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आक्रामक कोहली हैं सौरव गांगुली पार्ट-2

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 02 सितम्बर, 2015 02:01 PM
  • 02 सितम्बर, 2015 02:01 PM
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विराट कोहली को जितनी चर्चा उनकी शानदार बैटिंग के लिए मिली है, उससे कहीं ज्यादा उनकी आक्रामक शैली, रौबदार व्यक्तित्व और मैदान पर उनके अक्खड़पन के लिए मिली. कोहली की आक्रमकता ही उनकी ताकत है.

2010 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड टेस्ट के बाद जब एक युवा भारतीय बल्लेबाज ने अपनी सेंचुरी बनाई तो वह खुशी नहीं बल्कि गुस्से से अपनी मुठ्ठियां भींचे खुशी से हवा में उछल रहा था.

यह बल्लेबाज थे विराट कोहली, जो उस सीरीज में कंगारुओं की चिरपरिचत आक्रामकता का उसी अंदाज में जवाब दे रहे थे. उस सीरीज में उससे पहले भी विराट ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों द्वारा छेड़ने पर नाराज होकर अपनी मिडिल फिंगर दिखाकर मीडिया में सुर्खियां में आ चुके थे.

विराट कोहली को जितनी चर्चा उनकी शानदार बैटिंग के लिए मिली उससे कहीं ज्यादा उनकी आक्रामक शैली, रौबदार व्यक्तित्व और मैदान पर उनके अक्खड़पन के लिए मिली. उनकी बैटिंग के लिए उन्हें जितनी तारीफें नहीं मिली होंगी उससे ज्यादा आक्रामकता के लिए आलोचना का शिकार होना पड़ा है.

लेकिन अब यह आक्रामकता श्रीलंका में 22 साल बाद टीम इंडिया को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद तारीफ का कारण बन गई है. कोहली की आक्रामक कप्तानी का ही नतीजा है कि टीम इंडिया सीरीज का पहला टेस्ट गंवाने के बावजूद अगले दोनों टेस्ट जीतते हुए सीरीज जीतने में कामयाब रही.

आक्रामकता कोहली की ताकत क्यों हैः

1. दंबग खिलाड़ी और कप्तानः कोहली मैदान में अपनी दंबगई के लिए मशहूर हैं. वे बैटिंग करें या फील्डिंग उनका अंदाज बदलता नहीं है. अब उनकी कप्तानी में यही दबंगाई नजर आती है. आंकड़ों से साफ पता चलता है कि बैटिंग हो या कप्तानी आक्रामक अंदाज से कोहली को फायदा ही हुआ है और शुरुआती आलोचना के बाद अब एक्सपर्ट भी मानने लगे हैं कि आक्रामता उनकी कमजोरी नहीं ताकत है.

2. आक्रामक कप्तानी से 22 साल बाद लंका विजयः कोहली ने जब शांतचित्त धोनी से टेस्ट टीम की कमान संभाली थी तो शायद ही किसी ने सोचा था कि वे इस फॉर्मेट में धोनी जितना सफल होंगे. लेकिन अपने पहले ही विदेशी दौरे में ऐतिहासिक जीत से उन्होंने साबित कर दिया है कि आक्रामक शैली से टीम इंडिया को फायदा ही होगा नुकसान नहीं.

3. कैप्टन कूल नहीं...

2010 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड टेस्ट के बाद जब एक युवा भारतीय बल्लेबाज ने अपनी सेंचुरी बनाई तो वह खुशी नहीं बल्कि गुस्से से अपनी मुठ्ठियां भींचे खुशी से हवा में उछल रहा था.

यह बल्लेबाज थे विराट कोहली, जो उस सीरीज में कंगारुओं की चिरपरिचत आक्रामकता का उसी अंदाज में जवाब दे रहे थे. उस सीरीज में उससे पहले भी विराट ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों द्वारा छेड़ने पर नाराज होकर अपनी मिडिल फिंगर दिखाकर मीडिया में सुर्खियां में आ चुके थे.

विराट कोहली को जितनी चर्चा उनकी शानदार बैटिंग के लिए मिली उससे कहीं ज्यादा उनकी आक्रामक शैली, रौबदार व्यक्तित्व और मैदान पर उनके अक्खड़पन के लिए मिली. उनकी बैटिंग के लिए उन्हें जितनी तारीफें नहीं मिली होंगी उससे ज्यादा आक्रामकता के लिए आलोचना का शिकार होना पड़ा है.

लेकिन अब यह आक्रामकता श्रीलंका में 22 साल बाद टीम इंडिया को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद तारीफ का कारण बन गई है. कोहली की आक्रामक कप्तानी का ही नतीजा है कि टीम इंडिया सीरीज का पहला टेस्ट गंवाने के बावजूद अगले दोनों टेस्ट जीतते हुए सीरीज जीतने में कामयाब रही.

आक्रामकता कोहली की ताकत क्यों हैः

1. दंबग खिलाड़ी और कप्तानः कोहली मैदान में अपनी दंबगई के लिए मशहूर हैं. वे बैटिंग करें या फील्डिंग उनका अंदाज बदलता नहीं है. अब उनकी कप्तानी में यही दबंगाई नजर आती है. आंकड़ों से साफ पता चलता है कि बैटिंग हो या कप्तानी आक्रामक अंदाज से कोहली को फायदा ही हुआ है और शुरुआती आलोचना के बाद अब एक्सपर्ट भी मानने लगे हैं कि आक्रामता उनकी कमजोरी नहीं ताकत है.

2. आक्रामक कप्तानी से 22 साल बाद लंका विजयः कोहली ने जब शांतचित्त धोनी से टेस्ट टीम की कमान संभाली थी तो शायद ही किसी ने सोचा था कि वे इस फॉर्मेट में धोनी जितना सफल होंगे. लेकिन अपने पहले ही विदेशी दौरे में ऐतिहासिक जीत से उन्होंने साबित कर दिया है कि आक्रामक शैली से टीम इंडिया को फायदा ही होगा नुकसान नहीं.

3. कैप्टन कूल नहीं कैप्टन अग्रेसिवः धोनी की तारीफ एक ऐसे कप्तान के तौर पर की जाती है जो किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य नहीं खोता. कोहली इसके उलट हैं, उन्हें मैदान में विपक्षी टीम के खिलाड़ियों से भिड़ने से भी गुरेज नहीं है. आईपीएल में केकेआर के कप्तान गंभीर से उनकी भिड़ंत को याद कीजिए. लेकिन इसका फायदा यह है कि वह परिस्थिति चाहे कैसी भी हो न तो खुद डिफेंसिव होते हैं और न टीम को होने देते हैं.

4. काबिलियत सचिन जैसी, टेंपरामेंट अलगः महज 26 साल की उम्र में वह वनडे में 22 और टेस्ट मैचों में 11 सेंचुरी जमा चुके हैं. उन्हें सचिन तेंदुलकर के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि वह सचिन की तरह शांत स्वभाव वाले खिलाड़ी नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद भी वह आज की तारीख में दुनिया के सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में से एक हैं.

5. टीम इंडिया को बदलने का जुनूनः कोहली की आक्रामकता भारतीय क्रिकेट टीम को टीम इंडिया में बदलने वाले सौरभ गांगुली की याद दिलाती है. गांगुली ने अपनी आक्रामक कप्तानी से भारतीय क्रिकेट में जोश भरा, उसे विदशी धरती पर जीतना सिखाया और टीम को दुनिया की सबसे खतरनाक टीमों की कतार में ला खड़ा किया. कोहली ने भी श्रीलंका में विदेशी जमीन पर खेली गई अपनी पहली ही सीरीज में गांगुली की तरह ही टीम में उत्साह जगाया, जुनूनी कप्तानी की और वह टीम इंडिया के एक नए युग की शुरुआत कर दी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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