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श्रीकांत की जीत ने हमें बताया कि क्रिकेट के देश में बैडमिंटन पर बात संभव है

    • आईचौक
    • Updated: 26 जून, 2017 09:16 PM
  • 26 जून, 2017 09:16 PM
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भारत के किदांबी श्रीकांत ने ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज जीत ली है. श्रीकांत ने फाइनल में चीन के चेन लोंग को 22-20, 21-16 से हराया है.

हम भारतीय बड़े भोले हैं यूं तो हम सुध बुध खोकर अपनी ही धुन में पड़े रहते हैं मगर जैसे ही हल्ला होता है हम जाग जाते हैं और आंख मलते हुए हल्ला कर रही भीड़ के पीछे भागना शुरू कर देते हैं. उस दौरान अगर कोई गलती से भी हमसे ये पूछ ले कि 'भई हमारा तो ठीक है मगर तुम क्यों भाग रहे हो' तो इस पर हम चुप हो जाते हैं और अपनी बगलें झांकने लग जाते हैं.

हमारे बारे में ये कहना बिल्कुल भी गलत न होगा कि हम ट्रेंड सेटर तो नहीं हां मगर ट्रेंड को फॉलो करने वाले जरूर हैं. मसलन अगर क्रिकेट ट्रेंड में है तो हम क्रिकेट के बन कर रह जाते हैं. अगर हॉकी का दौर हुआ तो हम जय हॉकी, जय मेजर ध्यानचंद के नारे लगाकर खुश हो जाते हैं.

इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है बात अभी कुछ दिन पूर्व की है हम आईसीसी चैंपियंस ट्राफी में पाकिस्तान से हार चुके थे मगर हमने हॉकी में पाकिस्तान को और बैडमिंटन में जापान को हरा दिया था और उस दिन क्रिकेट में हार के जख्म पर हॉकी और बैडमिंटन में मिली जीत ने मरहम का काम किया था.

वाह श्रीकांत तुमने तो हमारा नाम रौशन कर दिया

उस दिन हमने क्रिकेट की फजीहत करते हुए हॉकी और बैडमिंटन को गले से लगाया था. इसके पीछे की वजह पर नजर डालें तो मिलता है कि इसके पीछे मुद्दे का ट्रेंड होना एक बड़ी वजह थी. आज ट्रेंड खत्म हो चुका है हम वापस अपने रूटीन जीवन में आ गए हैं. मगर आज भी हमारे पास खुश होने की एक वजह है जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया. खबर है कि भारत के किदांबी श्रीकांत ने ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज जीत ली है. श्रीकांत ने फाइनल में चीन के चेन लोंग को 22-20, 21-16 से हराया है.

वर्तमान परिपेक्ष में कहें तो एक ऐसे देश में जहाँ लोग सिर्फ क्रिकेट को पूजते हैं वहां बैडमिंटन जैसे खेल पर चर्चा अपने आप में समय की बर्बादी है. मगर फिर भी, ये जानते हुए भी...

हम भारतीय बड़े भोले हैं यूं तो हम सुध बुध खोकर अपनी ही धुन में पड़े रहते हैं मगर जैसे ही हल्ला होता है हम जाग जाते हैं और आंख मलते हुए हल्ला कर रही भीड़ के पीछे भागना शुरू कर देते हैं. उस दौरान अगर कोई गलती से भी हमसे ये पूछ ले कि 'भई हमारा तो ठीक है मगर तुम क्यों भाग रहे हो' तो इस पर हम चुप हो जाते हैं और अपनी बगलें झांकने लग जाते हैं.

हमारे बारे में ये कहना बिल्कुल भी गलत न होगा कि हम ट्रेंड सेटर तो नहीं हां मगर ट्रेंड को फॉलो करने वाले जरूर हैं. मसलन अगर क्रिकेट ट्रेंड में है तो हम क्रिकेट के बन कर रह जाते हैं. अगर हॉकी का दौर हुआ तो हम जय हॉकी, जय मेजर ध्यानचंद के नारे लगाकर खुश हो जाते हैं.

इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है बात अभी कुछ दिन पूर्व की है हम आईसीसी चैंपियंस ट्राफी में पाकिस्तान से हार चुके थे मगर हमने हॉकी में पाकिस्तान को और बैडमिंटन में जापान को हरा दिया था और उस दिन क्रिकेट में हार के जख्म पर हॉकी और बैडमिंटन में मिली जीत ने मरहम का काम किया था.

वाह श्रीकांत तुमने तो हमारा नाम रौशन कर दिया

उस दिन हमने क्रिकेट की फजीहत करते हुए हॉकी और बैडमिंटन को गले से लगाया था. इसके पीछे की वजह पर नजर डालें तो मिलता है कि इसके पीछे मुद्दे का ट्रेंड होना एक बड़ी वजह थी. आज ट्रेंड खत्म हो चुका है हम वापस अपने रूटीन जीवन में आ गए हैं. मगर आज भी हमारे पास खुश होने की एक वजह है जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया. खबर है कि भारत के किदांबी श्रीकांत ने ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज जीत ली है. श्रीकांत ने फाइनल में चीन के चेन लोंग को 22-20, 21-16 से हराया है.

वर्तमान परिपेक्ष में कहें तो एक ऐसे देश में जहाँ लोग सिर्फ क्रिकेट को पूजते हैं वहां बैडमिंटन जैसे खेल पर चर्चा अपने आप में समय की बर्बादी है. मगर फिर भी, ये जानते हुए भी हम इसपर बात करना जरूरी समझते हैं. कहा जा सकता है कि आज के इस मौजूदा दौर में हमारे लिए खेल जरूरी नहीं है बल्कि उसके पीछे छिपा ग्लैमर जरूरी है. साथ ही हम खेल को तवज्जो तब ही देते हैं जब उसे बराबर का ग्लैमर मिल रहा हो. जिसदिन हमें लगता है कि खेल को ग्लैमर मिलना बंद हो गया हम उस खेल से किनाराकशी कर लेते हैं.

अंत में यही कहा जा सकता है कि हमें ग्लैमर के मुकाबले खेल को देखना चाहिए और उसकी तारीफ करनी चाहिए. ग्लैमर तो क्षणिक है खेल पहले भी था और आगे भी रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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