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धरती पर एक 'एलियन' और नासा की दिलचस्पी...

    • आईचौक
    • Updated: 04 मार्च, 2016 08:17 PM
  • 04 मार्च, 2016 08:17 PM
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स्कॉट केली जब 340 दिन अंतरिक्ष में बिता कर धरती पर लौटे हैं तो नासा के वैज्ञानिकों के लिए वे किसी 'एलियन' की तरह ही हैं. उनके अनुभव से लेकर शरीर में आए बदलाव के बारे में सारी जानकारी हासिल करने की कवायद शुरू हो चुकी है.

धरती पर रहते हुए हम अपनी पूरी जिंदगी में जितनी रेडिएशन झेलते होंगे, स्कॉट केली के खाते में इससे कहीं ज्यादा केवल 340 दिनों में आ गए. ऊपर से इतने दिन बिना नहाए गुजारना. ये एक एस्ट्रॉनॉट की जिंदगी है. 340 दिन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में बिता कर धरती पर लौटने वाले केली पिछले कुछ दिनों से खासे चर्चा में हैं. अमेरिका में तो रातों-रात वे किसी स्टार की तरह उभरे हैं. बराक ओबामा तक ने उन्हें फोन कर बधाई दी. हो भी क्यों न! स्पेस में इतना लंबा समय बिताने वाले वह पहले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं.

केली वैसे अकेले नहीं आए. उनके साथ 340 दिन अंतरिक्ष में बिताने वाले रूस के मिखाइल कोर्नियेंको भी सही-सलामत धरती पर वापस आए. जाहिर है, स्पेस में 340 दिन बिताने वाले केली अब नासा के वैज्ञानिकों के लिए तो किसी 'एलियन' की तरह ही हैं जो लंबे समय बाद धरती पर आया है. इसलिए केली को लेकर वैज्ञानिकों में खासी रूची है. करीब एक साल धरती से दूर रहने के बाद उनके शरीर पर क्या प्रभाव पड़ा है. इस बारे में जानने को लेकर वैज्ञानिक की कोशिश जारी है और कई चौंकाने वाली बातें सामने भी आईं हैं.

केली की हाइट बढ़ गई!

नासा के अनुसार केली अब अपने भाई से दो इंच लंबे हो गए हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि स्पेस में भारहीनता के कारण केली की रीढ़ की हड्डी बढ़ी है. धरती पर समय बिताने के साथ धीरे-धीरे यह हाइट घट जाएगी. केली का एक जुड़वा भाई भी है. इसलिए वैज्ञानिकों को लगता है कि दो जुड़वा भाई, जो दो अलग-अलग वातावरण में रह चुके हैं, उनके बीच के फर्क को समझने का यह सबसे बेहतर मौका है और इससे कई अहम जानकारी मिलेगी.

...और भी कई बदलाव

वैसे, अंतरिक्ष विज्ञानी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि स्पेस में लंबा समय बिताने के बाद शरीर में कई बदलाव होते हैं. मसलन, वहां गुरुत्वाकर्षण की कमी और भारहीनता के कारण मांसपेशियां और हड्डियां बेहद कमजोर हो जाती हैं. इस कारण धरती पर आने के बाद खड़ा होना ही मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा...

धरती पर रहते हुए हम अपनी पूरी जिंदगी में जितनी रेडिएशन झेलते होंगे, स्कॉट केली के खाते में इससे कहीं ज्यादा केवल 340 दिनों में आ गए. ऊपर से इतने दिन बिना नहाए गुजारना. ये एक एस्ट्रॉनॉट की जिंदगी है. 340 दिन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में बिता कर धरती पर लौटने वाले केली पिछले कुछ दिनों से खासे चर्चा में हैं. अमेरिका में तो रातों-रात वे किसी स्टार की तरह उभरे हैं. बराक ओबामा तक ने उन्हें फोन कर बधाई दी. हो भी क्यों न! स्पेस में इतना लंबा समय बिताने वाले वह पहले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं.

केली वैसे अकेले नहीं आए. उनके साथ 340 दिन अंतरिक्ष में बिताने वाले रूस के मिखाइल कोर्नियेंको भी सही-सलामत धरती पर वापस आए. जाहिर है, स्पेस में 340 दिन बिताने वाले केली अब नासा के वैज्ञानिकों के लिए तो किसी 'एलियन' की तरह ही हैं जो लंबे समय बाद धरती पर आया है. इसलिए केली को लेकर वैज्ञानिकों में खासी रूची है. करीब एक साल धरती से दूर रहने के बाद उनके शरीर पर क्या प्रभाव पड़ा है. इस बारे में जानने को लेकर वैज्ञानिक की कोशिश जारी है और कई चौंकाने वाली बातें सामने भी आईं हैं.

केली की हाइट बढ़ गई!

नासा के अनुसार केली अब अपने भाई से दो इंच लंबे हो गए हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि स्पेस में भारहीनता के कारण केली की रीढ़ की हड्डी बढ़ी है. धरती पर समय बिताने के साथ धीरे-धीरे यह हाइट घट जाएगी. केली का एक जुड़वा भाई भी है. इसलिए वैज्ञानिकों को लगता है कि दो जुड़वा भाई, जो दो अलग-अलग वातावरण में रह चुके हैं, उनके बीच के फर्क को समझने का यह सबसे बेहतर मौका है और इससे कई अहम जानकारी मिलेगी.

...और भी कई बदलाव

वैसे, अंतरिक्ष विज्ञानी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि स्पेस में लंबा समय बिताने के बाद शरीर में कई बदलाव होते हैं. मसलन, वहां गुरुत्वाकर्षण की कमी और भारहीनता के कारण मांसपेशियां और हड्डियां बेहद कमजोर हो जाती हैं. इस कारण धरती पर आने के बाद खड़ा होना ही मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा अंतरिक्ष में लंबा वक्त बिताने के कारण शरीर के ऊपरी हिस्से में खून का बहाव ज्यादा बढ़ जाता है. नतीजतन, सिर फूल जाना आम है. ऊपरी हिस्से में खून पहुंचाने के लिए ह्दय को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और इसलिए ये भी सिकुड़ जाता है. और इसके अपने दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.

निश्चित रूप से एक अंतरिक्षयात्री की दुनिया जितनी रोमांचक लगती है. उसकी चुनौतियां इस मुकाबले कहीं ज्यादा हैं. जान का खतरा है सो अलग. लेकिन फिर भी ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का इंसानी जुनून भला कहां खत्म होने वाला है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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