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पिंक बॉल से अलग आईसीसी के यह प्रयोग जो असफल रहे...

    • आईचौक
    • Updated: 29 नवम्बर, 2015 06:37 PM
  • 29 नवम्बर, 2015 06:37 PM
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एडिलेड में जब डे-नाइट टेस्ट मैच शुरू हुआ तो ज्यादातर क्रिकेट प्रेमियों ने इसका स्वागत किया. वैसे, यह पहली बार नहीं है जब क्रिकेट में कोई नया प्रयोग हुआ है. पूर्व में कई नए आईडिया सफल रहे तो कुछ असफल भी.

एडिलेड में 27 नवंबर को जब ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच डे-नाइट टेस्ट मैच शुरू हुआ तो उम्मीदों के साथ-साथ आशंकाओं के बादल भी क्रिकेट जगत पर छाए हुए थे. उम्मीद यह कि नई शुरुआत से क्या टेस्ट क्रिकेट और लोकप्रिय होगा. साथ-साथ आशंका ये भी कि यह कितना सफल होगा? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिलेंगे, जब यह फॉर्मेट और आगे बढ़ेगा. वैसे, यह पहली बार नहीं है जब क्रिकेट में कोई नया प्रयोग हुआ है. पूर्व में कई नए आईडिया सफल रहे तो कुछ असफल भी.

आईए आपको बताते हैं, क्रिकेट के कुछ ऐसे ही नए प्रयोगों के बारे में. जिनसे उम्मीदें तो बहुत थीं लेकिन वे फ्लॉप साबित हुए...

1. सुपर मैक्स: इस प्रारूप को लेकर प्रयोग 90 के दशक में न्यूजीलैंड में शुरू हुए. इसके नियम बहुत रोचक थे लेकिन यह अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सका. सुपर मैक्स क्रिकेट के नियमों के अनुसार दोनों टीमें 10-10 ओवर की दो पारियां खेलती थीं. इस फॉर्मेट में वाइड पर दो रन मिलते थे. एक खास 'मैक्स जोन' भी होता था. अगर किसी बल्लेबाज का शॉट उस मैक्स जोन पर लगा तो स्कोर दोगुना हो जाता था. इस फॉर्मेट के पहले वर्जन में तीन की जगह चार स्टंप भी इस्तेमाल हुए. भारत ने इस फॉर्मेट के तहत 2002 में न्यूजीलैंड के खिलाफ एक मैच भी खेला था, जिसमें उसे 21 रनों से हार का सामना करना पड़ा.

2. वर्षा प्रभावित मैचों के लिए नियम: आज क्रिकेट में वर्षा से प्रभावित मैचों में डकवर्थ लुइस नियम का इस्तेमाल होता है. इसमें भी खामियां हैं और कई मौकों पर इसकी आलोचना भी होती रही है. लेकिन इससे पहले वर्षा से प्रभावित मैचों के लिए एक दूसरा नियम होता था जिसे 1992 विश्व कप में इस्तेमाल किया गया. इसके अनुसार अगर दूसरी पारी के दौरान बारिश होती है और ओवरों को घटाया जाता है तो पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम के उन ओवरों का आकलन किया जाएगा, जिसमें सबसे कम रन बने हैं. इसके बाद अंतिम टार्गेट निर्धारित होगा. दक्षिण अफ्रीका को यह नियम तब...

एडिलेड में 27 नवंबर को जब ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच डे-नाइट टेस्ट मैच शुरू हुआ तो उम्मीदों के साथ-साथ आशंकाओं के बादल भी क्रिकेट जगत पर छाए हुए थे. उम्मीद यह कि नई शुरुआत से क्या टेस्ट क्रिकेट और लोकप्रिय होगा. साथ-साथ आशंका ये भी कि यह कितना सफल होगा? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिलेंगे, जब यह फॉर्मेट और आगे बढ़ेगा. वैसे, यह पहली बार नहीं है जब क्रिकेट में कोई नया प्रयोग हुआ है. पूर्व में कई नए आईडिया सफल रहे तो कुछ असफल भी.

आईए आपको बताते हैं, क्रिकेट के कुछ ऐसे ही नए प्रयोगों के बारे में. जिनसे उम्मीदें तो बहुत थीं लेकिन वे फ्लॉप साबित हुए...

1. सुपर मैक्स: इस प्रारूप को लेकर प्रयोग 90 के दशक में न्यूजीलैंड में शुरू हुए. इसके नियम बहुत रोचक थे लेकिन यह अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सका. सुपर मैक्स क्रिकेट के नियमों के अनुसार दोनों टीमें 10-10 ओवर की दो पारियां खेलती थीं. इस फॉर्मेट में वाइड पर दो रन मिलते थे. एक खास 'मैक्स जोन' भी होता था. अगर किसी बल्लेबाज का शॉट उस मैक्स जोन पर लगा तो स्कोर दोगुना हो जाता था. इस फॉर्मेट के पहले वर्जन में तीन की जगह चार स्टंप भी इस्तेमाल हुए. भारत ने इस फॉर्मेट के तहत 2002 में न्यूजीलैंड के खिलाफ एक मैच भी खेला था, जिसमें उसे 21 रनों से हार का सामना करना पड़ा.

2. वर्षा प्रभावित मैचों के लिए नियम: आज क्रिकेट में वर्षा से प्रभावित मैचों में डकवर्थ लुइस नियम का इस्तेमाल होता है. इसमें भी खामियां हैं और कई मौकों पर इसकी आलोचना भी होती रही है. लेकिन इससे पहले वर्षा से प्रभावित मैचों के लिए एक दूसरा नियम होता था जिसे 1992 विश्व कप में इस्तेमाल किया गया. इसके अनुसार अगर दूसरी पारी के दौरान बारिश होती है और ओवरों को घटाया जाता है तो पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम के उन ओवरों का आकलन किया जाएगा, जिसमें सबसे कम रन बने हैं. इसके बाद अंतिम टार्गेट निर्धारित होगा. दक्षिण अफ्रीका को यह नियम तब बेहद भारी पड़ा था जब बारिश के बाद उसे एक गेंद पर 22 रनों का असंभव लक्ष्य मिला.

3. बॉल आउट: इस नियम की शुरुआत टी-20 क्रिकेट में टाई मैचों के लिए हुई. इस नियम के अनुसार दोनों टीमों के बॉलर को पांच-पांच गेंद विकेट पर डालनी होती थी. इस दौरान विकेट पर कोई बल्लेबाज मौजूद नहीं रह सकता था. जिसने ज्यादा बार विकेट गिराए, वही टीम विजयी घोषित होती थी. भारत ने इसी नियम के तहत 2007 टी-20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को हराया था.

4. सुपर टेस्ट: टेस्ट मैचों को पुरानी लोकप्रियता की ओर लौटाने के मकसद से आईसीसी ने दोबारा छह दिनों का टेस्ट मैच शुरू कराने की योजना बनाई. प्रयोग के तहत 2005 में ऑस्ट्रेलिया और वर्ल्ड-XI के बीच सिडनी में एक मैच भी आयोजित किया गया. लेकिन यह बुरी तरह फ्लॉफ हुआ. मैच एकतरफा साबित हुआ और कहा जाता है कि अगर बारिश ने बाधा नहीं डाली होती तो महज दो दिनों में समाप्त हो जाता. आस्ट्रेलिया ने इस मैच को 210 रनों से जीता. यह हश्र देख आईसीसी ने छह दिनों के टेस्ट के विचार को छोड़ देने में ही भलाई समझी.

5. सुपर सब: इस नियम को 2005 में लाया गया. इसके मुताबिक दोनों टीमें एक-एक अतिरिक्त खिलाड़ी रख सकती थीं और जरूरत पड़ने पर बैटिंग या बॉलिंग के लिए उन्हें मैदान में भी उतार सकती थी. बस टॉस से पहले दोनों टीमों को अपने सब्सिट्यूट खिलाड़ियों का नाम बताना होता था. हालांकि इस नियम की भी खूब आलोचना हुई क्योंकि अक्सर टॉस जीतने वाली टीम को इसका ज्यादा फायदा होता था. आखिरकार, 2006 में आईसीसी को इस नियम को रद्द करना पड़ा.

6. मंगूज और एल्यूमीनियम बैट: मैथ्यू हैडन ने 2009 के आईपीएल में मंगूज बैट का इस्तेमाल कर सनसनी फैला दी थी. इस बैट की खासियत यह थी कि इसका हैंडल ज्यादा लंबा और ब्लेड 33 फीसदी तक छोटा था. तब यह काफी लोकप्रिय हुआ लेकिन जल्द ही इसका बुखार लोगों के जेहन से उतर भी गया. कई खिलाड़ियों ने इसका उपयोग करने की कोशिश की लेकिन वे इसके साथ तालमेल नहीं बैठा सके. इससे पहले 1979 में ऑस्ट्रेलिया के ही डेनिस लिलि भी एल्यूमीनियम बैट के साथ मैदान में उतर चुके हैं. धातु का बैट होने के कारण इसका ज्यादा खराब असर गेंदों पर होता था. इस कारण इस बैट का इस्तेमाल ही विवादों में आ गया.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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