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भारत में नाबालिग शादीशुदा लड़कियों के साथ सेक्स रेप नहीं है!

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 28 सितम्बर, 2015 07:26 PM
  • 28 सितम्बर, 2015 07:26 PM
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शादी के रिश्ते को बेहद पवित्र मानते हुए और शादीशुदा रेप की अवधारणा को इंकार करते हुए सरकार ने कहा कि धर्म, विश्वास, शिक्षा के स्तर के कारण भारत में शादीशुदा रेप अपराध नहीं है. आश्चर्य की बात है!

एक ऐसे देश में जहां महिलाओं के साथ साल दर साल रेप के अपराध बढ़ते जा रहे हों और जहां की बच्चियों के साथ हर दिन ऐसी वारदातें सामने आती हों उसी देश का एक कानून नाबालिग लड़कियों, खासकर नाबालिग शादीशुदा लड़कियों को रेप से सुरक्षा प्रदान करने के मामले में गलतफहमियां पैदा कर रहा है और इसमें खामियां नजर आ रही हैं. आइए, जानें नाबालिग शादीशुदा लड़कियों के रेप के मामले में हमारे देश के कानूनी कमियों को?

शादीशुदा नाबालिग लड़कियों से संबंध बनाने की इजाजतः
हाल ही में एक एनजीओ द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग को एक पक्ष बनाया है, जिसने इस बात एक नई बहस छेड़ दी है कि वैवाहिक रेप और खासकर नाबालिग शादीशुदा लड़की के साथ रेप के मामलों में कानून में बदलाव की जरूरत है? दरअसल द इंडिपेंडेंट नाम की एक संस्था ने हाल ही इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) के अनुच्छेद 375 के अपवाद 2 के खिलाफ एक याचिका दायर करके उस प्रावधान की संवैधानिकता पर सवाल उठाया है जिसके मुताबिक, 'किसी आदमी द्वारा अपनी पत्नी, पत्नी के 15 से कम उम्र की न होने पर, के साथ बनाया गया सेक्शुअल इंटरकोर्स रेप नहीं है.' इस एनजीओ ने पूछा है कि कैसे संवैधानिक तौर पर किसी व्यक्ति को अपनी नाबालिग 15 से 18 साल के बीच के उम्र की पत्नी के साथ संबंध बनाने पर रोक नहीं है और न ही ऐसा करना रेप की श्रेणी में आता है, जबकि अन्य मामलों में किसी भी नाबालिग लड़की के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के संबंध बनाना रेप की श्रेणी में आता है.

भारत में वैवाहिक रेप की अवधारणा मान्य नहीं:
हाल ही में एनडीए सरकार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में स्पष्ट किया था कि दुनिया के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को भले ही माना जाता हो लेकिन भारत के मामले में इसे लागू नहीं किया जा सकता है. शादी के रिश्ते को बेहद पवित्र मानते हुए भारत में शादीशुदा रेप की अवधारणा को मानने से इंकार करते हुए सरकार ने कहा कि अपने धर्म, विश्वास, मान्यताओं, शिक्षा के...

एक ऐसे देश में जहां महिलाओं के साथ साल दर साल रेप के अपराध बढ़ते जा रहे हों और जहां की बच्चियों के साथ हर दिन ऐसी वारदातें सामने आती हों उसी देश का एक कानून नाबालिग लड़कियों, खासकर नाबालिग शादीशुदा लड़कियों को रेप से सुरक्षा प्रदान करने के मामले में गलतफहमियां पैदा कर रहा है और इसमें खामियां नजर आ रही हैं. आइए, जानें नाबालिग शादीशुदा लड़कियों के रेप के मामले में हमारे देश के कानूनी कमियों को?

शादीशुदा नाबालिग लड़कियों से संबंध बनाने की इजाजतः
हाल ही में एक एनजीओ द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग को एक पक्ष बनाया है, जिसने इस बात एक नई बहस छेड़ दी है कि वैवाहिक रेप और खासकर नाबालिग शादीशुदा लड़की के साथ रेप के मामलों में कानून में बदलाव की जरूरत है? दरअसल द इंडिपेंडेंट नाम की एक संस्था ने हाल ही इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) के अनुच्छेद 375 के अपवाद 2 के खिलाफ एक याचिका दायर करके उस प्रावधान की संवैधानिकता पर सवाल उठाया है जिसके मुताबिक, 'किसी आदमी द्वारा अपनी पत्नी, पत्नी के 15 से कम उम्र की न होने पर, के साथ बनाया गया सेक्शुअल इंटरकोर्स रेप नहीं है.' इस एनजीओ ने पूछा है कि कैसे संवैधानिक तौर पर किसी व्यक्ति को अपनी नाबालिग 15 से 18 साल के बीच के उम्र की पत्नी के साथ संबंध बनाने पर रोक नहीं है और न ही ऐसा करना रेप की श्रेणी में आता है, जबकि अन्य मामलों में किसी भी नाबालिग लड़की के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के संबंध बनाना रेप की श्रेणी में आता है.

भारत में वैवाहिक रेप की अवधारणा मान्य नहीं:
हाल ही में एनडीए सरकार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में स्पष्ट किया था कि दुनिया के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को भले ही माना जाता हो लेकिन भारत के मामले में इसे लागू नहीं किया जा सकता है. शादी के रिश्ते को बेहद पवित्र मानते हुए भारत में शादीशुदा रेप की अवधारणा को मानने से इंकार करते हुए सरकार ने कहा कि अपने धर्म, विश्वास, मान्यताओं, शिक्षा के स्तर के कारण यह अवधारणा यहां फिट नहीं बैठती है, इसलिए सरकार शादीशुदा रेप को अपराध नहीं मानती है. एनजीओ ने अनुच्छेद 375 के इसी अपवाद 2 को धारा 14,15 और 21 का उल्लंघन मानते हुए कहा कोर्ट से इसे गैरकानूनी घोषित करने की मांग की है.

क्या है धारा 14, 15 और 21:
धारा 14, 15 और 21 में नागरिकों के इन अधिकारों का जिक्र किया गया है. धारा 14 के मुताबिक राज्य भारत की सीमा क्षेत्र में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को कानून या कानून का समान संरक्षण देने में सामनता से इंकार नहीं करेगा. धारा 15 के मुताबिक, राज्य किसी भी नागरिक के साथ सिर्फ धर्म, वर्ग, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के भी कारण भेदभाव नहीं करेगा. धारा 21 के मुताबिक, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षणः किसी भी व्यक्ति को सिर्फ विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन और व्यक्तिगत आजादी से वंचित नहीं किया जाएगा.

कानून में इस कमी से कई तरह के सवाल उठते हैं:
आईपीसी के अनुच्छेद 375 का अपवाद प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज ऐक्ट (पास्को), 2012 के उलट है जोकि बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी से सुरक्षा प्रदान करता है. पहला सवाल यह कि एनडीए सरकार ने विवाह की पवित्रता को बरकरार रखने के लिए वैवाहिक रेप को क्राइम नहीं माना है. तो क्या बाल विवाह पवित्र है? जबकि इसे कानूनी अपराध माना गया है. तो कैसे अनुच्छेद 375 के अपवाद में 15 से 18 साल की नाबालिग शादीशुदा लड़की के साथ संबंध बनाने को रेप नहीं माना गया है?

दूसरा सवाल यह है कि भारत में कानूनी तौर पर 18 साल से कम उम्र की लड़की को नाबालिग माना जाता है लेकिन आईपीसी के अनुच्छेद 375 के अपवाद में कैसे किसी 15 साल से कम उम्र की लड़की को किसी की पत्नी मान लिया गया है, जबकि भारत में कोई भी लड़की 18 साल की उम्र को पार करने के बाद ही कानूनी तौर पर किसी की पत्नी बन सकती है.

भारत में खराब है शादीशुदा बच्चियों और महिलाओं की स्थितिः
भले ही सरकार शादीशुदा रेप को भारत में अपराध न मानती हो लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 75 फीसदी महिलाएं वैवाहिक रेप का शिकार होती हैं. यूएन ने इस रिपोर्ट को जारी करने के साथ ही भारत में वैवाहिक रेप के खिलाफ कानून बनाए जाने का भी सुझाव दिया था. यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है.

भारतीय कानूनों की यह अहम चूक भारत जैसे देश में नाबालिग लड़कियों की मुश्किलें बढ़ाने वाला है क्योंकि ऐसे में न सिर्फ इन नाबालिग लड़कियों की शादियों पर रोक लगाना मुश्किल होगा बल्कि उनके साथ होने वाले यौन अपराधों को रेप न मानने से हालात बदतर ही होंगे. इसलिए जरूरी है कि सरकार वैवाहिक रेप के मामले में नया कानून बनाए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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