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समाज

सब सुना जाता है, इसका मतलब ये नहीं कि कुछ भी बोलेंगे

    • चंदन कुमार
    • Updated: 03 अगस्त, 2015 02:31 PM
  • 03 अगस्त, 2015 02:31 PM
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जस्टिस काटजू ने महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट बता डाला - फिर भी आजाद हैं. आम जनता तो काले झंडे भी दिखा दे तो भी जेल में डाल दिया जाता है.

जस्टिस काटजू फिर से चर्चा में हैं. हमेशा ही रहते हैं. इस बार मामला थोड़ा कानूनी पेंच वाला है. काटजू ने करियर के आखिरी दिनों में (सुप्रीम कोर्ट) जहां नौकरी की, उसी की शरण में गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने 'साथी' की बात सुनने पर हामी भर दी है.

खबर बड़ी सीधी सी है - काटजू ने अपने ब्लॉग 'सत्यम ब्रूयात- जस्टिस काटजू' पर महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट बताया था. लोकसभा के सम्मानित सदस्यों को इस पर आपत्ति हो गई और उन्होंने काटजू के खिलाफ एक रिजॉल्यूशन पास कर दिया. काटजू नाराज हो गए. फ्रीडम ऑफ स्पीच की दुहाई देते हुए इस रिजॉल्यूशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. कोर्ट ने इनकी याचिका पर सुनवाई करने की हामी भर दी है.

'ब्रिटिश एजेंट' की नाक के नीचे न्याय
अंग्रेजों की गुलामी से हमने कभी खून तो कभी अहिंसा के रास्ते आजादी पाई. मोहन दास करमचंद गांधी महात्मा कहे जाने लगे. हमेशा कहे जाएंगे. हर सरकारी ऑफिस में उनकी मौजूदगी अनिवार्य है - तस्वीरों में. नरेंद्र मोदी ने भी सबसे पहले जब पीएम ऑफिस में प्रवेश किया तो उन्हें ही नमन किया. कभी किसी कोर्ट में गया नहीं, लेकिन पूरा यकीन है कि वहां भी महात्मा गांधी की तस्वीर होगी जरूर. तो क्या आप पूरी जिंदगी एक 'ब्रिटिश एजेंट' की नाक के नीचे न्याय देते रहे? या पीएम मोदी भी 'ब्रिटिश एजेंट' से आशीर्वाद लेकर अंग्रेजों के लिए काम शुरू कर चुके हैं?          

'ब्रिटिश एजेंट' की हरी पत्ती वाला वेतन
भारत में रुपया मतलब महात्मा गांधी. नोट जाली है या नहीं, यह भी 'महात्मा गांधी' ही बता पाते हैं. अब चूंकि आप ताउम्र सरकारी नौकर रहे हैं, ऐसे में वेतन भी आपको मिलता होगा. आपकी तो आत्मा ही मर जाती होगी उन नोटों को देख कर, है न! लेकिन आपकी तकलीफ मैं समझ रहा हूं, पेट की खातिर आप 'ब्रिटिश एजेंट' का नोट पेटी में डालते होंगे... अभी भी डाल रहे होंगे... मजबूरी जो न कराए!  ...

जस्टिस काटजू फिर से चर्चा में हैं. हमेशा ही रहते हैं. इस बार मामला थोड़ा कानूनी पेंच वाला है. काटजू ने करियर के आखिरी दिनों में (सुप्रीम कोर्ट) जहां नौकरी की, उसी की शरण में गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने 'साथी' की बात सुनने पर हामी भर दी है.

खबर बड़ी सीधी सी है - काटजू ने अपने ब्लॉग 'सत्यम ब्रूयात- जस्टिस काटजू' पर महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट बताया था. लोकसभा के सम्मानित सदस्यों को इस पर आपत्ति हो गई और उन्होंने काटजू के खिलाफ एक रिजॉल्यूशन पास कर दिया. काटजू नाराज हो गए. फ्रीडम ऑफ स्पीच की दुहाई देते हुए इस रिजॉल्यूशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. कोर्ट ने इनकी याचिका पर सुनवाई करने की हामी भर दी है.

'ब्रिटिश एजेंट' की नाक के नीचे न्याय
अंग्रेजों की गुलामी से हमने कभी खून तो कभी अहिंसा के रास्ते आजादी पाई. मोहन दास करमचंद गांधी महात्मा कहे जाने लगे. हमेशा कहे जाएंगे. हर सरकारी ऑफिस में उनकी मौजूदगी अनिवार्य है - तस्वीरों में. नरेंद्र मोदी ने भी सबसे पहले जब पीएम ऑफिस में प्रवेश किया तो उन्हें ही नमन किया. कभी किसी कोर्ट में गया नहीं, लेकिन पूरा यकीन है कि वहां भी महात्मा गांधी की तस्वीर होगी जरूर. तो क्या आप पूरी जिंदगी एक 'ब्रिटिश एजेंट' की नाक के नीचे न्याय देते रहे? या पीएम मोदी भी 'ब्रिटिश एजेंट' से आशीर्वाद लेकर अंग्रेजों के लिए काम शुरू कर चुके हैं?          

'ब्रिटिश एजेंट' की हरी पत्ती वाला वेतन
भारत में रुपया मतलब महात्मा गांधी. नोट जाली है या नहीं, यह भी 'महात्मा गांधी' ही बता पाते हैं. अब चूंकि आप ताउम्र सरकारी नौकर रहे हैं, ऐसे में वेतन भी आपको मिलता होगा. आपकी तो आत्मा ही मर जाती होगी उन नोटों को देख कर, है न! लेकिन आपकी तकलीफ मैं समझ रहा हूं, पेट की खातिर आप 'ब्रिटिश एजेंट' का नोट पेटी में डालते होंगे... अभी भी डाल रहे होंगे... मजबूरी जो न कराए!    

साल-दर-साल छुट्टियां भी मनाते रहे
अपने यहां 2 अक्टूबर को छुट्टी होती है - सब जगह. हमें तो स्कूल में यही बताया गया कि 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे नेशनल हॉलीडे के तौर पर मनाया जाता है. शायद आप नहीं जानते होंगे. अगर जानते तो मुझे पूरा विश्वास है कि आप कम से कम एक 'ब्रिटिश एजेंट' के पैदा होने की खुशी में छुट्टी तो नहीं मनाते. तब शायद आप स्वच्छता अभियान पर निकल जाते. सभी एजेंटों का सफाया कर देते. और करते भी क्यों नहीं? इतने सारे एजेंट आपकी लिस्ट में जो ठहरे : सुभाष चंद्र बोस (जापानी एजेंट), लोकमान्य तिलक (ब्रिटिश एजेंट).

आपने देश की न्याय व्यवस्था में उच्चतम स्तर पर काम किया है. आपके काम को सलाम. आपके फ्रीडम ऑफ स्पीच का सम्मान. लेकिन जरा इस पर गौर फरमाइए :

हमने देखा है कि पीएम-सीएम की रैली में काले झंडे दिखाने वालों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. पाकिस्तान या ISIS के झंडे लहराने पर सुरक्षा बलों की लाठियां खानी पड़ती हैं, हवालात में रातें गुजारनी पड़ती हैं. आपके फ्रीडम ऑफ स्पीच की तरह आखिर इन लोगों को भी फ्रीडम ऑफ थॉट तो होनी ही चाहिए. आपके मामले को देख कर तो यही लग रहा है कि ऐसा नहीं है. संविधान में तो सब बराबर हैं न! हैं या नहीं? आप न सिर्फ बोलते हैं, लिखते हैं बल्कि आपकी रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट तक आपकी बात सुनता है. कभी सोचा है आपको या आप जैसों के साथ यह विशिष्ट व्यवहार क्यों?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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