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ओलंपिक में उतरेंगे वे मुक्‍केबाज, जो नॉक आउट के लिए जाने जाते हैं !

    • आईचौक
    • Updated: 02 जून, 2016 07:38 PM
  • 02 जून, 2016 07:38 PM
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एआईबीए के इस फैसले के बाद उसकी सराहना कम और आलोचना ज्यादा हो रही है. दोनों ओर के लोग अपनी-अपनी निगाह से इस फैसले को देख रहे हैं. एक बड़ी चिंता जो ज्यादातर जता रहे हैं, वो ये कि इससे एमेच्योर बॉक्सिंग का अंत करीब-करीब तय हो जाएगा.

यह अपने आप में बेहद रोचक है कि अब प्रोफेशनल बॉक्सर भी रियो ओलंपिक में मुकाबला करते नजर आएंगे. लेकिन इससे भी गुरेज नहीं कि इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (एआईबीए) ने प्रोफेशनल बॉक्सर्स को रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने की इजाजत देकर बहुत चौंकाया नहीं है. पिछले ही साल से यह अटकलें तेज होने लगी थीं कि एआईबीए इस दिशा में कदम बढ़ा सकता है. इसका एक बड़ा कारण वर्ल्ड बॉक्सिंग काउंसिल (डब्ल्यूबीसी) और एआईबीए के बीच की होड़ भी हो सकती है. डब्ल्यूबीसी प्रोफेशनल बॉक्सिंग की एक बॉडी है.

ओलंपिक के इतिहास में संभवत: ये पहली बार होगा कि प्रोफेशनल मुक्केबाज मेडल के लिए रिंग में उतरेंगे. वैसे, इस फैसले ने कई बहसों को जन्म दे दिया है. पिछले साल फिलिपींस के मैन्नी पक्वेओ और अमेरिका के फ्लॉयड मेवेदर के बीच मुकाबले को सदी के सबसे बड़े मुकाबले की संज्ञा दी गई. हो भी क्यों न, जिस मुकाबले में हर पंच पर करोड़ो रुपये बरस रहे हों, उसे भला आप और क्या नाम देंगे. पिछले चार-पांच वर्षों में प्रोफेशनल बॉक्सिंग कहां जा पहुंचा है, ये उसी की एक बानगी थी.

इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रोफेशनल बॉक्सिंग और बॉक्सरों की लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने एआईबीए को इस फैसले के लिए मजबूर किया? अगर यही फैसला लेना था तो क्या इसे और पहले नहीं लिया जाना चाहिए था? और उससे भी बड़ी बात ये कि एआईबीए के इस फैसले को क्या एमेच्योर बॉक्सिंग के अंत की शुरुआत मान ली जाए.

 ओलंपिक में बदलेगा बॉक्सिंग का रूप

एआईबीए के इस फैसले के बाद उसकी सराहना कम और आलोचना ज्यादा हो रही है. दोनों ओर के लोग अपनी-अपनी निगाह से इस फैसले को देख रहे हैं. पूर्व हेविवेट विश्व चैंपियन माइक टायसन का मानना है...

यह अपने आप में बेहद रोचक है कि अब प्रोफेशनल बॉक्सर भी रियो ओलंपिक में मुकाबला करते नजर आएंगे. लेकिन इससे भी गुरेज नहीं कि इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (एआईबीए) ने प्रोफेशनल बॉक्सर्स को रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने की इजाजत देकर बहुत चौंकाया नहीं है. पिछले ही साल से यह अटकलें तेज होने लगी थीं कि एआईबीए इस दिशा में कदम बढ़ा सकता है. इसका एक बड़ा कारण वर्ल्ड बॉक्सिंग काउंसिल (डब्ल्यूबीसी) और एआईबीए के बीच की होड़ भी हो सकती है. डब्ल्यूबीसी प्रोफेशनल बॉक्सिंग की एक बॉडी है.

ओलंपिक के इतिहास में संभवत: ये पहली बार होगा कि प्रोफेशनल मुक्केबाज मेडल के लिए रिंग में उतरेंगे. वैसे, इस फैसले ने कई बहसों को जन्म दे दिया है. पिछले साल फिलिपींस के मैन्नी पक्वेओ और अमेरिका के फ्लॉयड मेवेदर के बीच मुकाबले को सदी के सबसे बड़े मुकाबले की संज्ञा दी गई. हो भी क्यों न, जिस मुकाबले में हर पंच पर करोड़ो रुपये बरस रहे हों, उसे भला आप और क्या नाम देंगे. पिछले चार-पांच वर्षों में प्रोफेशनल बॉक्सिंग कहां जा पहुंचा है, ये उसी की एक बानगी थी.

इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रोफेशनल बॉक्सिंग और बॉक्सरों की लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने एआईबीए को इस फैसले के लिए मजबूर किया? अगर यही फैसला लेना था तो क्या इसे और पहले नहीं लिया जाना चाहिए था? और उससे भी बड़ी बात ये कि एआईबीए के इस फैसले को क्या एमेच्योर बॉक्सिंग के अंत की शुरुआत मान ली जाए.

 ओलंपिक में बदलेगा बॉक्सिंग का रूप

एआईबीए के इस फैसले के बाद उसकी सराहना कम और आलोचना ज्यादा हो रही है. दोनों ओर के लोग अपनी-अपनी निगाह से इस फैसले को देख रहे हैं. पूर्व हेविवेट विश्व चैंपियन माइक टायसन का मानना है कि इसमें नुकसान प्रोफेशनल बॉक्सरों का है. वे इतनी जल्दी ओलंपिक के तीन-तीन मिनट के तीन बाउट वाले नियम से तालमेल नहीं बैठा पाएंगे. तो ब्रिटेन के पूर्व मुक्केबाज रिकी हैटन इसे एमेच्योर बॉक्सिंग के अंत के तौर पर देख रहे हैं. वहीं, कई लोगों को लग रहा है कि ये उन खिलाड़ियों से नाइंसाफी होगी जो पिछले लागातार चार वर्षों से ओलंपिक की तैयारी कर रहे थे.

एआईबीए द्वारा एक अहम फैसला लेने में देरी सहित कई और ऐसे पहलू हैं, जिसके कारण उसकी आलोचना हो रही है. दरअसल, पूरे मामले में एक बड़ा पेंच रिंग में उतरने वाले दो मुक्केबाजों के अनुभव और उम्र का होगा. अब तक ज्यादातर मुक्केबाज कुछ वर्ष एमेच्योर बॉक्सिंग में गुजारने के बाद प्रोफेशनल बॉक्सिंग की ओर रूख करते थे. जाहिर है वे उम्र और तजुर्बे के मामले में नए मुक्केबाजों से कहीं आगे होंगे. ओलंपिक अलग फॉर्मेट है और यहां 18 से 20 साल के लड़के तक रिंग में उतरते हैं. इस लिहाज से अगर कोई पूर्व हेविवेट विश्व चैंपियन किसी नए लड़के के सामने उतरता है, तो नतीजा क्या होगा ये बताना मुश्किल नहीं है.

एक बड़ी चिंता जो ज्यादातर जानकार जता रहे हैं, वो ये कि इससे एमेच्योर बॉक्सिंग का अंत करीब-करीब तय हो जाएगा. खासकर युवा मुक्केबाजों के लिए ये ज्यादा चिंताजनक है.

एआईबीए और डब्ल्यूबीसी का 'मुकाबला'

डब्ल्यूबीसी बहुत पहले से ये आरोप लगाती रही है कि एआईबीए पूरी दुनिया में मुक्केबाजी पर अपना अधिपत्य जमाना चाहती है. इसी साल की शुरुआत में ये खबर भी आई थी कि डब्ल्यूबीसी ने अपने प्रोफेशनल मुक्केबाजों से साफ-साफ कह दिया है कि अगर टॉप-15 में शामिल कोई मुक्केबाज ओलंपिक में हिस्सा लेता है तो वो उस पर दो साल का प्रतिबंध लगा देगा. ये चेतावनी फरवरी में ही आ गई थी जब प्रोफेशनल मुक्केबाजों के लिए ओलंपिक का दरवाजा खुलने की सुगबुगाहट चल रही थी. जाहिर है, एआईबीए का फैसला दो संघों की आपसी राजनीति का नतीजा भी हो सकता है.

प्रोफेशनल मुक्केबाज जो मचा सकते हैं ओलंपिक में धमाल

स्थिति तो बहुत साफ नहीं है. कि एआईबीए के फैसले के बाद कौन-कौन से प्रोफेशनल मुक्केबाज ओलंपिक की ओर रूख करेंगे. अभी प्रोफेशनल बॉक्सर्स का क्वालिफाइंग दौर भी वेनेजुएला में खेला जाना है. लेकिन फिर भी कई ऐसे चेहरे हैं, जो रियो ओलंपिक में अगर उतरते हैं तो मुकाबाला दिलचस्प होगा.

आमिर खान- कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ब्रिटिश प्रोफेशनल मुक्केबाज आमिर खान एआईबीए के इस फैसले से खासे उत्साहित हैं. वे मूल रूप से पाकिस्तान से हैं और ओलंपिक में पाकिस्तान की ओर से हिस्सा ले सकते हैं. 2004 के ऐथेंस ओलंपिक खेलों में उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन की ओर से हिस्सा लिया था और सिल्वर मेडल अपने नाम करने में कामयाब रहे थे.

फ्लॉयड मेवेदर जूनियर- पिछले साल मैन्नी पेकियाओ से मुकाबले के लिए खूब चर्चित हुए फ्लॉयड मेवेदर 39 साल के हैं और संभव है कि वे रियो ओलंपिक में हिस्सा लें. प्रोफेशनल बॉक्सिंग में बड़ा नाम कमा चुके मेवेदर ने 1996 के ओलंपिक में हिस्सा लिया था और ब्रॉन्ज मेडेल जीतने में कामयाब रहे थे.

मैन्नी पक्वेओ और व्लादिमीर क्लित्सको- पेकियाओ ने पिछले साल ही कहा था कि ओलंपिक खेलना अब भी उनका सपना है और मौका मिला तो वे जरूर हिस्सा लेंगे. करीब 37 साल के पेकियाओ ने अब तक किसी ओलंपिक में हिस्सा नहीं लिया है. दूसरी ओर, 1996 ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीत चुके कजाकिस्तान के व्लादिमीर को लेकर भी खूब अटकलें लगाई जा रही हैं.

डेविड हे- ब्रिटिश प्रोफेशनल बॉक्सर डेविड हे महज 18 साल की उम्र में ही प्रोफेशनल बॉक्सिग के क्षेत्र में उतर गए थे. उनके भी ओलंपिक में अपना भाग्य आजमाने की अटकलें जोरो पर हैं.

गेनैडी गोलोव्किन- कजाकिस्तान के गेनैडी 2004 के ओलंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीतने में कामयाब रहे थे. इसके अलावा 2003 में बैंकॉक में हुए वर्ल्ड एमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भी उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. गेनैडी के भी ओलंपिक में हिस्सा लेने की चर्चा जोरो पर है.

वैसे, अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. ये भी देखना होगा कि कौन से प्रोफेशनल बॉक्सर ओलंपिक को तरजीह देते हैं. क्योंकि पूर्व के कार्यक्रम के अनुसार ज्यादातर मुक्केबाजों के कार्यक्रम निर्धारित हैं. यही कारण है कि भारत के विजेंदर सिंह को लेकर भी स्थिति साफ नहीं है. जो भी हो, ये तय है कि ओलंपिक खेलों में बॉक्सिंग का रंगरूप बदलने जा रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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