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न्यायपालिका के चारों कोने अब महिलाओं के हाथ!

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 13 अप्रिल, 2017 07:06 PM
  • 13 अप्रिल, 2017 07:06 PM
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देश के चार महानगरों के हाईकोर्ट में महिलाएं चीफ जस्टिस के पद पर काबिज हुई हैं. न्यायपालिका भी एक ऐसा क्षेत्र जहां ऊंचे लेवल पर महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर है. जानिए कुछ रोचक तथ्य...

मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई - भारत के इन चार महानगरों को कौन नहीं जानता. मेट्रो शहर होने के अलावा ये हमारी अर्थव्यवस्था धुरी की भी हैं. लेकिन अब इन चारो महानगरों ने एक और उपलब्धि हासिल कर ली है. इन महानगरों के ऐतिहासिक हाईकोर्ट में महिलाएं चीफ जस्टिस के पद पर विराजमान हुई हैं. देश के इतिहास में पहली बार ये मौका आया है जब औपनिवेशिक भारत में बने इन चार उच्च न्यायालयों का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं.

मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस- इंदिरा बनर्जी

देश के उच्च न्यायालयों में महिलाओं के वर्चस्व की शुरुआत अप्रैल 2014 से हुई जब दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति जी रोहिणी को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया था. इसके बाद पिछले साल 22 अगस्त को जस्टिस मंजुला चेल्लूर बॉम्बे हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बनीं. फिर दिसंबर में निशिता निर्मल म्हात्रे कलकत्ता हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनीं और 31 मार्च को मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में इंदिरा बनर्जी की नियुक्ति की गई.

दिल्ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस- जी रोहिणी

हालांकि इन उच्च न्यायालयों में महिला चीफ जस्टिस की नियुक्ति होना एक उपलब्धि है, लेकिन इस खुशी के बावजूद हमारी न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या का एक स्याह सच भी है. हमारे न्यायलायों में महिलाओं की संख्या को अगर देखें तो स्पष्ट होता है कि कुल मिलाकर ये क्षेत्र हमारे यहां अभी भी पुरुषों के वर्चस्व वाला ही है. आप मानें या न मानें, हमारे देश के 24 उच्च न्यायालयों में 632 न्यायाधीश हैं. इनमें से सिर्फ 10.7% (68 महिलाएं) महिलाएं हैं!

मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई - भारत के इन चार महानगरों को कौन नहीं जानता. मेट्रो शहर होने के अलावा ये हमारी अर्थव्यवस्था धुरी की भी हैं. लेकिन अब इन चारो महानगरों ने एक और उपलब्धि हासिल कर ली है. इन महानगरों के ऐतिहासिक हाईकोर्ट में महिलाएं चीफ जस्टिस के पद पर विराजमान हुई हैं. देश के इतिहास में पहली बार ये मौका आया है जब औपनिवेशिक भारत में बने इन चार उच्च न्यायालयों का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं.

मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस- इंदिरा बनर्जी

देश के उच्च न्यायालयों में महिलाओं के वर्चस्व की शुरुआत अप्रैल 2014 से हुई जब दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति जी रोहिणी को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया था. इसके बाद पिछले साल 22 अगस्त को जस्टिस मंजुला चेल्लूर बॉम्बे हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बनीं. फिर दिसंबर में निशिता निर्मल म्हात्रे कलकत्ता हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनीं और 31 मार्च को मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में इंदिरा बनर्जी की नियुक्ति की गई.

दिल्ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस- जी रोहिणी

हालांकि इन उच्च न्यायालयों में महिला चीफ जस्टिस की नियुक्ति होना एक उपलब्धि है, लेकिन इस खुशी के बावजूद हमारी न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या का एक स्याह सच भी है. हमारे न्यायलायों में महिलाओं की संख्या को अगर देखें तो स्पष्ट होता है कि कुल मिलाकर ये क्षेत्र हमारे यहां अभी भी पुरुषों के वर्चस्व वाला ही है. आप मानें या न मानें, हमारे देश के 24 उच्च न्यायालयों में 632 न्यायाधीश हैं. इनमें से सिर्फ 10.7% (68 महिलाएं) महिलाएं हैं!

बॉम्बे हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस- मंजुला चेल्लूर

एक नजर इन उच्च न्यायालयों में महिला जजों की संख्या पर डालें तो और भी कड़वी सच्चाई सामने आ जाती है. दिल्ली उच्च न्यायालय में हर 35 पुरुष जजों की तुलना में केवल 9 महिला जज हैं. दूसरी तरफ मद्रास हाईकोर्ट में तो स्थिति और भी खराब है. यहां हर 53 पुरुष जजों पर सिर्फ 6 महिला जज हैं. बंबई हाईकोर्ट में 61 पुरुष न्यायाधीशों पर 11 महिला न्यायाधीशों की संख्या फिर भी बाकियों की तुलना में थोड़ी बेहतर हैं. हालांकि सबसे बुरा हाल कलकत्ता हाईकोर्ट का है. यहां पुरुष-महिला जजों की संख्या का अनुपात तो 35 में सिर्फ 4 का है.

कलकत्ता हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस- निशिता निर्मल महात्रे

अगर सुप्रीम कोर्ट में महिला जस्टिस की संख्या देखें तो 28 जजों में सिर्फ एक महिला जज श्रीमती आर. बानुमथी हैं. वहीं 1950 में गठित सुप्रीम कोर्ट के इतिहास को देखें तो और भी हैरतअंगेज तस्वीर उभर कर सामने आती है. 1950 से आजतक देश के सर्वोच्च न्यायालय में सिर्फ 6 महिला जजों की नियुक्ति हुई है! सुप्रीम कोर्ट में किसी महिला जज की नियु्क्ति होने में 39 साल लग गए थे. सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाली पहली महिला जज केरल हाईकोर्ट की फातिमा बीवी थी. 1989 में हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद 6 महीने के लिए इन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था. इनके अलावा महाराष्ट्र की सुजाता वी मनोहर, कलकत्ता की रूमा पाल और ज्ञान सुधा मिश्रा हैं.

देश के 24 हाईकोर्ट में से 9 हाईकोर्ट में कोई भी महिला जज नहीं हैं. तीन में सिर्फ एक महिला जज हैं. इन संख्याओं को देखकर निराशा तो होती है लेकिन वो कहते हैं ना उम्मीद पर दुनिया कायम है. तो हमें भी उम्मीद का दामन थामे रहना चाहिए. बदलाव की लौ जलने लगी है बस अब इसे बुझने नहीं देना है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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