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माताएं बताएं बेटियों को कि खिलौना नहीं हैं वो

    • शची कक्कड़
    • Updated: 05 अगस्त, 2016 05:57 PM
  • 05 अगस्त, 2016 05:57 PM
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विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें पुरूषों को स्त्री का मालिक और स्त्री को पुरूष की दासी ही माना जाता रहा है. और सबसे हैरानी की बात ये है कि स्त्री इसे बहुत मान के साथ स्वीकार भी करती है.

शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो, जब इस देश में ‪‎बलात्कार न होता हो. शायद हर मिनट पर होता होगा. लेकिन जब इस ‪‎जघन्य अपराध की कोई नई तरह की क्रिया सामने आती है तो उस पर कुछ दिनों तक बहस-खबर-वाद विवाद आदि होता है. फिर ये खबरें भी और खबरों की तरह पढ़ कर रद्दी में डाल दी जाती हैं.

आज ये खबरें विज्ञापन जैसी ही हैं जो कहती हैं कि- लड़कियों खुश मत हो, तुम कहीं भी-कभी भी भरे बाजार नंगी की जा सकती हो. चाहे तुम अपने परिवार के साथ हो या कपड़ों की दुकान भी पहन लो. जो जब जहां चाहेगा, तुमको शिकार बना ही लेगा.

ये भी पढ़ें- रेप के वीडियो बेचने-खरीदने वाले ये वहशी कौन हैं?

सब बात करते हैं कि इसे रोका कैसे जाए, लेकिन इस अपराध की दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है. अगर मैं इस बारे में सोचती हूं तो ये समझ पाती हूं कि ये अपराध सबसे पहले घरों से शुरू होता है. कितने प्रतिशत मर्द होंगे जो अपनी पत्नी की सहमति पर ही संबध बनाते हैं, शायद 20% या इससे भी कम?

 अपराध सबसे पहले घरों से शुरू होते हैं

क्योंकि हमारे देश में विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें पुरूषों को स्त्री का मालिक और स्त्री को पुरूष की दासी ही माना जाता रहा है. और सबसे हैरानी की बात ये है कि स्त्री इसे बहुत मान के साथ स्वीकार करती है, कि उसका मर्द उस पर पूरा हक रखता है.

मैंने पढ़ी लिखी महिलाओं की भी यही मानसिकता देखी...

शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो, जब इस देश में ‪‎बलात्कार न होता हो. शायद हर मिनट पर होता होगा. लेकिन जब इस ‪‎जघन्य अपराध की कोई नई तरह की क्रिया सामने आती है तो उस पर कुछ दिनों तक बहस-खबर-वाद विवाद आदि होता है. फिर ये खबरें भी और खबरों की तरह पढ़ कर रद्दी में डाल दी जाती हैं.

आज ये खबरें विज्ञापन जैसी ही हैं जो कहती हैं कि- लड़कियों खुश मत हो, तुम कहीं भी-कभी भी भरे बाजार नंगी की जा सकती हो. चाहे तुम अपने परिवार के साथ हो या कपड़ों की दुकान भी पहन लो. जो जब जहां चाहेगा, तुमको शिकार बना ही लेगा.

ये भी पढ़ें- रेप के वीडियो बेचने-खरीदने वाले ये वहशी कौन हैं?

सब बात करते हैं कि इसे रोका कैसे जाए, लेकिन इस अपराध की दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है. अगर मैं इस बारे में सोचती हूं तो ये समझ पाती हूं कि ये अपराध सबसे पहले घरों से शुरू होता है. कितने प्रतिशत मर्द होंगे जो अपनी पत्नी की सहमति पर ही संबध बनाते हैं, शायद 20% या इससे भी कम?

 अपराध सबसे पहले घरों से शुरू होते हैं

क्योंकि हमारे देश में विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें पुरूषों को स्त्री का मालिक और स्त्री को पुरूष की दासी ही माना जाता रहा है. और सबसे हैरानी की बात ये है कि स्त्री इसे बहुत मान के साथ स्वीकार करती है, कि उसका मर्द उस पर पूरा हक रखता है.

मैंने पढ़ी लिखी महिलाओं की भी यही मानसिकता देखी है कि पति को ना कहना गलत बात है, वो चाहे किसी शारीरिक कष्ट में भी क्यों ना हो, पति की वासना पूर्ति अपना परम कर्तव्य मानती है. हर रात उसका बलात्कार होता है और उसे ये पता तक नहीं चलता क्योंकि उसे यही समझाया गया है कि तुम पैदा ही पुरूष की वस्तु बनने के लिए हुई हो, खुद का कोई वजूद नहीं है.

ये भी पढ़ें- 'हां, मैंने तुम्हारी मां का रेप किया, तो क्या?'

लेकिन मेरी नजर में ये भी बलात्कार ही है. तो सबसे पहले अपनी बेटियों को ये बताएं कि वो कोई सामान नहीं, जिसे जब चाहा इस्तेमाल कर लिया. बेटियां इस सृष्टि की जन्मदायनी हैं, कोई खिलौना नहीं. कहते हैं पहला स्कूल घर होता है और मां पहली शिक्षिका, तो सबसे पहले पहली शिक्षिका को ही बेटी को ये बताना होगा कि स्त्री भोगने भर की चीज नहीं. उसका अपना वजूद है, उसने इस दुनिया में पुरुषों के लिए जन्म नहीं लिया है. माताएं जिस तरह अपनी बेटियों को संस्कार सिखाती हैं, उन्हें ये बातें भी संस्कारों में ढालनी होंगी. और हां, उसे‪ ‎रेड लाइट ऐरिया के विषय में भी बताएं, जहां अनगिनत मजबूरियों के नाम पर पैसे देकर महान पुरूष अपनी ‎पिपासा की पूर्ति कर सकते हैं. ये भी वो जगह है, जहां हर रोज, मजबूरी के नाम पर हजारों बलात्कार होते हैं और कई बार इसे ‎समाजसेवा जैसा भी कहते सुनती हूं.

ये भी पढ़ें- आसपास देखिए कैसे नजरों से ही रेप किए जा रहे हैं

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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