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काले धन की हकीकत और सोशल मीडिया पर मची अराजकता

    • सुशांत झा
    • Updated: 13 नवम्बर, 2016 07:22 PM
  • 13 नवम्बर, 2016 07:22 PM
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वामपंथियों की वाल देखें तो दिलचस्प किस्म के रिएक्शन भरे पड़े हैं. किसी ने कहा कि फासीवाद आ गया. किसी ने कहा कि ट्रेड यूनियन एक्टिव करो और चक्का जाम कर दो. देश आम ढर्रे पर चल रहा है.

फेसबुक पर जरूर लगता है कि भारत में अराजकता मची है. सड़क पर ये बात पूरी तरह सही नहीं लगती. चायवाला कह रहा था कि बिक्री तो गिरी है लेकिन कोई बात नहीं, ये अच्छा कदम है. रिक्शा वाले की भी यही राय थी. वामपंथियों की वाल देखें तो दिलचस्प किस्म के रिएक्शन भरे पड़े हैं. किसी ने कहा कि फासीवाद आ गया (जबकि उन्हीं के मुताबिक 2014 में आ गया था!). किसी ने कहा कि ट्रेड यूनियन एक्टिव करो और चक्का जाम कर दो. पता नहीं उनके ट्रेड यूनियन में कितने लोग अब बचे हैं. 4-5 फीसदी वामपंथियों ने पूरे देश का ठेका ले लिया.

ये भी पढ़ें- इंटरनेट पर ये क्या ढूंढने लगे लोग !

एक ने कहा कि हमें इस फासीवाद को रोकना चाहिए, भले ही आंकड़ों में झूठ बोलना पड़े! जो कॉमरेड महीने में 100 रुपया अपने चाय-पान पर खर्च नहीं करते और दूसरे के पैसा से महीना भर दारू पीते हैं, उनको सबसे ज्यादा दर्द है!

मेरा सब्जी वाला 500 का नोट ले रहा है, हां, छुट्टा नहीं दे रहा. कहता है कि डायरी में लिख लीजिए, अगली बार एडजस्ट कर लीजिएगा. मैंने कहा कि तुम क्या करोगे पुराने नोट का? तो बोला कि हमारे पास ज्यादा नहीं बचते. दिन में 3-4 हजार का बेचता है और करीब 2000 मंडी में दे आता. 7-8 सौ बचते हैं तो उसे वो 40वें दिन बदलवा लेगा! उसे हड़बड़ी नहीं है.

 सांकेतिक फोटो

लोगबाग काम चला रहे हैं. एक संघी मित्र ने कहा कि वे पिछले 5 दिनों से संबंधों के आधार पर जी रहे हैं. उनके पास 40 रुपए हैं. वामपंथियों को सीखना...

फेसबुक पर जरूर लगता है कि भारत में अराजकता मची है. सड़क पर ये बात पूरी तरह सही नहीं लगती. चायवाला कह रहा था कि बिक्री तो गिरी है लेकिन कोई बात नहीं, ये अच्छा कदम है. रिक्शा वाले की भी यही राय थी. वामपंथियों की वाल देखें तो दिलचस्प किस्म के रिएक्शन भरे पड़े हैं. किसी ने कहा कि फासीवाद आ गया (जबकि उन्हीं के मुताबिक 2014 में आ गया था!). किसी ने कहा कि ट्रेड यूनियन एक्टिव करो और चक्का जाम कर दो. पता नहीं उनके ट्रेड यूनियन में कितने लोग अब बचे हैं. 4-5 फीसदी वामपंथियों ने पूरे देश का ठेका ले लिया.

ये भी पढ़ें- इंटरनेट पर ये क्या ढूंढने लगे लोग !

एक ने कहा कि हमें इस फासीवाद को रोकना चाहिए, भले ही आंकड़ों में झूठ बोलना पड़े! जो कॉमरेड महीने में 100 रुपया अपने चाय-पान पर खर्च नहीं करते और दूसरे के पैसा से महीना भर दारू पीते हैं, उनको सबसे ज्यादा दर्द है!

मेरा सब्जी वाला 500 का नोट ले रहा है, हां, छुट्टा नहीं दे रहा. कहता है कि डायरी में लिख लीजिए, अगली बार एडजस्ट कर लीजिएगा. मैंने कहा कि तुम क्या करोगे पुराने नोट का? तो बोला कि हमारे पास ज्यादा नहीं बचते. दिन में 3-4 हजार का बेचता है और करीब 2000 मंडी में दे आता. 7-8 सौ बचते हैं तो उसे वो 40वें दिन बदलवा लेगा! उसे हड़बड़ी नहीं है.

 सांकेतिक फोटो

लोगबाग काम चला रहे हैं. एक संघी मित्र ने कहा कि वे पिछले 5 दिनों से संबंधों के आधार पर जी रहे हैं. उनके पास 40 रुपए हैं. वामपंथियों को सीखना चाहिए. मेरे गांव में किसी को कोई दिक्कत नहीं है. कई लोग पुराने जमाने के हिसाब से धान के बदले सब्जी खरीद रहे हैं. बार्टर सिस्टम. कहते हैं कि कुछ दिनों की बात है.

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हां, इस पोस्ट का मतलब ये नहीं कि दिक्कत नहीं है. कल तक मुझे ही दिक्कत थी, लेकिन पिछले 6 दिन में मैंने खासी रकम बचा ली है. फिजूलखर्जी दूर. दो टाइम खाना घर पर बनाकर आया हूं. हां, इतने बड़े देश में कुछेक मानवीय तकलीफ की घटनाएं होंगी जरूर. इस बात से इनकार नहीं है. कुल मिलाकर 5 दिनों का अनुभव ये है कि 125 करोड़ का भारत अभी तक रिवोल्ट नहीं कर रहा है. सड़कों पर हजारों की भीड़ रैली नहीं कर रही है! अगली रिपोर्ट 5 दिन बाद.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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