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सऊदी अरब और ISIS के ‘इंसाफ’ में ज्यादा फर्क नहीं

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 03 जनवरी, 2016 11:34 AM
  • 03 जनवरी, 2016 11:34 AM
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सऊदी अरब में प्रमुख शिया धर्मगुरु निम्र अल निम्र सहित 47 लोगों को आतंकवाद के आरोपों में फांसी पर चढ़ा दिया गया. इससे पहले 19 साल के एक युवा को मौत की सजा इसलिए दे दी गई है क्योंकि राजघराने के खिलाफ हो रहे एक रैली के पास उसे पाया गया.

सऊदी अरब में प्रमुख शिया धर्मगुरु निम्र अल निम्र सहित 47 लोगों को आतंकवाद के आरोपों में फांसी पर चढ़ा दिया गया. शिया बहुल ईरान ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. जबकि सऊदी अरब सुन्नी बहुल है. साऊदी अरब के अनुसार फांसी पर लटाकाए गए लोगों में अधिकांश सऊदी नागरिक हैं. उनपर 2003-06 के बीच अल कायदा द्वारा किए गए सिलसिलेवार हमलों में शामिल होने का आरोप था.

ज्यादा दिन नहीं हुए जब सऊदी अरब में 19 साल के एक लड़के का सिर कलम कर उसकी लाश सुली पर लटका दिए जाने का फरमान जारी हुआ था. अब्दुल्ला अल-जहेर का कुसूर सिर्फ यह था कि तीन साल पहले वह उस जगह चला गया था, जहां सऊदी शाही परिवार के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था.

हालांकि, ऐसी सजा सऊदी अरब में कोई नई बात नहीं है. दुनिया में आज केवल सऊदी अरब में ही इस्लामिक कानून के मुताबिक मौत की सजा दी जाती है. इसके अलावा इस्लामिक स्टेट के नाम से कुख्याित उत्ततरी सीरिया और इराक के इलाके पर काबिज आतंकी संगठन ISIS भी इसी आधार पर मौत की सजा देता है.

ओसामा बिन लादेन एक सऊदी नागरिक था. उसके द्वारा बनाया गया आतंकी संगठन अल कायदा का प्रमुख उद्देश्य इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ जेहाद था जिसमें दुश्मनों को बड़ी संख्या में मारा जाना था. अमेरिकी एम्बेसी बॉम्बिंग, 9-11 हमला और बाली बॉम्बिंग उसके बड़े आतंकी कारनामे रहे हैं. इसके साथ ही उदार मुसलिम, शिया और सूफी उसके लिए अधर्मी है लिहाजा उन्हें कत्ल करना इस आतंकी संगठन के लिए जेहाद था. इस आतंकी संगठन के शीर्ष में पर कट्टर साउदी नागरिक शुमार थे. बहरहाल 9-11 हमलों के बाद अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने ओसामा बिन लादेन का कत्ल कर अल कायदा को प्रभावहीन कर दिया.

अल कायदा के बाद इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने जेहाद का बीड़ा अपने हाथ में लिया. ईराक और सीरिया को इस्लामिक स्टेट बनाने के मकसद से इस आतंकी संगठन ने नया कलेवर तैयार किया. पश्चिमी देशों के गठजोड़ का ईराक पर हमला ईराक और सऊदी अरब के कई कट्टरपंथियों को नागवार गुजरा. सद्दाम हुसैन का कत्ल उन्हें नागवार...

सऊदी अरब में प्रमुख शिया धर्मगुरु निम्र अल निम्र सहित 47 लोगों को आतंकवाद के आरोपों में फांसी पर चढ़ा दिया गया. शिया बहुल ईरान ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. जबकि सऊदी अरब सुन्नी बहुल है. साऊदी अरब के अनुसार फांसी पर लटाकाए गए लोगों में अधिकांश सऊदी नागरिक हैं. उनपर 2003-06 के बीच अल कायदा द्वारा किए गए सिलसिलेवार हमलों में शामिल होने का आरोप था.

ज्यादा दिन नहीं हुए जब सऊदी अरब में 19 साल के एक लड़के का सिर कलम कर उसकी लाश सुली पर लटका दिए जाने का फरमान जारी हुआ था. अब्दुल्ला अल-जहेर का कुसूर सिर्फ यह था कि तीन साल पहले वह उस जगह चला गया था, जहां सऊदी शाही परिवार के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था.

हालांकि, ऐसी सजा सऊदी अरब में कोई नई बात नहीं है. दुनिया में आज केवल सऊदी अरब में ही इस्लामिक कानून के मुताबिक मौत की सजा दी जाती है. इसके अलावा इस्लामिक स्टेट के नाम से कुख्याित उत्ततरी सीरिया और इराक के इलाके पर काबिज आतंकी संगठन ISIS भी इसी आधार पर मौत की सजा देता है.

ओसामा बिन लादेन एक सऊदी नागरिक था. उसके द्वारा बनाया गया आतंकी संगठन अल कायदा का प्रमुख उद्देश्य इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ जेहाद था जिसमें दुश्मनों को बड़ी संख्या में मारा जाना था. अमेरिकी एम्बेसी बॉम्बिंग, 9-11 हमला और बाली बॉम्बिंग उसके बड़े आतंकी कारनामे रहे हैं. इसके साथ ही उदार मुसलिम, शिया और सूफी उसके लिए अधर्मी है लिहाजा उन्हें कत्ल करना इस आतंकी संगठन के लिए जेहाद था. इस आतंकी संगठन के शीर्ष में पर कट्टर साउदी नागरिक शुमार थे. बहरहाल 9-11 हमलों के बाद अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने ओसामा बिन लादेन का कत्ल कर अल कायदा को प्रभावहीन कर दिया.

अल कायदा के बाद इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने जेहाद का बीड़ा अपने हाथ में लिया. ईराक और सीरिया को इस्लामिक स्टेट बनाने के मकसद से इस आतंकी संगठन ने नया कलेवर तैयार किया. पश्चिमी देशों के गठजोड़ का ईराक पर हमला ईराक और सऊदी अरब के कई कट्टरपंथियों को नागवार गुजरा. सद्दाम हुसैन का कत्ल उन्हें नागवार गुजरा. इस कार्रवाई में सऊदी सरकार की अमेरिका को मदद दिया जाना भी उन्हें नहीं पसंद आया, लिहाजा सउदी रॉयल फैमली इस नए संगठन को नागवार गुजर रही है.

लिहाजा, आईएस के जेहाद में सीरिया को असद मुक्त कराने और सऊदी अरब को रॉयल फैमली से मुक्त करा नए इस्लामिक स्टेट की स्थापना करना भी जुड़ गया. जहां अलकायदा एक अंडरग्राउंड ऑपरेशन के तहत पश्चिमी देशों में आतंकी वारदात को अंजाम देने की कोशिश में रहता था वहीं आईएस खुद को एक राज्य का दर्जा देता है और अत्याधुनिक हथियारों से लैस एक फौज के साथ आतंक को अंजाम दे रहा है. आईएस का जेहाद दुनिया को इस्लाम के विरोधियों से मुक्त कर इस्लामिक स्टेट की स्थापना करना है लिहाजा इस्लाम विरोधियों को सजा देने के लिए इसने सऊदी अरब की तर्ज पर हदीस का सहारा लिया है.

ISIS और सऊदी अरब में मौत की सजा किसे दी जानी है यह हदीस के मुताबिक तय है. सजा कैसे दी जानी है यह भी हदीस के मुताबिक तय है. लिहाजा, दोनों सऊदी अरब और इस्लामिक स्टेट ईश निंदा, कत्ल, राज-द्रोह, व्यभिचार, चोरी और डकैती के लिए मौत की सजा देते हैं. जहां सऊदी अरब में इस्लामिक कोर्ट तय करती है कि गुनहगार को सजा कैसे दी जाए वहीं आईएस की कमान संभाल रहे शीर्ष आतंकी तय करते हैं कि मौत देने का तरीका कैसा होगा.

गौरतलब है कि साल 1912 के आसपास सऊदी किंगडम की स्थापना करने वाले इब्न सऊद ने ट्राइबल इलाकों के लड़ाकों की एक फौज इखवान बनाकर उन्हें मौत की सजा देने के लिए तैयार किया था. इन लड़ाकों का काम उन मुसलमानों को निर्मम तरीके से मौत के घाट उतारना था जो सऊदी राजघराने के विरोध में थे. आज सऊदी अरब राजघराने को राज करते सौ साल से ज्यादा हो चुका है और इस दौरान वहां शरिया कानून के मुताबिक कोर्ट स्थापित हैं जो मौत के फरमान को हदीस के मुताबिक देने का काम करती हैं. वहीं आईएस फिलहाल अपने लिए स्टेट की सीमा खींचने में लगा है और मौत की सजा देने का फैसला कोर्ट की जगह सड़क पर संगठन के शीर्ष आतंकी करते हैं.

 

गुनाह सजा- ISIS     

सजा- साउदी अरब

ईश निंदा मौत मौत
कत्ल  मौत मौत
राज-द्रोह मौत मौत
व्यभिचार पत्थर मारकर मौत पत्थर मारकर मौत
चोरी हाथ काटना हाथ काटना
डकैती हाथ-पैर काटना हाथ-पैर काटना

अब इतना तो साफ है कि दोनों सऊदी अरब और आईएस में मौत की सजा का प्रचलन है. यही एक देश और एक आतंकी संगठन का कनेक्शन भी है. किन गुनाहों के लिए क्या सजा दी जानी है वह भी हू-ब-हू है. हां फर्क यही है कि सऊदी अरब के पास एक कोर्ट है जो इस्लाम के नाम पर सजा दे रही है वहीं ISIS का कोर्ट सड़क पर लग रहा है और वह भी इस्लाम के नाम पर सजा देने का काम कर रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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