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शेक्सपीयर के रोमियो नहीं हैं यूपी के शोहदे

    • स्वप्निल सारस्वत
    • Updated: 29 मार्च, 2017 04:03 PM
  • 29 मार्च, 2017 04:03 PM
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खुद को प्रगतिशील समझने वालों के लिए बहुत आसान है एंटी रोमियो स्क्वॉड के बारे में उल्टा सीधा बोलना, लड़कियां के स्कूलों के आगे मंडराते शोहदों में रोमांस ढूंढ़ना, जिन बदमाशों के चलते लड़कियों की पढ़ाई छिन जाए, उन्हें प्रेम का पुजारी बताना.

महाराष्ट्र के पुणे में बैठकर हाईक्लास सोसाइटी से ताल्लुक रखने वाले तहसीन पूनावाला योगी आदित्यानाथ के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे. पूनावाला की तरह मुंबई-दिल्ली में बैठे पत्रकार बंधु, खुद को प्रगतिशील समझने वाला वर्ग और ‘प्रेम के पैरोकार’ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के फैसले के खिलाफ बोल रहे हैं.

मैं गारंटी के साथ कह सकती हूं कि इनमें से शायद ही किसी ने यूपी के किसी गांव, कस्बे, तहसील या छोटे शहर में अपनी टीनएज गुजारी हो. ये शोहदे घर से स्कूल और स्कूल से घर का रास्ता लड़कियों के लिए कुरूक्षेत्र का युद्ध बना देते हैं. इन्हीं लंपटों की वजह से यूपी में मां-बाप अपनी बच्चियों को अकेला भेजने से परहेज करते हैं. लड़कियों का पहनावा पर रोकटोक शुरू हो जाती है. ताकि शोहदो को छींटाकशी करने का मौका ना मिले. ऐसे स्कूल कॉलेजों को प्राथमिकता दी जाती है जो घर के पास हों. भले ही उनमें लड़कियों के मनपसंद विषय ना पढ़ाए जाते हों. इन शोहदों की वजह से ही छोटे शहरों में लड़के-लड़कियों के बीच बातचीत पर भी कर्फ्यू सा लगा दिया जाता है. उनके बीच स्वस्थ मित्रता विकसित ही नहीं हो पाती. विपरीत लिंग की सोच-समझ का लड़के-लड़कियों को लंबे समय तक पता ही नहीं चलता.

एक पल के लिए मान भी लिया जाए कि इन लंपटों को वाकई ‘प्यार’ हो जाता है, जिस पर पाबंदी लगना गलत है. पर भारतीय कानून के तहत स्टॉकिंग (पीछा करना) अपराध है. बिना मर्जी के किसी 13-14 साल की बच्ची का पीछा करना, उसपर फब्तियां कसना और गंदे इशारे करने को प्रेम कहना प्रेम शब्द का सबसे बड़ा अपमान है. अपनी लंपट हरकतों की वजह से ये शोहदे लड़कियों से छोटी उम्र से ही उनकी हर तरह की आजादी उनका आत्मविश्वास छीन लेते हैं. यही वजह है कि मां-बाप मजबूरी में जैसे तैसे लड़कियों को पढ़ने तो भेज देते हैं पर शाम को पार्क में बच्चियां...

महाराष्ट्र के पुणे में बैठकर हाईक्लास सोसाइटी से ताल्लुक रखने वाले तहसीन पूनावाला योगी आदित्यानाथ के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे. पूनावाला की तरह मुंबई-दिल्ली में बैठे पत्रकार बंधु, खुद को प्रगतिशील समझने वाला वर्ग और ‘प्रेम के पैरोकार’ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के फैसले के खिलाफ बोल रहे हैं.

मैं गारंटी के साथ कह सकती हूं कि इनमें से शायद ही किसी ने यूपी के किसी गांव, कस्बे, तहसील या छोटे शहर में अपनी टीनएज गुजारी हो. ये शोहदे घर से स्कूल और स्कूल से घर का रास्ता लड़कियों के लिए कुरूक्षेत्र का युद्ध बना देते हैं. इन्हीं लंपटों की वजह से यूपी में मां-बाप अपनी बच्चियों को अकेला भेजने से परहेज करते हैं. लड़कियों का पहनावा पर रोकटोक शुरू हो जाती है. ताकि शोहदो को छींटाकशी करने का मौका ना मिले. ऐसे स्कूल कॉलेजों को प्राथमिकता दी जाती है जो घर के पास हों. भले ही उनमें लड़कियों के मनपसंद विषय ना पढ़ाए जाते हों. इन शोहदों की वजह से ही छोटे शहरों में लड़के-लड़कियों के बीच बातचीत पर भी कर्फ्यू सा लगा दिया जाता है. उनके बीच स्वस्थ मित्रता विकसित ही नहीं हो पाती. विपरीत लिंग की सोच-समझ का लड़के-लड़कियों को लंबे समय तक पता ही नहीं चलता.

एक पल के लिए मान भी लिया जाए कि इन लंपटों को वाकई ‘प्यार’ हो जाता है, जिस पर पाबंदी लगना गलत है. पर भारतीय कानून के तहत स्टॉकिंग (पीछा करना) अपराध है. बिना मर्जी के किसी 13-14 साल की बच्ची का पीछा करना, उसपर फब्तियां कसना और गंदे इशारे करने को प्रेम कहना प्रेम शब्द का सबसे बड़ा अपमान है. अपनी लंपट हरकतों की वजह से ये शोहदे लड़कियों से छोटी उम्र से ही उनकी हर तरह की आजादी उनका आत्मविश्वास छीन लेते हैं. यही वजह है कि मां-बाप मजबूरी में जैसे तैसे लड़कियों को पढ़ने तो भेज देते हैं पर शाम को पार्क में बच्चियां खेलने नहीं जाती.

रोमियों की हरकतें लड़कियां को बड़ी होकर तेज-तर्रार, स्मार्ट, कैरियर ओरियंटिड, कॉन्फीडेंट, अपने मत को सामने रखने वाली युवा महिला नहीं बनने देती. अपवादों को छोड़ दें तो टीनएज लाइफ में कुंठाग्रसित मजनुओं की मौजूदगी की वजह से लड़कियों का व्यक्तिव उस तरह विकसित हो ही नहीं पाता. मेरे दफ्तर में एक सहयोगी हैं. लड़का मुंबई का पला-बढ़ा है. उसकी पत्नी जौनपुर से मुंबई आई है ग्रेजुएट है, नौकरी नहीं करती लेकिन वो अकेले ना अस्पताल जा सकती है ना बच्चों के एडमिशन के लिए स्कूल में बात करने. उसे कहीं ले जाना हो तो पति को छुट्टी लेनी पड़ती है. बचपन से ही बच्चियों के मन में कथित रोमियों की वजह से जो हव्वा बैठाला जाता है वो उनके जीवन पर लंबा प्रभाव छोड़ता है. चाहें वो कहीं भी जाकर रहें.

ये रोमियो लड़कियों को कितने गहरे घाव देते हैं इसका अंदाजा लगाना दूसरे के लिए मुश्किल है. ऐसे सड़कछाप रोमियों में रोमांस ढूंढ़ना और भी ज्यादा गलत. तहसीन पूनावाला ने ट्वीट करके लिखा कि 'मैं पत्नी को पीटने वाला पति बनने से रोमियो बनना पसंद करूंगा.'

उन्हें समझना होगा कि यूपी में जिन रोमियों की बात की हो रही है वो शेक्सपीयर वाला आदर्श चरित्र का रोमियो नहीं हैं. जो परिवार समाज के विरोध के बावजूद जूलियट से शादी करता है, और उसके मरने की झूठी खबर सुनकर अपनी जान ले लेता है. ये रोमियो लड़िकयों को, बच्चियों को खिलौना समझ कर छेड़खानी करने वाले उनका जीना हराम करने वाले कुंठित युवक हैं. जिनकी खुद की जिंदगी का लक्ष्य नहीं होता और लड़कियों की जिंदगी के लिए भी राहु-केतु बन जाते हैं. ये घटिया सोच वाले रोमियो सोचते हैं कि वो लड़के हैं और लड़कियों से छेड़खानी करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है. ये स्लो-पॉइजन की तरह लड़कियों की जिंदगी में काम करते हैं. पढ़े लिखे मां-बाप भी लड़कियों को आगे पढ़ाने, कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कराने उनके सपनों को पंख देने की जगह कामना करते हैं कि जल्द उनकी शादी कर दें. देरी की तो ‘ऊंच-नीच’ का खतरा है.

इसी हफ्ते खबर आई कि गाजियाबाद में एक लड़की ने छेड़खानी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली. कितनी महत्वाकांक्षी लड़कियों के सपने इन उद्देश्यविहीन रोमियों की बलि चढ़ जाते हैं इसका सर्वे करवाया जाना चाहिए. कपल को पकड़ना, उन्हें परेशान करने की वकालत कोई नहीं कर सकता. लेकिन इसकी आड़ में एक गंभीर समस्या को नजरअंदाज करना मासूम बच्चियों के साथ नाइंसाफी होगी. एंडी रोमियो स्क्वॉड नाम, उद्देश्य के साथ न्याय नहीं करता. इसका नाम बदला जाना चाहिए. रोमियो तभी होगा जब उसके साथ जूलियट हो. वर्ना वो सड़कछाप शोहदा है. हां अगर अपनी मर्जी से डेट कर रहे कपल पर पुलिस का डंडा चलेगा तो इस  स्क्वॉड का कोई मतलब नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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