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ये कौन लोग हैं जो बलात्कारियों के लिए रहम की मांग करते हैं..

    • विनीत कुमार
    • Updated: 13 दिसम्बर, 2015 02:12 PM
  • 13 दिसम्बर, 2015 02:12 PM
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ये कैसा कानून है जहां हम रेप को अंजाम देने वालों की पहचान को छिपाने की बात करते हैं. उन्हें कम सजा देने की सिफारिश करने लगते हैं. अपराधियों पर रहनुमाई की पैरवी करने लगते हैं.

16 दिसंबर, 2012 का वो हादसा. निर्भया के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे देश को झकझोर दिया. लेकिन उस घटना के 10 महीने पहले कोलकाता की सड़कों पर भी इसी तरह की एक दरिंदगी सामने आई थी, जब सुजैट जॉर्डन इसका शिकार हुईं. निर्भया गैंगरेप पर विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने अपनी मर्जी से अपनी पहचान सार्वजनिक की. इसी साल लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ. कोर्ट ने अब पार्क स्ट्रीट गैंगरेप में दोषी पाए गए तीन लोगों नासिर खान, रुमन खान और सुमित बजाज को दस-दस साल की सजा सुनाई है. लेकिन हैरानी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर शरबनी रे के बारे में सुन कर हो रही है. उन्होंने जज से तीनों दोषियों को कम से कम सजा देने की गुहार की.

पश्चिम बंगाल सरकार ने मामला सामने आने के बाद शरबनी को सरकारी वकील के पद से हटा दिया है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि एक सरकारी वकील होते हुए भी शरबनी ने ऐसा क्यों किया. वो भी सरकार से सलाह किए बगैर. वो तो सुजैट के लिए लड़ाई लड़ रहीं थी! रेप के मामले में अधिकतम सजा आजीवन कारावास है. तो क्या ये नहीं समझा जाए कि सरकारी वकील की गुहार को देखते हुए ही कोर्ट ने तीनों को दस-दस साल की सजा सुनाई. आखिर ये कैसे लोग हैं जो बलात्कारियों पर रहम की मांग करने लगते हैं.

आतंकवाद से ज्यादा बड़े गुनहगार हैं ऐसे लोग

याकूब मेमन को फांसी दी जाए या नहीं, इसे लेकर समाज दो धड़ो में बंट गया था. सब अपने-अपने हिसाब से दलील दे रहे थे. लेकिन पार्क स्ट्रीट गैंगरेप का मामला तो उससे भी खतरनाक लगता है. दोषियों को कम से कम सजा देने की सिफारिश वाली ये कैसी मानसिकता है! वो भी तब जब सुजैट इस दुनिया में नहीं हैं. कम से कम शरबनी इसका ही ख्याल कर लेतीं.

निर्भया गैंगरेप मामले के बाद महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के खिलाफ कैसे पूरे देश में एक बेचैनी का माहौल बना था. कानून में सुधार हुआ. जूवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव तक की मांग उठी. उम्र की सीमा को 18 से 16 करने की बात हुई लेकिन क्या यह नहीं माना जाए कि कुछ ऐसे ही लोगों के विरोध के बाद इस...

16 दिसंबर, 2012 का वो हादसा. निर्भया के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे देश को झकझोर दिया. लेकिन उस घटना के 10 महीने पहले कोलकाता की सड़कों पर भी इसी तरह की एक दरिंदगी सामने आई थी, जब सुजैट जॉर्डन इसका शिकार हुईं. निर्भया गैंगरेप पर विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने अपनी मर्जी से अपनी पहचान सार्वजनिक की. इसी साल लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ. कोर्ट ने अब पार्क स्ट्रीट गैंगरेप में दोषी पाए गए तीन लोगों नासिर खान, रुमन खान और सुमित बजाज को दस-दस साल की सजा सुनाई है. लेकिन हैरानी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर शरबनी रे के बारे में सुन कर हो रही है. उन्होंने जज से तीनों दोषियों को कम से कम सजा देने की गुहार की.

पश्चिम बंगाल सरकार ने मामला सामने आने के बाद शरबनी को सरकारी वकील के पद से हटा दिया है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि एक सरकारी वकील होते हुए भी शरबनी ने ऐसा क्यों किया. वो भी सरकार से सलाह किए बगैर. वो तो सुजैट के लिए लड़ाई लड़ रहीं थी! रेप के मामले में अधिकतम सजा आजीवन कारावास है. तो क्या ये नहीं समझा जाए कि सरकारी वकील की गुहार को देखते हुए ही कोर्ट ने तीनों को दस-दस साल की सजा सुनाई. आखिर ये कैसे लोग हैं जो बलात्कारियों पर रहम की मांग करने लगते हैं.

आतंकवाद से ज्यादा बड़े गुनहगार हैं ऐसे लोग

याकूब मेमन को फांसी दी जाए या नहीं, इसे लेकर समाज दो धड़ो में बंट गया था. सब अपने-अपने हिसाब से दलील दे रहे थे. लेकिन पार्क स्ट्रीट गैंगरेप का मामला तो उससे भी खतरनाक लगता है. दोषियों को कम से कम सजा देने की सिफारिश वाली ये कैसी मानसिकता है! वो भी तब जब सुजैट इस दुनिया में नहीं हैं. कम से कम शरबनी इसका ही ख्याल कर लेतीं.

निर्भया गैंगरेप मामले के बाद महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के खिलाफ कैसे पूरे देश में एक बेचैनी का माहौल बना था. कानून में सुधार हुआ. जूवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव तक की मांग उठी. उम्र की सीमा को 18 से 16 करने की बात हुई लेकिन क्या यह नहीं माना जाए कि कुछ ऐसे ही लोगों के विरोध के बाद इस एक्ट में बदलाव नहीं हो सका.

जांच के बाद यह बात साफ हो गई थी कि निर्भया मामले में जूवेनाइल आरोपी ने सबसे ज्यादा दरिंदगी दिखाई. जो किशोर सारी हदें पार कर सकता है वह अब जेल से बाहर आ रहा है. सिर्फ इसलिए कि वह कानून की किताबों में तय उम्र से कुछ महीने छोटा था. नियम के अनुसार उसकी पहचान गुप्त रहेगी. एक मासूम की जिंदगी बर्बाद करने के बाद भी वह हमारे बीच होगा. हमारे आसपास.. लेकिन उसे कोई पहचान नहीं पाएगा. ये कैसा कानून है जहां हम रेप को अंजाम देने वालों की पहचान को छिपाने की बात करते हैं. उन्हें कम सजा देने की सिफारिश करने लगते हैं. अपराधियों पर रहनुमाई की पैरवी करने लगते हैं... ये कौन लोग हैं... कैसे लोग हैं?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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