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'अंडरवर्ल्ड' से ज्‍यादा कुछ नहीं है पाकिस्तानी क्रिकेट

    • विनीत कुमार
    • Updated: 02 जनवरी, 2016 05:00 PM
  • 02 जनवरी, 2016 05:00 PM
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तमाम बेइज्‍जती सहने के बावजूद पाकिस्‍तानी खिलाड़ी पैसा कमाने के लिए किसी अपराधी की तरह बर्ताव करने से बाज नहीं आते. उनके बीच खेमेबाजी किसी अंडरवर्ल्‍ड गैंग की तरह है. आरोप प्रत्‍यारोप के जरिए गैंग वॉर चलता ही रहता है.

14 टेस्ट मैचों में 51 विकेट, 15 वनडे मैचों में 25 और फिर 18 टी20 मैचों में 23 विकेट. पाकिस्तानी तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर की एंट्री इंटरनेशनल क्रिकेट में किसी सनसनी की तरह ही थी. लेकिन महज 18 साल की उम्र में लग गया मैच फिक्सिंग का दाग. लेकिन आमिर भाग्यशाली निकले. 'जुवेनाइल' होने के कारण किस्मत ने उनका साथ दिया. तमाम विरोध के बावजूद उन्हें न्यूजीलैंड दौरे के लिए वनडे और टी-20 टीम में चुन लिया गया है.

जाहिर है आमिर पर खुद को साबित करने का बड़ा दबाव होगा. और दबाव इसका भी कि उनके हर कदम पर लोगों की नजर होगी. लेकिन सवाल है कि आमिर क्यों और कैसे फंसे. वे यह सब करने तो क्रिकेट में नहीं आए थे. 18 साल की उम्र में पैसा कमाना एक चाहत रही होगी लेकिन इस उम्र में एक खिलाड़ी के लिए तो उससे ज्यादा नाम और शोहरत महत्व रखता है. फिर आमिर कैसे मैच फिक्सर्स के संपर्क में आ गए?

आमिर को 2010 में इंग्लैंड दौरे पर स्पॉट फिक्सिंग का दोषी पाया गया था. आमिर के साथ-साथ मोहम्मद आसिफ और तब पाकिस्तानी टीम के कप्तान सलमान बट्ट भी फिक्सिंग के दोषी पाए गए. इसके बाद ICC ने आमिर पर पांच, आसिफ पर सात और बट्ट पर 10 साल का बैन लगाया. हालांकि बट्ट के बैन में पांच और आसिफ के बैन में दो साल की कमी कर दी गई. इंग्लैंड में सुनवाई के दौरान आमिर की कम उम्र का उन्हें फायदा मिला. जज ने तब अपने फैसले में कहा भी था, 'दूसरे आरोपियों के मुकाबले आप एक छोटे से गांव से आते हैं और मासूम हैं. फिक्सिंग के वक्त आप केवल 18 साल के थे. मुझे मालूम है कि आप अपने कप्तान के मुकाबले कम दोषी हैं जिन्होंने आपको इसके लिए प्रेरित किया.'

पाकिस्तान टीम का 'अंडरवर्ल्ड'

पाकिस्तान के खिलाड़ी अगर बार-बार फिक्सरों के जाल में फंसते हैं तो इसका एक बड़ा कारण पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) की विफलता है. दरअसल, पीसीबी मैच फिक्सिंग की बीमारी को जड़ से उखाड़ने में कभी सफल ही नहीं हो सका. 90 के दशक में पहली बार जब पाकिस्तान क्रिकेट में फिक्सिंग की बात सामने आई थी तब न्यायिक...

14 टेस्ट मैचों में 51 विकेट, 15 वनडे मैचों में 25 और फिर 18 टी20 मैचों में 23 विकेट. पाकिस्तानी तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर की एंट्री इंटरनेशनल क्रिकेट में किसी सनसनी की तरह ही थी. लेकिन महज 18 साल की उम्र में लग गया मैच फिक्सिंग का दाग. लेकिन आमिर भाग्यशाली निकले. 'जुवेनाइल' होने के कारण किस्मत ने उनका साथ दिया. तमाम विरोध के बावजूद उन्हें न्यूजीलैंड दौरे के लिए वनडे और टी-20 टीम में चुन लिया गया है.

जाहिर है आमिर पर खुद को साबित करने का बड़ा दबाव होगा. और दबाव इसका भी कि उनके हर कदम पर लोगों की नजर होगी. लेकिन सवाल है कि आमिर क्यों और कैसे फंसे. वे यह सब करने तो क्रिकेट में नहीं आए थे. 18 साल की उम्र में पैसा कमाना एक चाहत रही होगी लेकिन इस उम्र में एक खिलाड़ी के लिए तो उससे ज्यादा नाम और शोहरत महत्व रखता है. फिर आमिर कैसे मैच फिक्सर्स के संपर्क में आ गए?

आमिर को 2010 में इंग्लैंड दौरे पर स्पॉट फिक्सिंग का दोषी पाया गया था. आमिर के साथ-साथ मोहम्मद आसिफ और तब पाकिस्तानी टीम के कप्तान सलमान बट्ट भी फिक्सिंग के दोषी पाए गए. इसके बाद ICC ने आमिर पर पांच, आसिफ पर सात और बट्ट पर 10 साल का बैन लगाया. हालांकि बट्ट के बैन में पांच और आसिफ के बैन में दो साल की कमी कर दी गई. इंग्लैंड में सुनवाई के दौरान आमिर की कम उम्र का उन्हें फायदा मिला. जज ने तब अपने फैसले में कहा भी था, 'दूसरे आरोपियों के मुकाबले आप एक छोटे से गांव से आते हैं और मासूम हैं. फिक्सिंग के वक्त आप केवल 18 साल के थे. मुझे मालूम है कि आप अपने कप्तान के मुकाबले कम दोषी हैं जिन्होंने आपको इसके लिए प्रेरित किया.'

पाकिस्तान टीम का 'अंडरवर्ल्ड'

पाकिस्तान के खिलाड़ी अगर बार-बार फिक्सरों के जाल में फंसते हैं तो इसका एक बड़ा कारण पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) की विफलता है. दरअसल, पीसीबी मैच फिक्सिंग की बीमारी को जड़ से उखाड़ने में कभी सफल ही नहीं हो सका. 90 के दशक में पहली बार जब पाकिस्तान क्रिकेट में फिक्सिंग की बात सामने आई थी तब न्यायिक जांच कमेटी ने सलीम मलिक और अता-उर-रहमान पर जिदंगी भर के लिए बैन लगाने की सिफारिश की. दोनो बैन भी हुए. साथ ही पांच अन्य खिलाड़ियों पर जांच में सहयोग नहीं देने के लिए जुर्माना लगाने की भी बात कही गई. और संयोग देखिए, उन्हीं में से दो वकार यूनिस और मुश्ताक अहमद आज पाकिस्तानी टीम में बतौर कोच अच्छे पैसे कमा रहे हैं. इन दोनों ने तब जांच में सहयोग क्यों नहीं किया, ये सवाल आज भी बना हुआ है.

2000 में अता-उर-रहमान ने न्यायिक जांच के सामने एक लिखित शपथपत्र दायर कर, तीन बड़े खिलाड़ियों पर उन्हें न्यूजीलैंड के खिलाफ एक मैच में खराब गेंदबाजी करने के बदले पैसे देने की पेशकश का आरोप लगाया था. हलफनामे में लिखा था कि उन्हें तीन ओवरों के दौरान कमजोर गेंदबाजी करने के बदले तीन लाख पाकिस्तानी रुपयों की पेशकश की गई थी. रहमान के अनुसार उन्हें ये राशि दी गई थी और बाद में अगले मैच में फिर उनसे कमजोर गेंदबाजी करने को कहा गया लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, जिस पर टीम के एक सीनियर खिलाड़ी ने उनसे मारपीट की. यह कहानियां अपने आप में पाकिस्तान क्रिकेट की सच्चाई दिखाती हैं.

इसके उलट भारत और दक्षिण अफ्रीका में भी तब फिक्सिंग की बात सामने आई. लेकिन यहां क्रिकेट प्रशासकों ने कठोर कदम उठाते हुए कुछ खिलाड़ियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की. जबकि पाकिस्तान सुस्त ही रहा. नतीजा ये कि टीम में आज भी हमेशा गुटबाजी की खबरें आती रहती हैं. तभी तो किसी टीवी बहस में मोहम्मद यूसुफ और रमीज राजा एक-दूसरे से भिड़ जाते हैं तो कहीं शोएब अख्तर सारी सीमा तोड़ शाहिद अफरीदी की आलोचना करते हैं. यह पाकिस्तान क्रिकेट में ही होता आया है.

यह भी पढ़ें- कॉमेडी सर्कस की तरह पाकिस्तानी क्रिकेटरों की बहस

आमिर की वापसी पर सवाल

आमिर की इंटरनेशनल क्रिकेट में दोबारा मौका देना सही है या नहीं, इसे लेकर बहस चल रही है. आमिर ऐसे ही वापसी करने में कामयाब नहीं रहे. पहले जेल की सजा और फिर सुधार की प्रक्रिया के बाद आमिर ने पाकिस्तान के घरेलू क्रिकेट और फिर बांग्लादेश प्रीमियर लीग (बीपीएल) में अपने अच्छे प्रदर्शन से प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे. ICC उन्हें लेकर हरी झंडी दिखा चुका है. लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान में उनकी वापसी पर खूब बवाल मचा.

पिछले हफ्ते आमिर जब लाहौर के नेशनल कैंप में पहुंचे तो पाकिस्तान के वनडे टीम के कप्तान अजहर अली और मोहम्मद हफीज ने इसमें हिस्सा लेने से ही मना कर दिया. अजहर ने तो इस्तीफा तक देने की कोशिश की लेकिन बाद में मान गए. लेकिन मसला यहीं खत्म नहीं होता. फिर तो सलमान बट्ट और मोहम्मद आसिफ की वापसी की भी बात होगी और क्या ऐसे नरम रवैये से मैच फिक्सिंग को खत्म किया जा सकता है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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