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ओलंपिक के ये दो भावुक वीडियो बता रहे हैं हार मत मानिए

    • आईचौक
    • Updated: 05 अगस्त, 2016 08:18 PM
  • 05 अगस्त, 2016 08:18 PM
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हम में से कई लोग अक्सर जब भी खेलों की बात करते हैं तो उसे केवल हार या जीत की निगाह से देखने की भूल कर बैठेते हैं. हम भूल जाते हैं कि खेलों का असल मकसद उससे कहीं और आगे है...

ओलंपिक को खेलों का महाकुंभ केवल इसलिए नहीं कहा जाता कि इसमें दुनिया भर के एथलीटों और खिलाड़ियों की भीड़ जमा हो जाती है. ओलंपिक का महत्व, इसका लक्ष्य और इसकी व्यापकता कही ज्यादा विशाल है. राजनैतिक से लेकर सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी ओलंपिक खेलों ने समय-समय पर कई ऐसे उदाहरण पेश किए हैं जो इस इवेंट को बड़ा बना देते हैं.

फिर चाहे 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में अफ्रीकी-अमेरिकी धावक जेसे ओवेंस द्वारा चार स्वर्ण पदक जीतने और हिटलर द्वारा उनसे हाथ न मिलाने की घटना हो या फिर 1968 के मेक्सिको ओलंपिक की वो मशहूर घटना जब दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के साथ हो रहे नाइंसाफी के खिलाफ पोडियम पर दो अश्वेत अमेरिकी एथलीटों ने आवाज बुलंद की.

 मेक्सिको ओलंपिक में जब उठी रंगभेद के खिलाफ आवाज

यही नहीं, हम में से कई लोग अक्सर जब भी खेलों की बात करते हैं तो उसे केवल हार या जीत की निगाह से देखने की भूल कर बैठेते हैं. कौन हारा...कौन जीता, किसने अपने प्रतिद्वंद्वी को करारा जवाब दिया, किसने किसे रेस में पीछे छोड़ा, हमारी बातचीत यहीं आकर खत्म हो जाती है. हम भूल जाते हैं कि खेलों का असल मकसद उससे कहीं और आगे है. देखिए, ये वीडियो जो बता रहे हैं कि खेलों का एक मकसद हमें ये सिखाना भी है कि कभी हार नहीं मानो...कभी हताश नहीं हो.

यह भी पढ़ें- भूंकप से ओलंपिक तक: एक 13 साल की लड़की का लाजवाब सफर!

लॉस एंजेलिस में 1984 में हुए ओलंपिक गेम्स के दौरान स्विटजरलैंड की गैब्रिएला...

ओलंपिक को खेलों का महाकुंभ केवल इसलिए नहीं कहा जाता कि इसमें दुनिया भर के एथलीटों और खिलाड़ियों की भीड़ जमा हो जाती है. ओलंपिक का महत्व, इसका लक्ष्य और इसकी व्यापकता कही ज्यादा विशाल है. राजनैतिक से लेकर सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी ओलंपिक खेलों ने समय-समय पर कई ऐसे उदाहरण पेश किए हैं जो इस इवेंट को बड़ा बना देते हैं.

फिर चाहे 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में अफ्रीकी-अमेरिकी धावक जेसे ओवेंस द्वारा चार स्वर्ण पदक जीतने और हिटलर द्वारा उनसे हाथ न मिलाने की घटना हो या फिर 1968 के मेक्सिको ओलंपिक की वो मशहूर घटना जब दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के साथ हो रहे नाइंसाफी के खिलाफ पोडियम पर दो अश्वेत अमेरिकी एथलीटों ने आवाज बुलंद की.

 मेक्सिको ओलंपिक में जब उठी रंगभेद के खिलाफ आवाज

यही नहीं, हम में से कई लोग अक्सर जब भी खेलों की बात करते हैं तो उसे केवल हार या जीत की निगाह से देखने की भूल कर बैठेते हैं. कौन हारा...कौन जीता, किसने अपने प्रतिद्वंद्वी को करारा जवाब दिया, किसने किसे रेस में पीछे छोड़ा, हमारी बातचीत यहीं आकर खत्म हो जाती है. हम भूल जाते हैं कि खेलों का असल मकसद उससे कहीं और आगे है. देखिए, ये वीडियो जो बता रहे हैं कि खेलों का एक मकसद हमें ये सिखाना भी है कि कभी हार नहीं मानो...कभी हताश नहीं हो.

यह भी पढ़ें- भूंकप से ओलंपिक तक: एक 13 साल की लड़की का लाजवाब सफर!

लॉस एंजेलिस में 1984 में हुए ओलंपिक गेम्स के दौरान स्विटजरलैंड की गैब्रिएला एंडरसन..

जब 1992 के बार्सिलोन ओलंपिक में बीच ट्रैक पर क्रैंप आ जाने के बावजूद रेस पूरी की थी ब्रिटिश धावक डेरेक रेडमॉन्ड ने

यह भी पढ़ें- एक महिला एथलीट का 5 साल पुराना ट्वीट अब हुआ वायरल



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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