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पाकिस्तान सुपर लीग नहीं, ओसामा लीग देगा शोहरत

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 29 अप्रिल, 2016 04:16 PM
  • 29 अप्रिल, 2016 04:16 PM
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पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी चुनौती संगीत, कला, फिल्म और खेल से इस्लाम, जेहाद और आतंकवाद को बाहर रखने की है. हालांकि उसकी कोशिश यही रही है कि कैसे आतंकवाद पाकिस्तान में मजबूत जड़ें जमाकर दुनियाभर में अपना विस्तार कर सके.

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की तर्ज पर पाकिस्तान में टी20 क्रिकेट के लिए पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) तैयार है. इस साल फरवरी में पहला टूर्नामेंट दुबई और शारजाह में कराया जा चुका है, जिसमें इस्लामाबाद युनाइटेड ने क्वेटा ग्लैडिएटर्स को फाइनल मुकाबले में मात दे दी है. इन दोनों के अलावा टूर्नामेंट में 3 अन्य टीम लाहौर कलंदर, पेशावर जल्मी और कराची किंग्स ने हिस्सा लिया. यह समझना जरूरी नहीं है कि(सुरक्षा कारणों से) पीएसएल का पहला टूर्नामेंट कराने के लिए क्यों पाकिस्तान की जगह दुबई और शारजाह को चुना. हालांकि पीएसएल मैनेजमेंट का दावा है कि अगले साल से इस टूर्नामेंट को पाकिस्तान लाने की कोशिश की जाएगी और बतौर नई फ्रैंचाइजी कश्मीर की एक टीम को न्यौता दिया जाएगा.

पीएसएल की ही तर्ज पर 1 महीने से ज्यादा समय तक कश्मीर में भी एक टी20 टूर्नामेंट कराया गया जिसमें 16 स्थानीय टीमों ने हिस्सा लिया. लेकिन शारजाह और दुबई में हुए पीएसएल से एक बात कश्मीर के टूर्नामेंट में बिलकुल जुदा थी. पहला, यहां टूर्नामेंट का आयोजन हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी खालिद मुज्जफर वानी की याद में रखा गया और इसमें शामिल 16 टीमों में कम से कम तीन टीमों ने अपना नाम किसी न किसी आतंकवादी के ऊपर ही रखा. बुरहान लॉयन्स, आबिद खान कलंदर्स और खालिद आर्यन्स. कश्मीर के ट्राल क्षेत्र में कराए गए इस टूर्नामेंट पर फिलहाल राज्य सरकार और सेना ने नजर नहीं रखी और इसे महज खेल भावना के तौर पर देखते हुए नजरअंदाज कर दिया.

क्रिकेट तो हर जगह व्याप्त है... ओसामा बिन लादेन का एबटाबाद कंपाउंड ही क्यों न हो.

यह टूर्नामेंट खालिद मुजफ्फर वानी की याद में रखा गया था जो कि मौजूदा हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर...

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की तर्ज पर पाकिस्तान में टी20 क्रिकेट के लिए पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) तैयार है. इस साल फरवरी में पहला टूर्नामेंट दुबई और शारजाह में कराया जा चुका है, जिसमें इस्लामाबाद युनाइटेड ने क्वेटा ग्लैडिएटर्स को फाइनल मुकाबले में मात दे दी है. इन दोनों के अलावा टूर्नामेंट में 3 अन्य टीम लाहौर कलंदर, पेशावर जल्मी और कराची किंग्स ने हिस्सा लिया. यह समझना जरूरी नहीं है कि(सुरक्षा कारणों से) पीएसएल का पहला टूर्नामेंट कराने के लिए क्यों पाकिस्तान की जगह दुबई और शारजाह को चुना. हालांकि पीएसएल मैनेजमेंट का दावा है कि अगले साल से इस टूर्नामेंट को पाकिस्तान लाने की कोशिश की जाएगी और बतौर नई फ्रैंचाइजी कश्मीर की एक टीम को न्यौता दिया जाएगा.

पीएसएल की ही तर्ज पर 1 महीने से ज्यादा समय तक कश्मीर में भी एक टी20 टूर्नामेंट कराया गया जिसमें 16 स्थानीय टीमों ने हिस्सा लिया. लेकिन शारजाह और दुबई में हुए पीएसएल से एक बात कश्मीर के टूर्नामेंट में बिलकुल जुदा थी. पहला, यहां टूर्नामेंट का आयोजन हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी खालिद मुज्जफर वानी की याद में रखा गया और इसमें शामिल 16 टीमों में कम से कम तीन टीमों ने अपना नाम किसी न किसी आतंकवादी के ऊपर ही रखा. बुरहान लॉयन्स, आबिद खान कलंदर्स और खालिद आर्यन्स. कश्मीर के ट्राल क्षेत्र में कराए गए इस टूर्नामेंट पर फिलहाल राज्य सरकार और सेना ने नजर नहीं रखी और इसे महज खेल भावना के तौर पर देखते हुए नजरअंदाज कर दिया.

क्रिकेट तो हर जगह व्याप्त है... ओसामा बिन लादेन का एबटाबाद कंपाउंड ही क्यों न हो.

यह टूर्नामेंट खालिद मुजफ्फर वानी की याद में रखा गया था जो कि मौजूदा हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान मुजफ्फर वानी का भाई था और उसे सुरक्षा बलों ने उस वक्त मार गिराया था जब वह पुलवामा के जंगलों में मुजाहिद के बैस कैंप जा रहा था. बुरहान लॉयन्स टीम का नाम बुरहान नाम के एक कश्मीरी लड़के पर रखा गया जो 2010 में हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया था. कश्मीर घाटी में आज बुरहान आतंकवाद का सबसे घिनौना चेहरा है जिसका इस्तेमाल आतंकी संगठन युवाओं को खींचने के लिए करते हैं. आबिद खान कलंदर टीम का नाम हिजबुल कमांडर आबिद खान पर रखा गया घाटी में जिसकी ख्याति सेना के एक कर्नल को मार गिराने की है. सुरक्षा बलों ने 2014 में एक मुठभेड़ के दौरान आबिद को मौत के घाट उतार दिया था. खालिद आर्यन्स टीम का नाम बुरहान के भाई के नाम पर रखा गया और इसी टीम ने इस टूर्नामेंट में जीत की ट्रॉफी अपने कब्जे में की.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी चुनौती संगीत, कला, फिल्म और खेल जैसे उपक्रमों से इस्लाम और जेहाद के साथ-साथ आतंकवाद को बाहर रखने की है. इसी चुनौती के चलते उसे पीएसएल का पहला टूर्नामेंट पाकिस्तान की जनता से दूर शारजाह और दुबई में कराना पड़ा. खैर यह चुनौती तो पाकिस्तान से अपेक्षित चुनौती है, हकीकत यही है कि बीते कई दशकों में पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा देने का कोई मौका नहीं छोड़ा है. मौका चाहे एनआईटी श्रीनगर में शिक्षा के माहौल को खराब करने की हो या फिर राजधानी दिल्ली में कश्मीरी छात्रों के नाम पर अलगाववाद और आतंकवाद की बिहास बिछाने पर हो, पाकिस्तान हमेशा ऐसे मौकों को इस्लामिक जेहाद से जोड़ने में तत्पर रहा है. यही कारण है कि पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की आवाज उठाने वालों और दूसरे धर्मों के अधिकार की वकालत करने वालों को गोलियों से भून दिया जाता है.

ऐसे में पाकिस्तान से क्रिकेट को शांति का प्रतीक रहने देने की उम्मीद करना बेवकूफी ही होगी. जिस तरह से पाकिस्तान ने अपनी पीएसएल में दुबई और कतर से निवेश लेकर विदेशी फ्रैंचाइजी खड़ी की है और अब वह कश्मीर से टीम को फ्रैंचाइजी देने की बात कर रहा है, जाहिर है कि उसके मंसूबे क्रिकेट से कहीं ज्यादा जुदा हैं. अगर पाकिस्तान का इरादा शांति के इस खेल को आतंकवाद की चादर में लपेटने का ही है तो उसे सबसे पहले इस खेल को शारजाह से निकाल कर एबटाबाद लाने की है. इसके लिए पाकिस्तान सुपर लीग का नाम बदलकर ओसामा बिन लादेन लीग कर दे. ऐसा करने से न सिर्फ उसकी फंडिग की समस्या खत्म हो सकती है बल्कि दुनियाभर में अपनी लीग के लिए शोहरत बटोरने का भी मौका मिल सकता है. क्या पता एक फ्रैंचाइजी के लिए दावेदारी आईएसआईएस से भी मिल जाए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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