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मुस्लिम भी आते हैं प्रभु की शरण में फिर कहने से क्यों डरते हैं!

    • करुणेश कैथल
    • Updated: 02 जून, 2018 12:12 PM
  • 08 फरवरी, 2016 08:51 PM
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हिंदुस्तान जैसे लोकतांत्रिक देश में एक-दूसरे के धर्म स्थलों पर जाएं. एक-दूसरे के त्योहारों व परंपराओं की कद्र करें. कभी भी किसी दूसरे की बातों में आकर किसी भी तरह का साम्प्रदायिक माहौल न बनने दें...

हम सभी अक्सर हिंदू-मुस्लिम के बीच के झगड़े को खबरों में सुनते और देखते आए हैं. बहुत कम ऐसी मिसालें हैं जिनमें हिंदू-मुस्लिम की दोस्ती परवान चढ़ी हैं. हमेशा से मंदिर-मस्जिद को बचाने के लिए इंसानों को कटते-मरते देखा गया है. जिन-जिन घरों ने इस तरह के सांप्रदायिक हिंसों में अपने सदस्यों को खोया है शायद इस दर्द को उन्होंने नजदीक से समझ लिया होगा. ऐसा तो देखा गया है कि हिंदू चादर चढ़ाने दरगाह में जाते रहते हैं. हिंदू मस्जिदों में जाते हैं. अगर मस्जिदों में नमाज अता की जा रही है तो कोई हिंदू सर पर रूमाल बांध कर सबके साथ बैठ जाता है.

हिंदू अक्सर मुस्लिमों के त्योहारों की बधाई अपने मुस्लिमों मित्रों, पड़ोसियों को देते नजर आ जाते हैं. लगभग सभी हिंदू नेता तो इफ्तार पार्टी का आयोजन करते ही करते हैं. चाहे भले ही वो वोट के लिए कर रहे हों. मुस्लिम टोपी पहने भी हिंदू नजर आ जाएंगे. ऐसा शायद ही किसी ने देखा होगा कि कोई मुस्लिम किसी मंदिर में पूर्जा अर्चना करने गया हो. प्रसाद बांट रहा हो. अपने घरों पर भजन-कीर्तन का आयोजन करते हों. अपने हिंदू मित्रों को दुर्गा पूजा, गणेश पूजा जैसे त्योहारों पर बधाई दी हो या किसी मुस्लिम नेता ने हिंदू समुदाय को किन्हीं हिंदू पर्व पर बधाई दी हो. किसी मुस्लिम ने चंदन-टीका लगवाया हो. कुल मिलाकर देखा जाए तो हम सभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर बंटे हुए से नजर आते हैं.

मित्रों, अभी हाल में जो मैंने देखा, मुझे खुद पर यकीन नहीं हुआ कि मुस्लिम लोग भी प्रभु की शरण में आते हैं, मंदिर में आते हैं. प्रसाद ग्रहण करते हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत ही अच्छी पहल मुस्लिम-हिंदू भाईचारे को बढ़ाने की दिशा में है. हालांकि एक सवाल अभी भी है कि अगर हमारे मुस्लिम भाई-बहनें भी मंदिरों में आते हैं, प्रसाद ग्रहण करते हैं तो बताने से क्यों डरते हैं. यह तो अच्छी बात है. सभी धर्म...

हम सभी अक्सर हिंदू-मुस्लिम के बीच के झगड़े को खबरों में सुनते और देखते आए हैं. बहुत कम ऐसी मिसालें हैं जिनमें हिंदू-मुस्लिम की दोस्ती परवान चढ़ी हैं. हमेशा से मंदिर-मस्जिद को बचाने के लिए इंसानों को कटते-मरते देखा गया है. जिन-जिन घरों ने इस तरह के सांप्रदायिक हिंसों में अपने सदस्यों को खोया है शायद इस दर्द को उन्होंने नजदीक से समझ लिया होगा. ऐसा तो देखा गया है कि हिंदू चादर चढ़ाने दरगाह में जाते रहते हैं. हिंदू मस्जिदों में जाते हैं. अगर मस्जिदों में नमाज अता की जा रही है तो कोई हिंदू सर पर रूमाल बांध कर सबके साथ बैठ जाता है.

हिंदू अक्सर मुस्लिमों के त्योहारों की बधाई अपने मुस्लिमों मित्रों, पड़ोसियों को देते नजर आ जाते हैं. लगभग सभी हिंदू नेता तो इफ्तार पार्टी का आयोजन करते ही करते हैं. चाहे भले ही वो वोट के लिए कर रहे हों. मुस्लिम टोपी पहने भी हिंदू नजर आ जाएंगे. ऐसा शायद ही किसी ने देखा होगा कि कोई मुस्लिम किसी मंदिर में पूर्जा अर्चना करने गया हो. प्रसाद बांट रहा हो. अपने घरों पर भजन-कीर्तन का आयोजन करते हों. अपने हिंदू मित्रों को दुर्गा पूजा, गणेश पूजा जैसे त्योहारों पर बधाई दी हो या किसी मुस्लिम नेता ने हिंदू समुदाय को किन्हीं हिंदू पर्व पर बधाई दी हो. किसी मुस्लिम ने चंदन-टीका लगवाया हो. कुल मिलाकर देखा जाए तो हम सभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर बंटे हुए से नजर आते हैं.

मित्रों, अभी हाल में जो मैंने देखा, मुझे खुद पर यकीन नहीं हुआ कि मुस्लिम लोग भी प्रभु की शरण में आते हैं, मंदिर में आते हैं. प्रसाद ग्रहण करते हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत ही अच्छी पहल मुस्लिम-हिंदू भाईचारे को बढ़ाने की दिशा में है. हालांकि एक सवाल अभी भी है कि अगर हमारे मुस्लिम भाई-बहनें भी मंदिरों में आते हैं, प्रसाद ग्रहण करते हैं तो बताने से क्यों डरते हैं. यह तो अच्छी बात है. सभी धर्म के लोग सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों पर जाएं, उनका सम्मान करें. हिंदुस्तान इन्हीं तरह के व्यवहारों के लिए दुनिया में एक अलग पहचान भी रखता है.

हालांकि ऐसे कई और भी मंदिर होंगे जहां पर मुस्लिम जाते होंगे. ऐसा भी हो सकता है कि वे अपनी किसी जरूरत के लिए मंदिरों में जाते हों. लेकिन जब एक दिन मैं अपने एक मित्र को पथरी की बीमारी के इलाज के लिए विवेक विहार स्थिति श्री हनुमान बालाजी मंदिर पहुंचा. जहां पथरी के इलाज के लिए दवा रूपी प्रसाद बिल्कुल मुफ्त दिया जाता है. वहां आप देखेंगे कि पूरी लाईन में हर 10वें या 15वें लोगों के बाद एक न एक हमारे मुस्लिम भाई या बुरके पहने मुस्लिम बहनें नजर आएंगी.

आंध्रप्रदेश के एक मंदिर में पूजा करती मुस्लिम महिलाएं

कई लोगों से चर्चा करने पर समझ में यही आया कि इन लोगों के इस तरह से मंदिरों में आने के पीछे भलाई की उम्मीद छिपी हो सकती है. परंतु मैं कह सकता हूं कि यह दोनों समुदाय के लिए शुभ संकेत हैं. भले ही हमारे मुस्लिम भाई-बहनें मंदिर में जाने की बात छिपाती हों. मैं बस अपने एक संदेश से इस लेख को समाप्त करना चाहूंगा कि हिंदुस्तान जैसे लोकतांत्रिक देश में सभी धर्म के लोग खुलकर एक-दूसरे से बातचीत करें. एक-दूसरे के धर्म स्थलों पर जाएं. एक-दूसरे के त्योहारों व परंपराओं की कद्र करें. कभी भी किसी दूसरे की बातों में आकर किसी भी तरह का साम्प्रदायिक माहौल न बनने दें. क्योंकि इंसान जब तक जीवित है तभी तक सब कुछ है अन्यथा कुछ भी नहीं. मृत्यु पश्चात् कौन कहां जाता, क्या करता है यह रहस्य है और शायद रहस्य ही रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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