आधार पर काम करते हैं.
जीवन रक्षा में मददगार...
13. जंगल की आग पता लगाने का सिस्टम: नासा ने ही सबसे पहले वह सिस्टम तैयार किया, जिससे अंतरिक्ष यान में मामूली चिंगारी का पता तुरंत लगाया जा सके. अब उस सिस्टम का इस्तेमाल अमेरिका में जंगल की आग पता लगाने के लिए किया जाता है. इन्फ्रारेड टेक्नोलॉजी वाले इस सिस्टम से जंगल के किसी भी कोने में लगी मामूली आग का तुरंत पता चल जाता है.
14. फायरफाइटर के लिए सांस लेने वाला यंत्र: 1971 से पहले तक फाइरफाइटर आपात स्थिति के लिए जिस सांस लेने वाले साजोसामान को लेकर चलते थे, वह करीब 13 किलो वजनी था. नासा ने चार साल रिसर्च के बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए इससे एक तिहाई वजनी कृतिम सांस लेने वाला सिस्टम तैयार किया. जिसे आज फाइटर इस्तेमाल करते हैं.
15. जीवनरक्षक नाव: अपोलो प्रोग्राम के दौरान विकसित की गई रबर की नाव, जो 12 सेकंड में फूलकर तैयार हो जाती है, आज दुनिया के हर देश में इस्तेमाल होती है. खासतौर पर कोस्टगार्ड द्वारा.
खेलों में उपयोगी...
16. एअरकुशन ट्रेनिंग शूज: 80 के दशक में नासा के इंजीनियर फ्रेंक रूडी ने नाइकी कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ट्रेनिंग शूज बनाए, जिसमें जूते के तले में हवा के कुशन रखे गए. ताकि दौड़ते वक्त वे शॉक अब्जार्बर का काम करें. यही तकनीक बाद में नाइकी एयर कहलाई.
17. मैराथन धावकों के लिए ब्लैंकेट: 1964 में नासा ने प्लास्टिक की पतली शीट पर चांदी या सोने की कोटिंग से एक हीट रिफ्लैक्टर तैयार किया. इससे तैयार ब्लैंकेट को पहनने से शरीर की 80 फीसदी ऊर्जा भीतर ही रहती. इसका इस्तेमाल दुर्घटना में घायल व्यक्ति को गर्म रखने या मैराथन पूरी करने के बाद धावक अपने शरीर की ऊर्जा बचाने के लिए करते हैं.
18. ज्यादा बेहतर स्विमिंग सूट: प्रोफेशनल स्विमर्स आजकल जिस स्विम सूट को सबसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं, वह उसमें वही मटेरियल इस्तेमाल हुआ है जो स्पेस सूट में होता है. इसकी खासियत है चिकनापन, जो स्विमर का पानी से घर्षण कम करता है और उसके शरीर को एयरोडायनामिक बना देता है. ये स्विम सूट दूसरे ऐसे ही सूट से 10 से 15 फीसदी तेज है और जीत-हार का अंतर बन जाता है.
19. तेज रेसिंग कारें: एयरक्राफ्ट और स्पेसक्राफ्ट बनाने के लिए हलके पदार्थ के रूप में कार्बन फाइबर का अविष्कार 1960 में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने किया. ये ज्यादा मजबूत और हीट-रजिस्टेंट साबित हुआ. लेकिन इस बेहद हलके मटेरियल के बिना टेनिस रैकेट से लेकर फॉर्मूला वन रेसिंग कारों का निर्माण सोचा भी नहीं जा सकता.
20. हैंग ग्लाइडर्स: 1957 में नासा ने जैमिनी स्पेस कैप्सूल को सुरक्षित धरती पर उतारने के लिए कई तरह के विंग का परीक्षण किया. इन हलके, आसान डिजाइन वाले और स्पेसक्राफ्ट की गति का धीमे करने वाले विंग ने एडवेंचर स्पोर्ट्स के शौकीनों को अपनी ओर खींचा. और हैंग ग्लाइडर अस्तित्व में आया.
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