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अखलाक और डॉक्टर नारंग की हत्या में फर्क क्या है?

    • आईचौक
    • Updated: 26 मार्च, 2016 06:03 PM
  • 26 मार्च, 2016 06:03 PM
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जिस तरह अखलाक की हत्या के बाद कुछ लोगों ने असहिष्णुता का मुद्दा छेड़ दिया था. ठीक वैसी ही कोशिश अब हो रही है. मतलब, इसे सांप्रदायिक रंग देने की. ट्विटर पर जहर उगलने की होड़ सी मच गई है.

पिछले साल बिहार चुनाव से पहले दादरी में जो हुआ और अब जो दिल्ली के विकासपुरी में हुआ, दोनों घटनाओं को आप किस नजर से देखते हैं? दिल्ली के विकासपुरी में जिस तरह कुछ उन्मादी युवकों ने डॉक्टर पंकज नारंग की पीट-पीटकर हत्या की, उसने कई सवाल तो खड़े किए ही. कई जवाब भी दे दिए. लेकिन हम यहां सवालों की नहीं जवाबों की बात करेंगे. जवाब इसका कि किसी हत्या पर राजनीति कैसे की जाती है और कैसे उसका सहारा लेकर एक भयावह माहौल खड़ा करने की कोशिश की जा सकती है.

अखलाक की हत्या के बाद बहस चल पड़ी थी कि देश में असहिष्णुता बढ़ गई है! अवॉर्ड वापसी की होड़ लग गई. पता नहीं किन-किन विषयों पर मंथन हुआ. ऐसी बातें होने लगी जैसे कयामत आने वाली हो. अब बात डॉक्टर नारंग की हत्या की. शनिवार को ट्विटर पर #JusticeForDrNarang ट्रेंड करने लगा. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने बहुत कुछ लिखा. लेकिन खतरनाक बात ये कि जिस तरह अखलाक की हत्या के बाद कुछ लोगों ने असहिष्णुता का मुद्दा छेड़ दिया था. ठीक वैसी ही कोशिश अब हो रही है. मतलब, इसे सांप्रदायिक रंग देने की. ट्विटर पर जहर उगलने की होड़ सी मच गई. कुछ तो ये बताने लगे कि भारत में हिंदू खतरे में हैं. अब इससे निपटने का समय आ गया है.

भ्रामक तरीके से गंलत मैसेज व्हाट्सअप और फेसबुक के जरिए शेयर किए गए. आरोपियों को बांग्लादेशी मुस्लिम बताया गया तो कहीं कुछ और. जबकि असलियत कुछ और है. पंकज की हत्या में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के युवक शामिल थे. कोई बांग्लादेश का नहीं है. न अखलाक की हत्या के समय देश में असहिष्णुता बढ़ी थी और न आज हिंदू खतरे में हैं.

दिल्ली पुलिस की डीसीपी मोनिका भारद्वाज का ट्वीट-

वैसे, ट्विटर के जरिए कुछ लोगों ने जरूर सार्थक सवाल रखे. इसका जवाब हमारे सियासतदानों...

पिछले साल बिहार चुनाव से पहले दादरी में जो हुआ और अब जो दिल्ली के विकासपुरी में हुआ, दोनों घटनाओं को आप किस नजर से देखते हैं? दिल्ली के विकासपुरी में जिस तरह कुछ उन्मादी युवकों ने डॉक्टर पंकज नारंग की पीट-पीटकर हत्या की, उसने कई सवाल तो खड़े किए ही. कई जवाब भी दे दिए. लेकिन हम यहां सवालों की नहीं जवाबों की बात करेंगे. जवाब इसका कि किसी हत्या पर राजनीति कैसे की जाती है और कैसे उसका सहारा लेकर एक भयावह माहौल खड़ा करने की कोशिश की जा सकती है.

अखलाक की हत्या के बाद बहस चल पड़ी थी कि देश में असहिष्णुता बढ़ गई है! अवॉर्ड वापसी की होड़ लग गई. पता नहीं किन-किन विषयों पर मंथन हुआ. ऐसी बातें होने लगी जैसे कयामत आने वाली हो. अब बात डॉक्टर नारंग की हत्या की. शनिवार को ट्विटर पर #JusticeForDrNarang ट्रेंड करने लगा. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने बहुत कुछ लिखा. लेकिन खतरनाक बात ये कि जिस तरह अखलाक की हत्या के बाद कुछ लोगों ने असहिष्णुता का मुद्दा छेड़ दिया था. ठीक वैसी ही कोशिश अब हो रही है. मतलब, इसे सांप्रदायिक रंग देने की. ट्विटर पर जहर उगलने की होड़ सी मच गई. कुछ तो ये बताने लगे कि भारत में हिंदू खतरे में हैं. अब इससे निपटने का समय आ गया है.

भ्रामक तरीके से गंलत मैसेज व्हाट्सअप और फेसबुक के जरिए शेयर किए गए. आरोपियों को बांग्लादेशी मुस्लिम बताया गया तो कहीं कुछ और. जबकि असलियत कुछ और है. पंकज की हत्या में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के युवक शामिल थे. कोई बांग्लादेश का नहीं है. न अखलाक की हत्या के समय देश में असहिष्णुता बढ़ी थी और न आज हिंदू खतरे में हैं.

दिल्ली पुलिस की डीसीपी मोनिका भारद्वाज का ट्वीट-

वैसे, ट्विटर के जरिए कुछ लोगों ने जरूर सार्थक सवाल रखे. इसका जवाब हमारे सियासतदानों को देना चाहिए जो हर मामले को अत्यधिक तूल देने में संकोच नहीं करते. क्योंकि क्या पता अगर पंकज नारंग की जगह किसी और धर्म के व्यक्ति के साथ ऐसा कुछ होता तो फिर एक बार फिर सहिष्णुता-असहिष्णुता की पोथी लेकर हम बैठ जाते. इसमें कुछ हद तक भूमिका मीडिया की भी है. इसलिए जरूरी है कि घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देने की बजाए इन सवालों के जवाब दिए जाएं जो ट्विटर के जरिए लोगों ने पूछे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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