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बंबई हाई कोर्ट की ये बात लिव-इन में रह रहे कपल जरूर सुनें

    • आईचौक
    • Updated: 12 जून, 2017 11:05 PM
  • 12 जून, 2017 11:05 PM
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बंबई हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई पर कहा है कि 'किसी परुष और महिला के बीच शारीरिक संबंध या वन नाइट स्टैंड हिन्दु कानूनों के तहत विवाह की परिभाषा में नहीं आता.

बात अभी कुछ दिनों पूर्व की है सम्पूर्ण मीडिया जगत में नारायण दत्त तिवारी और रोहित शेखर चर्चा में थे. चर्चा का कारण रोहित का एनडी को अपना पिता कहना और एनडी का उन्हें अपना पिता न मानना था. चौक से लेके चौराहे तक, गली से होते हुए मुहल्ले तक रोहित, एनडी को लगातार डैडी कहते चले आ रहे थे मगर एनडी ने रोहित को भाव न देते हुए अपना पुत्र मानने से मना कर दिया था. डैडी का ये रुख देखकर रोहित की भावना आहत हो गयी थी और उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इसके बाद जो हुआ आप जानते हैं आज एनडी गर्व से कहते हैं रोहित मेरा 'राजा बेटा' है.

ऊपर लिखी बातों को पढ़कर शायद आप सोच रहे हों कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि आज अचानक ही हमें नारायण दत्त तिवारी और रोहित शेखर की याद आ गयी. तो बताते चलें कि बंबई हाई कोर्ट से एक ऐसा फैसला आया है जिसको सुनकर किसी को भी रोहित और एनडी तिवारी की याद आ सकती है.

बंबई हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई पर कहा है कि 'किसी परुष और महिला के बीच शारीरिक संबंध या वन नाइट स्टैंड हिन्दू कानूनों के तहत विवाह की परिभाषा में नहीं आता. साथ ही अपने महत्वपूर्व आदेश में हाई कोर्ट ने ये भी कहा है कि 'अगर उन दोनों ने शादी नहीं की है, तो ऐसे संबंधों से जन्मे बच्चे को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा'.

कोर्ट ने कहा कि विवाह की मान्यता के लिए रीति-रिवाज जरूरी है

एक निजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बंबई हाईकोर्ट की जज जस्टिस मृदुला भटकर ने कहा, 'किसी संबंध को विवाह की मान्यता के लिए पारंपरिक रीति-रिवाज या फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी की जानी आवश्यक हैं. साथ ही किसी की इच्छा, इत्तेफाक या फिर अचानक बने शारीरिक संबंध को शादी नहीं बताया जा सकता.' लिव इन के तहत जन्में बच्चों पर अपना पक्ष रखते हुए जज ने ये भी कहा कि वर्तमान समय में...

बात अभी कुछ दिनों पूर्व की है सम्पूर्ण मीडिया जगत में नारायण दत्त तिवारी और रोहित शेखर चर्चा में थे. चर्चा का कारण रोहित का एनडी को अपना पिता कहना और एनडी का उन्हें अपना पिता न मानना था. चौक से लेके चौराहे तक, गली से होते हुए मुहल्ले तक रोहित, एनडी को लगातार डैडी कहते चले आ रहे थे मगर एनडी ने रोहित को भाव न देते हुए अपना पुत्र मानने से मना कर दिया था. डैडी का ये रुख देखकर रोहित की भावना आहत हो गयी थी और उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इसके बाद जो हुआ आप जानते हैं आज एनडी गर्व से कहते हैं रोहित मेरा 'राजा बेटा' है.

ऊपर लिखी बातों को पढ़कर शायद आप सोच रहे हों कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि आज अचानक ही हमें नारायण दत्त तिवारी और रोहित शेखर की याद आ गयी. तो बताते चलें कि बंबई हाई कोर्ट से एक ऐसा फैसला आया है जिसको सुनकर किसी को भी रोहित और एनडी तिवारी की याद आ सकती है.

बंबई हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई पर कहा है कि 'किसी परुष और महिला के बीच शारीरिक संबंध या वन नाइट स्टैंड हिन्दू कानूनों के तहत विवाह की परिभाषा में नहीं आता. साथ ही अपने महत्वपूर्व आदेश में हाई कोर्ट ने ये भी कहा है कि 'अगर उन दोनों ने शादी नहीं की है, तो ऐसे संबंधों से जन्मे बच्चे को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा'.

कोर्ट ने कहा कि विवाह की मान्यता के लिए रीति-रिवाज जरूरी है

एक निजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बंबई हाईकोर्ट की जज जस्टिस मृदुला भटकर ने कहा, 'किसी संबंध को विवाह की मान्यता के लिए पारंपरिक रीति-रिवाज या फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी की जानी आवश्यक हैं. साथ ही किसी की इच्छा, इत्तेफाक या फिर अचानक बने शारीरिक संबंध को शादी नहीं बताया जा सकता.' लिव इन के तहत जन्में बच्चों पर अपना पक्ष रखते हुए जज ने ये भी कहा कि वर्तमान समय में लिव इन रिलेशन और उससे जन्में बच्चे कानूनी जानकारों के लिए एक पेचीदा मुद्दा और चुनौती बन गए हैं.

ज्ञात हो कि बंबई हाईकोर्ट की जज ने हिन्दू विवाह अधीनियम के हवाले से ये भी कहा कि हिन्दू विवाह अधीनियम के तहत बच्चे के अधिकारों पर फैसले के लिए विवाह साबित करना जरूरी होता है, भले ही उसे अवैध क्यों न करार दिया गया हो. आपको बताते चलें कि कोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसकी दो पत्नियां थीं. जब यह बात साबित हो गई कि व्यक्ति ने दूसरी बार शादी की थी, कोर्ट ने उसकी दूसरी शादी को अवैध घोषित कर दिया. हालांकि, अदालत द्वारा उसकी दूसरी पत्नी से जन्म लेने वाली बच्ची को संपत्ति में अधिकार दिया गया.

गौरतलब है कि बीते कुछ सालों में ऐसे मामलों में भारी इजाफा देखने को मिला है जहां जोड़े साथ तो रह रहे हैं मगर उन्होंने शादी नहीं करी है. इस दौरान उत्पन्न हो रहे बच्चों को न तो समाज में ही जगह मिल पा रही है और न ही उन्हें उनके पिता की जायदाद में हिस्सा ही मिल पा रहा है. जिस कारण उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना अब भी एक टेढ़ी खीर है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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