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इस्लाम ने जब मुसलमानों को बताया, क्या खेलें और क्या नहीं खेलें

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 29 जुलाई, 2017 07:18 PM
  • 29 जुलाई, 2017 07:18 PM
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क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने अपने बेटे के साथ चेस खलेते हुए एक फोटो डाली है. जिसपर लोग कैफ का मजाक बना रहे हैं. इस लेख द्वारा जानिये खेलों के सम्बन्ध में क्या कहता है इस्लाम.

क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने बेटे संग चेस खेला और शतरंज के खिलाड़ी कैप्शन डालकर फोटो इंटरनेट पर अपलोड कर दी. कैफ द्वारा, इस तस्वीर को इंटरनेट पर डालने भर की देर थी.  इस तस्वीर से लोगों की भावना आहत हो गयी और उन्होंने कैफ को नसीहत देते हुए ट्रॉल करना शुरू कर दिया. लोगों का मत है कि इस्लाम में चेस हराम है और जिस तरह कैफ ने ये खेल खेलते हुए ये फोटो इंटरनेट पर डाली है वो ये बताने के लिए काफी है कि कैफ एक हराम काम को बल दे रहे हैं.

वहीं कुछ मौलवियों ने क्रिकेटर मोहम्मद कैफ का बचाव करते हुए  कहा है कि मोहम्मद कैफ ने कोई गैर इस्लामिक काम नहीं किया है. मौलवियों का मत है कि जो लोग आज कैफ को इस्लाम का सही रास्ता दिखा रहे हैं वो खुद पहले उस पर सही ढंग से चल के दिखाएं.

इस्लाम के अनुसार शतरंज बुद्धि को भ्रष्ट करता है

बहरहाल, बात चूंकि खेल के इस्लामिक या गैर इस्लामिक होने के इर्द गिर्द है. तो इसी क्रम में आज हम इस लेख के जरिये आपको उन खेलों  और उनके कारणों के बारें में बताएंगे जिनको खेलने की इजाज़त इस्लाम देता हैं साथ ही हम आपको उन खेलों और उनके कारणों से भी अवगत कराएंगे जिनकी अनुमति इस्लाम नहीं देता है.

इस्लाम में खेल  

मान्यताओं के आधार पर विश्व के सबसे नवीन धर्मों में शुमार, और सामाजिक दृष्टि से 1400 साल पुराने इस्लाम का खेलों संग रिश्ता बहुत पुराना है. जैसा कि ज्ञात है कि इस्लाम का उदय खाड़ी देश सऊदी अरब से हुआ था और यदि हम तब के अरब को देखें तो मिलता है कि वो एक ऐसे परिवेश में रह रहे थे जहां एक कबीला दूसरे काबिले पर हावी होने के लिए युद्ध का सहारा लेता था. ऐसे स्थिति में अरब के लोग उन खेलों को पसंद करते थे जो उनके लिए युद्ध की दृष्टि से भी मददगार साबित हो.

इस्लाम में...

क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने बेटे संग चेस खेला और शतरंज के खिलाड़ी कैप्शन डालकर फोटो इंटरनेट पर अपलोड कर दी. कैफ द्वारा, इस तस्वीर को इंटरनेट पर डालने भर की देर थी.  इस तस्वीर से लोगों की भावना आहत हो गयी और उन्होंने कैफ को नसीहत देते हुए ट्रॉल करना शुरू कर दिया. लोगों का मत है कि इस्लाम में चेस हराम है और जिस तरह कैफ ने ये खेल खेलते हुए ये फोटो इंटरनेट पर डाली है वो ये बताने के लिए काफी है कि कैफ एक हराम काम को बल दे रहे हैं.

वहीं कुछ मौलवियों ने क्रिकेटर मोहम्मद कैफ का बचाव करते हुए  कहा है कि मोहम्मद कैफ ने कोई गैर इस्लामिक काम नहीं किया है. मौलवियों का मत है कि जो लोग आज कैफ को इस्लाम का सही रास्ता दिखा रहे हैं वो खुद पहले उस पर सही ढंग से चल के दिखाएं.

इस्लाम के अनुसार शतरंज बुद्धि को भ्रष्ट करता है

बहरहाल, बात चूंकि खेल के इस्लामिक या गैर इस्लामिक होने के इर्द गिर्द है. तो इसी क्रम में आज हम इस लेख के जरिये आपको उन खेलों  और उनके कारणों के बारें में बताएंगे जिनको खेलने की इजाज़त इस्लाम देता हैं साथ ही हम आपको उन खेलों और उनके कारणों से भी अवगत कराएंगे जिनकी अनुमति इस्लाम नहीं देता है.

इस्लाम में खेल  

मान्यताओं के आधार पर विश्व के सबसे नवीन धर्मों में शुमार, और सामाजिक दृष्टि से 1400 साल पुराने इस्लाम का खेलों संग रिश्ता बहुत पुराना है. जैसा कि ज्ञात है कि इस्लाम का उदय खाड़ी देश सऊदी अरब से हुआ था और यदि हम तब के अरब को देखें तो मिलता है कि वो एक ऐसे परिवेश में रह रहे थे जहां एक कबीला दूसरे काबिले पर हावी होने के लिए युद्ध का सहारा लेता था. ऐसे स्थिति में अरब के लोग उन खेलों को पसंद करते थे जो उनके लिए युद्ध की दृष्टि से भी मददगार साबित हो.

इस्लाम में प्रस्तावित खेल जैसा कि हम बता चुके हैं अपने शुरूआती दिनों में इस्लाम का स्वरूप काबिले के अंतर्गत था. अतः तब के परिवेश में, उन खेलों को महत्त्व दिया गया था जिनसे न सिर्फ व्यक्ति की शारीरिक क्षमताओं का विकास हो बल्कि युद्ध की स्थिति में उन खेलों की मदद से वो जीत भी दर्ज कर सकें.

घुड़सवारी  -  इस्लाम में घुड़सवारी का अपना विशेष महत्त्व है. कई सारी हदीसों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अरब मुख्यतः कबीलों में रहते थे और भोजन और पानी की तलाश में इधर उधर घोड़ों से यात्रा करते थे. ऐसी स्थिति में उनके लिए ये जरूरी था कि उनके बच्चे इसे सीखें. इसी लिए प्राचीन अरब में घुड़सवारी की छोटी बड़ी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था जिसमें न सिर्फ एक काबिले के लोग बल्कि कई काबिले के लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे.

तलवारबाजी - चूंकि अरब एक घुमंतू जनजाति थी जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर वास करने के लिए मुख्यतः युद्ध का सहारा लेती थी अतः उनके लिए तलवारबाजी बहुत जरूरी थी. प्राचीन अरब में तलवारबाजी की भी बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था.

कुश्ती - अपने-अपने शारीरिक बल का परिचय देने के लिए अरब के लोगों द्वारा आपस में कुश्ती का भी आयोजन किया जाता था. बात अगर वर्तमान की हो तो आज कई ऐसे मुस्लिम देश हैं जहां इसे हाथों हाथ लिया जाता है.

तीरंदाजी - जैसा कि हम अरबों के सम्बन्ध में बता चुके हैं ये लोग ऐसी गतिविधियों में ज्यादा लिप्त थे जिनसे युद्ध की स्थिति में मदद मिलती हो. ये उन ही खेलों को अभ्यास में लाते थे जिनकी मदद से ये विरोधियों पर अपनी जीत दर्ज कर सकें. बात अगर तीरंदाजी की हो तो मिलता है कि इस्लाम के शुरुसती दिनों में इसे लोगों को सिखाया जाता था और ऐसी हदीसें बभी मिलती हैं जिनमें ये पता चलता है कि अरब समुदाय इसकी बड़ी बड़ी प्रतियोगिताएं आयोजित करता था जिनमें भाग लेने दूर देश से लोग आते थे.

इस्लाम में प्रतिबंधित खेलअब तक हम बात कर रहे थे उन खेलों की जिनको खेलने की इजाजत इस्लाम देता है या दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे खेल जिनको खलेने के लिए इस्लाम खुद इजाजत देता है. मगर अब हम आपको उन खेलों से अवगत कराना चाहेंगे जिनको खलेने के लिए इस्लाम सख्ती से मना करता है. बात अगर मना करने के कारणों पर हो तो मिलता है कि न सिर्फ इससे व्यक्ति का ध्यान भटकता है बल्कि ये व्यक्ति को आर्थिक हानि भी देते हैं और शायद इसी कारण इन्हें इस्लाम के अंतर्गत हराम कहा गया है

जुआं - हदीसों के अनुसार इस्लाम में जुआं इसलिए हराम है क्योंकि इससे व्यक्ति का दिमाग जहां एक तरफ अपना संतुलन खो बैठता है तो वहीं दूसरी तरफ होने वाले आर्थिक लाभ के चलते व्यक्ति उस स्तर तक आ जाता है जिसपर उसे नहीं आना चाहिए.

चौपड़ / चेस/ बोर्ड गेम - जी हां वर्तमान में जिस चेस को मुहम्मद कैफ ने खेला है वो इस्लाम में हराम है. इसके पीछे के कारणों पर नजर डालें तो मिलता है कि इस्लाम एक ईश्वर में विश्वास करता है और ज्योतिष से दूरी बनाने को कहता है. चूंकि चेस या चौपड़ पूर्ण रूप से भाग्य का खेल है अतः ये इस्लाम के विरुद्ध हो जाता है. हदीसों से प्राप्त जानकारी के अनुसार चौपड़ खेलता हुआ वैसे ही है जैसे कोई सूअर के खून से अपने हाथ रंग रहा हो.

सट्टा - इस्लाम में सट्टेबाजी को साफ तौर से मना किया गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसके अंतर्गत व्यक्ति उन कृत्यों को अंजाम दे देता है जिन्हें  सामाजिक तौर पर बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किये जाते है.

इस्लाम के मद्देनज़र खेल में महिलाएं

कई हदीसों और आलिमों की बात का यकीन करें तो इस्लाम खेलें में महिलाओं की भागीदारी का पक्षधर नहीं है. इस्लाम के अंतर्गत महिला को परदे में रहना होता है, ताकि वो पराए पुरुष की निगाह से बच सके. हालांकि पूर्व की अपेक्षा आज खेलों में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. मगर धर्म के जानकारों के अनुसार, ये बिल्कुल भी सही नहीं है. मुस्लिम कट्टरपंथियों का एक वर्ग ये भी मानता है कि जो महिलाएं ऐसा कर रही हैं उनको कयामत के रोज हिसाब देना होगा.

अंत में इतना ही कि खेल बस मनोरंजन का माध्यम मात्र है. लोगों को इसे उसी भावना से लेना चाहिए. अब अगर इसे भी लोग धर्म की दृष्टि के अंतर्गत ले रहे हैं तो वाकई समस्या गंभीर है जिसपर चिंतन और मनन होना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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