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शर्म कीजिए, हमारे पास अपने एथलीट्स को देने के लिए पानी भी नहीं है....

    • विनीत कुमार
    • Updated: 22 अगस्त, 2016 08:22 PM
  • 22 अगस्त, 2016 08:22 PM
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तैयारियों और इवेंट्स के दौरान हमारे खिलाड़ी, हमारे एथलीट, हमारे कोच किन परिस्थितियों से गुजरते हैं, इसक एक नमूना महिला मैराथन रनर ओपी जायशा ने पेश कर दिया है. पढ़िए, फिर सवाल पूछिएगा कि हम ओलंपिक में मेडल क्यों नहीं जीत पाते...

जब साक्षी मलिक और फिर पीवी सिंधू ने रियो ओलंपिक में मेडल जीत कर हमारी नाक बचाई तो क्या कुछ नहीं कहा गया. 'देश की बेटी'...'शरनी' और पता नहीं क्या-क्या. बधाइयों का तांता लगा हुआ है, इनाम देने वालों के बीच होड़ मची है. सरकारें, खेल संघे लाखों-करोड़ों बांटने में लगी हैं.

साफ लब्जों में कहिए तो कुछ नहीं, सब श्रेय लेने की जुगत भर है. जीत के बाद सब पूछते हैं. लेकिन तैयारियों और इवेंट्स के दौरान हमारे खिलाड़ी, हमारे एथलीट, हमारे कोच किन परिस्थितियों से गुजरते हैं, इसक एक नमूना महिला मैराथन रनर ओपी जायशा ने पेश कर दिया है.

भाग्यशाली है वो...इसलिए जिंदा है!

'मैं रियो में मर भी सकती थी'...जी हां, ये शब्द मैराथन रनर ओपी जायशा के हैं. रियो ओलंपिक के आखिरी दिन मैराथन इवेंट हो रहे थे. भारत की ओर से ओपी जायशा उसमें दावेदारी पेश कर रही थीं. लेकिन हालत देखिए कोई भी भारतीय अधिकारी वहां उनके लिए मौजूद नहीं था.

दरअसल, मैराथन में किसी भी एथलीट को 42.195 किलोमीटर दौड़ना होता है. बेहद, कठिन माने जाने वाली इस दौड़ के लिए दूसरे सभी देशों ने अपने रनर्स को पानी, ग्लूकोज या रिफ्रेस्मेंट्स मुहैया कराने के इंतजाम किए थे. अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हर 2.5 किलोमीटर पर ऐसे इंतजाम किए जा सकते हैं, ताकि एथलीट के स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े. लेकिन भारत की ओर से कोई भी अधिकारी अपने महिला एथलीट के सहयोग के लिए मौजूद नहीं था. सिवाय उनके कोच के. ये मैराथन सुबह नौ बजे शुरु हुई और दोपहर करीब 12.30 तक खत्म हुई. तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर और ऐसी हालत में बिना पानी के दौड़ती 'देश की बेटी'.

 ओपी जायशा के आरोप पूरी व्यवस्था की कलई खोल देते...

जब साक्षी मलिक और फिर पीवी सिंधू ने रियो ओलंपिक में मेडल जीत कर हमारी नाक बचाई तो क्या कुछ नहीं कहा गया. 'देश की बेटी'...'शरनी' और पता नहीं क्या-क्या. बधाइयों का तांता लगा हुआ है, इनाम देने वालों के बीच होड़ मची है. सरकारें, खेल संघे लाखों-करोड़ों बांटने में लगी हैं.

साफ लब्जों में कहिए तो कुछ नहीं, सब श्रेय लेने की जुगत भर है. जीत के बाद सब पूछते हैं. लेकिन तैयारियों और इवेंट्स के दौरान हमारे खिलाड़ी, हमारे एथलीट, हमारे कोच किन परिस्थितियों से गुजरते हैं, इसक एक नमूना महिला मैराथन रनर ओपी जायशा ने पेश कर दिया है.

भाग्यशाली है वो...इसलिए जिंदा है!

'मैं रियो में मर भी सकती थी'...जी हां, ये शब्द मैराथन रनर ओपी जायशा के हैं. रियो ओलंपिक के आखिरी दिन मैराथन इवेंट हो रहे थे. भारत की ओर से ओपी जायशा उसमें दावेदारी पेश कर रही थीं. लेकिन हालत देखिए कोई भी भारतीय अधिकारी वहां उनके लिए मौजूद नहीं था.

दरअसल, मैराथन में किसी भी एथलीट को 42.195 किलोमीटर दौड़ना होता है. बेहद, कठिन माने जाने वाली इस दौड़ के लिए दूसरे सभी देशों ने अपने रनर्स को पानी, ग्लूकोज या रिफ्रेस्मेंट्स मुहैया कराने के इंतजाम किए थे. अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हर 2.5 किलोमीटर पर ऐसे इंतजाम किए जा सकते हैं, ताकि एथलीट के स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े. लेकिन भारत की ओर से कोई भी अधिकारी अपने महिला एथलीट के सहयोग के लिए मौजूद नहीं था. सिवाय उनके कोच के. ये मैराथन सुबह नौ बजे शुरु हुई और दोपहर करीब 12.30 तक खत्म हुई. तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर और ऐसी हालत में बिना पानी के दौड़ती 'देश की बेटी'.

 ओपी जायशा के आरोप पूरी व्यवस्था की कलई खोल देते हैं...

आलम ये हुआ कि जायशा बमुश्किल दो घंटे 47 मिनट में अपना रेस पूरा कर सकीं और फिनिश लाइन पर पहुंचते ही गिर गईं. उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. जी हा! आप ठीक पढ़ रहे हैं. हम अपने एथलीट्स के साथ ऐसा ही व्य़वहार करते हैं. वे मर जाएंगे तो दो चार ट्विट कर देंगे लेकिन उन अधिकारियों से, मंत्रियों से नहीं पूछेंगे कि वे वहां क्या करने गए थे.

यह भी पढ़ें- शुक्रिया गोपी! लड़ना सिखाने के लिए...

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में जायशा ने बताया, 'पूरे रास्ते में हमारे देश के लिए बनाया गया डेस्क खाली था. वहां कोई मौजूद ही नहीं था. मैं नहीं जानती कि ये रेस मैंने कैसे पूरी की. वहां के आयोजकों ने आठ-आठ किलोमीटर पर पानी की सुविधा रखी थी. लेकिन वे भी केवल नॉर्मल. कोई और सुविधा नहीं.'

एएफआई का बेशर्म जवाब..

एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआई) से जब पूछा गया तो उनका जवाब भी देख लीजिए. एएफआई के सचिव सीके वाल्सन के मुताबिक, 'ये आयोजकों की जिम्मेदारी होती है कि वे पानी और एनर्जी ड्रिक्स मुहैया कराएं. हम भी इसकी व्यवस्था कर सकते थे लेकिन न तो कोच ने और न ही एथलीटों ने हमें ये बताया था कि उन्हें अलग से पानी और एनर्जी ड्रिक्स की जरूरत होगी.'

कितना बेशर्म जवाब है. पूरे ओलंपिक में बमुश्किल दो पदक हम ले आते हैं और एएफआई को लगता है कि उनके एथलीट कोई सुपरमैन हैं. दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देश हर 2 किलोमीटर पर अपने एथलीट्स के लिए पानी और ड्रिक्स का इंतजाम करके बैठे थे लेकिन हमारे अधिकारियों को कुछ पता ही नहीं. वो जाने किस दुनिया में हैं.

खेल मंत्री विजय गोयल के सामने सवाल लाया गया तो उन्होंने भी इसे एफआई की ओर फेंक दिया. इस टालमटोल में कहानी का घालमेल हो जाएगा और यकीन मानिए फिर टोक्य में भी ऐसी ही कहानी आएगी.

यह भी पढ़ें- पेशेवर हाथों में हो खेल संघों की कमान

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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