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...तो 2025 तक भारत में पैदा हो जाएगा भीषण जल संकट!

    • पीयूष द्विवेदी
    • Updated: 21 मार्च, 2016 02:52 PM
  • 21 मार्च, 2016 02:52 PM
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एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2025 तक जल संकट वाला देश बन जाएगा. देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है.

हर साल 22 मार्च को हम विश्व जल दिवस मनाते हैं. इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दुनिया जल दिवस तो मना रही है, पर क्या उसके उपयोग को लेकर वो गंभीर, संयमित व सचेत है या नहीं? आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भूजल का स्तर गिरता जा रहा है.

पिछले एक दशक के भीतर भूजल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहां 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था. वहां अब पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है. साफ है कि बीते दस वर्षों में दुनिया का भूजल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर इसका घटना जारी है. यह बड़ी चिंता का विषय है. अगर केवल भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था.

आयोग के अनुसार देश के 12 राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई. आयोग की तरफ से ये भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था. लेकिन, 2014 में वो गिरकर और कम हो गया. 2015 में भी लगभग यही स्थिति रही. गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है.

संभवतः इन स्थितियों के मद्देनजर ही अभी हाल में जारी जल क्षेत्र में प्रमुख परामर्शदाता कंपनी EA की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2025 तक जल संकट वाला देश बन जाएगा. अध्ययन में कहा गया है कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है. देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा...

हर साल 22 मार्च को हम विश्व जल दिवस मनाते हैं. इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दुनिया जल दिवस तो मना रही है, पर क्या उसके उपयोग को लेकर वो गंभीर, संयमित व सचेत है या नहीं? आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भूजल का स्तर गिरता जा रहा है.

पिछले एक दशक के भीतर भूजल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहां 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था. वहां अब पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है. साफ है कि बीते दस वर्षों में दुनिया का भूजल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर इसका घटना जारी है. यह बड़ी चिंता का विषय है. अगर केवल भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था.

आयोग के अनुसार देश के 12 राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई. आयोग की तरफ से ये भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था. लेकिन, 2014 में वो गिरकर और कम हो गया. 2015 में भी लगभग यही स्थिति रही. गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है.

संभवतः इन स्थितियों के मद्देनजर ही अभी हाल में जारी जल क्षेत्र में प्रमुख परामर्शदाता कंपनी EA की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2025 तक जल संकट वाला देश बन जाएगा. अध्ययन में कहा गया है कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है. देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है. हालांकि घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती हैं, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता.

अब सवाल ये उठता है कि आखिर भूजल स्तर के इस तरह निरंतर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है? अगर इस सवाल की तह में जाते हुए हम घटते भूजल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो कई बातें सामने आती हैं. घटते भूजल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन ही है. आज दुनिया अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भूजल पर ही निर्भर है. लिहाजा, अब एक तरफ तो भूजल का ये अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ तेज औद्योगीकरण के चलते प्राकृति को हो रहे नुकसान और पेड़-पौधों-पहाड़ों आदि की मात्रा में कमी के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है. परिणामतः धरती को भूजल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है.

सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है. बस, यही वो प्रमुख कारण है जिससे कि दुनिया का भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है. दुखद और चिंताजनक बात ये है कि कम हो रहे भूजल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई भी ठोस पहल होती नहीं दिखी है. ये एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भूजल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा.

हालांकि ऐसा कतई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है. इस समस्या से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि बारिश के पानी का समुचित संरक्षण किया जाए और उसी पानी के जरिये अपनी अधिकाधिक जल जरूरतों की पूर्ति की जाए. बरसात के पानी के संरक्षण के लिए उसके संरक्षण माध्यमों को विकसित करने की जरूरत है, जो कि सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का भी दायित्व है. अभी स्थिति ये है कि समुचित संरक्षण माध्यमों के अभाव में वर्षा का बहुत ज्यादा जल, जो लोगों की तमाम जल जरूरतों को पूरा करने में काम आ सकता है, खराब और बर्बाद हो जाता है.

अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए एक-दो टंकियां लग जाएं व घर के आस-पास कुएं आदि की व्यवस्था हो जाए, तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा. जल संरक्षण की यह व्यवस्थाएं हमारे पुरातन समाज में थीं जिनके प्रमाण उस समय के निर्माण के अवशेषों में मिलते हैं, पर विडंबना यह है कि आज के इस आधुनिक समय में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं. जल संरक्षण की व्यवस्थाओं के अलावा अपने दैनिक कार्यों में सजगता और समझदारी से पानी का उपयोग कर के भी जल संरक्षण किया जा सकता है. जैसे, घर का नल खुला न छोड़ना, साफ-सफाई आदि कार्यों के लिए खारे जल का उपयोग करना, नहाने के लिए उपकरणों की बजाय साधारण बाल्टी आदि का इस्तेमाल करना आदि तमाम ऐसे सरल उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन काफी पानी की बचत कर सकता है.

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि जल संरक्षण के लिए लोगों को सबसे पहले जल के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. जल को खेल-खिलवाड़ की दृष्टि से देखने की बजाय अपनी जरूरत की एक सीमित वस्तु के रूप में देखना होगा.

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि जल समस्या को लेकर दुनिया में बिलकुल भी जागरूकता अभियान नहीं चलाए जा रहे. बेशक, टीवी, रेडियो आदि माध्यमों से इस दिशा में कुछेक प्रयास जरूर हो रहे हैं, लेकिन गंभीरता के अभाव में वे प्रयास कोई बहुत कारगर सिद्ध होते नहीं दिख रहे. लिहाजा, आज जरूरत ये है कि केवल राष्ट्र स्तर पर नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी एक ठोस योजना के तहत घटते भूजल की समस्या के बारे में बताते हुए जागरूकता अभियान चलाया जाए.

क्योंकि, ये एक ऐसी समस्या है जो किसी कायदे-क़ानून से नहीं, लोगों की जागरूकता से ही मिट सकती है. लोग जितना जल्दी जल संरक्षण के प्रति जागरुक होंगे, घटते भूजल स्तर की समस्या से दुनिया को उतनी जल्दी ही राहत मिल सकेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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