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'किसान बाप' से क्यों ज्यादा दर्दनाक है 'किसान मां' की आत्महत्या

    • चंदन कुमार
    • Updated: 07 सितम्बर, 2015 04:50 PM
  • 07 सितम्बर, 2015 04:50 PM
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'किसान मां'! ऐसी मां, जो पहले एक किसान है और उसके बाद जो कुछ हिम्मत-ताकत-ममत्व उसके शरीर में बच जाता है, तब वो मां है. किसान जब तक साथ देता है, मां जिंदा है... किसान के दम तोड़ते ही...

यह देश किसानों का देश है - आंकड़े और नेता लोग बार-बार यह कहते हैं. तो सबसे पहले किसानों के इस देश में आपका स्वागत है. स्वागत है क्योंकि आज किसी भी बच्चे के 'बाप किसान' ने आत्महत्या नहीं की है. की भी होगी तो खबर बन नहीं पाई... आज खबर यह है कि पांच बच्चों की 'किसान मां' ने आत्महत्या कर ली है.

पांच बच्चों को भूखा छोड़ मां ने आत्महत्या कर ली! एकदम 'हत्यारिन' रही होगी वो मां... क्या उसे अपने बच्चों पर मोह न आया... क्या बच्चों को अपने ऐसे पति, जो दिन भर काम की तलाश में निकल जाता है, के सहारे छोड़ जाते वक्त उसका मातृत्व नहीं छलका... नहीं छलका होगा, कोई दया-कोई मोह नहीं आया होगा क्योंकि... क्योंकि वो सिर्फ एक मां नहीं थी... वो एक 'किसान मां' थी.    

'किसान मां'!!! जी हां, 'किसान मां'. ऐसी मां, जो पहले एक किसान है और उसके बाद जो कुछ हिम्मत-ताकत-ममत्व उसके शरीर में बच जाता है, उसके बाद वो मां है. किसान जब तक साथ देता है, मां की सांस चलती रहती है. किसान के दम तोड़ते ही मां के पास आत्महत्या करने के अलावा क्या रास्ता रह जाता है भला!

महाराष्ट्र के ओसमनाबाद जिले की मनीषा गटकल भी एक 'किसान मां' थी. जिस घर में उसने केरोसिन छिड़क कर आत्महत्या की, उसमें अनाज के नाम पर एक एल्युमिनियम प्लेट में दो रोटियां पड़ी थीं... और गेहूं, चावल की पेटियों के साथ-साथ तेल की बोतल भी थी - पर खाली. उन दो रोटियों के अलावा घर में खाने के लायक या खाना बनने के लायक कुछ भी नहीं था.

 मनीषा गटकल की फाइल फोटो


ओसमनाबाद उसी मराठवाड़ा क्षेत्र में आता है, जहां इस साल अब तक 628 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. पिछले साल इनकी संख्या 574 थी. आत्महत्या की...

यह देश किसानों का देश है - आंकड़े और नेता लोग बार-बार यह कहते हैं. तो सबसे पहले किसानों के इस देश में आपका स्वागत है. स्वागत है क्योंकि आज किसी भी बच्चे के 'बाप किसान' ने आत्महत्या नहीं की है. की भी होगी तो खबर बन नहीं पाई... आज खबर यह है कि पांच बच्चों की 'किसान मां' ने आत्महत्या कर ली है.

पांच बच्चों को भूखा छोड़ मां ने आत्महत्या कर ली! एकदम 'हत्यारिन' रही होगी वो मां... क्या उसे अपने बच्चों पर मोह न आया... क्या बच्चों को अपने ऐसे पति, जो दिन भर काम की तलाश में निकल जाता है, के सहारे छोड़ जाते वक्त उसका मातृत्व नहीं छलका... नहीं छलका होगा, कोई दया-कोई मोह नहीं आया होगा क्योंकि... क्योंकि वो सिर्फ एक मां नहीं थी... वो एक 'किसान मां' थी.    

'किसान मां'!!! जी हां, 'किसान मां'. ऐसी मां, जो पहले एक किसान है और उसके बाद जो कुछ हिम्मत-ताकत-ममत्व उसके शरीर में बच जाता है, उसके बाद वो मां है. किसान जब तक साथ देता है, मां की सांस चलती रहती है. किसान के दम तोड़ते ही मां के पास आत्महत्या करने के अलावा क्या रास्ता रह जाता है भला!

महाराष्ट्र के ओसमनाबाद जिले की मनीषा गटकल भी एक 'किसान मां' थी. जिस घर में उसने केरोसिन छिड़क कर आत्महत्या की, उसमें अनाज के नाम पर एक एल्युमिनियम प्लेट में दो रोटियां पड़ी थीं... और गेहूं, चावल की पेटियों के साथ-साथ तेल की बोतल भी थी - पर खाली. उन दो रोटियों के अलावा घर में खाने के लायक या खाना बनने के लायक कुछ भी नहीं था.

 मनीषा गटकल की फाइल फोटो


ओसमनाबाद उसी मराठवाड़ा क्षेत्र में आता है, जहां इस साल अब तक 628 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. पिछले साल इनकी संख्या 574 थी. आत्महत्या की बढ़ती संख्या के पीछे की वजह है - लगातार तीन वर्षों से पड़ रहा सूखा. एक हफ्ते पहले ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस मराठवाड़ा के किसानों से मिल कर गए हैं. मनरेगा के तहत 'कुछ और काम' दिलाने का भरोसा दिला गए हैं.  

शीर्षक में लिखे 'ज्यादा दर्दनाक' पहलू को अभी तक नहीं समझ पाए हैं तो वो यह है - न तो मनीषा गटकल और न ही उसके पति लक्ष्मण ने किसी भी तरह का कोई लोन लिया है. वही लोन, जिसे कुछ आत्महत्याओं के पीछे की वजह बताई जाती है. वही लोन, जिसके कारण 'बाप किसान' की आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है... वही लोन, जिसके भार तले नहीं बल्कि किसानी की तकलीफ और दर्द में धीरे-धीरे टूट कर 'किसान मां' की आत्महत्या ज्यादा दर्दनाक हो जाती है...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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