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लड़कों को ना कहने भर से नहीं रूकेंगे रेप

    • मेघना पंत
    • Updated: 08 जुलाई, 2015 12:59 PM
  • 08 जुलाई, 2015 12:59 PM
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कंसेंट कल्चर अपने आप में सांता क्लॉज की तरह है. लेकिन क्या यह सिद्धांत भारत में काम कर सकता है. क्या हम इससे यहां रेप रोके जा सकते हैं?

रेप जैसी समस्या कैसे खत्म की जाए. महिलाओं को यह समझाने के बदले, हमें लड़कों को रेप नहीं करने के बारे में बताना चाहिए. अमेरिका की लेखिका जर्लिना मैक्सवेल द्वारा लोकप्रिय किए गए 'कंसेंट कल्चर' का यही सार है.

कंसेंट कल्चर (सहमति) हमारे समाज की सोच में धीरे-धीरे एक बदलाव लाने की कोशिश है. यह एक तरीका है जहां हम समाज में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के व्यवहार को सवालों के घेरे में रखते हैं. पीड़िता के बदले अपराध करने वालों पर सवाल उठाते हैं.

मैंने इस अवधारणा को सैद्धांतिक रूप से समझा. इसके अनुसार हमें लड़कों को यह बेसिक बात समझानी चाहिए कि 'नहीं का मतलब नहीं' ही होता है. पौरुष की परिभाषा हमें नए सिरे से लड़कों को समझाने की जरूरत है. पीड़िता को दोषी ठहराने की बजाए हमें अपराध करने वालों को शर्मिंदा होने पर विवश करना चाहिए. साथ ही हमें समाज की सोच को बदलने की जरूरत है. जहां किसी महिला के साथ कोई यौन अपराध होने के बाद हम उसे ही शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देते हैं.

आखिरकार, रेप के खिलाफ महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप पुरुषों को इस अपराध के खिलाफ तैयार करें. कंसेंट कल्चर अपने आप में बेहद अलग और प्यारा है. बहुत हद तक सांता क्लॉज की तरह. लेकिन क्या यह सिद्धांत भारत में काम कर सकता है. क्या हम अपने कंसेंट कल्चर को और विकसित करें तो रेप यहां रोके जा सकते हैं?

नहीं.

क्यों नही?

क्योंकि हम कंसेंट की बात कर रहे हैं. क्योंकि हम पुरुषों से नहीं, जानवरों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं. आप जब तक इस आर्टिकल को पढ़ कर शेयर करेंगे, एक रेप हो चुका होगा.

अपनी मां, बहन से या अपनी पत्नी से पूछिए. खुद से पूछिए. ज्यादातर भारतीय महिलाएं कहीं न कहीं यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं. क्या मर्द बसों में हमें छूने से पहले हमारी मर्जी पूछते हैं, राह चलते हमें परेशान करते हुए या छेड़ते हुए.

नहीं. वे छूने से शरुआत करते हैं. इसके बाद उनका हौसला और बढ़ता है. फिर हमसे और चिपकने की कोशिश...

रेप जैसी समस्या कैसे खत्म की जाए. महिलाओं को यह समझाने के बदले, हमें लड़कों को रेप नहीं करने के बारे में बताना चाहिए. अमेरिका की लेखिका जर्लिना मैक्सवेल द्वारा लोकप्रिय किए गए 'कंसेंट कल्चर' का यही सार है.

कंसेंट कल्चर (सहमति) हमारे समाज की सोच में धीरे-धीरे एक बदलाव लाने की कोशिश है. यह एक तरीका है जहां हम समाज में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के व्यवहार को सवालों के घेरे में रखते हैं. पीड़िता के बदले अपराध करने वालों पर सवाल उठाते हैं.

मैंने इस अवधारणा को सैद्धांतिक रूप से समझा. इसके अनुसार हमें लड़कों को यह बेसिक बात समझानी चाहिए कि 'नहीं का मतलब नहीं' ही होता है. पौरुष की परिभाषा हमें नए सिरे से लड़कों को समझाने की जरूरत है. पीड़िता को दोषी ठहराने की बजाए हमें अपराध करने वालों को शर्मिंदा होने पर विवश करना चाहिए. साथ ही हमें समाज की सोच को बदलने की जरूरत है. जहां किसी महिला के साथ कोई यौन अपराध होने के बाद हम उसे ही शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देते हैं.

आखिरकार, रेप के खिलाफ महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप पुरुषों को इस अपराध के खिलाफ तैयार करें. कंसेंट कल्चर अपने आप में बेहद अलग और प्यारा है. बहुत हद तक सांता क्लॉज की तरह. लेकिन क्या यह सिद्धांत भारत में काम कर सकता है. क्या हम अपने कंसेंट कल्चर को और विकसित करें तो रेप यहां रोके जा सकते हैं?

नहीं.

क्यों नही?

क्योंकि हम कंसेंट की बात कर रहे हैं. क्योंकि हम पुरुषों से नहीं, जानवरों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं. आप जब तक इस आर्टिकल को पढ़ कर शेयर करेंगे, एक रेप हो चुका होगा.

अपनी मां, बहन से या अपनी पत्नी से पूछिए. खुद से पूछिए. ज्यादातर भारतीय महिलाएं कहीं न कहीं यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं. क्या मर्द बसों में हमें छूने से पहले हमारी मर्जी पूछते हैं, राह चलते हमें परेशान करते हुए या छेड़ते हुए.

नहीं. वे छूने से शरुआत करते हैं. इसके बाद उनका हौसला और बढ़ता है. फिर हमसे और चिपकने की कोशिश करते हैं. अगली बार वह सीमा को और लांघते हैं. वे फिर देखते हैं कि लड़की तो अकेली है. असहाय है तो उन्हें खुद को रोकने की क्या जरूरत.

उस पुरुष को पता है वह अपराध के बावजूद दोषी नहीं ठहराया जाएगा. समाज की ओर से पुरुषों को हमेशा ऐसे मामलों में अपराधी नहीं माना जाता.

हम तो कंसेंट की बात ही नहीं कर सकते क्योंकि हमारे साथ होने वाले रेप हमेशा दर्दनाक और भयावह होते हैं. वे बलात्कारी हमेशा इसे महिलाओं पर वर्चस्व के तौर पर पेश करने की कोशिश करते हैं. पूरी दुनिया में रेप से महिलाओं को किसी एक इमेज में बांधने या उनके खिलाफ अमानवीय व्यवहार की कोशिश होती है. लेकिन भारत में इससे भी आगे उन्हें असहाय बना दिया जाता है.

हम अपने पुरुषों को, लड़कों को नहीं बदल सकते. हम महिलाएं ही केवल खुद को बदल सकती हैं. क्योंकि हम एक बात से सहमत हैं कि हम कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं.

हम कभी भी वह नहीं पहन सकेंगी जो हम चाहती हैं. हम अपनी मर्जी की जगह पर घूमने नहीं जा सकतीं. रात में बाहर जाने से पहले दो बार सोचना ही होगा. 40 डिग्री की गर्मी में पूरे शरीर को ढंकना, पेपर स्प्रे लेकर चलना, कराटे सीखना, पुरुषों से दूरी बनाए रखना, खुद को अपने अधिकार के बारे में और शिक्षित करना और वुमेन इंम्पावरमेंट से जुड़े किसी और एक्ट्रेस का वीडियो देखना, हम यह सब करते रहेंगे.

हमने अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे. मर्दों को आकर्षित करने की कोशिश नहीं करेंगे. छोटे कपड़े नहीं पहनेंगे. कोई मर्द हमारा नाजायज फायदा उठाएगा और हम किसी परदे में शर्म के कारण चुप रहेंगे. खुद के स्त्री होने की सजा भुगतेंगे.

समाज बदलने तक पुरुषों को रेप नहीं करने की हिदायत देने की बजाय महिलाओं को रेप से बचने की तरकीब बताते रहेंगे. तब तक भारत की सभी बेटियां और मां असुरक्षित रहेंगी. और हम सब इस बात से सहमत तो हैं ही.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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